यदि ऐसा नहीं है तो एक भिक्षु और तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा से पूरी चीन सरकार क्यों घबराई हुई है,और एक बुजुर्ग एवं दुर्बल समाजसेवी अन्ना हजारे से भारत सरकार क्यों गुण्डई कर रही है। जिस तरह तिब्बतीयों के लिये दलाईलामा महत्व रखते हैं,ठीक उसी तरह 120 करोड़ भारतीय जनता के लिये अन्ना हजारे का महत्व है। पिछले दो दशक से विश्व मंच पर लगातार बढ़ रहे चीनी दबदबे के आदी हो चुके लोग इस बात से हैरान-परेशान हैं कि चीन सरकार अपनी बौखलाहट और हताशा का प्रदर्शन क्यों करती है! इसी प्रकार मात्र छह माह पूर्व भ्रष्टाचार के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे को लेकर रालेगण सिद्धी(महाराष्ट्र)से लेकर दिल्ली की ओर कूच करने वाले अन्ना हजारे से सोनिया गांधी सरकार हलकान क्यों है?
जिस प्रकार पूरी दुनिया यह नहीं समझ पा रही है कि लगभग हर मामले में दुनिया को ठेंगा दिखाने की हिम्मत रखने वाला चीन,सत्ताहीन पूर्व शासक और एक बौद्ध भिक्षु दलाईलामा से इस कदर घबराता क्यों है,ठीक इसी प्रकार भारतीय जनता यह नहीं समझ पा रही है कि आखिरकार भारत के सारे भ्रष्ट नेता अन्ना हजारे से भयभीत क्यों है? लेकिन इस भय के बाद भी वे अपनी गुण्डई छोड़ने को कतई तैयार नहीं है,जैसे की चीन।
पिछले दिनो बीजिंग ने ऐसी ही हायतौबा,नई दिल्ली में होने वाले विश्व बौद्ध सम्मेलन को लेकर भारत सरकार के खिलाफ मचाई। पहले तो उसने ‘सीमावार्ता’ की आड़ लेकर इस सम्मेलन को स्थगित करने की मांग की,लेकिन जब भारतीय विदेश मंत्रालय ने इंकार कर दिया तो चीन ने मांग उठाई कि दलाईलामा को इसमें भाग लेने से रोक दिया जाये। इन दोनों ही बातों को न मानने के एवज में भारत सरकार ने,इस विश्व सम्मेलन में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की उपस्थिति को गैरहाजिर कराकर चीन को संतुष्ट किया,जैसा कि अन्ना हजारे के दिल्ली स्थित रामलीला मैदान पर 13 दिनो के अनशन के बाद संसद के दबाव में आश्वासन देकर किया था।
एक विदेशी राजदूत की इस बेजा हरकत पर कपिल सिबल, अभिषेक मनु सिंघवी, एसएम कृष्णा, प्रणव मुखर्जी,पी. चिदम्बरम,मनमोहन सिंह समेत सोनिया गांधी और राहुल गांधी को चिंता नहीं हो रही है? ये सरकार न तो देश को ठीक से चला पा रही है और न ही विदेशों में अपने सम्मान की रक्षा कर पा रही है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने सम्मेलन में भाग लेकर और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने,अपनी गम्भीर रूप से बीमार माँ की तीमारदारी में लगी रहने के बावजूद अपने एक वरिष्ठ प्रतिनिधि को सभा में भेजकर चीनी राजदूत को उसकी हैसियत तो दिखा ही दी।
एक तरफ जहां दलाई लामा को लेकर चीनी नेताओं की इस बौखलाहट के कई कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण चीन द्वारा पिछले सात दशक में जबरन कब्जाये गये तीन देशों यथा पूर्वी तुर्किस्तान(शिजियांग),भीतरी मंगोलिया और तिब्बत में से अकेला तिब्बत ऐसा है,जिसके स्वतंत्रता आन्दोलन को दलाईलामा जैसा अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाला भिक्षु नेता उपलब्ध है। 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान के लगभग सभी नेता तब मार दिये गये थे,जब चेयरमैन माओ के निमंत्रण पर चीन की हवाई यात्रा के दौरान उनके विमान को हवा में ही विस्फोट करा दिया गया।
दलाईलामा के समर्थन वाले लोकप्रिय नारों के बल पर तिब्बत की आजादी के लिये चले आन्दोलन को तत्कालीन तिब्बती गवर्नर हूं जिंताओ ने टैंकों और बख्तरबन्द गाड़ियों की मदद से कुचल तो दिया,लेकिन इस आन्दोलन ने तिब्बती जनता के मन की ज्वाला को और हवा दे दी। इसके एक साल बाद ही चीन सरकार ने यह निश्चय किया कि तिब्बती धर्म का दमन करने की नीति को छोड़कर तिब्बती जनता का दिल जीतने का प्रयत्न किया जाये। इसी उद्देश्य से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक ‘अवतार खोजी कमेटी’ ने धार्मिक नेता करमापा के नये अवतार को खोजा,जिसे दलाईलामा ने भी अपनी स्वीकृति दे दी।
ठीक इसी प्रकार भारत में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन करने वाले बाबा रामदेव को पुलिसिया तांडव से भयभीत कराकर उनके आन्दोलन को तो कुचल दिया,लेकिन भारतीय जनमानस के मन में यह छाप छोड़ दी कि यह सरकार गुण्डों की है। वहीं दूसरी ओर अन्ना हजारे को आन्दोलन करने से पूर्व ही उन्हें सुबह-सुबह गिरफ्तार किरके जेल में बन्द कर देने पर वह मुसीबत में आ गयी,आखिरकार 12 दिनो के उनके जबरदस्त आन्दोलन से हारी सरकार ने एक दांव खेला‘स्टैंडिंग कमेटी’ का जिसने खोजकर निकाला है,बाबा राहुल गांधी जैसा मजबूत लोकप्रिय लोकपाल।
उधर 1995 में तिब्बत में दूसरे नम्बर के धार्मिक धर्मगुरू पंजेन लामा की खोज की गयी,लेकिन उसके लिये खोजे गये 6 वर्षीय बालक गेदुन नीमा को जब दलाई लामा ने अपनी स्वीकृति दे दी तो चीन भड़क गया और उसने उस 6 वर्षीय मासूम,उसके माता-पिता को हिरासत में लेकर अपनी पसन्द के एक लड़के ग्यालसेन नोरबू को असली ‘पंचेन लामा घोषित कर दिया। इस सारी कवायद का मकसद वर्तमान दलाईलामा के बाद अपनी सुविधा के अनुसार किसी बच्चे को ‘असली दलाईलामा’ के रूप में घोषित करने का है। लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहा है कि यदि दलाई लामा ने घोषणा कर दी कि उनके न रहने के सातवें दिन जो बच्चा चीन में पैदा होगा,वह तिब्बत को स्वतंत्र कर देगा,तब चीन की सरकार कितने चीनी बच्चों का कत्ल करायेगी?
तिब्बती आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने कहा है कि गुस्सा नुकसानदायक है और करूणा खुशहाली लाती है। पांचवें पेंग्विन व्याखान में लोगों के प्रश्नों का जवाब देते हुए दलाई लामा ने कहा कि वर्ष 2008 के संकट के दौरान मेरी इच्छा थी कि मैं चीनी अधिकारियों की नाराजगी और भय ले सकूं और उन्हें अपनी करूणा दे दूं। करूणा आपके मस्तिष्क को शांत रखने में मदद करता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में तिब्बत में दंगे भड़क गये थे, यहॉं तक कि भिक्षू भी विद्रोह करने में शामिल हुए और दंगे स्वायत्त क्षेत्र के बाहर बौद्ध मठों तक पहुंच गये थे।
पिछले कुछ वर्षों से चीन,भारत की क्षेत्रीय अखण्डता की खिल्ली उड़ा रहा है,जबकि भारत अपने तिब्बत रुख में कोई बदलाव करने का इच्छुक ही नहीं दिखाई दे रहा। दरअसल सरदार मनमोहन सिंह के दब्बूपने से बीजिंग की दबंगई बढ़ गयी है। अगर ऐसे ही हालात रहे तो चीन,जिसने भारत का 1,35,000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग दबा रखा है, तिब्बत पर किये गये कब्जे का विस्तार अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत बताकर वहां तक करने की चेष्ठा करेगा। 2006 से बीजिंग अरुणाचल प्रदेश के तिब्बत से सम्बन्धों के आधार पर इस पर दावा करता आ रहा है। वह तमाम सेक्टरों में सैन्य भिड़न्त के लिये तत्पर दिखता है,जबकि नई दिल्ली सीमा वार्ताओं अथवा वार्ताओं से ही किसी को मूर्ख बनाने का भ्रम पाले हुए है।
वार्ताओं के दौर से न तो ड्रैगन को बेवकूफ बनाया जा सकता है और न ही अन्ना हजारे और इस देश को। वार्ताओं के दौर जारी रखकर मनमोहन सिंह,पी.चिदम्बरम,कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद,अभिषेक मनु सिंघवी,दिग्विजय सिंह,मनीष तिवारी,नारायण सामी आदि नेताओं के माध्यम से राहुल गांधी और सोनिया गांधी की तो लुटिया डुबो सकते हैं लेकिन दलाईलामा का साथ देकर ‘तिब्बत’ में विकास के माध्यम से कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा सकते। वैसे भी एसएम कृष्णा के जाने का नम्बर आ गया है, विदेश मंत्रालय कपिल सिब्बल को दे दिया जाये,तो कुछ न कुछ तो हो ही जायेगा। वर्तमान माहौल में स्व.लाल बहादुर शास्त्री की याद आती है,क्योंकि सरदार जी में तो सरदार वाले एक भी गुण दिखाई नहीं देते और जो दिखाई दे रहे हैं,वे सरदार के तो नहीं हैं। (सतीश प्रधान)