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Monday, July 28, 2014

रेप्लिका आफ सरदार पटेल

इतिहास बताता है कि भारत वर्ष 1947 में आजाद हो चुका है, लेकिन सही मायनों में कहा जाए तो भारत को अंग्रेजों के कब्जे से भले ही आजादी 1947 में मिल गई होलेकिन असली आजादी तो 26 मई 2014 को ही मिली है,जिस दिन आजाद भारत में ही जन्मे भाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने भारत के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है।

स्वामी विवेकानन्द जी एवं नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे देशभक्तों के विचारों एवं गुणों से ओत-प्रोत और सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमूर्तिभाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने पूरे हिन्दुस्तान में नई ऊर्जा का संचार ही नहीं किया हैअपितु उनका व्यक्तित्व निश्चित रूप से भारत देश को उन बुलन्दियों पर पहुंचायेगा जिसकी कल्पना हमारे पूर्वजों ने अपना बलिदान देकर की थी।
दो सौ वर्षों की गुलामी कराने के बाद अंग्रेजों ने जिस हिन्दुस्तान को आजाद किया था,दरअसल उसकी चाबी अंग्रेजों ने अपने पिठ्ठुओं के ही हांथ सौंपी थी। हिन्दुस्तान का पहला प्रधानमंत्री जो व्यक्ति बनावह सम्पूर्ण कांग्रेस की पसन्द का कतई ना होकर मात्र महात्मा गांधी और अंग्रेजों की पसन्द का ही था। वरना क्या वजह थी कि उस समय मौजूद पन्द्रह कांग्रेस कमेटियों में से 12 कांग्रेस कमेटियों द्वारा सरदार पटेल का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए संस्तुत किये जाने के बाद और तीन कांग्रेस कमेटियों द्वारा किसी के भी नाम की संस्तुति ना करने के बाद भी एवं किसी भी एक कांग्रेस कमेटी से पं0 जवाहर लाल नेहरू के नाम की संस्तुति ना होने के पश्चात भी पं0 नेहरू को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बना दिया गया।
दरअसल सम्पूंर्ण कांग्रेस कमेटी द्वारा सरदार पटेल के नाम की ही सिफारिश मिलने के बाद महात्मा गांधी जी ने सरदार पटेल पर दबाव डाला कि वे इस पद से इस्तीफा दे दें,क्योंकि वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ही बनें। महात्मा जी की बात का आदर करते हुए सरदार पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने से इन्कार कर दिया और पं0 नेहरू का नाम प्रधानमंत्री के लिए प्रशस्त हो गया। इसी दरम्यान लेडी माउण्टबेटन द्वारा जिन्ना के कान भरे गये कि जब एक भी कांग्रेस कमेटी द्वारा नेहरू के नाम की सिफारिश ना आने के बाद भी उनका नाम प्रधानमंत्री बनाये जाने के लिए आ रहा है,तो तुम किस हिसाब से उनसे कम हो! जिन्ना को लेडी माउण्टबेटन ने बरगलाकर प्रधानमंत्री पद लिए दौड़ लगवा दी।

बस फिर क्या था,जिन्ना ने भी प्रधानमंत्री बनने की जिद पकड़ ली और नतीजा सबकी आंखों के सामने है कि जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हिन्दुस्तान के दो टुकड़े करके पाकिस्तान को अलग राष्ट्र बना दिया गया। तथ्यात्मक विश्लेषण से प्रकट होता है कि अंग्रेजों ने जाते-जाते हिन्दुस्तान के दो टुकड़े ही नहीं किये अपितु उस महात्मा की भी छुट्टी करा दी,जिसने उनके कहे पं0 नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री पद सौंप दिया था। इतना ही नहीं अंग्रेज ऐसा बीज बोकर गये कि उसका खामियाजा हम हिन्दुस्तानी आजतक भुगत रहे हैं।
सोचिए यदि हिन्दुस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल होते तो जिन्ना भी मैदान में ना आते,पाकिस्तान का भी उदय ना होता और कश्मीर के लिए धारा-370 के सृजन की भी आवश्यकता नहीं पड़ती! जिस पर आज बहस के लिए भी लोग जहर उगल रहे हैं। यह सब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पं0 नेहरू को ही प्रधानमंत्री बनाये जाने की जिद के ही कारण हुआ। नरेन्द्र मोदी से पूर्व के समस्त प्रधानमंत्रियों में से एकमात्र लालबहादुर शास्त्री ही ऐसे प्रधानमंत्री थे जो यदि जिन्दा होते तो भारत की तस्वीर भी दूसरी होती। लेकिन उनकी संदेहास्पद मौत के बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम ना कराया जाना निश्चित रूप से जांच के दायरे में आना चाहिए था लेकिन ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया।

इसी तरह इस देश के गौरव पुरूष सुभाष चन्द्र बोस को भी गुमनामी की अंधेरी खोह में इरादतन डुबो दिया गया। जिस शक्स ने अपने देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजादी दिलाने के लिए इण्डियन सिविल सेवा में टाप करने के बाद भी उसे ज्वाइन ना किया हो और स्वतन्त्रता के लिए इण्डियन सिविलियन आर्मी (आजाद हिन्द फौज) का गठन किया हो एवं अंग्रेजों से लोहा लेकर जंग जीती हो वह भारत को आजादी दिलाने के बाद कहीं छिप क्यों जायेगा? कहीं भाग क्यों जायेगा? जिस विमान दुघर्टना में उनके मारे जाने का भ्रम फैलाया गया है,मेरा मानना है कि दरअसल ऐसी कोई विमान र्दुघटना तब हुई ही नहीं थी।
ऐसे वीर सपूतों के हांथ में यदि भारत की सत्ता आई होती तो माना जाता कि देश स्वतन्त्र हुआ लेकिन भारत देश वास्तव में 26 मई 2014 की दोपहर तक परतन्त्र ही था। असली मायनों में स्वराज तो 26 मई की शाम को आया है, जब इस देश के प्रधानमंत्री की शपथ भाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने ली है। इस आजाद भारत के प्रधानमंत्री को मेरी एक छोटी सी सलाह है कि वे अबसे किसी भी मायने में सरदार वल्लभ भाई पटेल वाली गलती नहीं दोहरायेंगे। अब आप देश के लिए हैं। आपका समय, आपका शरीरआपकी आत्मा सब देश के लिए हैऔर ऐसा आप कर भी रहे हैं, फिर भी इसे आपको हमेशा अपने जहन में रखना होगा।
सरदार पटेल ने यदि महात्मा गांधी जी की बात ना मानी होती और पन्द्रह कांग्रेस कमेटियों द्वारा उनके नाम को संस्तुत किये जाने को देशहित में मानते हुए आदर-सम्मान दिया होता तो निश्चित रूप से भारत आज विश्व का लीडर एवं हरा भरा खुशहाल राष्ट्र होता! तब धारा-370 का ना तो उदय होता और ना ही इस पर किसी बहस की आवश्यकता होती! इसीलिए नरेन्द्र मोदी जी को कोई भी निर्णय इसलिए नहीं लेना है यदि ऐसा नहीं किया तो वो नाराज हो जायेगा और वैसा ना किया तो ये नाराज हो जायेगा। आपको भीष्म पितामह की तरह हस्तिनापुर से बंधे नहीं रहना हैभले ही हस्तिनापुर में अधर्म होता रहे। वे इस देश के सवा सौ करोड़ से अधिक भारतीयों के संरक्षक हैं,वे अब मात्र भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नहीं हैंवे भारतीय जनता पार्टी के नेता तो हैं, लेकिन प्रधानमंत्री भारत के हैं और पूरा भारत किसी एक पार्टी का कतई ना तो है और ना ही हो सकता है।
इसी वेबसाइट पर कई एक ऐसे लेख विगत तीन वर्षां के दौरान लिखे गये है जब स्तम्भकार को पता ही नहीं था कि इस देश से एक राजवंश का शासन कभी समाप्त भी होगा। ऐसे लेखों के लिंक नीचे लगाये जा रहे हैं। अपने उस सलाहकार को सुपुर्द करना चाहें जो जोधा की तरह अकबर को चाहता हो ना कि बेगम रूकईया की तरह शहंशाह को। तय मानिये शहंशाह जलाल को अकबर महान बनाने में एकमात्र योगदान जोधा एवं उसके बीरबल जैसे सलाहकारों का ही था।
नरेन्द्र मोदी नाम की शक्सियत एक मिश्रित व्यक्तित्व हैसरदार पटेल,स्वामी विवेकानन्द और सुभाष चन्द्र बोस का। निश्चित रूप से सरदार पटेललौह पुरूष थेलेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भारत को आवश्यकता है स्टील पुरूष की,जिसमें लचीलापन भी हो और दृढ़ता भी। नरेन्द्र मोदी जी के शीर्ष प्राथमिकता पर इण्टरनल और बार्डर सीक्योरिटी होनी चाहिए और इन सबसे ऊपर उनकी अपनी सीक्योरिटी! मोदी जी के दुश्मनों की तादाद 26 मई 2014 के बाद से बहुत बढ़ गई हैफिर चाहे यह अपने देश में छिपे गद्दारों से हो अथवा विदेशीयों से। यह कोई हल्के में लेने या ओवर कान्फीडेन्स में होने का प्रश्न नहीं है।
आखिरकार लाल बहादुर शास्त्री को दूर देश में ही मरा पाया गया और वीर बहादुर सिंह भी विदेश में ही मारे गये। अन्दरूनी आतंक और उससे जुड़ा आतंकवाद बहुत बड़ी समस्या है। एनआईआईबीरास्पेशल ब्यूरो जैसी संस्थायें जो सुप्तावस्था में हैंउन्हें जगाने और ताकतवर बनाने की आवश्यकता है। उनके पास सारी जानकारी रहती है, वे इसे समय-समय पर सरकार के मुखिया को उपलब्ध भी कराती हैंलेकिन जब मुखिया ही उन्हें देखकर साइड-ट्रैक करने के मूड में रहता हो तो वे क्या कर सकती है। र्दुभाग्य रहा है इस देश का कि उनकी एडवाइस और फाइलें वे देखते हैं जो स्वंय गुनहगार हैं।
मेरा निश्चित मत है कि नरेन्द्र मोदी जी सरदार पटेल की ही रेप्लिका हैं। जिस सरदार पटेल ने 543 रियासतों को भारत में मिलाकर संसद की उत्पत्ति की,उस सरदार पटेल की कश्मीर के मामले में दी गई सलाह को पं0 नेहरू ने ना मानकर कश्मीर मुद्दे को यूनाइटेड नेशन काउन्सिल को रेफर कर दिया,वही मुद्दा आजतक नहीं निपट सका है और झगड़े की जड़ बना हुआ है। यही इतिहास की सबसे बड़ी भूल है, जिसके लिए नेहरू कम सरदार पटेल ज्यादा जिम्मेदार हैं। मोदी जी ध्यान रखें जो होस्टाइल कंडीशन भारत की तथाकथित आजादी से पूर्व थीं,वे ही कन्डीशन वर्तमान में भी मौजूद हैं,क्योंकि 25 मई तक इस देश में एक राजवंश का ही शासन था।
       The problem of the State (India) is so difficult that only & only Narendra Modi alone can handle it. Satish Pradhan

मेरे जैसे और भी लाखों भारतवासी आपको भारत का स्वतंत्र पंधानमंत्री बनते देख अपार खुशी का अनुभव करते हैं और आपके दीर्घायू होने और देशहित में कठोर से कठोर निर्णय लेने की कामना करते हैं। यदि शरीर का कोई अंग कैंसर से पीड़ित है तो उसका पोषण करने के बजाय उसका काटा जाना ही श्रेष्ठ इलाज है।
आपके साथ इस देश के 282 सांसद ही नहीं हैं, पूरा देश आपके साथ है। देशहित के हर निर्णय में यह पूरा देश आपके साथ खड़ा मिलेगा। इसे ना तो जयललिता रोक सकती हैंना ही ममता अथवा कोई और। बस जिसकी जगह जहां हैउसे वहीं पहुंचा दीजिए। जिसका जो काम हैउसे वही करना चाहिए। सरकार का काम नीतियां बनानाशासन एवं प्रशासन चलाना और अपना इकबाल कायम करना है। उसका काम आटादालतेलजूतामिट्टी का तेल और पैट्रोल बेचना नहीं है। इस पैरे को यदि सरकारें जान जाएं तो किसी भी और नुस्खे की आवश्यकता नहीं है।

Sunday, July 1, 2012

पत्रकारों की सम्पत्ति का खुलासा क्यों नहीं?


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने अपनी सरकार की छवि साफ सुथरी रखने के लिए अपने सभी मंत्रियों के वास्ते आचार संहिता तय कर दी है। मुख्यमंत्री ने न सिर्फ मंत्रियों को अपनी व परिवार के सभी सदस्यों की संपत्ति घोषित करने का निर्देश दिया है अपितु पांच हजार से अधिक का उपहार लेना भी प्रतिबंधित कर दिया है। इसके लिए उन्होंने सभी मंत्रियों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के प्राविधानों को भी पत्र में संलग्नक के रूप में भेजा है। मंत्री को अपने उन रिश्तेदारों का भी विवरण देना होगा जो उनपर आश्रित हैं। यह विवरण सिर्फ अचल सम्पत्ति तक ही सीमित नहीं है, अपितु यदि किसी के पास शेयर हैं, नकदी व ज्वैलरी है तो इसका भी विवरण देना होगा। पाँच हजार से अधिक मूल्य के उपहार को उन्होंने सरकारी सम्पत्ति घोषित कर दिया है।
ऐसी स्थिति में जबकि उ0प्र0 के मुख्यमंत्री ने मंत्रियों के लिए सम्पत्ति के खुलासे को अनिवार्य कर दिया है, और जब आई0ए0एस0, आई0पी0एस0 एवं पी0सी0एस0 अधिकारियों पर सम्पत्ति की घोषणा करने के लिए न्यायालय तक दखल दे चुका है तो राज्य मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकार इससे अछूते क्यों हैं? यहॉं पर समस्त पत्रकारों की बात नहीं की जा रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश के राज्य मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकारों के लिए तो इसे अपरिहार्य बनाया ही जाना चाहिए। चौथा खम्भा कहलाने में हमें बड़ा गर्व महसूस होता है, लेकिन जब बाकी तीनों खम्भों के लिए सम्पत्ति का खुलासा करना अपरिहार्य हो गया है, तो फिर राज्य मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकारों पर ये प्रतिबन्ध क्यों नहीं? श्री अखिलेश यादव का यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय एवं प्रशंसनीय है।
मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकारों को निर्देशित किया जाना चाहिए कि वे अपनी सम्पत्ति का खुलासा तीस दिन के अन्दर करें, अन्यथा कि स्थिति में उनकी मुख्यालय पर मान्यता निरस्त कर देनी चाहिए। इसी प्रकार जो पत्रकार मुख्यालय की मान्यता के लिए आवेदन करता है या उसकी सिफारिश/संस्तुति जो संस्थान करता है उसे उसके आवेदन के साथ सम्पत्ति के खुलासे का प्रमाण संलग्न करना चाहिए एवं बगैर इसके उस पत्रकार को राज्य मुख्यालय की मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। सूचना निदेशक, सूचना सचिव, सचिव मुख्यमंत्री एवं प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री को ऐसा प्रारूप तैयार कराना चाहिए जिससे पत्रकार आन-लाइन सम्पत्ति की घोषणा कर सकें। साथ ही प्रतिवर्ष इसको अद्यतित किये जाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
ध्यान रहे इसी लखनऊ में ऐसे-ऐसे पत्रकार हैं जो करोड़पति ही नहीं अपितु अरबपति हैं। पत्रकारिता से वेतन के नाम पर उनको पन्द्रह हजार भी वेतन नहीं मिलता है, लेकिन करोड़ों की अचल सम्पत्ति के वे मालिक हैं, बड़ी-बड़ी स्पोट्‌र्स यूटिलिटी व्हीकिल्स (एस0यू0वी0) से वे अपने तो घूमते ही हैं, कुछ तथाकथित बड़े कहलाने वाले पत्रकारों को भी ऐसे वाहन उपलब्ध कराकर उनकी आत्मा को तृप्त करते हुए ओबलाइज करते हैं। यही तथाकथित बड़े कहलाने वाले पत्रकार उन जैसे संदिग्ध एवं आय से अधिक सम्पत्ति धारण करने वाले पत्रकारों को प्रश्रय एवं संरक्षण दिये हुए हैं।
संदिग्ध एवं गलत धन्धों में लिप्त, बिल्डर और माफिया पत्रकारिता के पेशे में घुसकर अपने जैसे ही लोगों को पत्रकार का ठप्पा लगाकर सचिवालय एनेक्सी के मीडिया सेन्टर में घुसा चुके हैं। गैराज से अखबार निकालने वाले लोग आज की तारीख में कई करोड़ के आसामी ही नहीं हैं अपितु इनका नेक्सस इतना तगड़ा है कि कई एस0पी0, सी0ओ0, दारोगा इनके नेक्सस का हिस्सा हैं। इनकी सच्चाई का जो भी पत्रकार खुलासा करने की हिम्मत करता है, उसे यह जबरन फंसाने के लिए फर्जी एफ0आई0आर0 विभिन्न थानों में लिखवा देते हैं, जिसमें यही दरोगा, सी0ओ0, एस0पी0 और तो और एस0एस0पी0 (आई0जी0रेन्क के अधिकारी तक) इनकी खुले आम चाहे-अनचाहे मदद करते हैं।

क्या इससे कोई इंकार कर सकता है कि आई0बी0 की सूचना पर जो सतर्कता, सचिवालय मुख्य भवन, सचिवालय एनेक्सी, बापू भवन, राज्यपाल भवन के लिए बरतनी पड़ी उसमें किसी ऐसी व्यक्ति का हांथ नहीं है, जो पत्रकारिता के पेशे में घुसा हुआ है। जब महाराष्ट्र की शिक्षामंत्री की संलिप्तता आतंकवादियों से हो सकती है, तो पत्रकारिता के पेशे में ऐसे भेड़ियों की क्यों नहीं, आखिरकार इसकी गारण्टी कौन देगा। इसलिए राज्य मुख्यालय पर मान्यता पाये और मान्यता चाहने वाले पत्रकारों की जॉंच एल0आई0यू0 के स्थान पर आई0बी0 से होनी चाहिए।
सचिवालय एनेक्सी में लगे सी0सी0टी0वी0 कैमरों की रिकार्डिंग में क्या इसकी मॉनीटरिंग होती है कि कौन व्यक्ति कैसे और किस व्यवस्था के तहत पंचम तल तक पहुंच रहा है, और वहॉं कर क्या रहा है। ट्रान्सफर-पोस्टिंग के धन्धे में लगे इन तथाकथित पत्रकारों की जॉंच आखिरकार क्यों नहीं होती? कोई अपने को सचिव मुख्यमंत्री श्रीमती अनीता सिंह का खास बताता है तो कोई अपने को शम्भू सिंह यादव का। इनमें से एक अपने को मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव का खास बताता है, जबकि मुख्यमंत्री के यहॉं उसकी एन्ट्री ही बन्द है। आखिरकार ये कैसे हो रहा है कि जब कोई भी पत्रकार पंचमतल पर बैठे अधिकारियों की मर्जी से बने पास के बगैर वहॉं नहीं पहुंच सकता तो ये कैसे ऊपर पहुंच जाते हैं? ग्रह विभाग में तिलचट्टे की तरह घुसे इन पत्रकारों की निगरानी का समय आ गया है।

अब समय आ गया है जब मुख्यालय पर पत्रकार मान्यता दिये जाने की अधिनियम के तहत नियमावली बने तथा पन्द्रह वर्ष से कम अनुभव रखने वाले किसी भी पत्रकार को राज्य मुख्यालय की मान्यता प्रदान न की जाये, भले ही वह कितने ही बड़े ग्रुप से ताल्लुक क्यों ना रखता हो, उसे लिखना-पढ़ना आता हो, जिस भाषा के समाचार-पत्र से वह मान्यता चाह रहा है उस भाषा का उसे ज्ञान हो, साथ ही ए-4 साइज का एक पन्ना वह लिखने में तो सक्षम हो, क्योंकि राज्य मुख्यालय पर एक से एक वरिष्ठ अधिकारी से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री तक यहॉं बैठते हैं, इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उनसे पत्रकार के रूप में मिलने वाले व्यक्ति को लिखना-पढ़ना आता हो, सलीका आता हो, और कुल मिलाकर वह सभ्य हो।

पत्रकारिता ही एक ऐसा पेशा है जिसके नाम पर कोई भी कहीं भी घुस सकता है। इसलिए अब इसपर निगरानी की आवश्यकता आन पड़ी है। पत्रकार मान्यता नियमावली के प्रख्यापन के साथ ही पत्रकार आवास आवंटन नियमावली-1985 को भी संशोधित किये जाने की आवश्यकता है। कितने ही पत्रकार ऐसे हैं, जिनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनके घर वाले उस सरकारी आवास पर जबरन कब्जा बनाये हुए हैं और अपने निजी मकान को अस्सी-अस्सी हजार रूपये किराये पर उठाये हुए हैं। सरकारी आवास निरस्त होने के बावजूद उनके खिलाफ पब्लिक प्रिमाइसेज इविक्शन एक्ट के तहत कार्रवाई ना होना ही सबसे बड़ा दुखद पहलू है।
(सतीश प्रधान)

Monday, June 18, 2012

माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा

लगभग 44 वर्ष की उम्र तक पत्रकारिता से दूर-दूर तक का नाता ना रखने वाले एवं प्रबन्धकीय पद पर कार्य करने वाले एक व्यक्ति नेअचानक रातों-रात लखनऊ से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक समाचार-पत्र, जनसत्ता एक्सप्रेस (फ्रेन्चाइजी के तहत वर्तमान में बन्द हो चुके) के तत्कालीन अनुबन्धकर्ता एवं स्वामी डा0 अखिलेश दास की मेहरबानी से महाप्रबन्धक होने के बावजूद सम्पादक का चार्ज ले लिया और पत्रकार बन गये। डा0 अखिलेश दास ने भी बगैर यह विचार किये कि इस महाप्रबन्धक का पत्रकारिता से कोई लेना-देना ही नहीं है, फिर भी सम्पादकीय विभाग में एक से एक पत्रकारों के मौजूद रहने के बाद भी उन सबको नजरअन्दाज करते हुए समाचार-पत्र का सम्पादक बना दिया। मि0 दास एक बिजनेसमैन हैं और उन्होंने अपने फायदे के लिए ही ऐसा कर डाला। दोनों पद एक व्यक्ति को देकर उन्होंने सम्पादक को दी जाने वाली सेलरी को आराम से बचा लिया।
इस प्रकार सीनियर प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों को आम की पेटी एवं उपहार के बल पर अपने को जिन्दा रखने वाले इस व्यक्ति, मि0 पंकज वर्मा ने महाप्रबन्धक एवं सम्पादक का चार्ज लेते ही समाचार-पत्र के ब्यूरो प्रमुख की मेहरबानी से दिनांक 31 जनवरी 2004 को राज्य सम्पत्ति विभाग का शासकीय आवास, राजभवन कालोनी में नं0-1 आवंटित करा लिया। वर्ष 2005 में मि0 पंकज वर्मा को डा0 अखिलेश दास ने विज्ञापन के धन में हेरा-फेरी करने के आरोप में नौकरी से भी निकाल बाहर किया।
पंकज वर्मा के पत्रकार न रहने और मेसर्स शोंख टैक्नोलॉजी इण्टरनेशनल लिमिटेड में वाइस प्रेसीडेन्ट का पद पाने और इसके बाद हेरम्ब टाइम्स में राजनीतिक सम्पादक होने और फिर वारिस-ए-अवध का संवाददाता दर्शाने की स्थिति में विशेष सचिव एवं राज्य सम्पत्ति अधिकारी, उ0प्र0 शासन ने 15 फरवरी 2006 को उनका आवंटन आदेश निरस्त कर दिया। इस आदेश के विरूद्ध मि0 पंकज वर्मा ने वर्ष 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में रिट पिटीसन संख्या-1272 दाखिल की।

जिसकी पूरी तरह से सुनवाई करने के बाद विद्धान न्यायाधीषों क्रमशः श्री संजय मिश्रा एवं श्री राजीव शर्मा ने रिट पिटीसन संख्या-1272 पर फाइनल आर्डर किया कि- 
                   The impugned order does not suffer from any error in law and as such, the writ petition having  no merit is accordingly dismissed. 

इसके बाद मि0 पंकज वर्मा ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में संख्या-18145 से वर्ष 2007 में एस0एल0पी0 दाखिल कर दी।
माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 05 अक्टूबर 2007 को हुई पहली सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Upon hearing counsel the court made the following ORDER-
              Issue notice. Status quo shall be maintained in the meantime. 

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 04 फरवरी 2008 को हुई दूसरी सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Ms Shalini Kumar, learned Advocate appearing on behalf of Ms. Niranjana Singh, Advocate on Record accepts notice for all the respondents and seeks time to file Vakalatnama & Counter Affidavit. 
              They may do so, before 29th Feb. 2008. 
              List the matter on 29th Feb. 2008.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 29 फरवरी 2008, को हुई तीसरी सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Office is directed to rectify the data base so as to disclose the names of all the concerned Advocates in the Cause List who have filed their appearance. 
               List the matter before the Hon’ble Court. 

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 21 अप्रैल 2008, को हुई चैथी सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Two weeks time is granted to file rejoinder affidavit.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 14 जुलाई 2008, को हुई पांचवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-

             We find that the petitioners counsel had made a request by letter dated 16/04/2008 for grant of time & time was accordingly granted on 21/04/2008. 
             Again similar request is made by writing an identical letter. We see no ground for extending the time.The request for extending further time to file a rejoinder is rejected. 

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 19 अगस्त 2008, को हुई छठी सुनवाई में आदेश हुए कि-
             Place before appropriate Bench.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 13 अक्टूबर 2008, को हुई सातवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             Order dated 14/07/2008 is recalled. Rejoinder affidavit be filled within two days.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 01 जनवरी 2009, को हुई आठवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             Pleadings are complete. List this matter for hearing in the last week of Feb.2009. In the meantime, the State Govt. is at liberty to take a decision on the representation stated to have been filed by the petitioner if the said representation is still pending for decision.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 23 फरवरी 2009, को हुई नौवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             In view of the letter circulated on behalf of learned counsel for the petitioner, list after four weeks.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 27 मार्च 2009, को हुई दसवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
            On the joint request made by the parties, list this matter after the ensuing Summer Vacation.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 06 जुलाई 2009 को ग्यारहवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             List for final disposal in Nov. 2009.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 17 सितम्बर 2010 को हुई बारहवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             The matter is adjourned for eight weeks.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 26 अगस्त 2011 को हुई फाइनल सुनवाई में एस0एल0पी0संख्या-18145 को न्यायमूर्ति माननीय श्री आर.बी रविन्द्रन और न्यायमूर्ति माननीय श्री ए0के0पटनायक ने अंतिम रूप से निस्तारित करते हुए आदेश दिये कि-
           
         Upon hearing counsel the Court made the following ORDER-
             Special Leave Petition is dismissed.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी पंकज वर्मा के वकील महोदयों ने टाइम-पर टाइम लेने और कोर्ट का समय जाया करने की असफल कोशिश की, एवं मा0 सुप्रीम कोर्ट की जल्द निपटारे की मंशा के बाद भी चार साल लग गये। मि0 पंकज वर्मा ने इस प्रकार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वाद दाखिल करके छह साल आराम से गुजार दिये और अब 26 अगस्त 2011 को दिये गये सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी अनादर करते हुए आराम से उसी सरकारी आवास में अवैध एवं अविधिक कब्जा जमाये हुए हैं।

जिस आवास को खाली कराने के लिए राज्य सम्पत्ति विभाग ने जनता के धन के लाखों रूपये वकीलों की फीस के रूप में खर्च कर डाले और दोनों ने मिलकर माननीय हाई कोर्ट और माननीय सुप्रीम कोर्ट का समय भी बर्बाद किया, उसी आवास को पुलिस बल से कब्जा मुक्त कराने की कोई मंशा राज्य सम्पत्ति विभाग की नहीं दिखाई देती। नहीं तो क्या कारण है कि 26 अगस्त 2011 को मा0 सुप्रीम कोर्ट से फैसला राज्य सम्पत्ति विभाग के पक्ष में होने के बावजूद राज्य सम्पत्ति विभाग आज दिनांक 18 जून 2012 तक मि0 पंकज वर्मा से शासकीय आवास रिक्त नहीं करा पाया है? जब मि0 पंकज वर्मा से आवास खाली ही नहीं कराना था तो आवंटन आदेश रद्द ही क्यों किया गया? और मा0 हाईकोर्ट में एवं मा0 सुप्रीम कोर्ट में प्रतिवाद ही क्यों किया गया? यदि प्रतिवाद सही किया गया तो राज्य सम्पत्ति विभाग मि0 पंकज वर्मा के खिलाफ पब्लिक प्रिमाइसेज (इविक्सन) एक्ट के तहत बेदखली की कार्रवाई क्यों नहीं करता है?

मि0 पंकज वर्मा ने भी वकीलों की फौज पर लाखों रूपये बहाये, आखिरकार इतना धन मि0 पंकज वर्मा कहॉं से लाये? इनके पास आय से अधिक सम्पत्ति की आखिरकार जॉंच क्यों नहीं होनी चाहिए? उ0प्र0की राजधानी लखनऊ में तकरीबन तीन दर्जन पत्रकार ऐसे हैं जो करोड़पति हैं, एक दर्जन ऐसे हैं जो अरबपति हैं और प्रदेश की मीडिया को, नौकरशाही को एवं सरकार को अपनी उंगली पर नचाते हैं एवं पत्रकारिता की ऐसी की तैसी कर रखी है। प्रदेश के समस्त मान्यता प्राप्त पत्रकारों की आय से अधिक सम्पत्ति की जॉंच तो होनी ही चाहिए, यदि देश के इस चौथे खम्भे को दुरूस्त रखना है तो।

मि0 पंकज वर्मा और राज्य सम्पत्ति विभाग, दोनों ने मिलकर क्या माननीय उच्च एवं उच्चतम न्यायालय का वक्त बर्बाद करते हुए उसके दिये गये आदेश को ठेंगा नहीं दिखाया। यदि यह मुकदमा दोनों न्यायालय में ना लगा होता तो मा0 दोनों न्यायालयों को किसी और विशेष मुकदमे को निपटाने का समय मिला होता एवं वास्तव में किसी गरीब-गुरबे की सुनवाई हुई होती और उसे राहत मिली होती। यहॉं तो कुल मिलाकर माननीय न्यायालयों को ही बेवकूफ बनाने में दोनों पक्ष एकमत रहे

उत्तर प्रदेश में ज्यादातर पत्रकारों ने इसी तरह फर्जी तरीके से सरकारी आवास पाये हुए हैं। अपना मकान होते हुए भी (जिसे सरकार ने 40 प्रतिशत की सबसिडी पर दिया है) उसे अस्सी-अस्सी हजार रूपये प्रतिमाह किराये पर उठाकर, राज्य सम्पत्ति विभाग में झूंठा शपथ-पत्र प्रस्तुत कर कई दशकों से सरकारी आवास पर कब्जा जमाये हुए हैं और संस्थान से रिटायर होने के बावजूद पत्रकार मान्यता पाने के लिए और आवास पर कब्जा बरकरार रखने के लिए वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र पत्रकार की श्रेणी बनवाकर शासकीय आवास पर कब्जा किये हुए हैं। कितने तो करोड़ों की अचल सम्पत्ति रखने के बाद भी सरकारी आवास पर काबिज हैं। क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि 70 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति भी पत्रकार बने रहकर सरकारी आवास घेरे हुए हैं और आर्थिक रूप से कमजोर एवं नौजवान, कर्मठ लगभग तीन दर्जन पत्रकार सरकारी आवास पाने से वंचित हैं और किसी तरह से गुजर-बसर कर रहे हैं।

माननीय मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट श्री एस0एच0 कपाड़िया जी से अनुरोध है कि मेरी इस अपील को पब्लिक इंटीरेस्ट लिटिगेसन की तरह ट्रीट करते हुए मुझ समेत समस्त पक्ष को नोटिस जारी करना चाहें, जिससे भविष्य में आपके न्यायालय तक पहुंचने वाला वादी और प्रतिवादी आपके आदेश का अक्षरशः पालन करे, उसके साथ ढ़ींगा-मुस्ती करने की हिम्मत ना दिखा पाये।

उपरोक्त की हार्ड कॉपी मय आवश्यक कागजातों के द्वारा रजिस्ट्री आपके पास इस उम्मीद से भेज रहा हॅूं कि आपके आदेश के बाद भी मि0 पंकज वर्मा का निरस्त आवास संख्या-1, राजभवन कालोनी, लखनऊ जो मुझे 30 मई 2012 को आवंटित किया गया है,उस पर अभी तक मि0 पंकज वर्मा का कब्जा किस प्रकार से बना हुआ है? आवास निरस्तीकरण के बाद फैसला आने पर भी राज्य सम्पत्ति विभाग ने अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
(सतीश प्रधान)
http://janawaz.com/archives/2020

Sunday, May 27, 2012

आगे बढ़ो, पीछे नहीं- बराक ओबामा

अमेरिका के ओहायो में आगे बढ़ो के नारे से चुनाव अभियान की शुरूआत करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए अपने शासनकाल की उपलब्धियां गिनाईं। उन्होंने कहा कि पिछले चार साल के कार्यकाल में उन्होंने देश को आर्थिक मन्दी से बाहर निकाला है और दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने पर वह अपने इस प्रयास को और आगे बढ़ायेंगे।

रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार मिट रोमनी पर टिप्पणी करते हुए ओबामा ने कहा कि देश कभी भी ऐसे नेता का चुनाव नहीं करेगा जो उसे पीछे ले जाये। यह चुनाव महज एक चुनाव नहीं है। यह मध्यमवर्गीय अमेरिकियों के कलए करो या मरो जैसा ही है। लक्ष्य का पीछा करते करते हम बहुत आगे आ चुके हैं और ऐसे में पीछे नहीं मुड़ सकते। ये चुनाव मेरे लिए खास है। ओबामा ने यह स्वीकार किया कि चुनाव में कांटे की टक्कर होगी।


मिट रोमनी के लिए उन्होंने कहा कि वे एक अच्छे इंसान और व्यापारी हैं। इसलिए उनकी हर नीति से सिर्फ अमीरों को ही लाभ मिलेगा, गरीबों और मध्यमवर्ग को नहीं। इस छोटे से वाक्य में उन्होंने बहुत कुछ कह डाला जो उनकी चतुराई को उजागर करता है। मेरा भी मानना है कि अमेरिकी जनता को बराक ओबामा को एक मौका और देना चाहिए। एक टर्म किसी देश की समस्या को पूर्णंरूप से सुलझाने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। निःसन्देह उन्होंने अमेरिकी जनता के लिए बहुत कुछ किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
घट रही है ओबामा की सम्पत्ति
भारत में जहॉ अपने नेताओं के चुनाव जीतने के बाद उनकी सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि होती है, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की सम्पत्ति में कमी आना यह प्रदर्शित करता है कि उन्होंने अपने देश में कोई भ्रष्टाचार नहीं किया।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा के पास फिलहाल 26 लाख डॉलर (करीब 14 करोड़ रूपये) से लेकर 83 लाख डॉलर (करीब 45 करोड़ रूपये)की सम्पत्ति है जबकि वर्ष 2010 में उनकी सम्पत्ति करीब 18 लाख डॉलर (करीब 9 करोड़ 80 लाख रूपये) से एक करोड़ 20 लाख डॉलर (लगभग 65 करोड़ रूपये) के बीच थी। राष्ट्रपति द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक उनके पास जेपीमार्गेन चेज बैंक में भी 10 लाख डॉलर (करीब 5 करोड़ रूपये) जमा हैं। बैंक फिलहाल अमेरिकी संघीय जांच एजेन्सर एफबीआई की जांच के घेरे में है। बैंक द्वारा पिछले हफ्ते दो अरब डॉलर (करीब 108 अरब रूपये) के नुकसान के रहस्योदघाटन के बाद एफबीआई ने उसके खिलाफ जांच शुरू कर दी है। ओबामा ने यह जानकारी राष्ट्रपति चुनाव अभियान के बीच में दी है। वहीं उनके प्रतिद्वन्दी रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार मिट रोमनी की सम्पत्ति 19 करोड़ डॉलर (करीब 10 अरब रूपये)से 25 करोड़ डॉलर (करीब 13 अरब रूपये) के बीच है।

Saturday, May 26, 2012

बीएसपी बचाओ, मायावती हटाओ



पार्टी की एकमात्र डिक्टेटर और राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती के खिलाफ आखिरकार विरोध के स्वर उभर ही आये। उ0प्र0 विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ बहुजन समाज पार्टी के मिशनरी लोगों ने अनतत्वोगत्वा मोर्चा खोल ही दिया। इसके लिए दिल्ली में एक पब्लिक मीटिंग की गई, जिसमें अच्छी-खासी भीड़ एकत्र हुई। इसमें देशभर से आये लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। यह पब्लिक मीटिंग ‘बहुजन मूवमेन्ट बचाओ’ राष्ट्रीय आन्दोलन के तत्वाधान में आयोजित की गई।
मीटिंग में बसपा के संस्थापक सदस्य रामप्रसाद मेहरा ने कहा कि कांशीराम ने सामाजिक परिवर्तन एवं बहुजन समाज की आर्थिक मुक्ति के जिस उद्देश्य से पार्टी की स्थापना की थी, उनकी असमय मृत्यु के बाद मायावती ने उस मकसद को समाप्त कर दिया। असंख्य जिम्मेदार कार्यकर्ताओं व संगठन के अहम पदों पर कार्य करने वाले मिशनरी कार्यकर्ताओं को निष्कासित करने के लिए षडयन्त्र रचे गये। नतीजतन कुछ कर्मठ कार्यकर्ता घर बैठ गए तो कुछ ने दूसरी पार्टीयों का दामन थाम लिया। इसके कारण बसपा आज अपराधियों, भ्रष्टाचारियों, दलालों, लुटेरों व मनुवादियों की शरणस्थली बनकर रह गई है।

पार्टी के पूर्व सांसद प्रमोद कुरील व वरिष्ठ कार्यकर्ता एलबी पटेल ने कहा कि पार्टी को फिर से कांशीराम के सपनों की पार्टी बनाने के लिए बसपा से मायावती को हटाना होगा। इसके लिए देशभर में सभी बसपा कार्यकर्ता एकजुट होकर लोगों तथा पार्टी कार्यकर्ताओं की जागरूक करेंगे। पूरे देश में मायावती हटाओ-बीएसपी बचाओ अभियान चलाया जायेगा। यह जागरूकता अभियान कितना सफल होगा यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन इतना तो निष्कर्ष निकलता ही है कि आखिरकार नक्कारखाने में तूती की आवाज सुनाई तो दी।