ब्रिटिशर्ष की देन चाय ने भारतीय समाज में अपना विशेष स्थान बना लिया है। एक प्याली चाय पर किसी को भी आमंत्रित करना अथवा आये हुए को एक प्याली चाय से नवाजना आने वाले के मान सम्मान में बेशक इजाफा करता है। झुग्गी-झोंपड़ी हो मुख्यमंत्री का आवास अथवा कार्यालय या कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का कार्यालय या आवास, सभी जगह आपको इस अनूठे पेय के दर्शन आसानी से हो जायेंगे।
यह बात अलग है कि झुग्गी-झोंपड़ी (स्लम एरिया) में आपको जो चाय मिलगी वह ब्राण्डेड कम्पनी की न होकर खुली चूरा चायपत्ती (रेड डस्ट) से बनी हो तथा सस्ते कॉंच की गिलास अथवा प्लास्टिक की गिलास में मिले जबकि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के यहॉं आसाम और दार्जलिंग की बड़ी पत्ती (ऑरेन्ज पोक) वाली ग्रीन लेवल (ब्रुक बॉण्ड की ब्राण्डेड) चाय केतली में खौलते पानी में डालकर, थोडी देर ढ़ककर रखने के बाद आपको सर्व की जाये। इसमें दूध,चीनी अथवा नीबू अलग से रखकर दिया जाता है, या केतली में पत्ती डालने के स्थान पर तुलसी चायपत्ती/बड़ी पत्ती के टी बैग्स अलग से सर्व किये जायें। ऐसी चाय पीने के लिए आपको बोन चाइना के लॉ-ओपाला वाले टी सेट्स, अलग से दिखाई देंगे, जो चाय के स्वाद को वाह चाय में बदलने का एहसास कराते हैं। इस प्रकार से देखा जाये तो सड़क और ढ़ाबों से लेकर फाइव स्टार होटलों तक में चाय का चलन पूरे उत्कर्ष पर दिखाई देता है।
भारत में चाय का उत्पादन आसाम, दार्जलिंग, कुन्नूर और ऊटी में किया जाता है, इसी के साथ-साथ उत्तराखण्ड राज्य में भी इसकी पैदावार को बढ़ाकर वहॉं पर इसकी प्रोसेसिंग की तैयारी की जा रही है। सबसे अच्छी चायपत्ती दार्जलिंग (भारत) की होती है, जिसका 80 प्रतिशत हिस्सा विदेश के लिए निर्यात कर दिया जाता है। इसके बाद नम्बर आता है आसाम(भारत) की चाय पत्ती का, इसका भी 50 प्रतिशत हिस्सा विदेश में निर्यात कर दिया जाता है। अन्त में नम्बर आता है, साऊथ के तमिलनाडू राज्य में स्थित कुन्नूर और ऊटी के पहाड़ों पर उगाई जाने वाली चाय पत्ती का।
चाय का पौधा नींबू के पौधे से छोटा ही होता है, एवं इसके एक पेड़ से कई वर्षों तक चाय की पत्तियों को चुना जाता है। इसके पौधे से एक-एक पत्तियॉं चुनी जाती हैं। इन्हें झकझोर कर तोड़ा नहीं जाता है, इसी कारण चाय की पत्तियों को तोड़ने के स्थान पर चुनने शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इन चुनी पत्तियों को किसान द्वारा चाय की फैक्ट्री को बेंच दिया जाता है, जहॉं पर इसकी प्रोसेसिंग होती है और फैक्ट्री में चाय का उत्पादन किया जाता है। प्रत्येक फैक्ट्री से चाय की बोरों में पैकिंग की जाती है, जिन्हें टी-बोर्ड द्वारा नीलाम किया जाता है, नीलामी में केवल वही एजेण्ट हिस्सा ले सकते हैं जो टी बोर्ड में रजिस्टर्ड हैं। इन्हीं एजेन्टों द्वारा टी-बोर्ड से लाट में खरीदे गये चायपत्ती के बोरे बड़े ग्राहकों को बेंचे जाते हैं।
टी-बोर्ड से खरीदे गये इन्हीं बोरों से कोई इसे खुली चाय के रूप में बेचता है तो कोई इसकी ब्राडिंग करके एज मैन्यूफेक्चरर, पैकेट में बेचता है, जिन्हें मार्केटिंग कम्पनियों द्वारा छोटी-छोटी दुकानों तक पहुंचाया जाता है, जहॉं से जनता इसे खरीदकर इस्तेमाल करती है। जनता जिस चाय की पत्ती को 200 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदती है, उसका उत्पादित मूल्य 50 रूपये प्रति किलो से कतई ऊपर नहीं होता है। फैक्ट्री से 120 रूपये प्रति किलो बिकने वाली चाय पत्ती मार्केट में 600 रूपये प्रति किलो से नीचे कतई नहीं बिकती है।
कुन्नूर और ऊटी की चाय, लखनऊ के पानी में कड़क स्वाद देती है। यही पत्ती जब आप महाराष्ट्र के पानी में बनाकर पीयेंगे तो आपको कडक नहीं लगेगी। चाय की पत्ती का मजा, पानी के स्वाद, उसके हल्के और भारी होने, निर्मल और कठोर होने पर अलग-अलग आता है। यदि आप मिनरल वाटर में इसे बनायें तो इसका स्वाद अलग होगा और भारत के ताजमहल स्थित शहर के पानी में उसी पत्ती की चाय बनवाये तो उसका स्वाद निश्चित रूप से अलग होगा। हो सकता है कि ताजमहल ब्राण्ड नेम की चाय पत्ती जो मजा मुम्बई में दे रही हो वह आगरा में एकदम बेस्वाद हो जाये और जो मुम्बई में एकदम बेस्वाद हो वह आगरा में आपके मुख से निकाल दे वाह ताज!
ए-वन कड़क चाय के नाम से बेची जाने वाली चाय पत्ती तमिलनाडू के कुन्नूर और ऊटी की होती है जो उत्तर प्रदेश, विशेष तौर पर लखनऊ में कम इस्तेमाल की जाती है, क्योंकि यहॉं के पानी में कड़वी और कषैली लगती है, जिसे कम्पनियॉं कड़क शब्द का ठप्पा लगाकर बेंचती हैं। उत्तर प्रदेश के अनुरूप आसाम और दार्जलिंग की चाय होती है जबकि आसाम की चायपत्ती तमिलनाडू और महाराष्ट्र में एकदम बकवास लगती है, इसी प्रकार ऊटी की चाय उत्तर प्रदेश, आसाम, दार्जलिंग, बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए दो कौडी की होती है। ठीक इसी प्रकार आसाम की चाय तमिलनाडू, केरल आदि प्रदेश में एकदम बेकार का स्वाद देती है।
चाय पत्ती की जिस क्वालिटी को उत्तर प्रदेश में निम्न स्तर का माना जाता है, वह है रेड डस्ट यानी चुरा चाय, जबकि यही रेड डस्ट तमिलनाडू, केरल और महाराष्ट्र में सबसे मंहगी बिकती है। भारत में ठेले, छोटे रेस्टोरेन्ट, बस स्टैण्ड और रेलवे प्लेटफार्म पर बिकने वाली चाय इसी रेड डस्ट की बनी होती है। इसके दो कारण हैं, एक तो यह सस्ता मिलता है, दूसरे इससे चाय तैयार करने में देर नहीं लगती। छननी में रेड डस्ट डाला और ऊपर से गर्म पानी, बस गिलास में तैयार हो गई चाय।
दरअसल दानेदार चाय, बी0पी0/एस0बी0पी0,सी0टी0सी0 होती है, जिससे चाय का रंग प्राप्त करने के लिए खूब उबालना आवश्यक होता है। ग्रीन लेवल चाय मध्यम वर्ग को इसलिए पसन्द नहीं आती क्योंकि वह कलर नहीं देती। इसी के साथ मध्यम वर्ग का कुछ प्रतिशत हिस्सा बड़ी चाय पत्ती (ग्रीन लेवल) एवं दानेदार चाय पत्ती को आपस में मिलाकर इसका इस्तेमाल करता है।
यदि चाय की पत्ती को उबाला न जाये, केवल खौलते पानी में डालकर थोड़ी देर ढ़ककर रखने के बाद इस्तेमाल की जाये तो नुकसान को रखिये कोसों दूर, यह केवल और केवल फायदा ही पहुंचायेगी। इसीलिए यदि अच्छी क्वालिटी की चाय का चूरा कलर के लिए और फ्लेवर के लिए बड़ी चाय पत्ती (ग्रीन लेवल) दोनों का इस्तेमाल किया जाये तो चाय का रंग भी आयेगा और फ्लेवर भी मिलेगा। किसी भी ब्राण्डेड कम्पनी ने अभीतक इस नुस्खे का ईजाद नहीं किया है। लेकिन इसे पाठकगण आजमा कर देख सकते हैं। एक केतली में बड़ी चायपत्ती (लांग लीफ जिसे ग्रीन लेवल समझिये) डालें, उसके ऊपर छननी रखें जिसमें रेड डस्ट (चायपत्ती का चूरा) डालें, फिर उसके ऊपर खौलता पानी डालकर उसे थेाड़ी देर के लिए केतली का ढ़क्कन बन्द करके रख दें। इसके बाद चीनी,दूध अथवा नीबू जैसा आप चाहें मिलाकर उसका आनन्द लें। यह चाय आपको कभी भी नुकसान नहीं पहुंचायेगी।
चाय फायदे के अलावा नुकसान पहुंचा ही नहीं सकती यदि इसके सेवन का सही तरीका आप इस्तेमाल करें। भारतीय समाज में चाय का इस्तेमाल आवभगत से लेकर मनोरंजन के माहौल तक में और महिलाओं की डिलीवरी के बाद से लेकर थकान मिटाने तक में बड़ी तत्परता एवं उत्सुकता से किया जाता है। डाक्टर्स भी महिलाओं की सीजेरियन डिलीवरी के बाद सबसे पहले उसके तीमारदारों को चाय-बिस्कुट ही देने को कहते हैं। चाय देने के बाद ऐसी महिलाओं पर किये गये परीक्षण से यह तथ्य उभरकर सामने आये हैं जिसने चाय के फायदे पहुंचाने के गुण को उजागर किया है।
चाय का रासायनिक विश्लेषण भी निम्न तथ्य को उजागर करता है। इसमें पाये जाने वाले रासायनों की संख्या 500 से भी अधिक है, किन्तु कुछ खास तत्व निम्न प्रकार हैं।
पॅालीफिनाल-20से30 प्रतिशत, कैफीन-04से05 प्रतिशत, अमीनो एसिड-02से04 प्रतिशत,
लिपिड्रस-01से05 प्रतिशत, मिनरल-15से20 प्रतिशत, प्रोटीन-20से25 प्रतिशत
पॉलीफिनाल - एण्टी ऑक्सीडेन्ट और कैंसर रोधी यौगिक है।
कैफीन - ‘वसन उत्प्रेरक तथा ‘वास रोगियों के लिए उपयोगी होती है एवं आराम पहुंचाती है।
अमीनो एसिड - अमीनोब्यूटिक एसिड विद्यमान होने के कारण चाय एनेलजेसिक और एण्टी पायरेटिक होती है। इसी कारण बुखार होने पर चाय पीना फायदेमन्द होता है।
विटामिन बी - चाय पीने से मनुष्य की प्रतिदिन की विटामिन बी काम्पलेक्स की जरूरत पूरी होती है।
चाय के फायदेः
1. पाचनतंत्र और मस्तिष्कतंत्र दोनों के लिए लाभदायक है।
2. इसके पीने से थकान मिटती है और स्फूर्ति आती है।
3. बैक्टीरिया प्रतिरोधी और जीवाणू प्रतिरोधी होती है।
4. अमाशय में एल्कोलाइड्स को अवक्षेपित कर उससे उत्पन्न होने वाले विष से छुटकारा दिलाती है।
5. लिनिओल, सिलीकेट और हेक्सेनॉल विद्यमान होने के कारण यह एण्टी क्लाटिंग प्रभाव रखती है। इस गुण के कारण यह दिल के रोगियों के लिए उपयोगी है। साथ ही एण्टी क्लाटिंग होने के कारण यह कोरोनरी नलिका को शिथिल करके उसमें रक्त का संचार बढ़ाती है।
6. इसके पीते रहने से दांतों में कीड़ा नहीं लगता। इससे फ्लूरोएटाइट बनता है जो दांतों के इनेमल को मजबूत करता है।
7. चोट को धोने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
8. गले में खराश होने पर चाय की पत्ती को गरम पानी में डालकर इससे गरारा करने से शीघ्र ही आराम मिलता है।
9. इसमें फ्लेवानोल ग्लाइकोसाइड पाये जाने के कारण यह गले की सूजन में भी आराम पहुंचाती है।
10. एक प्याला गरम चाय में 500 से भी अधिक रसायन पाये गये हैं।
केवलमा़त्र चाय ही ऐसा पेय है जिसमें अनेक गुण हैं और अमृत समान है। यह अनेक बीमारियों में फायदा पहुंचाती है, लेकिन इसी के साथ यह भी सत्य है कि प्रत्येक चीज सीमा के अन्दर ही लाभ पहुंचा सकती है। अति हर चीज की नुकसानदायक होती है (अति सर्वत्र वर्जयते) फिर चाहे यह असली घी हो या शुद्ध मक्खन!
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