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Tuesday, January 17, 2012

अमेरिका को अश्वेत और भारत को श्वेत राष्ट्रनायक की ही जरूरत

          वर्ष 2008 में अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने बराक ओबामा उस प्रतिभा, क्षमता, कौशल और रणनीतिक व्यक्तित्व के धनी हैं, जिसकी जरूरत अमेरिका जैसे देश को वर्तमान में तो है ही, आगे भी पड़ती रहेगी। पिछले तीस सालों से अमेरिका में मंदी का दौर चल रहा है। कई दशकों से धौंस और दादागिरी के बूते दुनिया पर राज कर रहे अमेरिका ने दरकती-टूटती पूंजीवादी व्यवस्था की खामियों को विश्व से छिपाये रखा। कर्ज लेकर घी पीने की ठसक ने वहॉं बैंकिंग प्रणाली को अन्दर ही अन्दर खोखला कर दिया, लेकिन जार्ज बुश का अमेरिका अकबर दी ग्रेट होने का महान प्रपंच रचता रहा। तीन दशकों से अमेरिका में नौकरियां घट रही हैं। इराक पर बमबारी और अमेरिकी फौजों की देश से बाहर बनाई गई छावनियों पर होने वाले व्यय ने अमेरिका को मन्दी के दौर में ले जाने का कार्य किया।

          उन्हीं बुश की रणनीति से प्रभावित रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार रिक सांटोराम भी औरान परमाणु संयंत्र पर हमला कराने का वादा अमेरिकी जनता से करते हैं तो क्षोभ होता है। यह जानते हुए भी कि इ वर्ष क्रिसमस के मौके पर खून जमा देने वाली सर्द हवाओं के बीच लोग क्रिसमस मनाने नहीं, बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ सड़कों पर डेरा डाले बैठे रहे। अमेरिका में विरोध प्रदर्शन जारी हैं। शेयर मार्केट, मुक्त बाजार और पूंजीवादी अर्थतन्त्र के विरूद्ध लोगों की नाराजगी सातवें आसमान पर है। ऐसा ही हाल भारत का है, लेकिन यहॉं के अश्वेत, अश्वेतों को ही लूट रहे हैं।यहॉं की जनता को भी अभी पता नहीं चल रहा है कि क्या और क्यों ऐसा हो रहा है।
        
          कहा जा सकता है कि लम्बे समय के बाद दुनियाभर में बहुसंख्यक कामकाजी आबादी अल्पसंख्यक पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़ी हुई है। अमरीका में यह एक प्रतिशत अमीरों के खिलाफ  निन्नयानवे प्रतिशत आम लोगों का जबरदस्त गुस्सा है। लोगों का कहना है कि अमेरिका में कंजरवेटिज्म ने घटिया पूंजीवाद को मनमानी करने दी और उसे आला मुकाम दे दिया। बड़े अमेरिकी कार्पोरेट घरानों ने अपने अल्पकालिक लाभ के लिए उन मूल्यों और संस्कारों को त्याग दिया जिसके लिए कभी अमेरिका को उस पर नाज था।

          अपने भारत में भी कार्पोरेट सेक्टर का यही हाल है। वे देश में उद्योग लगाने को तब आतुर रहते हैं जब उन्हें टैक्स में जबरदस्त छूट मुहैय्या हो, बिल्कुल सस्ते में यानी कौडी के तीन के दाम में कृषकों की जमीन सरकार द्वारा जबरिया अधिग्रहीत कर उन्हें दे दी जाये और इसके बाद भी उनके उत्पादों पर ब्रिकी का मूल्य तय करने में उनकी ही मनमानी चले। सरकारों द्वारा इतना करने के बाद भी वे सरकार को धौंसियाते रहते हैं कि यहॉं भ्रष्टाचार और लालफीताशाही है इसलिए हम विदेश में निवेश करेंगे। यानी मोटी मलाई से घी बनायेंगे हिन्दुस्तान में और उस करेन्सी को ले जायेंगे विदेश में। क्या कार्पोरेट सेक्टर का कोई सूरमा कह सकता है कि ब्यूरोक्रेशी को भ्रष्ट करने में उसका हांथ नहीं है? जो ऐसा कहने की हिम्मत रखता हो मुझसे बात कर सकता है, मैं बताऊंगा कैसे और किस तरीके से आप जैसे महान लोगों ने भ्रष्टाचार को बढ़ाकर लालफीताशाही को जन्म दिया है। 

          अमेरिका में घटिया पूंजीवादी व्यवस्था ने पॉंव पसारना शुरू किया और वॉल स्ट्रीट द्वारा संचालित इस व्यवस्था ने अतिधनाड्य लोगों को तो और अमीर बना दिया, लेकिन नौकरियों के खत्म होने, छटनी होने के अलावा और कोई भविष्य न होने के कारण बहुसंख्यक आबादी को मृत्यु के कुएं में धकेल दिया, ठीक यही हालात भारत में चल रहे हैं। अमेरिका दिल फरेब रंगीनियों में डूबता चला गया। मॉल्स की संस्कृति फलने-फूलने लगी। इस एक प्रतिशत से नकल के चक्कर में निन्नयानवे प्रतिशत लोग कर्ज लेकर घी पीने लगे, और अब उसके दुष्परिणाम दुनिया के सामने हैं। भारत में भी मॉल कल्चर फेल हो रहा है, इसी कारण उसे जमाने के लिए रिटेल सेक्टर में एफडीआई को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर ने मंजूरी दे दी है।

  बराक ओबामा के हांथ में एक बर्बाद अमेरिका आया। ऐसी विषम परिस्थितियों में ही श्वेत अमेरिकी नागरिकों ने अपने देश की कमान किसी श्वेत को ना देकर एक अश्वेत बराक ओबामा के हांथ में दी कि अब इस देश को कोई अश्वेत ही बचा पायेगा। लेकिन तीस साल के विनाश को मात्र तीन सालों में कोई भी व्यक्ति चाहकर भी चहुंओर विकास की अलख नहीं जगा सकता। खर्च में कटौती करने, अपनी फौज को वापस अपने देश में लाने और उन परिवारों को राहत पहुंचाने के नाम पर ही राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दुनियाभर में डेरा डाले पड़ी अपनी सेनाओं को वापस बुलाने की मुहिम चालू की है। इराक, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से उसका बोरिया बिस्तर समेटे जाना इसी बात का प्रमाण है।

  पटरी पर से उतरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी हद तक वे ही पटरी पर लाये हैं और अब भी जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह से उसे बचाया जाये। इसीलिए उन्होंने कहा है कि अब समय आउटसोर्सिंग के बजाय इनसोर्सिंग का है। उन्होंने रोजगार के अवसर देश से बाहर भेजने के बजाय देश के भीतर ही रोजगार देने पर जोर दिया। ओबामा ने कहा है कि आने वाले दिनों में वे ऐसी नीतियां बनाएंगे जो आऊटसोर्सिंग को हतोत्साहित करेंगी तथा विदेशों से रोजगार वापस लाने वाली कम्पनियों को प्रोत्साहन देंगी। देश को अपने साप्ताहिक सम्बोधन में उन्होंने कहा कि आपने आऊटसोर्सिंग के बार में सुना था, अब इनसोर्सिंग की बात कीजिए। 
इस सम्बोधन का वीडियो व्हाइट हाऊस की वेबसाइट पर उपलब्ध है जिसमें ओबामा ने मेड इन अमरीका उत्पादों को दिखाया है। ओबामा ने कहा कि ये उत्पाद आमतौर पर नहीं दिखते हों, लेकिन वे तीन गर्वित करने वाले शब्दों से बंधे हैं, मेड इन अमरीका। अमेरिकी श्रमिकों ने इन्हें अमरीकी कारखानों में बनाया और इन्हें देश के अन्दर और दुनिया भर के ग्राहकों को भेजा। उन्होंने कहा कि इन उत्पादों को बनाने वाली कम्पनियां एक उम्मीद बढ़ाने वाले क्रम का हिस्सा हैं, जो विदेशों से नौकरियां वापस ला रही हैं।
ओबामा ने कहा कि रोजगारों की इनसोर्सिंग करने वाले कारोबारी अधिकारियों को उन्होंने इसी सप्ताह व्हाइट हाऊस में एक मंच में बुलाया था। राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि मैंने उन सीईओ से वही बात कही जो मैं किसी भी उद्योगपति से कहना चाहूंगाः कि आप और अधिक रोजगार देश में लाने के लिए क्या कर सकते हैं, और मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि आपके साथ ऐसी सरकार होगी जो आपकी सफलता के लिए हर सम्भव कदम उठायेगी।

ओबामा ने कहा कि इसीलिए अगले कुछ सप्ताह में मैं नए कर प्रस्ताव पेश करूंगा जो रोजगार वापस लाने तथा अमेरिका में निवेश करने वाली कम्पनियों को पुरस्कृत करेंगे। इनमें उन कम्पनियों के लिए कर छूट समाप्त की जाएगी जो रोजगार विदेश भेजती हैं। ओबामा ने अमरीकी सरकार के ढ़ांचे तथा कार्य परिचालन को भी चुस्त दुरूस्त बनाने का आह्वान किया ताकि यह 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था के अनुरूप बन सके, इसी के साथ यह लिखने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्र को सुरक्षित भी बनाया है।

ओबामा के ही कारण अमेरिका जैसा राष्ट्र अवसाद की स्थिति में जाने से बच गया। उद्योग जगत को भी उन्होंने हर सम्भव बचाने की कोशिेश की। यह अलग बात है कि अमेरिकी बच्चों एवं युवाओं में बढ़ते मोटापे के कारण उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने पीजा, बर्गर बनाने वाली कम्पनियों को देश से बाहर का रास्ता दिखाने की जुर्रत की, जिसके लिए अमेरिकी जनता को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए। लेकिन साथ ही यह स्तम्भकार उनसे अपील करता है कि ऐसी कम्पनियों को कोई और क्षेत्र अपनाने की सीख वे दें, तथा इन कम्पनियों को भारत में अपना व्यापार फैलाने की इजाजत कतई ना दें।

जब भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी और हमारे भगवान हनुमान जी को वे उसी श्रद्धा से मानते हैं, जिससे की हम तो फिर जो कम्पनियां अमेरिकी समाज में मोटापा बढ़ा रही हैं, उन्हें थुल-थुल और आलसी बना रही हैं, ऐसी कम्पनियों को भारत भेजकर वे क्यों हमारे परिवार के साथ अन्याय कर रहे हैं। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी समाज की स्वास्थ्य सेवा पर आने वाले खर्च को कम करने एवं भविष्य में किसी भी स्थिति में दिवालियेपन से बचने के उपाय करने शुरू कर दिये हैं। ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान की धरती पर ही एनकाउन्टर कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है, इसके जरिए उन्होंने निश्चित रूप से अलकायदा को कमजोर किया है।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया है, जबकि वे डा0 मनमोहन सिंह जैसे अनर्थशास्त्री नहीं हैं, लेकिन वे अपने देश की मुद्रा को (स्टैण्डर्ड एण्ड पूअर्स संस्था द्वारा क्रेडिट रेटिंग ट्रिपल ए से डबल ए पर गिराने के बाद भी) मजबूती प्रदान कराना जानते हैं। अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग जब घटी थी तो तथाकथित मजबूत अनर्थशास्त्री डा0 मनमोहन सिंह के देश में एक डॉलर 43 रूपये का था, जो आज की तारीख में 52 रूपये है। इसका सीधा मतलब है कि किसी अर्थशास्त्री को देश के प्रधानमंत्री के पद पर बैठाना उस देश की मुद्रा की ऐसी की तैसी कराने के अलावा और कुछ भी नहीं है। इससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि देश की बागडोर किसी अर्थशास्त्री को सौंपा जाना, देश को कुएं में धकेलने जैसा है।


          इस स्तम्भकार का विश्लेषण यही कहता है कि अमेरिकी जनता के हित में यही है कि एक मौका और बराक ओबामा को प्रदान करे, और पूरी जिन्दगी इसका विश्लेष्ण करे कि एक अश्वेत ओबामा जिसने दो टर्म इस देश की कमान संभाली, अमेरिकी नागरिकों को क्या दिया और उसके अलावा बने रहे श्वेत राष्ट्रपतियों की लीडरशिप में उन्हें क्या मिला? अमेरिका में राष्ट्रपति का एक टर्म कोई बहुत बड़ा मायने नहीं रखता, इसलिए राष्ट्रपति बराक ओबामा को एक और टर्म प्रदान कर प्रयोग किया जाना ही चाहिए कि एक अश्वेत राष्ट्रपति ने अमेरिका को क्या दिया।

          राष्ट्रपति का पद पाने के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार रिक सांटोराम का अमेरिकी जनता से यह वादा करना कि अगर वे राष्ट्रपति बनते हैं तो औरान परमाणु संयंत्र पर हमला करवा देंगे, निहायत ही मूर्खतापूर्णं वादा है। ऐसा वादा अथवा बयान एक सनक से अधिक कुछ और नहीं है, जो अमेरिकी नागरिकों को फायदे के अलावा नुकसान अधिक पहुंचायेगा।

        एक तरफ रणनीतिक कौशल देखिए ओबामा का कि उन्होंने अमेरिका के अपने व्हाइट हाऊस में बैठे-बैठे पाकिस्तान में आराम से सो रहे कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को ढे़र करा दिया और एक भी पाकिस्तानी जनता हताहत नहीं हुई, ना ही अमेरिकी फौज का कोई रखवाला हताहत हुआ। इससे उनके रण कौशल की रणनीति का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस आपरेशन से पाकिस्तान की जनता भी खुश हुई और अमेरिकी जनता के तो कहने ही क्या! इसके विपरीत यदि यह मान लिया जाये कि रिक सांटोराम राष्ट्रपति बन गये और उन्होंने अपने वादे के अनुसार औरान के परमाणु संयंत्र पर हमला करा भी दिया तो इससे अमेरिकी नागरिकों को क्या मिलेगा? क्या गारन्टी है कि हवाई हमला कराने के दौरान अमेरिकी फौज के जाबांज हताहत नहीं होंगे! क्या इससे परमाणु युद्ध की शुरूआत नहीं होगी? ऐसे कितने ही प्रश्न तब उभरकर सामने आयेंगे जब ऐसा हमला कराया जायेगा।
          औरान में लाखों निरीह लोग मारे जायेंगे, विकिरण फैलने से लाखों लोग अन्धे, विकलांग और जाने क्या-क्या नहीं होगे। क्या उस देश की पुस्त दर पुस्त अपाहिज पैदा नहीं होगी? इस सबका कलंक क्या अमेरिकी जनता के सिर नहीं पड़ेगा? ऐसे कृत्य किसका भला करेंगे? अमेरिका के प्रति जबरदस्त नफरत फैलाकर रिक सांटोराम अमेरिकी नागरिकों को क्या मुहैय्या करायेंगे? मेरी राय में तो रिपब्लिकन पार्टी को ऐसे सनक मिजाज मानसिकता वाले नेता को कोई भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपनी चाहिए।

            यह स्तम्भकार निश्चित रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि अमेरिकी नागरिकों के हित में यही है कि अगला राष्ट्रपति भी अश्वेत बराक ओबामा को ही बनायें, और उस श्वेत लीडर को भारत भेज दें, जिसे वे बहुत पसन्द करते हैं। वह हिन्दुस्तान सुधार देगा और ओबामा अमेरिका। अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति ओबामा ने जितने भी निर्णय लिए हैं, निश्चित रूप से वे अमेरिका के हित में ही रहे हैं। एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, इसलिए यह वह समय है जब अमेरिकी जनता को उनका साथ अपनी कन्ट्री के हित में देना चाहिए, बाकी रही उनकी मर्जी, उनका देश। मेरा स्पष्ट मत है कि अमेरिकी जनता अपने मत का प्रयोग बराक ओबामा के ही पक्ष में करके उन्हें नवम्बर 2012 में होने वाले चुनाव में पुनः एक और टर्म के लिए अमेरिका का राष्ट्रपति बनायेगी।   
अमेरिका जैसे प्रभावशाली राष्ट्र का पुनः नेतृत्व संभालने की शुभकामनाओं के साथ अग्रिम बधाई।  
(सतीश प्रधान)

Sunday, December 25, 2011

मेरी मेरी क्रिसमस-अगले राष्ट्रपति भी बराक ओबामा


         अमेरिका में कराये गये एक ताजा सर्वेक्षण से प्रकाश में आया है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी को लेकर लोकप्रियता के मामले में रिपब्लिकन पार्टी के दो संभावित प्रमुख उम्मीदवारों से बढ़त बनाई हुई है। सीएनएन-ओआरसी इंटरनेशनल सर्वेक्षण के परिणाम जारी करते हुए सीएनएन ने अपनी विज्ञप्ति में कहा है कि एक नये राष्ट्रीय सर्वेक्षण से पता चला है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा के पुननिर्वाचन की संभावनाओं में दो महत्वपूर्णं संकेतकों में बढ़ोत्तरी हुई है। सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि ओबामा ने खुद को चुनौती देने वाले रिपब्लिकन पार्टी के पांच संभावित उम्मीदवारों के खिलाफ बढ़त हासिल कर ली है और उनकी स्वीकार्यता रेटिंग में भी मध्य नवम्बर से पांच अंकों की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।


सर्वेक्षण, वर्ष 2012 में होने वाले चुनाव में ओबामा रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी में 52 प्रतिशत मतों के साथ मिट रोमनी जिन्हें 45 मत मिले थे,उनसे 5 अंकों से आगे चल रहे हैं।
          इसी के साथ बराक ओबामा ने रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी के अन्य शीर्ष उम्मीदवारों, नेवट गिंगरिच, रिक पेरी, रोन पॉल और माइकल बचमैन पर भी जबरदस्त बढ़त कायम की हुई है। सर्वेक्षण में पूरी बात सामने आती है या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा को अमेरिकी आर्मी एवं उनके परिवारीजनों का जबरदस्त सहयोग इस चुनाव में हासिल होगा। 
           क्रिसमस के इस अपार खुशी के पर्व पर मेरी हार्दिक शुभकामना एवं भविष्यवाणी है कि वर्ष 2012 का चुनाव भी बराक ओबामा भारी मतों से जीतेंगे और पुनः अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। (सतीश प्रधान)   
                                
         
As Christmas carols fill the air with joy and merriment, as the chime of church bell echoes all around, and prayers reach out to God,
                                          
WE wish the people all around the World specially the Readers, Commentators and management team of jnn9's Blog a joyous Christmas and a Happy New Year.