अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर, दिल्ली स्थित यूनाइटेड नेशन इन्फारमेशन सेन्टर से महासचिव मून का बयान जारी किया गया । इस बयान में मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर जोर देते हुए कहा गया कि अपने विचारों को बेधड़क रूप से व्यक्त करने के लिये बहुत से लोगों ने खुद को सशेल मीडिया से जोड़ा है। अब वे दिन बीत गये जब दमनकारी शासक सूचना के प्रवाह पर अंकुश लगा देते थे। उनका इशारा स्पष्ट रूप से मनमोहन सरकार और उनके हैसियत भूले मंत्री कपिल सिब्बल की ओर ही था। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर अंकुश लगा ही नहीं सकती सरकार- बान की मून, महासचिव, यूनाइटेड नेशन।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,भारत सरकार के साइबर सलाहकार नीरज अरोड़ा का कहना है कि गलत, अश्लील या भद्दी सामग्री वेबसाइट पर डालने पर आईटी एक्ट की धारा-79 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। ऐसा ही केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल भी कह रहे हैं। इस पर गूगल का कहना है कि अगर कोई विवादास्पद सामग्री कानूनन जायज है तो हम उसे नहीं हटाते, ताकि विभिन्न लोगों के विचारों का सम्मान हो-
गूगल इण्डिया
इसी के साथ फेसबुक ने भी कुछ ऐसा ही कहा है। उसका कहना है कि हम उस सामग्री को हटा देंगे,जो हमारी शर्तों का उल्लंघन करती हैं। हम नफरत,हिंसा और अश्लीलता फैलाने वाली किसी भी सामग्री के खिलाफ हैं।
जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि वह आनलाइन सामग्रियों पर प्रतिबन्ध के खिलाफ हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अक्सर दुरुपयोग किया जाता है।
लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के आरोपी कपिल सिब्बल ने फेसबुक,गूगल और ऑर्कुट जैसी कई सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर शिकंजा कसने के इरादे जाहिर कर दिये हैं। दरअसल कपिल सिब्बल, सरदार मनमोहन सिंह के सबसे प्यारे मंत्री हैं,क्योंकि एक तो वे पेशे से वकील है,दूसरे उनके पास दूरसंचार मंत्रालय है,तीसरे वे राहुल की लुटिया डुबा सकते हैं और चौथे उन पर सोनिया गांधी का हाथ है। हिन्दुस्तान में वे कैबीनेट से ऊपर हैं,संसद से ऊपर हैं, जनता उनके जूतों तले पड़ी है और ये सोशल नेटवर्किंग साइट्स उनके रहम पर ही भारत में कुछ कर सकती हैं, वरना उनकी भौंहें टेढ़ी हो गईं तो प्रतिबन्ध लगने में देर कैसी?
भारत की आम जनता की आवाज को दबाने का खेल सत्ता के दीवाने,कपिल सिब्बल क्यों और किसके इशारे पर खेलना चाह रहे हैं,इसे तो सरदार मनमोहन सिंह ही बता पाने में सक्षम हो सकते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि मनमोहन के इशारे पर कपिल सिब्बल,मनीष तिवारी,दिग्विजय सिंह आदि नेता इस तरह की हरकत कर रहे हैं जिससे जनता की सारी नाराजगी राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर निकले और उनके खिलाफ जबरदस्त विरोध खड़ा हो जाये,जिससे प्रधानमंत्री पद पर सरदार जी का बना रहना अपिरिहार्य हो जाये।
ऐसा नुस्खा मैडम सोनिया गांधी के साथ पूर्व श्रूड प्रधानमंत्री नरसिंम्हा राव भी बखूबी आजमा चुके हैं। सोनिया गांधी को अच्छी तरह से पता है कि नरसिंम्हाराव ने आतंकी खतरा बताकर उनकी जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था करा दी थी। उन्हें जनता के मध्य नहीं आने दिया था। अब चूंकि वह जनता के बीच हैं तथा लला को प्रधानमंत्री पद पर देखने के लिए अधीर एवं व्याकुल भी, इसीलिए प्रधानमंत्री पद पाने से पूर्व राहुल गांधी को जनता की भावना का आदर करने के साथ ही उत्तर प्रदेश की जनता का सम्मान करना भी सीखना पड़ेगा। वैसे भी जब तक उ0प्र0 के लोग भीख मांगने की प्रवृत्ति से ऊपर नहीं आ जाते हैं,उनकी प्रधानमंत्री बनने की चाहत कोई मायने नहीं रखती है।
पूरे उत्तर प्रदेश के लोगों को भीख मांगने से वे क्या रोक पायेंगे,जब वे स्वयं ही वोट की भीख मांगने के लिये पूरे प्रदेश में दर-दर घूमने को मजबूर हैं। वे पहले सुल्तानपुर और रायबरेली के लोगों को ही बेहतर स्थिति में ला दें यही बहुत है। रायबरेली और सुल्तानपुर में सर्वे कराकर वह आंकड़ा प्रस्तुत करें कि वहां के कितने लोग भीख मांगने के लिये अपने जनपद से बाहर नहीं निकलते हैं। देश स्वतंत्र होने से लेकर आज तक पूरी तौर से सत्ता में बने रहने के बावजूद वे केवल दो जनपदों से भिखारीपन दूर नहीं कर पाये तो आगे क्या करेंगे,सिवाय इसके कि एक गरीब दलित के घर खाना खाकर उसे एक सप्ताह के लिये भूख से मरने के लिये छोड़ दें।
क्या वे ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं कि केवल इन दो जनपदों के लोगों को ही अपने घर पर एक माह में एक ही दिन सही,खाना खिलाने का लंगर खोल दें। सालभर के लिए बारह लंगर रायबरेली में और बारह लंगर सुल्तानपुर के लिए। कुल मिलाकर 24 लंगर प्रधानमंत्री का पद पाने के लिए कौन सी बड़ी चीज़ है?
राहुल गांधी,गरीब दलित के घर खाना खाकर उसे और गरीब बना रहे हैं एवं जबरदस्त फर्जी पब्लिसिटी पा रहे हैं, अलग से। क्योंकि अभी तक यह सुनने में नहीं आया कि राहुल गांधी ने जिस गरीब दलित के घर खाना खाया उसे वहॉं से जाते वक्त पॉंच- दस हजार रूपये दे दिये हों! जबकि वे कोई कमजोर व्यक्ति नहीं हैं।
इसके विपरीत यदि वे गरीब अगर राहुल गांधी के घर खाना खायेंगे तो न तो वह पब्लिसिटी गरीबों के काम आयेगी और न ही गरीबों की गरीबी दूर हो जायेगी, जबकि इसकी पब्लिसिटी भी बाबा राहुल गांधी को ही मिलेगी। टी-सीरीज वाले का मॉ वैष्णों के दरबार में रोजाना लगाया जाने वाला भंडारा, टी-सीरीज की ही पब्लिसिटी कर रहा है। वहां कितने करोड़ लोग खाकर चले गये कौन जानता है? हो सकता है राहुल बाबा ने भी वहां प्रसाद पाया हो। देश में चारों तरफ ऐसा देखकर भी उनके मन से यह हूक नहीं उठती कि सुल्तानपुर और रायबरेली में ही सही,कम से कम,एक-एक भंडारा तो खोल दिया जाये,जिससे वहां की गरीब और भिखमंगी जनता रोजाना भरपेट भोजन तो कर सके। राहुल गांधी कितना इस देश से कमायेंगे और किसके लिये,उनकी तो अभी शादी भी नहीं हुई है।
हिन्दू-मुस्लिम सभी जानते हैं कि यह सत्ता का खेल है,फिर चाहे सत्ता पाकिस्तान की हो या गुजरात की। मनमोहन सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर फरसा लगाने की सोच पर उसे मुंह की ही खानी पड़ेगी। जिसकी एक घुड़की पर सरदार मनमोहन विचित्र मोहन की स्थिति में आ जाते हों,उसके कन्ट्रोल वाली साइबर मीडिया को कुटिल सिब्बल क्या खाकर नियंत्रण में कर पायेंगे,यही देखना शेष है।
इंटरनेट निहित हितों, मीडिया स्वामित्व से मुक्त है। सिब्बल इस पर लगाम क्यों लगाना चाहते हैं।
(सतीश प्रधान)
0 comments:
Post a Comment
Pl. if possible, mention your email address.