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Sunday, February 12, 2012

ब्रिटिश लुटेरे

          ब्रिटेन में भारतीय मूल के निवासियों को निशाने पर रखते हुए उनके घरों में सोने की लूट के वास्ते सेंधमारी की जा रही है। दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप के लोग अपनी रूढ़िवादी परम्परा को संजोये हुए, आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए सोना बचाकर रखते हैं। सोने का संग्रहण ही भारतीयों के लिए मुसीबत बन गया है। ब्रिटेन में हथियारबन्द ब्रिटिश लुटेरे मैटल डिटेक्टर के साथ वहॉं बसे भारतीय मूल के निवासियों के घरों में सेंधमारी करके सबकुछ लूटे ले रहे हैं।
          एशियाई मूल के लोगों के घरों में सेंधमारी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए ब्रिटेन की पुलिस ने उन इलाकों में विशेष जागरूकता अभियान चलाने का निर्णय किया है, जहॉं भारतीय उप महाद्वीप के लोग अधिक संख्या में रहते हैं। भारतीय मूल के लोग बर्मिघम, स्लॉज, ईलिंग, लीसेस्टर, मैनचेस्टर, और ब्रेडफोर्ड में रहते हैं, इसीलिए यह अभियान विशेष तौर पर यहीं चलाया जा रहा है। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही है। ब्रिटेन में मन्दी के बावजूद सोने की कीमतें बढ़ रही हैं, इसी कारण सेंधमार सोने की चोरी को अंजाम दे रहे हैं।
          सोने की रीसेल वैल्यू चूँकि अच्छी है और निशाने पर भारतीय मूल के ही लोग हैं, इसी कारण अपराधियों को भी पता है कि उनके साथ उनकी पुलिस कड़ाई से पेश नहीं आयेगी। वरना क्या कारण है कि विश्वभर में प्रसिद्ध स्कॉटलैण्ड पुलिस के मौजूद रहते केवल भारतीयों के साथ ही इस तरह की घटनायें हो रही हैं। सेन्ट्रल लन्दन स्थित द बैंक ऑफ इंग्लैण्ड के खजाने में 4600 टन स्वर्ण भण्डार सुरक्षित है। सोने की बिस्कुटनुमा 24 कैरेट वाली सिल्लियों के इस भण्डार की कीमत 10035.61 अरब रूपये है। आर्थिक मन्दी से जूझ रहे इंग्लैण्ड -वासियों के लिए इस खजाने का क्या औचित्य है, जब वे मंदी के कारण गलत राह पकड़ रहे हैं। क्या यह ब्रिटेनवासियों के लिए शर्मिंदगी का विषय नहीं है।
          इस खजाने से पूरे विश्व को इंग्लैण्ड यह समझाने की भले ही असफल कोशिश करे कि वह समृद्धशाली है, लेकन सत्यता यह है कि जबतक वह अपने सोने के भण्डार को बेचता नहीं है उसके यहॉं छाई मन्दी के दौर में ऐसी खोखली समृद्धि का क्या फायदा? वर्ष 1991 में भारत पर 163000 करोड़ रूपये का कर्ज था और जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री स्व0 चन्द्रशेखर के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार ने 67 टन सोना गिरवी रखकर आई.एम.एफ. से दो अरब डॉलर का कर्ज लिया था।
          भारत की इस नीति का अनुशरण करके ब्रिटेन अपने यहॉ सुरक्षित सोने के भण्डार में से कुछ टन सोना भारत को बेंचकर अपने यहॉं आई मन्दी से सामना करने के साथ ही सेंधमारी करने वाले लोगों में हो रहे इजाफे को कम जरूर कर सकता है। इसी के साथ ब्रिटेन मन्दी की मार से भी राहत पा सकता है। ब्रिटेनवासी कृपया इस पोस्ट पर अपने कमेन्ट प्रेषित कर वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहें। (सतीश प्रधान)


Sunday, February 5, 2012

ऐसे डॉक्टर और केमिस्ट दोनों ठग


          भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय यदि दवा कम्पनियों के दबाब में नहीं आया तो जल्द ही डॉक्टरों और दवा कम्पनियों की मिलीभगत से चलने वाला खेल बन्द हो सकता है। केन्द्रीय योजना आयोग ने मंत्रालय से कहा है कि वह सभी सरकारी और प्राइवेट डॉक्टरों के लिए कम्पनियों के नाम से दवा लिखने पर तुरन्त पाबन्दी लगाये। इसकी जगह उन्हें सिर्फ दवा का जेनेरिक नेम लिखने को कहा जाये। इसी के साथ दवा कम्पनियों के प्रचार और मार्केटिंग के गोरखधन्धे पर भी नज़र रखने को जरूरी बताते हुए योजना आयोग ने कहा है कि इस मद में होने वाले खर्च की पाई-पाई का हिसाब सार्वजनिक किया जाये।

          केन्द्रीय योजना आयोग की स्वास्थ्य संचालन समिति ने अगली पंचवर्षीय योजना के लिए तैयार की गई अपनी रिपोर्ट में दवा क्षेत्र के नियमन को बेहद जरूरी बताया है। डॉक्टर चाहे सरकारी अस्पताल का हो अथवा प्राइवेट अस्पताल का, अथवा अपना क्लीनिक चलाता हो, वह मरीज को केवल जेनेरिक नेम या इंटरनेशनल नान प्रोप्राइटरी नेम(आईएनएन)से ही दवाएं लिखे। साथ ही सरकारी क्षेत्र में दवाओं की खरीद और वितरण के हर स्तर पर भी यही तरीका अपनाया जाये।

          केन्द्रीय योजना आयोग की इस जनहितकारी सिफारिश को अमल में लाते हुए यदि स्वास्थ्य मंत्रालय कुछ माह के अन्दर ऐसा नियम बना देता है तो भारत में दवा कम्पनियों और डॉक्टरों के बीच चल रहा हाई प्रोफाइल गेम बन्द हो सकता है। वर्तमान में दवा कम्पनियां अपनी मार्केटिंग व्यवस्था के तहत डॉक्टरों को तरह-तरह से प्रभावित करती हैं। ए0सी0, टी0वी0, फर्नीचर आदि के साथ इनवर्टर तक दवा कम्पनियॉं डॉक्टरों को मुफ्त में मुहैय्या कराती हैं, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है, जिन्हें न सिर्फ मंहगी दवाएं ही खरीदनी पड़ती हैं, बल्कि कईबार तो अनावश्यक एण्टी बायोटिक दवाओं का प्रयोग भी करना पड़ता है, जो सीधे-सीधे उसकी किडनी पर प्रभाव डालती हैं। आयोग तो चाहता है कि मंत्रालय सिर्फ ऐसा नियम बनाने तक ही सीमित ना रहे, बल्कि इसकी नियमित जॉच यानी प्रेस्क्रिप्शन आडिट की भी व्यवस्था करे। लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय क्या चाहता है यह आपको बाद में बतायेंगे। अभी आपको बताते हैं, उन मेडीकल स्टोर का खेल जो सरकारी अस्पताल के पास अथवा नर्सिंग होम या प्राइवेट अस्पताल के पास अथवा नर्सिंग होम या प्राइवेट अस्पताल में खोले जाते हैं।
          भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के लखनऊ जनपद के तेलीबाग क्षेत्र में रहने वाले रामकुमार श्रीवास्तव के पैर में दर्द था। जब वो इलाज कराने सिविल अस्पताल गये तो डॉक्टर ने पर्चे पर सात दिन की दवाएं लिख दीं। इसमें तीन दवाएं बाहर से खरीदनी थीं। मरीज अस्पताल के सामने स्थित मेडीकल स्टोर पर दवा लेने पहुंचा, तो पता चला कि दवाएं 700 रूपये की हैं। इतने पैसे थे नहीं, लिहाजा मरीज ने केमिस्ट से सात दिन के बजाय दो दिन की दवाएं देने की बात कही, लेकिन केमिस्ट ने इससे इन्कार कर दिया। निराश रामकुमार ने ये दवाएं अपने घर के पास यानी तेलीबाग के आसपास के दवाखानों पर ढ़ूंढ़ने का भरसक प्रयास किया लेकिन निराश हुए। अंततः दो दिन बाद सिविल अस्पताल के सामने आकर सात दिन की दवाएं लीं।

          मरीज का शोषण तीन चरणों पर हुआ। पहला तब जब मरीज को बाहर की दवाएं लिखी गईं। दूसरा तब जब मेडीकल स्टोर पर बैठे केमिस्ट ने उसे दो दिन की दवा नहीं दी, क्योंकि उसे पता है कि मरीज का वापस आना मजबूरी है। ये दवाएं उसे कहीं और मिल ही नहीं सकतीं। मरीज का शोषण तीसरी बार तब हुआ जब अपने घर से सिविल अस्पताल तक उसे महज दवाएं लेने आने-जाने के लिए सौ रूपये किराया खर्च करना पड़ा। यह स्थिति किसी एक मरीज या एक अस्पताल की नहीं है। हर अस्पताल व आसपास स्थित मेडीकल स्टोरों का यही हाल है। यदि मरीज ने छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्व विघालय को दिखाया है तो वहॉं की लिखी दवाएं चिविवि के बाहर मौजूद मेडीकल स्टोर पर ही मिलेंगीं। इसी तरह सिविल अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा लिखी दवाएं उसी अस्पताल के बाहर के मेडीकल स्टोरों पर मिलेंगीं। लोहिया और बलरामपुर अस्पताल भी इससे अछूते नहीं हैं। अस्पताल से मरीज-तीमारदार के निकलते ही मेडीकल स्टोर के लोग उन्हें अपने यहां बुलाने पर आमादा होते हैं।

          मरीजों की जेब पर दवा कम्पनियों और डॉक्टरों की ही नहीं, मेडीकल स्टोर वाले भी नज़र गड़ाए हुए हैं। केमिस्ट महंगी दवाओं की स्ट्रिप काटकर बेचने को तैयार नहीं। डॉक्टर ने दस दिन की दवा लिखी है तो, वे दो-तीन दिन की दवा नहीं देंगे। गरीब मरीजों का हर स्तर पर शोषण हो रहा है। दुखद यह है कि इंडियन मेडीकल एसोसिएशन और केमिस्ट एसोसिएशन इस समस्या से गरीब मरीजों को निजात दिलाने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं। (सतीश प्रधान)

Wednesday, February 1, 2012

हिन्दू किशोरियों को नापाक करता पाक

          पाकिस्तान के दक्षिणी हिस्से में बसे प्रमुख शहर करांची में एक हिन्दू किशोरी का पहले तो जबरन धर्म परिवर्तन कराकर इस्लाम कबूल कराया गया और इसके बाद उसकी करांची के ल्यारी क्षेत्र के मुस्लिम अपराधी युवक आबिद से शादी करा दी गई। कहने के लिए वहॉं कि एक स्थानीय अदालत में इस मामले की सुनवाई चल रही है।
          इस लड़की का नाम भारती है, जिससे जबरन इस्लाम कबूल करवाकर उसका नाम आयशा कर दिया गया है। लड़की को जब अदालत में पेश किया गया तो वह काले रंग की मुस्लिम औरतों की पोशाक अबाया पहने हुई थी। उसे इस कदर डराया-धमकाया गया था कि वह अपने माता-पिता तक से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी।
          वैसे भी पाकिस्तान में हिन्दूओं के साथ यह आम बात है। हिन्दू किशोरियों के साथ पहले तो बलात्कार किया जाता है, और यदि ज्यादा शोर-शराबा हुआ तो किसी मुस्लिम के साथ उसकी शादी की रस्म अदायगी कर उसे जायज ठहराने का अम्ली जामा पहनाया जाता है। हिन्दू लड़कियों के साथ ऐसा घिनौना अपराध आम बात है जिसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है। इसलिए स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में हिन्दू सुरक्षित नहीं हैं।
          मुसलमानों में चूंकि चार शादियां जायज हैं, इसी बिना पर वह हिन्दू लड़कियों के साथ पहले रेप करते हैं, और जब फंसने का नम्बर आता है तो निकाह कर लेते हैं और इसके पश्चात उस लड़की को वेश्या की तरह इस्तेमाल करते हैं। क्या इसके विरूद्ध आवाज उठाने की हिम्मत किसी भारतीय में नहीं है अथवा केवल मंदिर वहीं बनायेंगे और देश को मूर्ख बनायेंगे, इसी नारे से हिन्दुत्व को जिन्दा रखेगी, हिन्दूओं की रहनुमा कहलाई जाने वाली पार्टी क्या पूरे विश्व में फैले हिन्दूओं की रक्षा का दायित्व निभा सकने में असमर्थ है।
          करांची स्थित भारतीय दूतावास क्या कर रहा है, गम्भीर चिंता का विषय है! क्या करांची स्थित दूतावास में माधुरी गुप्ता जैसे ही अधिकारी तैनात हैं जो आईएसआई का पैसा खाकर उनके तलुये चाट रहे हैं? भारत की राजनीति में क्या इस पर किसी राजनीतिक दल की प्रतिक्रिया नहीं आनी चाहिए? कोई ऐसी ठोस व्यवस्था नहीं होनी चाहिए जिससे ऐसी घिनौनी साजिश पर विराम लग सके। (सतीश प्रधान)

Sunday, January 29, 2012

आईएसआई एजेण्ट पर आरोप तय

          भारत की पूर्व राजनयिक माधुरी गुप्ता द्वारा आईएसआई को संवेदनशील दस्तावेज दिए जाने के मामले में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने आरोप तय करते हुए उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत दे दी है।इस मामले में अब 22 मार्च से अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू होगी। तीस हजारी कोर्ट के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश पवन कुमार जैन ने 53 वर्षीय माधुरी पर जासूसी के लिए सरकारी गोपनीयता कानून की धारा-3 और धारा-5 तथा आइपीसी की धारा-120 बी के तहत आरोप तय कर दिये हैं।

                    इन्हीं माधुरी गुप्ता के माध्यम से आईएसआई कनेक्शन रखने वाले एक पत्रकार के बारे में लखनऊ से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार-पत्र, उत्पीड़न की पुकार ने विस्तृत रपट अभी हाल ही में प्रकाशित की है, निश्चित तौर पर यह खबर जबरदस्त संदेह एवं सनसनाहट उत्पन्न करती है। समाचार-पत्र की प्रति एवं उसे प्रकाशित करने वाले प्रकाशक की छानबीन कर वस्तुस्थिति से अवगत होने की कोशिश की जा रही है और सत्यता का भान होते ही विस्तृत रपट पोस्ट की जायेगी। (सतीश प्रधान)

Friday, January 27, 2012

धर्मान्तरण से दूर रहें ईसाई संगठनः जयराम रमेश

          भारत के केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कड़े शब्दों में कहा है कि कैथालिक चर्च द्वारा संचालित संगठन माओवाद प्रभावित इलाकों में विकास कराने में मदद करें, लेकिन लक्ष्मण रेखा का सम्मान करें और धर्मान्तरण की गतिविधियॉं नहीं चलाएं। जाहिर है एक केन्द्रीय मंत्री ने ऐसी सीख बिना वजह नहीं दी है, जरूर इसके पीछे का इतिहास संदिग्ध दिखाई देता है! ऐसी टिप्पणी से सहमत होना लाजिमी है कि कैथोलिक संगठन जरूर धर्मान्तरण के खेल में संलग्न होंगे।

          जयराम रमेश ने कैथोलिक संगठन कैरिटस इण्डिया के स्वर्ण जयन्ती समारोह का उदघाटन करते हुए कहा कि मैं कैरिटस इण्डिया से धर्मान्तरण में शामिल न होने की भावना के सम्मान की उम्मीद करता हूं। यह उद्देश्य नहीं है। उन्होंने कहा कि उद्देश्य आपके जैसे संगठनों की शक्तियों को सरकार और आदिवासी समुदायों के बीच विश्वास की कमी को तोड़ने में हमारी मदद में इस्तेमाल किये जाने का है। यह हमारा उद्देश्य है।

आर्कबिशपों और बिशपों सहित कैथोलिक पादरी श्रोताओं की खचाखच भरी भीड़ को सम्बोधित करते हुए मंत्री ने कहा कि वह कैरिटस इण्डिया के बारे में कैथोलिक संगठन के रूप में नहीं, बल्कि कैथोलिक द्वारा संचालित सामाजिक संगठन के रूप में बात कर रहे हैं। माओवादियों के प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि चुनौती यह है कि हम माओवादी हिंसा के समूचे मुद्दे से किस तरह निपटें जो आदिवासी क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैल रही है।
          जयराम रमेश ने कहा कि उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि सभी मध्य भारतीय आदिवासी इलाके आज उस बुराई की चपेट में हैं जिसे हमारे प्रधानमंत्री हमारे देश की सबसे गम्भीर आंतरिक सुरक्षा चुनौती करार दे चुके हैं। जयराम रमेश ने कहा कि एक ऐसी विचारधारा की वजह से इन इलाकों में लोग शांति, सामान्य स्थिति और सौहार्द लाने में सक्षम नहीं हो पा रहे, जो सभी लोकतांत्रिक संस्थानों को उखाड़ फेंकने पर केन्द्रित है। उन्होंने कहा कि कैरिटस इण्डिया और रामकृष्ण मिशन जैसे संगठनों को इन क्षेत्रों में महत्वपूंर्ण भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन सामाजिक संगठनों को एक लक्ष्मण रेखा का सम्मान करना चाहिए। माओवाद प्रभावित इलाकों में कैरिटस इण्डिया को शामिल किए जाने पर भाजपा शासित राज्य झारखण्ड में संभावित विरोध को देखते हुए रमेश ने कहा कि आपको इसके लिए तैयार रहना चाहिए। 
(रीता सक्सेना)