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Sunday, December 25, 2011

मेरी मेरी क्रिसमस-अगले राष्ट्रपति भी बराक ओबामा


         अमेरिका में कराये गये एक ताजा सर्वेक्षण से प्रकाश में आया है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी को लेकर लोकप्रियता के मामले में रिपब्लिकन पार्टी के दो संभावित प्रमुख उम्मीदवारों से बढ़त बनाई हुई है। सीएनएन-ओआरसी इंटरनेशनल सर्वेक्षण के परिणाम जारी करते हुए सीएनएन ने अपनी विज्ञप्ति में कहा है कि एक नये राष्ट्रीय सर्वेक्षण से पता चला है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा के पुननिर्वाचन की संभावनाओं में दो महत्वपूर्णं संकेतकों में बढ़ोत्तरी हुई है। सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि ओबामा ने खुद को चुनौती देने वाले रिपब्लिकन पार्टी के पांच संभावित उम्मीदवारों के खिलाफ बढ़त हासिल कर ली है और उनकी स्वीकार्यता रेटिंग में भी मध्य नवम्बर से पांच अंकों की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।


सर्वेक्षण, वर्ष 2012 में होने वाले चुनाव में ओबामा रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी में 52 प्रतिशत मतों के साथ मिट रोमनी जिन्हें 45 मत मिले थे,उनसे 5 अंकों से आगे चल रहे हैं।
          इसी के साथ बराक ओबामा ने रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी के अन्य शीर्ष उम्मीदवारों, नेवट गिंगरिच, रिक पेरी, रोन पॉल और माइकल बचमैन पर भी जबरदस्त बढ़त कायम की हुई है। सर्वेक्षण में पूरी बात सामने आती है या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा को अमेरिकी आर्मी एवं उनके परिवारीजनों का जबरदस्त सहयोग इस चुनाव में हासिल होगा। 
           क्रिसमस के इस अपार खुशी के पर्व पर मेरी हार्दिक शुभकामना एवं भविष्यवाणी है कि वर्ष 2012 का चुनाव भी बराक ओबामा भारी मतों से जीतेंगे और पुनः अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। (सतीश प्रधान)   
                                
         
As Christmas carols fill the air with joy and merriment, as the chime of church bell echoes all around, and prayers reach out to God,
                                          
WE wish the people all around the World specially the Readers, Commentators and management team of jnn9's Blog a joyous Christmas and a Happy New Year.





Wednesday, December 21, 2011

साइबर मीडिया पर नियंत्रण की सनकी कवायद

    अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर, दिल्ली स्थित यूनाइटेड नेशन इन्फारमेशन सेन्टर से महासचिव मून का बयान जारी किया गया । इस बयान में मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर जोर देते हुए कहा गया कि अपने विचारों को बेधड़क रूप से व्यक्त करने के लिये बहुत से लोगों ने खुद को सशेल मीडिया से जोड़ा है। अब वे दिन बीत गये जब दमनकारी शासक सूचना के प्रवाह पर अंकुश लगा देते थे। उनका इशारा स्पष्ट रूप से मनमोहन सरकार और उनके हैसियत भूले मंत्री कपिल सिब्बल की ओर ही था। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर अंकुश लगा ही नहीं सकती सरकार- बान की मून, महासचिव, यूनाइटेड नेशन। 

          मून ने कहा ‘मानवाधिकारों पर सभी का अधिकार है। दुनिया भर में लोग न्याय, गरिमा, समानता और भागीदारी की मांग को लेकर एकजुट हुए हैं। उन्हें यह सब पाने का पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा कि ‘यह सच है कि दुनिया में दमन बहुत है और कानून से बचने के रास्ते भी बहुत हैं। फेसबुक, गूगल, याहू, ट्विटर, यू-ट्यूब जैसी तमाम सोशल नेटवर्किंग और मीडिया वेबसाइट्स पर रोक लगाने के लिये चाटुकार कपिल सिब्बल ने नये दिशा- निर्देश बनाने की अंतिम इच्छा जताई है,जिससे कि वह मैडम सोनिया गांधी और सरदार मनमोहन सिंह को अपनी वफादारी का सुबूत पेश कर सकें। वैसे भी उनके पास, इसके अलावा दिखाने को कुछ शेष नहीं रहा है।

      सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,भारत सरकार के साइबर सलाहकार नीरज अरोड़ा का कहना है कि गलत, अश्लील या भद्दी सामग्री वेबसाइट पर डालने पर आईटी एक्ट की धारा-79 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। ऐसा ही केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल भी कह रहे हैं। इस पर गूगल का कहना है कि अगर कोई विवादास्पद सामग्री कानूनन जायज है तो हम उसे नहीं हटाते, ताकि विभिन्न लोगों के विचारों का सम्मान हो- 
गूगल इण्डिया 

इसी के साथ फेसबुक ने भी कुछ ऐसा ही कहा है। उसका कहना है कि हम उस सामग्री को हटा देंगे,जो हमारी शर्तों का उल्लंघन करती हैं। हम नफरत,हिंसा और अश्लीलता फैलाने वाली किसी भी सामग्री के खिलाफ हैं।

राज्यसभा सांसद व उद्योगपति राजीव चन्द्रशेखर ने कहा कि सिब्बल भारत में इन्टरनेट पर नियंत्रण का चीनी मॉडल लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह इसमें सफल नहीं होंगे। बुनियादी तौर पर कहा जाये तो सरकार गलत दिशा और गलत लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा रही है। जहां तक चीन की बात है तो वह एक गैर-लोकतांत्रिक देश है, इसलिए हमें उसका अनुशरण नहीं करना चाहिए। उसका अनुशरण हम तब कर सकते हैं,जब चीन का 1,36,000 वर्ग किलोमीटर से दूना क्षेत्रफल कब्जा कर लें। कम से 12 देशों के साथ हमारे विवाद हों और कम से कम तीन देशों पर हम कब्जा कर लें,जैसे चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान, भीतरी मंगोलिया और तिब्बत को कब्जा रखा है। सिब्बल को शायद यह सब दिखाई नहीं देता है अथवा उनको इसकी जानकारी ही न हो, यह भी सम्भव है।

          जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि वह आनलाइन सामग्रियों पर प्रतिबन्ध के खिलाफ हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अक्सर दुरुपयोग किया जाता है।
लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के आरोपी कपिल सिब्बल ने फेसबुक,गूगल और ऑर्कुट जैसी कई सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर शिकंजा कसने के इरादे जाहिर कर दिये हैं। दरअसल कपिल सिब्बल, सरदार मनमोहन सिंह के सबसे प्यारे मंत्री हैं,क्योंकि एक तो वे पेशे से वकील है,दूसरे उनके पास दूरसंचार मंत्रालय है,तीसरे वे राहुल की लुटिया डुबा सकते हैं और चौथे उन पर सोनिया गांधी का हाथ है। हिन्दुस्तान में वे कैबीनेट से ऊपर हैं,संसद से ऊपर हैं, जनता उनके जूतों तले पड़ी है और ये सोशल नेटवर्किंग साइट्स उनके रहम पर ही भारत में कुछ कर सकती हैं, वरना उनकी भौंहें टेढ़ी हो गईं तो प्रतिबन्ध लगने में देर कैसी?

            दरअसल स्वामी अग्निवेश के मित्र सिब्बल महाराज ने इतना सब कुछ महज,सरदार मनमोहन सिंह और मैडम सोनिया गांधी के विरुद्ध सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दर्ज की गयी टिप्पणीयों को देखकर सोनिया गांधी के प्रति अपनी वफादारी सिद्ध करने के इरादे से किया है। इसी के साथ चूंकि वे जननायक अन्ना हजारे से भी मुंह की खा चुके हैं,इसलिए बहुत ही शातिराना अन्दाज में उन्होंने,अन्ना के आन्दोलन को ठंडा करने के लिये ये तरकीब सोची है। सबसे पहले उन्होंने 5 सितम्बर को फेसबुक,ट्विटर,ऑर्कुट और गूगल इण्डिया के अधिकारियों को तलब किया। आगे सिब्बल ने कहा कि दूरसंचार विभाग के सचिव चन्द्रशेखर ने भी 19 अक्टूबर 11 को इन कम्पनियों के अधिकारियों के साथ बैठक की थी,जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि आपत्तिजनक सामग्रियों को लेकर उपचार संहिता बनाई जायेगी।

           कपिल सिब्बल को शायद उनके मुंशी ने बताया नहीं है कि सोशल मीडिया पर मानहानि से जुड़ी सामग्रियों के प्रकाशन व प्रसारण को रोकने व दण्डात्मक कार्रवाई हेतु संशोधित भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कानून-2008 पहले से मौजूद है। इस कानून की धारा 66-ए के मुताबिक ऐसी इलैक्ट्रानिक सामग्री जो किसी भी सम्भव स्वरूप में मानहानि से जुड़ी है,वह दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आती है। इसी तरह कानून की धारा-67 के तहत अश्लील सामग्री आदि का प्रकाशन व प्रसारण दंडनीय अपराध है,जिसके लिये अधिकतम तीन साल की सजा व पांच लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

          11 अप्रैल 2011 को संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी कानून में कहा गया है कि यदि सोशल मीडिया अथवा इंटरनेट पर उपलब्ध कोई सामग्री किसी की मानहानि करती है तो सरकार इसका सज्ञान ले सकती है तथा सम्बन्धित नेटवर्क के सेवा प्रदाता को शिकायत के बाद अधिकतम 36 घंटों के भीतर प्रकाशित सामग्री को हटाना होगा।

          दरअसल उत्तर प्रदेश में विधान सभा के आम चुनाव होने वाले हैं,जिसके प्रसारण की गूगल इण्डिया ने गम्भीर तैयारी की हुई है। ये साइट्स इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि मैडम सोनिया गांधी को लग रहा है कि यदि ऐसे ही चलता रहा तो अन्ना इफेक्ट,उत्तर प्रदेश में तो उनकी लुटिया ही डुबा देगा, जिससे उनके युवराज का राजतिलक होना असम्भव हो जायेगा। वैसे भी अब तो उ0प्र0 में कांग्रेस का लोकदल के अजित सिंह से समझौता हो ही गया है, इसी के तहत उन्हें केन्द्र में नागरिक उडड्यन मंत्रालय सौंप कर उनको नवाजने की कोशिश की गई है कि उनका ही कुछ करतब कांग्रेस के काम आ जाये। ऐसी स्थिति में भी वह 50 के आस-पास पहुंच जाये तो बड़ी बात है। बगैर अजित सिंह के सहयोग के उसकी क्या स्थिति होगी,व्यक्त करना दिलासा देने लायक भी नहीं है।

          भारत की आम जनता की आवाज को दबाने का खेल सत्ता के दीवाने,कपिल सिब्बल क्यों और किसके इशारे पर खेलना चाह रहे हैं,इसे तो सरदार मनमोहन सिंह ही बता पाने में सक्षम हो सकते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि मनमोहन के इशारे पर कपिल सिब्बल,मनीष तिवारी,दिग्विजय सिंह आदि नेता इस तरह की हरकत कर रहे हैं जिससे जनता की सारी नाराजगी राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर निकले और उनके खिलाफ जबरदस्त विरोध खड़ा हो जाये,जिससे प्रधानमंत्री पद पर सरदार जी का बना रहना अपिरिहार्य हो जाये। 

          ऐसा नुस्खा मैडम सोनिया गांधी के साथ पूर्व श्रूड प्रधानमंत्री नरसिंम्हा राव भी बखूबी आजमा चुके हैं। सोनिया गांधी को अच्छी तरह से पता है कि नरसिंम्हाराव ने आतंकी खतरा बताकर उनकी जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था करा दी थी। उन्हें जनता के मध्य नहीं आने दिया था। अब चूंकि वह जनता के बीच हैं तथा लला को प्रधानमंत्री पद पर देखने के लिए अधीर एवं व्याकुल भी, इसीलिए प्रधानमंत्री पद पाने से पूर्व राहुल गांधी को जनता की भावना का आदर करने के साथ ही उत्तर प्रदेश की जनता का सम्मान करना भी सीखना पड़ेगा। वैसे भी जब तक उ0प्र0 के लोग भीख मांगने की प्रवृत्ति से ऊपर नहीं आ जाते हैं,उनकी प्रधानमंत्री बनने की चाहत कोई मायने नहीं रखती है।

          पूरे उत्तर प्रदेश के लोगों को भीख मांगने से वे क्या रोक पायेंगे,जब वे स्वयं ही वोट की भीख मांगने के लिये पूरे प्रदेश में दर-दर घूमने को मजबूर हैं। वे पहले सुल्तानपुर और रायबरेली के लोगों को ही बेहतर स्थिति में ला दें यही बहुत है। रायबरेली और सुल्तानपुर में सर्वे कराकर वह आंकड़ा प्रस्तुत करें कि वहां के कितने लोग भीख मांगने के लिये अपने जनपद से बाहर नहीं निकलते हैं। देश स्वतंत्र होने से लेकर आज तक पूरी तौर से सत्ता में बने रहने के बावजूद वे केवल दो जनपदों से भिखारीपन दूर नहीं कर पाये तो आगे क्या करेंगे,सिवाय इसके कि एक गरीब दलित के घर खाना खाकर उसे एक सप्ताह के लिये भूख से मरने के लिये छोड़ दें। 

क्या वे ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं कि केवल इन दो जनपदों के लोगों को ही अपने घर पर एक माह में एक ही दिन सही,खाना खिलाने का लंगर खोल दें। सालभर के लिए बारह लंगर रायबरेली में और बारह लंगर सुल्तानपुर के लिए। कुल मिलाकर 24 लंगर प्रधानमंत्री का पद पाने के लिए कौन सी बड़ी चीज़ है?

          राहुल गांधी,गरीब दलित के घर खाना खाकर उसे और गरीब बना रहे हैं एवं जबरदस्त फर्जी पब्लिसिटी पा रहे हैं, अलग से। क्योंकि अभी तक यह सुनने में नहीं आया कि राहुल गांधी ने जिस गरीब दलित के घर खाना खाया उसे वहॉं से जाते वक्त पॉंच- दस हजार रूपये दे दिये हों! जबकि वे कोई कमजोर व्यक्ति नहीं हैं। 

इसके विपरीत यदि वे गरीब अगर राहुल गांधी के घर खाना खायेंगे तो न तो वह पब्लिसिटी गरीबों के काम आयेगी और न ही गरीबों की गरीबी दूर हो जायेगी, जबकि इसकी पब्लिसिटी भी बाबा राहुल गांधी को ही मिलेगी। टी-सीरीज वाले का मॉ वैष्णों के दरबार में रोजाना लगाया जाने वाला भंडारा, टी-सीरीज की ही पब्लिसिटी कर रहा है। वहां कितने करोड़ लोग खाकर चले गये कौन जानता है? हो सकता है राहुल बाबा ने भी वहां प्रसाद पाया हो। देश में चारों तरफ ऐसा देखकर भी उनके मन से यह हूक नहीं उठती कि सुल्तानपुर और रायबरेली में ही सही,कम से कम,एक-एक भंडारा तो खोल दिया जाये,जिससे वहां की गरीब और भिखमंगी जनता रोजाना भरपेट भोजन तो कर सके। राहुल गांधी कितना इस देश से कमायेंगे और किसके लिये,उनकी तो अभी शादी भी नहीं हुई है।

         कपिल सिब्बल अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री की आड़ में घिनौना खेल खेलना चाह रहे हैं। ‘बिगबॉस’ कार्यक्रम क्या आपत्तिजनक नहीं है? कितनी ही पोर्न साइटें चल रही है, क्या वे आपत्तिजनक नहीं हैं? कितने ही ब्लू फिल्म दिखाने वाले अड्डे चल रहे हैं, वे आपत्तिजनक नहीं हैं? जहां तक धार्मिक भावनाएं भड़काने की बात है,उसमें भी दम नहीं है,क्योंकि जब धार्मिक भावनाएं भड़काकर भाजपा कुछ भी प्राप्त न कर सकी तो कोई और क्या पा सकेगा। 

         हिन्दू-मुस्लिम सभी जानते हैं कि यह सत्ता का खेल है,फिर चाहे सत्ता पाकिस्तान की हो या गुजरात की। मनमोहन सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर फरसा लगाने की सोच पर उसे मुंह की ही खानी पड़ेगी। जिसकी एक घुड़की पर सरदार मनमोहन विचित्र मोहन की स्थिति में आ जाते हों,उसके कन्ट्रोल वाली साइबर मीडिया को कुटिल सिब्बल क्या खाकर नियंत्रण में कर पायेंगे,यही देखना शेष है। 

          इंटरनेट निहित हितों, मीडिया स्वामित्व से मुक्त है। सिब्बल इस पर लगाम क्यों लगाना चाहते हैं।
                  
 -वरूण गांधी,भाजपा सांसद।


       इंटरनेट की सेंसरशिप। इसकी जरूरत को एक मिनट के लिए भूल जाइए। क्या यह सम्भव है?
             
-जयन्त चौधरी, लोकदल सांसद एवं केन्द्रीय उड्डयन मंत्री, अजित सिंह के सुपुत्र।
 
(सतीश प्रधान)

Friday, December 16, 2011

भारत रत्न मेजर ध्यान चन्द को दो

         
          क्रिकेट के भगवान अब तो मुँह खोलो! खेल में पहला भारत रत्न मेजर ध्यान चन्द को ही दिया जाये, जरा अपने मुख से तो बोलो।


          ऐसा किया जाना सचिन जी,आपकी महानता को ही दर्शायेगा और भगवान में महानता ही ना हो,तो फिर तो वह साधारण इन्सान ही कहा जायेगा! भगवान के लिए कुछ तो बोलो।

Thursday, December 15, 2011

दलाईलामा और अन्ना से घबराती सरकारें

          चीन सरकार दलाईलामा की और सोनिया सरकार अन्ना की मृत्यु की कामना कर रही हैं,जिससे एक ओर जहां चीन किसी कठपुतली को अगले दलाईलामा के रूप में पेश करके अपनी मनमर्जी कर सके,वहीं दूसरी ओर मनमोहन सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठ रही आवाज का गला दबाकर चैन की बंशी बजा सके। और दोनों ही स्थिति में ले-देकर भारत की ही ऐसी की तैसी होनी है।
          यदि ऐसा नहीं है तो एक भिक्षु और तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा से पूरी चीन सरकार क्यों घबराई हुई है,और एक बुजुर्ग एवं दुर्बल समाजसेवी अन्ना हजारे से भारत सरकार क्यों गुण्डई कर रही है। जिस तरह तिब्बतीयों के लिये दलाईलामा महत्व रखते हैं,ठीक उसी तरह 120 करोड़ भारतीय जनता के लिये अन्ना हजारे का महत्व है। पिछले दो दशक से विश्व मंच पर लगातार बढ़ रहे चीनी दबदबे के आदी हो चुके लोग इस बात से हैरान-परेशान हैं कि चीन सरकार अपनी बौखलाहट और हताशा का प्रदर्शन क्यों करती है! इसी प्रकार मात्र छह माह पूर्व भ्रष्टाचार के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे को लेकर रालेगण सिद्धी(महाराष्ट्र)से लेकर दिल्ली की ओर कूच करने वाले अन्ना हजारे से सोनिया गांधी सरकार हलकान क्यों है?
          जिस प्रकार पूरी दुनिया यह नहीं समझ पा रही है कि लगभग हर मामले में दुनिया को ठेंगा दिखाने की हिम्मत रखने वाला चीन,सत्ताहीन पूर्व शासक और एक बौद्ध भिक्षु दलाईलामा से इस कदर घबराता क्यों है,ठीक इसी प्रकार भारतीय जनता यह नहीं समझ पा रही है कि आखिरकार भारत के सारे भ्रष्ट नेता अन्ना हजारे से भयभीत क्यों है? लेकिन इस भय के बाद भी वे अपनी गुण्डई छोड़ने को कतई तैयार नहीं है,जैसे की चीन।
          पिछले दिनो बीजिंग ने ऐसी ही हायतौबा,नई दिल्ली में होने वाले विश्व बौद्ध सम्मेलन को लेकर भारत सरकार के खिलाफ मचाई। पहले तो उसने ‘सीमावार्ता’ की आड़ लेकर इस सम्मेलन को स्थगित करने की मांग की,लेकिन जब भारतीय विदेश मंत्रालय ने इंकार कर दिया तो चीन ने मांग उठाई कि दलाईलामा को इसमें भाग लेने से रोक दिया जाये। इन दोनों ही बातों को न मानने के एवज में भारत सरकार ने,इस विश्व सम्मेलन में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की उपस्थिति को गैरहाजिर कराकर चीन को संतुष्ट किया,जैसा कि अन्ना हजारे के दिल्ली स्थित रामलीला मैदान पर 13 दिनो के अनशन के बाद संसद के दबाव में आश्वासन देकर किया था।
          उधर चीन सरकार,इतने से खुश नहीं हुई और उसने गुस्से में आकर‘बीजिंग’में होने वाली प्रस्तावित सीमावार्मा को ही स्थगित कर दिया। भारत में,संसद और राष्ट्रपति के आश्वासन के बावजूद मजबूत लोकपाल बिल(एनाकौण्डा) की जगह विष-दंतहीन लोकपाल(मटमैले सांप)का मसौदा,मजबूत अभिषेक मनु सिंघवी ने  दिसम्बर 2011 के दूसरे पक्ष में संसद के समक्ष रखने का मन बनाया है। जिस प्रकार तिब्बती चीन का कुछ नहीं कर सकते सिवाय इसके कि दिन-प्रतिदिन अपनी नफरत को दिन-दूनी रात चैगुनी करते जायें,ठीक उसी प्रकार भारतीय जनता इस हठी और कमीशनखोर सरकार का आम चुनाव से पूर्व कुछ नहीं कर सकती,सिवाय इसके कि इस सरकार के प्रति अपनी नफरत को दिन-दूनी रात चैगुनी बढ़ाती जाये। दिल्ली में आयोजित बौद्ध सम्मेलन के एक दिन बाद ही चीन सरकार के कोलकाता स्थित वाणिज्य दूत ने पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार को सीधे धमकी भरी एक चिट्ठी लिख मारी और कहा कि राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री उस सभा में भाग न लें,जो मदर टेरेसा की स्मृति में कोलकाता में होने वाली थी और जिसमें दलाईलामा मुख्य अतिथि के रूप में भाग ले रहे थे।
          एक विदेशी राजदूत की इस बेजा हरकत पर कपिल सिबल, अभिषेक मनु सिंघवी, एसएम कृष्णा, प्रणव मुखर्जी,पी. चिदम्बरम,मनमोहन सिंह समेत सोनिया गांधी और राहुल गांधी को चिंता नहीं हो रही है? ये सरकार न तो देश को ठीक से चला पा रही है और न ही विदेशों में अपने सम्मान की रक्षा कर पा रही है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने सम्मेलन में भाग लेकर और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने,अपनी गम्भीर रूप से बीमार माँ की तीमारदारी में लगी रहने के बावजूद अपने एक वरिष्ठ प्रतिनिधि को सभा में भेजकर चीनी राजदूत को उसकी हैसियत तो दिखा ही दी।
          चीनी बौखलाहट के इस सार्वजनिक प्रदर्शन की वजह से उपरोक्त दोनों सभाओं को दुनिया भर के मीडिया एवं सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इतना भरपूर समर्थन मिला कि इतना तो इसके आयोजक कई करोड़़ डालर विज्ञापन पर खर्च करके भी नहीं प्राप्त कर सकते थे। दुनिया को एक बार फिर सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिरकार क्या कारण है कि चीन जैसा विशालकाय देश दलाईलामा से इतना घबराता है। लगभग यही हालात भारत में भी विद्यमान हैं। 11 दिसम्बर को दिल्ली में अन्ना हजारे का एक दिन का सांकेतिक अनशन हुआ जिसमें सभी राजनीतिक दलों ने भाग लिया जिससे घबराकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 13 दिसम्बर को कैबिनेट की बैठक बुलाई तथा 14 दिसम्बर को सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया गया है।
          एक तरफ जहां दलाई लामा को लेकर चीनी नेताओं की इस बौखलाहट के कई कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण चीन द्वारा पिछले सात दशक में जबरन कब्जाये गये तीन देशों यथा पूर्वी तुर्किस्तान(शिजियांग),भीतरी मंगोलिया और तिब्बत में से अकेला तिब्बत ऐसा है,जिसके स्वतंत्रता आन्दोलन को दलाईलामा जैसा अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाला भिक्षु नेता उपलब्ध है। 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान के लगभग सभी नेता तब मार दिये गये थे,जब चेयरमैन माओ के निमंत्रण पर चीन की हवाई यात्रा के दौरान उनके विमान को हवा में ही विस्फोट करा दिया गया।
          भीतरी मंगोलिया में भी कडे़ चीनी नियंत्रण के कारण आज तक कोई प्रभावी नेता नहीं उभर पाया है, लेकिन 1959 में तिब्बत से भाग कर स्वतंत्र दुनिया में आने के बाद से दलाईलामा के प्रति चीन सरकार के मन में बसे खौफ का एक और बड़ा कारण यह है कि 1951 में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद वाले 60 वर्ष में अपने सारे प्रयासों के बावजूद वह तिब्बती जनता का दिल जीतने में बुरी तरह नाकामयाब रहा है। इसकी भी सटीक वजह यह है कि दरअसल तिब्बती जनता को खौफजदा करने और असहाय समझने और तिब्बत पर नियंत्रण पक्का करने के इरादे से चीन सरकार ने वहां लाखों चीनी नागरिकों को बसा दिया,इसका परिणाम यह हुआ कि तिब्बती नागरिकों के मन में असुरक्षा की भावना पहले से कहीं अधिक बलवती हो गयी,जिसके कारण 1989 में राजधानी ‘ल्हासा’ और दूसरे कुछ बड़े शहरों में उठ खड़े हुए विशाल तिब्बती मुक्ति आन्दोलन ने चीनी नेताओं को हैरान कर दिया।
          दलाईलामा के समर्थन वाले लोकप्रिय नारों के बल पर तिब्बत की आजादी के लिये चले आन्दोलन को तत्कालीन तिब्बती गवर्नर हूं जिंताओ ने टैंकों और बख्तरबन्द गाड़ियों की मदद से कुचल तो दिया,लेकिन इस आन्दोलन ने तिब्बती जनता के मन की ज्वाला को और हवा दे दी। इसके एक साल बाद ही चीन सरकार ने यह निश्चय किया कि तिब्बती धर्म का दमन करने की नीति को छोड़कर तिब्बती जनता का दिल जीतने का प्रयत्न किया जाये। इसी उद्देश्य से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक ‘अवतार खोजी कमेटी’ ने धार्मिक नेता करमापा के नये अवतार को खोजा,जिसे दलाईलामा ने भी अपनी स्वीकृति दे दी।
          ठीक इसी प्रकार भारत में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन करने वाले बाबा रामदेव को पुलिसिया तांडव से भयभीत कराकर उनके आन्दोलन को तो कुचल दिया,लेकिन भारतीय जनमानस के मन में यह छाप छोड़ दी कि यह सरकार गुण्डों की है। वहीं दूसरी ओर अन्ना हजारे को आन्दोलन करने से पूर्व ही उन्हें सुबह-सुबह गिरफ्तार किरके जेल में बन्द कर देने पर वह मुसीबत में आ गयी,आखिरकार 12 दिनो के उनके जबरदस्त आन्दोलन से हारी सरकार ने एक दांव खेला‘स्टैंडिंग कमेटी’ का जिसने खोजकर निकाला है,बाबा राहुल गांधी जैसा मजबूत लोकप्रिय लोकपाल।
          उधर 1995 में तिब्बत में दूसरे नम्बर के धार्मिक धर्मगुरू पंजेन लामा की खोज की गयी,लेकिन उसके लिये खोजे गये 6 वर्षीय बालक गेदुन नीमा को जब दलाई लामा ने अपनी स्वीकृति दे दी तो चीन भड़क गया और उसने उस 6 वर्षीय मासूम,उसके माता-पिता को हिरासत में लेकर अपनी पसन्द के एक लड़के ग्यालसेन नोरबू को असली ‘पंचेन लामा घोषित कर दिया। इस सारी कवायद का मकसद वर्तमान दलाईलामा के बाद अपनी सुविधा के अनुसार किसी बच्चे को ‘असली दलाईलामा’ के रूप में घोषित करने का है। लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहा है कि यदि दलाई लामा ने घोषणा कर दी कि उनके न रहने के सातवें दिन जो बच्चा चीन में पैदा होगा,वह तिब्बत को स्वतंत्र कर देगा,तब चीन की सरकार कितने चीनी बच्चों का कत्ल करायेगी?

          तिब्बती आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने कहा है कि गुस्सा नुकसानदायक है और करूणा खुशहाली लाती है। पांचवें पेंग्विन व्याखान में लोगों के प्रश्नों का जवाब देते हुए दलाई लामा ने कहा कि वर्ष 2008 के संकट के दौरान मेरी इच्छा थी कि मैं चीनी अधिकारियों की नाराजगी और भय ले सकूं और उन्हें अपनी करूणा दे दूं। करूणा आपके मस्तिष्क को शांत रखने में मदद करता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में तिब्बत में दंगे भड़क गये थे, यहॉं तक कि भिक्षू भी विद्रोह करने में शामिल हुए और दंगे स्वायत्त क्षेत्र के बाहर बौद्ध मठों तक पहुंच गये थे।
          पिछले कुछ वर्षों से चीन,भारत की क्षेत्रीय अखण्डता की खिल्ली उड़ा रहा है,जबकि भारत अपने तिब्बत रुख में कोई बदलाव करने का इच्छुक ही नहीं दिखाई दे रहा। दरअसल सरदार मनमोहन सिंह के दब्बूपने से बीजिंग की दबंगई बढ़ गयी है। अगर ऐसे ही हालात रहे तो चीन,जिसने भारत का 1,35,000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग दबा रखा है, तिब्बत पर किये गये कब्जे का विस्तार अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत बताकर वहां तक करने की चेष्ठा करेगा। 2006 से बीजिंग अरुणाचल प्रदेश के तिब्बत से सम्बन्धों के आधार पर इस पर दावा करता आ रहा है। वह तमाम सेक्टरों में सैन्य भिड़न्त के लिये तत्पर दिखता है,जबकि नई दिल्ली सीमा वार्ताओं अथवा वार्ताओं से ही किसी को मूर्ख बनाने का भ्रम पाले हुए है।
          वार्ताओं के दौर से न तो ड्रैगन को बेवकूफ बनाया जा सकता है और न ही अन्ना हजारे और इस देश को। वार्ताओं के दौर जारी रखकर मनमोहन सिंह,पी.चिदम्बरम,कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद,अभिषेक मनु सिंघवी,दिग्विजय सिंह,मनीष तिवारी,नारायण सामी आदि नेताओं के माध्यम से राहुल गांधी और सोनिया गांधी की तो लुटिया डुबो सकते हैं लेकिन दलाईलामा का साथ देकर ‘तिब्बत’ में विकास के माध्यम से कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा सकते। वैसे भी एसएम कृष्णा के जाने का नम्बर आ गया है, विदेश मंत्रालय कपिल सिब्बल को दे दिया जाये,तो कुछ न कुछ तो हो ही जायेगा। वर्तमान माहौल में स्व.लाल बहादुर शास्त्री की याद आती है,क्योंकि सरदार जी में तो सरदार वाले एक भी गुण दिखाई नहीं देते और जो दिखाई दे रहे हैं,वे सरदार के तो नहीं हैं। (सतीश प्रधान)


Tuesday, December 6, 2011

खेल से कोसों दूर हैं खेल फेडरेशन

          सिडनी ओलम्पिक की कांस्य पदक विजेता और इंडियन वेटलिफ्टिंग फेडरेशन की वाइस प्रेसिडेन्ट पदमश्री कर्णम मल्लेश्वरी के  त्यागपत्र देने से पूरा खेल जगत और खेलप्रेमी स्तब्ध हैं। पदमश्री कर्णम मल्लेश्वरी ने इस्तीफा देने की वजह फेडरेशन में खेल की समझ न रखने वालों का बोलबाला और खेल की बजाय राजनीति का हावी होना बताया है।
          दरअसल फेडरेशन, खिलाड़ियों के लिए काम ही नहीं कर रही है। इण्डियन वेटलिफ्टिंग फेडरेशन के प्रेसीडेन्ट बी0पी0वैश्य को खेल की नाम मात्र की भी समझ नहीं है,इसके बावजूद फेडरेशन में उन्ही की तूती बोलती है। सीनियर व दिग्गज खिलाड़ी कह रहे हैं कि किसी भी खेल का नेशनल फेडरेशन अच्छे खिलाड़ियों को किसी पद पर देख ही नहीं सकता। एक न एक दिन ऐसी नौबत आनी ही थी। उधर,मल्लेश्वरी कह रहीं हैं कि फेडरेशन में उनका दम घुट रहा था। वहीं वेटलिफ्टिंग फेडरेशन के सचिव कह रहे हैं कि फेडरेशन ठीक से काम कर रहा है। उनका कहना है कि मल्लेश्वरी ने इस्तीफा दिया है, यह उनकी मर्जी है। किसी ने इस्तीफे के लिए उन पर दबाव नहीं बनाया है, इसका सीधा मतलब है कि उनकी फेडरेशन में दबाव भी बनाया जाता है।
          पदमश्री कर्णम मल्लेश्वरी का कहना है कि पहले यही फेडरेशन वाले गुजारिश कर रहे थे कि वह फेडरेशन में आएं, जिससे उनके अनुभव का फायदा फेडरेशन और देश के उभरते हुए वेटलिफ्टरों को मिल सके। वर्ष 2009 में वह उपाध्यक्ष के रूप में फेडरेशन से जुड़ भी गईं,लेकिन बाद में फेडरेशन ने उनकी एक न सुनी। उन्होंने जब भी फेडरेशन के पदाधिकारियों की कार्यशैली पर अंगुलि उठाई तो वे उनसे नाराज होने लगे। पिछले दो सालों में इन पदाधिकारियों ने ऐसा माहौल तैयार कर दिया कि उन्हें मजबूरन फेडरेशन से अपने को अलग करना पड़ा। उन्होंने कहा कि यहॉं चाहकर भी खिलाड़ियों का भला नहीं किया जा सकता। उन्होंने कई बार खेल की बेहतरी के लिए सुझाव दिये, लेकिन उन्हें दरकिनार कर दिया गया। उनका कहना है कि फेडरेशन के अधिकारियों ने अन्य महिला वेट लिफ्टरों पर दबाव बनाया कि वे मल्लेश्वरी से नाता न रखें। नाता रखने वालों का कैरियर खराब किये जाने की धमकी भी दी जाती थी। ऐसी परिस्थितियों में कैसे कोई काम कर सकता है,इससे बेहतर था कि इस्तीफा दे दिया जाये और मैंने अपना इस्तीफा खेल मंत्री, और फेडरेशन को दे दिया है।
          वहीं फेडरेशन के सचिव सहदेव सिंह आरोप लगाते हैं कि कोई चाहे जितना बड़ा खिलाड़ी हो लेकिन जब वह किसी संगठन में रहेगा तो उसे उसके कायदे-कानून भी मानने पड़ेंगे। सहदेव सिंह का आरोप है कि मल्लेश्वरी न तो फेडरेशन की बैठकों में हिस्सा लेती थीं और न ही वेटलिफ्टिंग के सुधार के लिए कोई सुझाव देती थीं। शायद सहदेव सिंह को भी क्रिकेट एसोसियेशन के राजीव शुक्ला की तरह झूंठ बोलने की आदत पड़ गई है,इसीलिए वह कह रहे हैं कि कर्णम,फेडरेशन की बैठक में हिस्सा नहीं लेती थीं। यदि कर्णम बैठकों में हिस्सा न लेती होतीं तो उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि तब तो फेडरेशन उन्हें बड़ी आसानी से बाहर का रास्ता दिखा सकता था। तब उसके पास कहने को भी होता कि बैठकों में भाग न लेने के कारण कर्णम को बर्खास्त कर दिया गया है।
          सहदेव सिंह का कहना है कि यही नहीं फेडरेशन ने पिछले कुछ माह में जो कदम उठाए हैं उनसे भी मल्लेश्वरी खुश नहीं थीं। आखिरकार खेल संघों में कौन से ऐसे कदम उठाये जा रहे हैं जिनसे खिलाड़ी ही खुश और संतुष्ट नहीं हो पा रहे हैं? यदि वास्तव में ऐसा है तो ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता ही क्या है? 400मी. हर्डल के पूर्व राष्ट्रीय रिकार्डधारी भुवन सिंह कहते हैं कि फेडरेशन में ऐसे-ऐसे लोग हैं जिनके साथ खिलाड़ियों का काम करना मुश्किल है। नब्बे के दशक के आखिरी सालों में ऑल इंग्लैण्ड चैम्पियन बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण उस समय के बैडमिंटन संघ की कार्यशैली से खिन्न थे। उन्होंने नया संघ बनाया लेकिन अंततः उन्हें उस समय के बैडमिंटन संघ के सामने हथियार डालने पड़े। इसी तरह हॉकी खिलाड़ी गुरबक्श सिंह व परगट सिंह या कई बड़े एथलीटों को राष्ट्रीय संघों ने जगह नहीं दी।
          पादुकोण की कहानी ठीक उ0प्र0 के आगरा क्रिकेट संघ से मिलती जुलती है,जिसके सर्वेसर्वा मि0 जी0डी0शर्मा बने हुए हैं,जो राजीव शुक्ला के चेले हैं एवं हुण्डई की डीलरशिप ब्रज हुण्डई के नाम से लिए हुए हैं और उसमें भी हुण्डई वाहनों की सर्विस के नाम पर स्पेयर पार्टस के उल्टे-सीधे बिल बनाकर कस्टमर को ठगते हैं। आगरा क्रिकेट संघ में कोई भी खिलाड़ी न होकर इनके भाई-बिरादर यू0डी0शर्मा और इनके वर्कशाप में काम करने वाले कर्मचारी ही हैं। इन्होंने न तो स्वयं आगरा की क्रिकेट के लिए कुछ किया और ना ही किसी दूसरे को कुछ करने दिया।
          इनके नकारेपन से खीझकर कुछ क्रिकेट खिलाड़ियों ने सात-आठ वर्ष पूर्व आगरा क्रिकेट समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष थे आगरा कालेज के कैप्टन रहे समीर चतुर्वेदी और सचिव थे मधुसूदन मिश्रा, जिन्होंने आगरा में कईएक टूर्नामेन्ट आयोजित कराये। आगरा में क्रिकेट को प्रोत्साहित करने के लिए इस समिति का सह्योग दिया रणजी प्लेयर सर्वेश भटनागर,जो कि रेलवे की टीम से खेलते थे, के साथ रेलवे की टीम के नेगी, धीरज शर्मा, रमन दीक्षित, जीत सिंह, और रेलवे रणजी टाफी के कोच, के0के0शर्मा ने। यह जानकारी जब मि0 जी0डी0शर्मा को हुई तो उन्होंने वकील के माध्यम से रेलवे को इन खिलाड़ियों के खिलाफ शिकायत करवा दी और रेलवे से शो काज़ नोटिस इन खिलाड़ियों को भिजवा दिया कि क्यों न रेलवे से अन्यत्र किसी और टीम में खेलने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाये?
          खिलाड़ी तो बेचारे ठहरे खिलाड़ी! वे क्या जानें गुणा-भाग का खेल,वे डर गये और उन्होंने आगरा क्रिकेट समिति की ओर से खेलना छोड़ दिया। किसी तरह से वह समिति सात-आठ साल तक सरवाइव कर पाई क्योंकि उसे ना तो यू0पी0सी0ए0 ने कोई तवज्जो दी ना ही किसी प्रकार की आर्थिक मदद। जी0डी0शर्मा गैंग के ही कैलाश नाथ टण्डन जो कि चालीस वर्षो से आगरा क्रिकेट संघ में सचिव के पद पर कब्जा जमाये थे अब यू0पी0सी0ए0 के उपाध्यक्ष बना दिये गये हैं। ये सारे वे पदाधिकारी हैं,जिन्हें क्रिकेट का बल्ला भी ठीक से पकड़ना नहीं आता और ना ही क्रिकेट की ए0बी0सी0डी0 आती है,लेकिन राजीव शुक्ला,ज्योति बाजपेई,मि0 पाठक और उघोगपति सिंहानिया की बदौलत क्रिकेट संघों पर मकड़ी की तरह कब्जा जमाये बैठे हैं।
          ध्यान रहे मि0 जी0डी0शर्मा ने यू0पी0सी0ए0 के राजीव शुक्ला को हुण्डई की एक सेडान कार गिफ्ट की है और यहॉं भी वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आये। एक अन्य व्यापारी को इन्होंने यह कहकर फंसाया कि भाई तू एक कार शुक्ला जी को गिफ्ट करदे, तेरा काम उनसे करा दूंगा! कार अपने शोरूम से दे देता हूँ जो ज्यादा से ज्यादा छूट दे सकता हूँ दे दूंगा। यानी कार गिफ्ट की खुद और ठग लिया दूसरे व्यापारी को। वापस आता हूँ पदमश्री कर्णम मल्लेश्वरी के इस्तीफे पर प्रगट की गई प्रतिक्रिया पर, इनकी कहानी क्रिकेट के इतिहास में प्रगट करूंगा।

‘‘यदि मल्लेश्वरी ने अपने पद से इस्तीफा दिया है तो कहीं न कहीं कोई सच्चाई जरूर होगी। सहदेव सिंह मनमर्जी करता होगा। इतने बड़े वेटलिफ्टर का संघ से अलग होना दुःख की बात है।
.....हरभजन सिंह,पूर्व अध्यक्ष,आई.डब्ल्यू.एल.एफ.

‘‘मैं यह नहीं कह सकता कि कौन गलत है और कौन सही। लेकिन पदमश्री कर्णम मल्लेश्वरी के फेडरेशन से हटने का एक गलत संदेश देश भर में जाएगा,जिससे वेटलिफ्टिंग का ही नुकसान होगा।
.....ललित पटेल, लक्ष्मण पुरस्कार विजेता
          इस स्तम्भकार का कहना है कि भारत के खेल मंत्री अजय माकन को इस ओर देखना चाहिए और अपने मंत्रालय को प्रभावी बनाना चाहिए वरना सारे फेडरेशन बीसीसीआई की राह पर चल निकलेंगे,जिससे खेल की तो ऐसी की तैसी ही हो जायेगी। देखा जाना चाहिए कि किस फेडरेशन को कितना अनुदान भारत सरकार का खेल मंत्रालय देता है और उसका इस्तेमाल किस मद में,कैसे और कौन कर रहा है। (सतीश प्रधान)