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Tuesday, November 22, 2011

क्यों चुप हैं क्रिकेट के भगवान


काम्बली सच्चा, अजहर झूंठा
लेकिन मजबूत, अजहर का खूंटा


          1996 के विश्वकप सेमी फाइनल का वह मुकाबला जो कोलकाता के ईडन गार्डेन स्टेडियम पर श्रीलंका और भारत के बीच खेला गया,किसी ड्रामे से कम नहीं था, जिस पर वहां मौजूद क्रिकेट प्रेमियों ने कोल्ड ड्रिंक की बोतलें फेंकी, जूते-चप्पलों की बौछार करते हुए जबरदस्त हंगामा काटा एवं आग लगाकर उसका जबरदस्त विरोध प्रदर्षित किया, जिसके कारण मैच को बीच में ही रोकना पड़ा। इसके बाद जब मैच शरू किया गया तो पुनः जोरदार हंगामा होने लगा और अन्ततः जब विरोध प्रदर्शन ने थमने का नाम नहीं लिया तो 35 ओवर की समाप्ति पर मैच समाप्ति की घोषणा करते हुए,स्थापित नियमों के आधार पर परीक्षणोपरान्त श्रीलंका की टीम को विजयी घोषित कर दिया गया।
          उस समय दूरदर्शन पर मैच देख रहे करोड़ों लोगों के जेहन में दबकर रह गये सारे प्रश्न अब फिर से जीवन्त हो उठे हैं। उस समय के सीन को उन्होंने अब जब अपनी आंखों के सामने से गुजरते हुए देखा कि कैसे विनोद काम्बली रोते हुए क्रिकेट के मैदान से भागते हुए पैवेलियन आये थे,और अब जब उन्होंने स्टार न्यूज चैनल पर इसका रहस्योदघाटन किया है तो किस प्रकार से रो पड़े हैं,तो क्रिकेट प्रेमियों का खून खौल रहा है।
             मैच फिक्सिंग के इस करिश्माई करतब,जो पन्द्रह वर्ष पहले घटित हुआ,को दबाने की कोशिश में जो भी लोग लगे हैं,वे सब किसी न किसी प्रकार से उस मैच फिक्सिंग को आर्मी की कनात में दबाने की भरपूर कोशिश ही नहीं कर रहे हैं अपितू आगे भी यह इसी स्वरूप में जारी रहे,इसकी भी पटकथा लिख रहे हैंयदि विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन में दम नहीं है तो अजीत वाडेकर,कपिल देव,राजीव शुक्ला,शरद पवार, मदन लाल,   ....... आदि ये सब बतायें कि विश्वकप सेमी फाइनल में आखिरकार वे क्या कारण थे कि स्टेडियम में मौजूद सारे क्रिकेट प्रेमियों ने अपना आपा ही नहीं खोया,अपितू जूते-चप्पलों और कोल्ड ड्रिंक की बोतलों की बौछार की? दर्शकों ने पागलपन की हद तक हंगामा क्यों काटा? क्यों नहीं वे दोबारा मैच देखने के लिए शांत हुए? हंगामें में किसी भी प्रकार की कमी ना आने की संभानाओं के कारण ही मैच को बीच में समाप्त कर रिजल्ट की घोषणा करनी पड़ी थी।

          अलावा इसके टी0वी0 पर मैच देख रहे करोड़ों लोग गुस्से में क्यों आ गये थे? कुछ ने तो अपने टी0वी0 ही फोड़ डाले थे,यह कहते हुए कि साले फिक्स करके मैच खेलते हैं! क्या सारे क्रिकेट प्रेमी जो मैदान पर थे या टी0वी0 देख रहे थे,सिरफिरे और पागल थे? जैसा कि विनोद काम्बली को अजहरूद्दीन घोषित करने की कोशिश कर रहे हैं। केवलमात्र अजहरूद्दीन और उनका साथ देने वाले ही स्वस्थ्य, दुरूस्त एवं मेडीकली फिट हैं,बाकी का पूरा हिन्दुस्तान पागल है! इस देश का हर वो इन्सान पागल है,चरित्रहीन है,सिरफिरा है, जो किसी सत्य को उदघाटित करता है अथवा करना चाहता है। एकदम दुरूस्त हालात में अजहरूद्दीन जैसे लोग ही रहते हैं जो इस देश की इज्जत को तार-तार कर रहे हैं एवं अच्छे-खासे इन्सान को पागल करार दिये जाने की साजिश रच रहे हैं। दिग्विजय सिंह जैसे लोगों के बयान उनके पक्ष में आने का मतलब यह नहीं है कि वे पाक-साफ हैं। इस बयान के बाद तो अजहरूद्दीन का कथन और भी संदेहों से घिर गया है,क्योंकि दिग्विजय सिंह कभी भी, कहीं भी, किसी भी साफ सुथरे इन्सान का बचाव करते ही नहीं। उनके पास तो वह पंजा है,कि जिसकी पीठ पर लगा देंगे वहीं दाग लग जायेगा।
          कुछ का तो कहना है कि सारा विश्व जानता है कि 1996 को तो कीजिए दरकिनार बल्कि 1990 के बाद से होने वाले ज्यादातर मैचों में मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग एक अनवरत चली आ रही प्रक्रिया है,जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता। लेकिन क्रिकेट के जानकार कुछ लोगों का कहना है कि ऐसे समय में विनोद काम्बली से ऐसे रहस्योदघाटन की वजह भी एक साजिश है जो अजहरूद्दीन को फिर से कटघरे में खड़ा कर रही है,जब वे इस आरोप से बरी होने वाले हैं। कुरेदने पर पता चला कि अजहरूद्दीन,दरअसल अदालत से पाक-साफ बरी होने वाले हैं। मतलब यहॉं भी फिक्सिंग की संभावनाए प्रबल हैं,तभी तो कहा जा रहा है कि वे बेदाग बरी होने वाले हैं।
          काम्बली के रहस्यदोघाटन के जो भी कारण हों,वे एक तरफ हैं,लेकिन देश की अस्मिता से जुड़ा मैच फिक्सिंग का यह प्रश्न अंगद के पैर की तरह अपनी जगह पर जड़ता से खड़ा है,और देशद्रोहियों से जबाव मांग रहा है। इसके विरोध में इस सफाई के कोई मायने नहीं कि- विनोद काम्बली ने यह बात 1996 में ही क्यों नहीं उठाई! सभी को पता है कि जिन्न सालों-साल बोतल में बन्द रहता है,कोई फर्क नहीं पड़ता,लेकिन जब भी बोतल से बाहर आता है तो बवंडर मचना लाजिमी है,और तब सबकुछ तहस-नहस हो जाता है।
         1996 की मैच फिक्सिंग का वह जिन्न अब बोतल से बाहर आ चुका है। अब इस बात के कोई मायने नहीं कि 15 सालों बाद उस बोतल का ढ़क्कन खोलकर,मैच फिक्सिंग के जिन्न को विनोद काम्बली ने बाहर क्यों निकाला! अब जबकि मैच फिक्सिंग का जिन्न बाहर आ ही गया है तो यह साफ हो ही जाना चाहिए कि क्रिकेट के ये जादूगर, क्रिकेट प्रेमियों को कितने सालों से बेवकूफ बना रहे हैं। यह क्रिकेट खेल के असतित्व से भी जुड़ा प्रश्न है और इसी के साथ करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की आस्था से भी जुड़ा है,जिसकी बिना पर सचिन तेंदुलकर को भगवान घोषित कराये जाने की जबरदस्त हूक उठी है।

          देश क्या पूरे क्रिकेट जगत में इतना भयंकर तूफान आया हुआ है लेकिन क्रिकेट का यह भगवान मुंह में ताला लगाये खड़ा है। इस पृथ्वी पर जब भी अराजकता फैलती है, अत्याचार चरम पर पहुचता है,लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगते हैं तो भगवान ही अवतार लेते हैं और शत्रुओं का नाश करके भोली-भाली जनता को शत्रुओं से मुक्ति दिलाते हैं,लेकिन भारत की इस धरती पर जिन्दा खड़ा क्रिकेट का यह भगवान जो 1996 के उस विश्व कप सेमी फाइनल का जीता जागता उदाहरण भी है,जिसने सारा नजा़रा अपनी आंखों के सामने होते हुए देखा ही नहीं है अपितु उसका एक हिस्सा भी रहा है,मुंह बन्द किये क्यों खड़ा है? देश को पहली बार पता लगा है कि भारत की धरती पर क्रिकेट के क्षेत्र में जन्मा क्रिकेट का यह भगवान किसी सही बात को स्वीकार करने या अस्वीकार करने की स्थिति में गूंगा हो जाता है,एवं बोलने की स्थिति में नहीं रहता।
          इस भगवान को एक योजना के तहत,भारत सरकार से भारत रत्न दिलवाने की मुहिम हो अथवा मैच फिक्सिंग का इतना बड़ा और गम्भीर संकट, जिसमें भारत की प्रतिष्ठा को जबरदस्त धक्का लग रहा है,एवं भारत का नाम भी बदनाम हो रहा है,इसमें से किसी भी विषय पर क्रिकेट के भगवान घोषित किये गये इस शख्स ने अपनी जुबान नहीं खोली है। क्या कारण है कि सचिन को सभी क्रिकेट प्रेमी भगवान मानते हैं और कहते हैं लेकिन उन्होंने कभी भी इसका खण्डन नहीं किया,इसका मतलब है कि वे भी मानते हैं कि वे भगवान हैं। इसीलिए उन्हें भारत रत्न देने की मांग पुरजोर पकड़ती जा रही है। 
          जबकि सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन के लिए स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने भारत रत्न देने की मांग की तो महानायक ने यह कहकर कि-मैं इतने बड़े सम्मान का अधिकारी नहीं  हूँ, अपने को इस योग्यता से कमतर आंका। इसी से महानता का पता चलता है। यही वजह है कि देश की करोड़ों करोड़ जनता उन्हें सदी का महानायक पुकार कर उनसे ज्यादा खुद को प्रफुल्लित करती है,जबकि क्रिकेट के ये भगवान तो वर्तमान में संकट और सवालों के घेरे में खड़े हैं।
         दो दर्जन जुबानों पर एक सा सवाल है कि विनोद काम्बली 15 सालों से चुप क्यों रहे,तब क्यों नहीं बोले? 15 सालों से करोड़ों क्रिकेट प्रेमी जनता चुप है अथवा काम्बली चुप रहे तो गुनाहगार हैं और आप दो दर्जन भर लोग, जिसमें अजहरूद्दीन,अजय जडेजा,अजय शर्मा,मनोज प्रभाकर मैच से प्रतिबन्धित किये गये,तब भी आप गुनाहगार नहीं हैं और हेकडी दिखाकर काम्बली का ही मुंह बन्द करने की कोशिश कर रहे हैं। खुले मैदान सत्य का गला घोटने का इससे बड़ा उदाहरण और कहां देखा जा सकता है! ऐसे औचित्यहीन कुतर्कों से काम्बली को निरूत्साहित किया जा सकता है,लेकिन क्रिकेट के दुनियाभर में मौजूद क्रिकेट प्रेमियों का मुंह बन्द नहीं किया जा सकता। क्रिकेट प्रेमियों की आस्था के साथ इतना बड़ा विश्वासघात किसी भयंकर कुठाराघात से कम नहीं है। यह दर्शकों की पीठ में छुरा घुसाने वाला अपराध है।
          भारत सरकार,भारत के उच्चतम न्यायालय,देश के विभिन्न प्रदेशों में गठित राज्य एवं जिला स्तरीय क्रिकेट एसोसियेशन तथा क्रिकेट से अन्यत्र खेलों के खिलाड़ियों को भी इस मैच फिक्सिंग से पर्दा उठाने के लिए अपने-अपने स्तर से तीव्र प्रयास करने चाहिए,और यदि काम्बली के बयान में सच्चाई न निकले तो उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए वरना समस्त दोषियों को दण्डित करने के साथ-साथ उनसे आर्थिक जुर्माना वसूल कर काम्बली को दिया जाना चाहिए। वैसे मैच फिक्सिंग का यह मामला प्रथम दृष्टया ही भरपूर सम्भावनाओं से ओत-प्रोत है(जिसकी पूरी पृष्ठभूमि स्पष्ट और उज्जवल है)। पन्द्रह साल पूर्व की घटना कोई बहुत पुरानी नहीं है,सिवाय इस तथ्य के की पन्द्रह वर्ष पूर्व विनोद काम्बली, सचिन तेंदुलकर से ज्यादा जाना पहचाना नाम था। भारत में तो वयस्कता की उम्र ही 18 वर्ष है। 15 साल वाले को उसके किये गलत कार्यों की यदि सजा मिलती है तो बाल अधिनियम के तहत ही मिलती है। उस हिसाब से भी मैच फिक्सिंग की यह दुघर्टना तो अभी इलाज किये जाने के काबिल है।
          इसलिए मूल सवाल आज भी वहीं खड़ा है कि आखिरकार अजहरूद्दीन और अजय जडेजा को 4 साल बाद ही सही फिक्सिंग के कारण ही प्रतिबन्धित किया गया है। उनके खिलाफ आज भी अदालत में मामला विचाराधीन है। यदि मैच फिक्सिंग के आरोप गलत हैं तो उन्हें क्रिकेट से प्रतिबन्धित क्यों किया गया? ऐसी विषम परिस्थितियों में विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन को खारिज किया जाना और अजहरूद्दीन की बात पर यकीन किया जाना दुर्भाग्यपूर्णं होगा,जबकि सीबीआई के एक अधिकारी को दिये गये बयान में वे स्वयं कबूल कर चुके हैं कि उन्हें दस लाख रुपये दिये गये,और वह अकेले ही नहीं हैं बल्कि अजय जड़ेजा और नयन मोंगिया भी शामिल थे। इसके अलावा जो अन्य मैच फिक्स थे,उसका भी उन्होंने खुलासा किया था।
          वैसे भी यदि इससे किसी सच्चाई का पता चलता है तो वह सामने आनी ही चाहिए। यदि इस सच्चाई को सामने लाना गड़े मुर्दे उखाड़ने वाली बात है तो आज पच्चीस साल बाद इकबाल मिर्ची को भारत लाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। तब तो सभी अपराधियों को क्लीन चिट दे देनी चाहिए! क्यों भाई दिग्विजय सिंह जी, फिर इकबाल मिर्ची की वकालत क्यों नहीं करते?
          कपिल देव का कहना है कि काम्बली 15 वर्ष पूर्व बोलता। क्या कपिल देव विश्वकप जीतने की घटना को भूल गये हैं,क्या आज पच्चीस सालों के बाद वे इसका उल्लेख कहीं नहीं करते हैं? सम्भवतः वह आज भी उन यादों को ऐसे संजोए होंगे जैसे यह कल की ही बात हो। इतने वरिष्ठ खिलाड़ी से ऐसे वकतव्य की उम्मीद किसी भी क्रिकेट प्रेमी को कतई नहीं थी। जिस प्रकार उनके लिए 25 वर्ष पूर्व विश्वकप की जीत आज भी खुशी का अनुभव देती हैठीक उसी प्रकार विनोद काम्बली के लिए पन्द्रह वर्ष पूर्व की वह मनहूस घड़ी आज भी दुख की टीस देती है,जिसके कारण उसका कैरियर तबाह हो गया। पन्द्रह साल बाद मुंह खोलने का मतलब यह कतई नहीं है कि अपराध पुराना हो गया,इसलिए अब इसकी जांच का कोई मतलब नहीं एवं अपराधी को ना पकड़े जाने का लाइसेन्स मिल गया है।
          1996 में की गई मैच फिक्सिंग आज के दिन में वो हवन है,जिसमें यदि कोई जानबूझकर हवन सामग्री की जगह पानी डालने की कोशिश करेगा तो पानी पैट्रोल का काम करेगा तथा आग और भडकेगी। इस आग की शान्ति और हवन का आयोजन तभी सफल होगा जब इसमें हवन सामग्री डाली जायेगी,और हवन की सामग्री है,उस समय की भारतीय टीम के खिलाड़ी। इस हवन सामग्री रूपी टीम को भी बड़ी बारीकी से जांचा-परखा जाना होगा कि इसके कनटेन्ट सही और शुद्ध हैं कि नहीं। राजनीति की चाह में क्रिकेट में राजनीति करने वाले खिलाड़ियों और धन अर्जित करने की चाह में क्रिकेट एसोसियेशन के माध्यम से क्रिकेट में घुसे ज्यादातर राजनीतिज्ञों ने भारत के इस सबसे बड़े खेल को मृत्यु के मुहाने पर ला खड़ा किया है,जिसका स्पष्ट गवाह है वर्तमान में हो रहे मैचों के दौरान खाली पड़े क्रिकेट के स्टेडियम।
          अजहरूद्दीन,काम्बली को पागल,चरित्रहीन और ना जाने क्या-क्या नहीं बता रहे हैं,जो वास्तव में अजहरूद्दीन के दिमाग को सेन्टर से हट जाने (एसेन्ट्रिक होने) का ही संकेत देते हैं। जिस प्रकार अजहरूद्दीन की पूरी गैंग काम्बली से सुबूत पेश करने की बात कर रही है,वे बतायें,स्वंय उनके या उनकी मण्डली के पास क्या सुबूत हैं कि वो मैच फिक्स नहीं था? जबकि उस मैच फिक्सिंग की सारी संभावनायें आजतक मौजूद हैं। अजहरूद्दीन केवल मात्र टीम बैठक का हवाला देकर,मैच फिक्सिंग के सत्य पर पर्दा डालना चाह रहे हैं। टीम का कैप्टन उन्हें इसलिए नही बनाया गया था कि सर्वसम्मति का फैसला दिखाकर मैच फिक्स करें। उनका व्यंगात्मक लहजे में कहना कि जब पूरी टीम फैसला ले रही थी तो काम्बली सो रहे थे। क्या वे सिद्ध कर सकते हैं कि टीम ने पहले फील्डिंग करने का फैसला लिया था और मीटिंग में काम्बली सो रहे थे। है उनके पास कोई सुबूत? क्या वे कोई वीडियो क्लिपिंग दिखा सकते हैं जिसमें मीटिंग चल रही हो तथा लालू यादव एवं देवेगौणा की तरह काम्बली सो रहे थे।
          बहरहाल इस बेचैनी भरे माहैाल में उस टीम के अन्य खिलाडी़ अपनी जुबान नहीं खोल रहे हैं,और उनमें से मात्र सचिन को छोड़कर सारे के सारे क्रिकेट से अलविदा हो चुके हैं, इनमें मनेाज प्रभाकर, अजय शर्मा, अजय जड़ेजा, नवजोत सिंह सिद्धू, प्रमुख हैं। इन खिलाड़ियों को आगे बढ़कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए,जिससे वर्तमान और भविष्य में उन जैसे यंग रहे खिलाड़ियों का भविष्य बर्वाद न हो, जैसा उनका हुआ है।
          उस समय के तेज गेंदबाज वेंकटपति राजू का उदाहरण अहम है। राजू ने खुलकर कह दिया है कि उस टीम बैठक में सिद्धू जैसे कुछ बल्लेबाज इस बात से सहमत नहीं थे कि टीम को पहले क्षेत्ररक्षण करना चाहिए। वेंकटपति राजू द्वारा खोले गये इस राज की भाजपा सांसद सिद्धू को पुष्टि करनी चाहिए। उन्हें सांसद होने के नाते अपने हम बिरादर दूसरे सांसद का बचाव नहीं करना चाहिए। यह उनकी क्रेडेबिलिटी का भी सवाल है। मूल सवाल,क्रिकेट,क्रिकेट प्रेमियों और देश की अस्मिता से जुड़ा है,इसलिए ऐसा नहीं है कि सिद्धू मुंह नहीं खोलेंगे और अजहरूद्दीन का साथ देंगे तो सही करार दिये जायेंगे। वैसे तो सिद्धू किसी भी बात को कहने के लिए बहुत बड़ा मुंह खोलते हैं और किसी भी विषय पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए उनके पास मुहावरों एवं लोकोक्तियों की कमी नहीं रहती है। फिर अब क्या हो गया गुरू! कहां छिपे हो गुरू? सामने क्यों नहीं आते गुरूरू............सच स्वीकार करना तो सीखो गुरू,वरना कामेडियन बनकर ही रह जाओगे गुरू।
          क्रिकेट से जुड़ा बहुत बड़ा जनमानस आज यह जान चुका है कि 1996 का वह मैच सौ प्रतिशत फिक्स था, फिर भी खिलाड़ियों को ईमानदारी के तराजू में तौलना चाहता है। विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन की पुष्टि श्रीलंका टीम के मैनेजर श्री समीर दास गुप्ता,हैन्सी क्रोनिए,पूर्व क्यूरेटर प्रवीर मुखर्जी,पूर्व क्यूरेटर कल्याण मित्रा (मैं, कप्तान होता तो पहले बल्लेबाजी करता) के बयान कर रहे हैं। 1996 विश्वकप टीम के सलेक्टर सबरन मुखर्जी का कहना है कि, वे तो सरप्राइज ही हो गये जब सुना कि टॉस जीतकर इण्डियन टीम बोलिंग करने जा रही है। ये सारे बयान इस ओर स्पष्ट इशारा करते हैं कि 1996 का विश्वकप सेमीफाइनल में अनहोना हुआ,जिसे नहीं होना चाहिए था।
          आज ऐसा समय आ गया है कि सभी वरिष्ठ खिलाड़ियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिन खिलाड़ियों पर हम गर्व करते हैं या भगवान की तरह पूजते हैं,वह सचिन हों या कपिल,सुनील गवास्कर,दिलीप वेंगसरकर,श्रीकान्त या फिर रवि शास्त्री,अगर आगे नहीं आते हैं तो कहीं ऐसा ना हो कि आगे आना वाला समय उन्हें माफ ना करे और उन्हें उनके प्यारे दर्शकों की निगाह में गिराकर अर्श से फर्श पर पहुचा दे। क्योंकि ये सभी वरिष्ठ खिलाड़ी 90 के दशक से मैदान पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़े रहे हैं।
          इसकी जॉंच का तरीका केवल एक बचा है कि उस समय के समस्त खिलाड़ियों को एक साथ बुलाने की बजाय अकेले-अकेले बुलाकर यू0पी0पुलिस से इंटेरोगेट कराया जाये तथा इसका मुकदमा ब्रिटेन स्थित साउथवर्क कोर्ट के जस्टिस कुक के हवाले कर देना चाहिए जिसने सलमान बट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमेर को सजा सुनाई। ऐसे में भारत के खेलमंत्री श्री अजय माकन का यह बयान देश की प्रतिष्ठा के हित में दिखाई देता है कि -काम्बली के दावों की बीसीसीआई को जांच करनी चाहिए। उन्होने कहा कि यदि क्रिकेट बोर्ड जांच नहीं करता है तो उनका मंत्रालय दखल दे सकता है। माकन ने कहा कि जब टीम का कोई खिलाड़ी आरोप लगाता है तो उसकी पूरी जॉंच होनी ही चाहिए। खिलाड़ी के आरोप सही हों या गलत लोगों को सच जानने का अधिकार है, इसकी पूरी जॉंच होनी चाहिए और यदि कुछ गलत हुआ है तो दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए।
          इस स्तम्भकार का स्पष्ट मत है कि खेलमंत्री को ही इसमें दखल देना चाहिए, क्योंकि यह दो देशों के बीच का मामला है। मैच फिक्सिंग से फायदा श्रीलंका की टीम को ही ज्यादा हुआ। श्रीलंका की टीम को जब पता चला कि वह टॉस हार गई है तो उनकी टीम में मायूसी छा गई थी,क्योंकि उनकी टीम का भी डिसीजन यही था कि टॉस जीतने पर पहले बैटिंग करेंगे,लेकिन जैसे ही पता चलाकि अजहरूद्दीन ने पहले फील्डिंग करने का निर्णय लिया है,उनकी टीम के खिलाड़ी उछल पड़े,मानो उनकी जीत उसी समय पक्की हो गई थी। इसलिए निशाने पर उसको भी रखा जाना चाहिए,क्योंकि यह मात्र भारतीय टीम का ही मामला नहीं है,जो बीसीसीआई जांच करे और इतिश्री हो जाये, वह तो पहले ही चार खिलाड़ियों को खेल से प्रतिबंन्धित कर इस मैच फिक्सिंग की इतिश्री कर चुका है।
=         देश से बड़ा इस देश में कोई नहीं है,इसलिए राष्ट्रहित में मैच फिक्सिंग की इस घटना की जॉंच के लिए खेल मंत्री को अपने स्तर से आईसीसी से जांच किये जाने के लिए पत्र लिखना चाहिए, अथवा उच्चतम न्यायालय को इसकी जॉच के लिए एसआईटी का गठन कराना चाहिए,यदि इसके लिए किसी पीआईएल की आवश्यकता उच्चतम न्यायालय महसूस करता है तो इस लेख पर ही सज्ञान लिये जाने के लिए यह स्तम्भकार स्वीकृति प्रदान करता है। (सतीश प्रधान)

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Thursday, November 17, 2011

मार्कण्डेय काट्जू जी, पूरा इंडियन मीडिया आपके खिलाफ नहीं है।

 Justice Markandey Katju, Chairman, Press Council of India
        सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहे और वर्तमान में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष नियुक्त हुए जस्टिस काट्जू ने एक टी0वी0 कार्यक्रम में कहा था कि मीडिया के लोगों के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है। मीडिया देश को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने का काम करता है। उन्होंने कहा कि उन्हें आर्थिक नीतियों, राजनीतिक सिद्धान्तों, साहित्य और दर्शनशास्त्र की जानकारी नहीं होती है।
          श्री काट्जू के इस बयान से गिरोहबन्द मीडिया का उद्वेलित होना लाजमी था,और हुआ भी ठीक वैसा ही। पत्रकारों के कुछ संगठनों द्वारा काट्जू के बयानों पर गहरी आपत्ति दर्ज कराई गईइनमें एडिटर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया, ब्रॉडकॉस्ट एडिटर्स एसोसियेशन(बीईए),न्यूज ब्रॉडकास्ट एसोसियेशन एण्ड प्रेस एसोसियेशन में काफी रोष है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया की महासचिव कूमी कपूर ने तो यहां तक कह दिया कि काट्जू उन लोगों के लिए बहुत ही अपमानजनक रवैय्या अपना रहे हैं जिनके साथ उन्हें अगले तीन वर्षों तक कार्य करना है। कूमी कपूर का कथन पूरे मीडिया जगत का नहीं है,और हो सकता है, यह केवल उन्हीं की आवाज हो जिसे वे इस संगठन के बैनर से बुलन्द करना चाह रही हैं।
Coomi Kapoor, General Secretary , Editors Guild of India
          कूमी कपूर के इस वकतव्य से यह स्तम्भकार भी अचंम्भित है कि कूमी कपूर का यह बयान धमकी वाला है अथवा यह प्रदर्शित कर रहा है कि यदि कोई किसी संस्था का अध्यक्ष बनाया जाये तो वह उससे जुड़े लोगों की संख्या और उनके कृत्य को देखकर उनसे डर-सहम कर टिप्पणी करे। इस देश के पत्रकार यदि अपने को इतने ही ताकतवर समझने की हद तक पहुंच चुके हैं तो उन्होंने वेतनबोर्ड के फैसले का विरोध कर रहे आईएनएस के वक्तव्य पर टिप्पणी करने की जहमत क्यों नहीं उठाई। अगर जस्टिस काट्जू को प्रेस काउन्सिल के अध्यक्ष के रूप में कार्य करना है तो इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि वे पत्रकार संगठनों से सांठ-गांठ करके अपना कार्यकाल पूरा करें।
          इस देश में कितने ही तथाकथित नामी गिरामी पत्रकार संगठन हैं जिनमें दशकों से चुनाव नहीं हुए हैं। 70 से 90 वर्ष के बुजुर्ग कुण्डली मारकर बैठे हुए हैं, तथा संगठन को पान की दुकान की तरह चला रहे हैं। ये पत्रकारों के संगठन कम, पत्रकार पैदा करने वाले जनाना हास्पिटल ज्यादा हो गये हैं। पत्रकारिता के नाम पर उन्हें ऐसा बन्दा चाहिए जो लिखना-पढ़ना भले ही ना जाने लेकिन उसे खिदमत करना अवश्य आता हो। भले ही वह विज्ञापन एकत्र करने का कार्य करता हो अथवा अखबार की प्रतियां वितरित करने का कार्य करता हो, उसे पत्रकार घोषित करने का कार्य ये मीडिया संगठन बखूबी करते हैं। यहॉं तक कि सत्ता को............ सप्लाई करने वाले कितने ही लोगों को ये पत्रकार ही नहीं बनाते हैं अपितू अपने साथ-साथ घुमाकर उसे बड़ा दिखाने और वास्तविक पत्रकार को यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि-हमारी सेवा नहीं करोगे तो पत्रकार नहीं कहे जाओगे,और हमारी चरण वन्दना करोगे तो भले ही तुम्हारी परचून की दुकान हो या आतंकी संगठन को सूचना पहुंचाना तुम्हारा काम हो,हम तुम्हारी पैठ ग्रह मन्त्रालय तक में करा देंगे।
Ghulam Nabi Fai, ISI Agent & Director, Kashmir American Council.
          यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्या कारण है कि पाकिस्तानी खुफिया ऐजेन्सी आई0एस0आई0 के एजेण्ट गुलाम नबी फई द्वारा संचालित कश्मीर अमेरिकन काउन्सिल के बैनर तले सेमीनार और कान्फ्रेन्स अटैण्ड करने वाले पत्रकारों के नाम इन ब्रॉडकॉस्ट की एसोसियेशनों ने ब्रॉडकॉस्ट नहीं किये? अथवा बड़े कहे जाने का दम्भ भरने वाले किसी भारी भरकम समाचार-पत्र ने इन मूर्धन्य पत्रकारों के नामों की लिस्ट क्यों नहीं छापी?
          ए0राजा को मंत्री बनाने में कार्पेारेट लाबीस्ट नीरा राडिया,जो नामी-गिरामी वकील आर0के0आनन्द को भी बेवकूफ बनाकर उनका मेहनताना खा गई, उसका साथ हिन्दुस्तान टाइम्स के वीर संघवी और एनडीटीवी की एंकर बरखा दत्त क्यों दे रही थीं? इन संगठनों ने बरखा दत्त, वीर संघवी, इत्यादि पत्रकारों को आईना दिखाने में बढ़-चढ़कर भूमिका क्यों नहीं दिखाई। आज देश का हर नागरिक देख रहा है कि किस तरह इलैक्ट्रानिक चैनल पर सरकार के पक्ष में ग्रुप डिस्कसन कराये जाते हैं। कैस एक पत्रकार बाकायदा वकील की भूमिका में सरकार का पक्ष मजबूत करने में लगा रहता है। कैसे अण्णा हजारे की रणनीति को उनकी टीम के मूंह में हांथ डालकर निकालने की कोशिश होती है। सरकार का एजेण्ट बनकर पत्रकारिता करने वालों में आलोक मेहता प्रमुख हैं।
          यह स्तम्भकार जस्टिस मार्कण्डेय काट्जू के कथन से हूबहू इत्तेफाक रखता है कि इस मीडिया को अपने अन्दर भी झांककर देखना चाहिए। जस्टिस मार्कण्डेय काट्जू के कथन पर मीडिया संगठनों के पदाधिकारियों का विरोध इसलिए आवश्यक हुआ कि यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी दुकानदारी पर आंच आ रही है, जबकि विरोध करके वे अपनी शक्ति दिखाने के अलावा अपनी महत्ता भी प्रदर्षित करना चाह रहे हैं। ये सारे संगठन जेबी संगठन हैं, जिनमें मात्र दस-बारह लोगों के जेब में ही सत्ता रहती है। जितने देश में पत्रकार नहीं उससे कई गुना इन संगठनों की सदस्य संख्या है। किसी भी प्रकार का और कभी भी पत्रकारों का मेला लगाने के लिए ये संगठन उन छोटे-छोटे कहे जाने वाले अखबारों के प्रतिनिधियों के बल पर ही प्रदर्शन कर पाते हैं, जो इनके पास अपनी पत्रकार मान्यता अथवा विज्ञापन पाने के लिए इनके तलुये चाटते हैं। इस देश में मीडिया एक रैकेट की तरह कार्य कर रहा है, यह कहने में मुझे तनिक भी झिझक नहीं है।
          एक दैनिक समाचार-पत्र के सम्पादकीय पृष्ठ पर छपी ब्राडकॉस्ट एडीटर्स एसोसियेशन के महासचिव श्री एन0के0सिंह की उस टिप्पणी को देख रहा था, जिसमें उन्होंने (उस आरोप कि- जिस देश का 80 प्रतिशत भाग अभाव में जी रहा हो, उस देश में मीडिया एक फिल्म अभिनेता की पत्नी को एक बच्चा होगा अथवा जुड़वा होगा, यह दिखा रहा है) पर सफाई दी कि भारतीय मीडिया अगर गरीबी को न दिखा रहा होता तो शायद समाज के सुविधाभोगी वर्ग को इसका पता भी नहीं चलता कि इस देश में गरीबी है। शायद इसी तर्ज पर मि0 सिंह यह जस्टिफ़ाय करने की कोशिश कर रहे हैं कि अभिनेत्री ऐश्वर्या राय के बच्चा होने को दिखाना इसीलिए आवश्यक था कि इस देश का गरीब तबका यह जान ले कि ऐश्वर्या राय मॉं बनने वाली हैं, वरना उसकी गरीबी दूर नहीं हो पायेगी।
          मि0 सिंह को यह पता नहीं कि जब इस देश में इलैक्ट्रानिक चैनल नहीं थे तब भी गरीबी कितनी है और कहॉं है सभी को पता थी। हो सकता है मि0 सिंह की अमीरी का किसी को पता ना हो लेकिन भारत की मीडिया का बहुत बड़ा वर्ग गरीबी में जी रहा है, इसे हर वह पत्रकार जानता है जो सत्ता से चिपक कर उसका आनन्द नहीं ले रहा है। मि0 सिंह का जवाब बिल्कुल कपिल सिब्बल के जवाब जैसा है कि यदि मंत्री बन गये तो सत्ता उनकी जेब में और वकालत करने लगे तो सुप्रीम कोर्ट उनकी जेब में।
          सिंह साहब यदि इस देश की गरीबी अथवा गरीब की बात आप कर रहे है तो कोई एहसान नहीं कर रहे हैं, लेकिन नाग-नागिन का खेल दिखा कर, स्वर्ग की सीधी सीढ़ी दिखा कर, बिग बॉस जैसे फूहड़ आइटम दिखा कर, कमेडी के नाम पर फूहड़ता परोस कर इस भारत देश और इसकी जनता के साथ अन्याय करने के साथ-साथ, इस देश के कल्चर, इसकी पवित्रता को भ्रष्ट जरूर कर रहे हैं। आप वो नहीं दिखा रहे हैं जो जनता चाह रही है, बल्कि आप जो दिखा रहे हैं, वह जनता मजबूरी में देख रही है। इससे यदि आपकी टीआरपी बढ़ रही है तो इसका यह कतई मतलब नहीं है कि दर्शक इसे बहुत पसन्द कर रहे हैं। रेड लाइट एरिया को बीच चौराहे स्थान दे दीजिए तो भीड तो वहॉं सबसे पहले लग जायेगी लेकिन इसे आप सार्वजनिक स्थान घोषित नहीं कर सकते। इसलिए यदि आप फूहडता दिखा रहे हैं तो यूनीवर्सल श्रेणी में रखा जाये अथवा एडल्ट्स में इसका नियमन तो होना ही चाहिए, और इसके लिए आप पर(आपसे तात्पर्य फूहड़ता दिखाने और देश को तोड़ने वाली बहस चलाने वाले चैनलों से है)।
          मि0सिंह ने, लगने वाले अंकुश पर खूब किन्तु-परन्तु किया है,लेकिन वह यह क्यों नही बताते कि ऐसा न होने की दशा में भी मीडिया संस्थान बहुतों को ब्लैक मेल कर रहे हैं। इसे समझने के लिए नीचे दिये गये लेख पर क्लिक करें, उसमें मंच से ही पत्रकार प्रभात रंजन दीन ने इलैक्ट्रानिक चैनल की कथनी और करनी का खुलासा किया था, जिसे मंच पर उपस्थित विनीत नारायण सहित मुदगल और आशुतोष सहन नहीं कर पाये थे, और मि0 विनीत नारायण ने तो प्रभात रंजन दीन को समय की कमी का बहाना बनाते हुए जल्द से जल्द अपना भाषण खत्म करने का आदेश सुना दिया। दूसरों को सीख देनी बड़ी आसान है,किन्तु जब अपने पर आती है तो बाजा बजने लगता है। आखिरकार कौन सा ऐसा कारण है कि मीडिया पर अंकुश नहीं लगना चाहिए।
          कितने चैनलों और समाचार-पत्रों के मालिकान साफ सुथरे हैं, कितने ही पत्रकारों के नाम यह स्तम्भकार दे सकता है जो पत्रकारिता के कार्ड का इस्तेमाल अपने संस्थान के मालिक की चीनी मिल, वनस्पति मिल आदि के कायों के लिए करते हैं। अपने लेख के अन्त में उन्होंने दावा किया है कि पिछले वषों में विशेषकर इलैक्ट्रानिक मीडिया ने जो उपलब्धि हासिल की है,उससे स्पष्ट है कि भारतीय इलैक्ट्रानिक मीडिया आने वाले समय में विश्व के लिए एक उदाहरण पेश कर सकता है। उनकी इस बात में कितना दम है,उसे समझने के लिए उन्हीं से यह पूछा जाना चाहिए कि लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी का आचरण उसके अपने देश की जनता के प्रति कैसा था, इस तथ्य को नज़रअन्दाज करके मीडिया ने केवल उसी पक्ष को प्रचारित किया जिसे अमेरिका प्रचारित कराना चाहता था।
क्या एन0के0सिंह को पता है कि लीबिया के उस तानाशाह के शासन में निम्न सुविधायें वहॉं की जनता के पास थीं।
1) लीबिया में जनता को बिजली का बिल माफ़ रहता था,वहॉं लोगों को बाकी मुल्कों की तरह बिजली का बिल जमा नहीं करना पड़ता था (इसका भुगतान सरकार करती थी)।
2) लीबिया सरकार(गद्दाफी शासन)आपने नागरिकों को दिए गए ऋण(लोन)पर ब्याज नहीं वसूलता था। मानें आपको इंटरेस्ट फ्री लोन बड़ी आसानी से मिलता था और चुकाना केवल मूलधन पड़ता था।
3) लीबिया में ‘घर’ मानव अधिकार की श्रेणी में थे। लीबिया के प्रत्येक व्यक्ति को उसका खुद का घर देना सरकारी जिम्मेदारी थी। आपको बाते दें कि गद्दाफी ने कसम खाई थी कि जब तक लीबिया के प्रत्येक नागरिक को उसका खुद का घर नहीं मिलता वह अपने माता पिता के लिए भी घर नहीं बनवाएगा यही कारण था कि गद्दाफी की मां और पत्नी आज भी टेंट में ही रहती हैं।
4) लीबिया में शादी करने वाले प्रत्येक जोड़े को गद्दाफी कि तरफ से 50 हज़ार डॉलर की राशी दी जाती थी।(दुनिया में शायद ही कोई सरकार या शासक ऐसा करता हो)।
5) लीबिया में समस्त नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएँ पूरी तरह से फ्री थीं। जी हां लीबियाई नागरिकों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं पर आने वाला सारा खर्चा गद्दाफी सरकार खुद वहन करती थी।
Dr.Ved Pratap Vaidik
          अब आते हैं दूसरे अलम्बरदार वेद प्रताप वैदिक के पास। इनका कहना है कि पता नहीं क्यों भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काट्जू रोज ही बर्र के छत्ते में हांथ डाल देते हैं। मीडिया को बर्र का छत्ता बताने में वेद प्रताप वैदिक गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं लेकिन वे भूल रहे हैं कि बर्र का छत्ता उसका घर होता है, और जब कोई किसी का घर तोड़ने की कोशिश करता है तो हर वह प्राणी अपने घर को बचाने के लिए आखिरी दम तक जद्दोजहद करता है,उसे बचाने की,इसी वजह से बर्र किसी को काटती है,वरना किसी के घर में घुसकर वह हमला नहीं करती है। वैदिक जी मीडिया आपका अपना घर नहीं है। हिन्दुस्तान भर के पत्रकारों को मिलाकर इण्डियन मीडिया कहा जाता है,जिसके अकेले ठेकेदार न तो वैदिक हैं,ना ही एन0के0सिंह और ना ही  कूमी कपूर!
 मीडिया प्रोफेशन की तुलना बर्र के छत्ते से करना पूरी मीडिया बिरादरी की तौहीन करने के बराबर है,इसके लिए मि0 वैदिक को माफी मांगनी चाहिए। मीडिया उनके विरासत की वस्तु नहीं है कि खतौनी में उनके नाम चढ़ा दी गई हो। वैदिक जी को ऐसी कोई शक्ति न तो संविधान से मिली है और ना ही ऊपर वाले ने दी है कि पत्रकारों के संगठन के नाम पर वे जो चाहें,जैसा चाहें,जब चाहें,किसी को भी धमकाने की कोशिश करें। वैदिक जी पत्रकारिता एक मिशन है,इसे मशीनगन से चलाने की कोशिश मत कीजिए,नहीं तो आप अपने साथ पूरी पत्रकार कौम की ऐसी की तैसी करा देंगे। स्वतन्त्रता को स्वच्छन्दता में बदलने की हिमाकत मत कीजिए। चूंकी स्वतन्त्रता,स्वच्छन्दता में तब्दील हो रही है इसीलिए नियमन की जरूरत महसूस की जा रही है।
जस्टिस काट्जू का एक-एक वाक्य सही एवं खरा-खरा है, इसीलिए वैदिक जी को अखर रहा है और वे धमकी दे रहे हैं,प्रेस परिषद के अध्यक्ष को, कि वे जज का चोला उतारकर प्रेस परिषद का हैट पहनें। ये अध्यक्ष को हैट कब से पहना दिया,इस मीडिया ने? क्या मीडिया के ये बुजुर्ग अभीतक अंग्रेजों की गुलामी से अपने को मुक्त नहीं कर पाये हैं। अपने लेख में वेद प्रताप वैदिक ने उसी तीव्रता और दम्भी भाषा का प्रयोग किया है,जिस भाषा का प्रयोग दिवंगत प्रभाष जोशी जी करते थे, लेकिन तब जब उन्हें वह बात व्यक्तिगत तौर पर बुरी लगती थी।
आत्म संयम के नाम पर स्वच्छन्द रहने की प्रवत्ति को यदि अनुशासन के दायरे में लाया जाये तो गलत कैसे हो सकता है? क्या ऐसा तर्क देकर कोई अपने गुनाह को माफ करवा सकता है कि अमुक व्यक्ति तो चार खून करके भी खुला घूम रहा है,मैंने तो अभी पहला ही कत्ल किया है और जज साहब आप मुझे फांसी की सजा सुना रहे हो। यदि इस देश के एक भी जज ने अपने को लोकपाल के दायरे में आने की वकालत नहीं की तो इसका मतलब यह तो नहीं कि इस बिना पर हर वर्ग इससे छूट पाने का अधिकारी हो गया। मीडिया का जो काम है वह करिये। आप जस्टीफाई कीजीए की जज को भी लोकपाल के दायरे में होना चाहिए। आप इसे कैसे जस्टिफ़ाय कर सकते हैं कि जब जज, प्रधानमंत्री आदि लोकपाल के दायरे में नहीं हैं तो मीडिया कैसे!
          वैदिक जी अपनी बची ऊर्जा का इस्तेमाल जजों को,प्रधानमंत्री को, राजनीतिज्ञों को, कार्पोरेट घरानों के साथ-साथ मीडिया को भी लोकपाल के दायरे में लाने का जस्टीफिकेशन बताने में करिये, ना कि राहुल गॉंधी की तरह कि-लोकपाल को तो कोई सौ करोड़ में खरीद लेगा। इसका मतलब तो आपको अच्छी तरह पता है कि कौन कितने में खरीदा गया है। आप केवल खरीदने बेचने का ही धन्धा कर रहे हैं।
यदि मीडिया को नियम कायदे में लाने के लिए कैबिनेट ने गलत नियम बनाये हैं तो उन नियमों का विरोध कीजिए, बजाय इसके कि आप पूरी नीति का ही विरोध करने पर उतारू हो जायें। आप और आपके पत्रकार संगठनों को स्वंय बताना चाहिए कि नियमन किस प्रकार से किया जाये। प्रोग्राम संहिता के उल्लंघन पर क्या कार्रवाई की जानी चाहिए इसे आप,मि0 एन0के0सिंह, कूमी  कपूर इत्यादि सरकार को सुझा सकते हैं,और सुझाना चाहिये।
सतीश प्रधान




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  • चलिए भारत सरकार का ठप्पा तो लगा

    Tuesday, November 15, 2011

    क्रिकेट खेल है या कैसिनो


    Casino Games with cheer Girls
          क्रिकेट की हालत देखकर क्रिकेट प्रेमियों ने कहना शुरू कर दिया है कि क्रिकेट अब आनन्द 
    का विषय नहीं रहा। सही भी है, रहेगा भी कैसे? जब खेल को आप व्यापार बना देंगे
    तो फिर उसमें आनन्द कहॉं! आईये आज से शुरू करते हैं क्रिकेट का अध्याय।

    N. Srinivasan, President, BCCI & Vilas Rao Deshmukha, a Minister of India. 

    क्रिकेट के स्टेडियम अब खाली दिखते हैं। टी0वी0 पर क्रिकेट की जगह लोगों ने मनोरंजक कार्यक्रम देखने शुरू कर दिये हैं, जबकि वहॉं भी भोण्डापन ही परोसा जा रहा है, पर मरता क्या न करता वाली स्थिति में ही दर्शक जीने को मजबूर हैं। भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट प्रेमी देश है, उसमें क्रिकेट को संचालित करने वाली संस्था बीसीसीआई (बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल फॉर क्रिकेट इन इण्डिया) ने उसे उस मुहाने पर ला खड़ा किया है जहॉं से दोबारा पूर्व स्थिति में पहुंचना बहुत टेढ़ी खीर है। और ऐसा हुआ है क्रिकेट में घुस गये राजनीतिज्ञों के कारण। शरद पवार, राजीव शुक्ला, अरुण जेटली, ललित मोदी, विलास राव देशमुख आदि ने इसे सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी बना दिया है एवं क्रिकेट प्रेमियों को अण्डा खरीदने वाला ग्राहक। इतने पर भी जब राजनीतिज्ञों को संतोष नहीं हुआ तो इन्होंने मुर्गी भी अपने हिसाब से पैदा करनी शुरू कर दी और अण्डों की मैन्यूफेक्चरिंग भी करने लगे। 
    M.S.Dhoni, Captain, Indian Cricket Team & Chennai Super Kings with  N.Srinivasan,President,BCCI.

    हफ्तों का मैच सिमटाकर 20-20 पर ले आये। खिलाड़ियों को मुर्गी बनाकर उनसे 20-20 ओवर में सोने के अण्डे देने की चाहत रखने लगे। आपलोग देख ही रहे हैं कि क्रिकेट के नाम पर कौन-कौन सा खेल खेला जा रहा है। इसमें चीयर्स गर्ल्स घुसा दी गईं, जैसे कैसिनो में पीयर्स गर्ल्स होती हैं, ठीक उसी तर्ज पर। गोया यह क्रिकेट नहीं कैसिनो हो गया है। क्रिकेट को इन नेताओं ने कैसिनो में तब्दील कर दिया है। यही कारण है कि अब क्रिकेटर की जगह आपको फिक्सर क्रिकेटर अपनी ऑखों से देखने पड़ रहे हैं। क्रिकेटर के बारे में तो आपसे अच्छा कौन जानता है, लेकिन अब जानिए फिक्सर क्रिकेटर के बारे में।
    Sharad Pawar, a sh rued politician, Agriculture Minister of India  & President of ICC.

              क्रिकेट के इतिहास में आपराधिक सजा का पहला मामला विश्व के क्रिकेट प्रेमियों के सामने अब आया है। इससे पूर्व ब्रिटेन की अदालत में धोखाधड़ी के लिए खिलाड़ियों को सजा सुनाने का एकमात्र मामला 1964 में सामने आया था, जब तीन फुटबॉलरों को मैच गंवाने के लिए जेल की सजा सुनाई गई थी। वर्तमान में क्रिकेट के मैदान पर संदिग्ध आचरण के लिए, पाकिस्तान के पूर्व कप्तान सलमान बट और उनके दो साथी, तेज गेंदबाज मुहम्मद आसिफ और मुहम्मद आमेर, भ्रष्टाचार के लिए सजा पाने वाले विश्व के पहले क्रिकेटर बन गये हैं। स्पॉट फिक्सिंग का दोषी पाए जाने पर, साजिश रचने और अवैध धनराशि लेने के कारण सलमान बट को 30 महीने, जालसाजी का दोषी पाये जाने पर मुहम्मद आसिफ को 12 महीने और गलत काम में साथ देने का दोषी पाये जाने पर मुहम्मद आमेर को 6 महीने तथा भ्रष्ट आचरण का दोषी पाये जाने के कारण बुकी मजहर मजीद को 32 महीने की जेल की सजा से नवाजा गया है। जबकि आई0सी0सी0 (इण्टरनेशनल क्रिकेट काउन्सिल) ने सटोरिये मजहर मजीद और तेज गेंदबाज मुहम्मद आमेर के साथ मिलकर लार्ड्‌स टेस्ट के दौरान जानबूझकर नो-बॉल फेंकने की साजिश रचने के लिए सलमान बट को 10 साल, मुहम्मद आसिफ को 7 साल और मुहम्मद आमेर को 5 साल के लिए खेल से प्रतिबन्धित किया है। ये दोनों ही सजायें साथ-साथ चलेंगी।
              लन्दन की साउथवर्क कोर्ट के न्यायमूर्ति कुक की टिप्पणी वास्तव में प्रशंसनीय एवं सराहनीय है, और इस कृत्य की गंभीरता की ओर इशारा करती है कि- जिसे कभी खेल समझा जाता था, वह अब व्यवसाय बन गया है। इसकी छवि और अखण्डता से सभी की नज़रों में नुकसान पहुंचा है, जिनमें कई युवा भी शामिल हैं, जो तुम तीनों (सलमान बट, मुहम्मद आसिफ और मुहम्मद आमेर) को हीरो समझते थे और तुम्हारी तरह खेलने की कोशिश करते थे। न्यायमूर्ति कुक ने कहा कि रियायत की अपील के बावजूद ये अपराध इतने गम्भीर हैं कि जेल की सजा ही उपयुक्त होगी। अपने साथियों को भ्रष्ट करने वाले सलमान बट को इस पूरे घोटाले का सूत्रधार कहा गया है। उन्होंने कहा, अब जब लोग मैच में हैरान करने वाली चीजें देखेंगे या कोई हैरानी भरा नतीजा आयेगा तो पैसे खर्च करके मैच देखने वाले खेल के प्रशंसक सोचेंगे कि कहीं यह मैच फिक्स तो नहीं है, या जो उसने देखा क्या वह स्वाभाविक था!
    ऐसा नहीं है कि मैच फिक्सिंग कोई नवीन ईजाद है। यह तो आज से दो शताब्दि (दो सौ साल) पूर्व ही शुरू हो चुकी थी, जब क्रिकेट की शुरूआत भी नहीं हुई थी, तब 1817 में पहली बार मैच फिक्सिंग का मामला सामने आया था। नाटिंघम के बल्लेबाज विलियम लैंबार्ट पर मैच फिक्सिंग के लिए प्रतिबन्ध लगाया गया था, जिसके बाद वह फिर कभी क्रिकेट नहीं खेल पाये। मैच फिक्सिंग की दूसरी घटना 1873 की है जब सरे के खिलाड़ी टेड पुली ने वार्कशायर से हारने के लिए 50 पौण्ड लिये थे। इसके लिए सरे ने पुली को तब निलम्बित किया था।
    पिछले एक दशक में कई देशों के क्रिकेट खिलाड़ियों को इस तरह के आरोपों के कारण प्रतिबन्धित किया गया है, उनमें हैं दक्षिण अफ्रीका के हर्शल गिब्स, जिन्हें वर्ष 2000 में भारत के खिलाफ नागपुर वनडे में कमजोर प्रदर्शन करने के लिए सहमत होने पर 6 माह का प्रतिबन्ध लगाया था। दक्षिण अफ्रीका के ही हैन्सी क्रोन्ये पर तो मैच फिक्सिंग और सटोरियों से पैसे लेने के कारण आजीवन प्रतिबन्ध लगा। दक्षिण अफ्रीका के ही हेनरी विलियम्स निकले जिन्हें वर्ष 2000 में खिलाड़ियों को रिश्वत की पेशकश का दोषी पाये जाने पर वर्ष 2008 से आजीवन पाबन्दी लगा दी गई।
     Cricket Writer peter Roebuck

    क्रिकेट के सबसे सम्मानित कमेंटेटरों और लेखकों में से एक पीटर रोबक की केपटाउन के होटल में 13 नवम्बर 2011 को संदेहास्पद परिस्थितियों में लाश पाई गई है। दक्षिण अफ्रीकी पुलिस का कहना है कि उन्होंने होटल की छटी मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या की है। उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी। ब्रिटेन में जन्मे 55 वर्षीय रोबक ने 1980 के दशक में समरसेट की कप्तानी की थी। वे वहॉं आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच टेस्ट सीरीज कवर करने गये थे। 
    पाकिस्तान के क्रिकेट कोच बॉब वूल्मर की भी 2007 में वेस्टइंडीज में हुए विश्व कप के दौरान होटल के कमरे में ही रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। वूल्मर की हत्या को भी कभी हत्या और कभी आत्महत्या करार दिया जाता रहा और उनकी मौत का रहस्य आजतक बरकरार है। कमोबेश यही स्थिति इस मौत की भी रहनी है। दक्षिण अफ्रीकी पुलिस का कहना है कि शनिवार 12 नवम्बर 2011 की रात्रि सवा नौ बजे यह घटना घटी है और आत्महत्या के कारणों की पड़ताल की जा रही है तथा इस मामले में कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है। मामला यहॉं भी संदिग्ध नज़र आता है।
    वर्ष 2000 में भारत के अजहरूद्दीन पर भी आजीवन पाबन्दी लगी, मामला अदालत में विचाराधीन है, लेकिन आजतक वे मैच नही खेल पाये। भारत के ही अजय शर्मा पर भी वर्ष 2000 में सटोरियों के साथ सम्पर्क रखने का देाषी मानते हुए आजीवन पाबन्दी लगी। भारत के ही अजय जडेजा पर वर्ष 2000 में ही सटोरियों से सम्पर्क का दोषी पाये जाने पर पांच साल की पाबन्दी लगी जो वर्ष 2003 में हटा ली गई, लेकिन वे आजतक एक मैच भी नहीं खेल पाये। भारत के ही धुरन्धर मनोज प्रभाकर निकले जिन पर वर्ष 2000 में सटोरियों से सम्पर्क का दोषी मानते हुए पांच वर्ष का प्रतिबन्ध लगा और उनकी आजतक वापसी नहीं हो पाई है।
    केन्या के मौरिश औंडुबे को सटोरिये से धन लेने का दोषी पाये जाने पर पांच साल का प्रतिबन्ध लगा, जबकि वेस्ट इंडीज के मर्लोन सेम्युअल्स पर सटोरिये से धन लेने का दोषी पाते हुए दो साल का प्रतिबन्ध लगा और पाकिस्तान के अता-उर-रहमान एवं सलीम मलिक को वर्ष 2008 में सटोरियों से सांठ-गांठ के मामले में दोषी पाते हुए आजीवन प्रतिबन्ध लगाया गया। ऐसे हालातों के बाद कोई मूर्ख अथवा मूर्ख बनाने वाला ही स्टेडियम को हाऊस फुल देखने का ख्वाब संजो सकता है।
    Green Park Cricket Stadium, Kanpur, U.P., India.

    भारत में इन दिनों वेस्ट इंडीज की टीम दौरे पर है। जिसको तीन टेस्ट मैच और पाँच वनडे मैच खेलने हैं। पहला टेस्ट मैच हो चुका है और उसमें भारत विजयी रहा है। दूसरा 14 नवम्बर से कोलकाता में खेला जा रहा जिसमें भारत ने 5 विकेट पर 346 रन बना लिए हैं। इंग्लैण्ड के बाद इस सीरीज को भी दर्शकों के लाले पड़े हुए हैं। दिल्ली में खेले गये पहले टेस्ट मैच में स्टेडियम खाली पड़ा था जो क्रिकेट एसोसियेशन दिल्ली के कर्ताधर्ता अरूण जेटली की करनी पर आंशू बहा रहा था। 45 हजार क्षमता वाले फिरोजशाह कोटला स्टेडियम की दर्शक दीर्घा में बमुश्किल 10 हजार दर्शक होंगे और इनमें भी ज्यादातर फ्री पास वाले थे, जो दीर्घा को ज्यादा से ज्यादा भरने के उद्देश्य से लाये गये थे।
    Feroz Shah Kotla Stadium, Delhi, India.
    जानकारी मिली है कि कोलकाता के ईडन गार्डेन्स में हो रहे दूसरे और मुम्बई में होने वाले तीसरे टेस्ट मैच के लिए भी दर्शक ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। कोलकाता में टिकट काउन्टर्स खाली पड़े हैं। मुम्बई में टिकट के दाम काफी कम कर दिये जाने के बावजूद काउन्टर खाली पड़े हैं। 
    यही हाल वनडे मैचों का भी है। आगामी वनडे सीरीज के मैचों के भी टिकट अपनी बदहाली पर आंशु बहा रहे हैं। ये मैच कटक, विशाखापतनम, अहमदाबाद, इन्दौर और चेन्नई में होने हैं। इनमें से उत्तर प्रदेश तो राजीव शुक्ला की मेहरबानी से एकदम गायब हो गया है। राजीव शुक्ला क्या-क्या करेंगे? वे बीसीसीआई के वाइस प्रेसीडेन्ट हैं। इण्डियन प्रीमीयर लीग के कमिश्नर हैं,यू0पी0सी0ए0(उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसियेशन) के सचिव हैं। इसके अलावा वे केन्द्र में मंत्री भी हैं, तथा इलैक्ट्रानिक चैनल न्यूज-24 भी उनके दिशा निर्देशन में चलता है,क्योंकि उनकी पत्नी अनुराधा प्रसाद इस चैनल की मालकिन हैं और भारतीय जनता पार्टी के नेता रविशंकर प्रसाद की बहन हैं। 
    Rajiv Shukla, Indian Premier League (IPL) Commissioner, State Minister of India & VP, BCCI.
     
    पहले जब विदेश से टीमें आती थीं और जितने भी चार-पांच मैच होते थे, वे कानपुर, दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई और मद्रास में होते थे। उसमें से एक कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में होना लाजमी था, बाकी छोटे-मोटे मैच दूसरी जगहों पर होते थे। लेकिन भारत का सबसे बड़ा स्टेट, उत्तर प्रदेश और उसमें लाखों क्रिकेट प्रशंसक मौजूद होने के बावजूद कानपुर का ग्रीन पार्क स्टेडियम मैच के नक्शे से गायब कर दिया गया है। क्यों? इसकी पृष्टभूमि में राजीव शुक्ला, ज्योति बाजपेई और बीसीसीआई से मिलने वाली करोड़ों की धनराशि ही मूल वजह है।
    यू0पी0क्रिकेट एसोसियेशन वैसे भी उत्तर प्रदेश के समस्त जिलों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है और ना ही इसके प्रयास किये जाते हैं कि छूटे हुये जनपदों को विस्तार दिया जाये। प्रयास उत्तर प्रदेश को छोड़कर उत्तराखण्ड में अपने जेबी संगठन बनाने के लिये किये गये हैं, ऐसे ही एक संगठन में राजीव शुक्ला ने अपने भाई को घुसा दिया है। ऐसा ही दिल्ली क्रिकेट एसोसियेशन के अरूण जेटली भी कर रहे हैं, उनकी भी दखलनदाजी उत्तराखण्ड की एक क्रिकेट एसोसियेशन में है। भारत का अकेला राज्य है उत्तराखण्ड जहॉं पर आजतक किसी भी क्रिकेट एसोसियेशन को बीसीसीआई से मान्यता इसलिए नहीं दी जा सकी है क्योंकि बीसीसीआई के किसी न किसी पदाधिकारी के निहितार्थ वहां गठित की गई एसोसियेशन से हैं। 
    29 अगस्त 2009 को उत्तराखण्ड राज्य के लिए मान्यता देने के सम्बन्ध में बीसीसीआई की अरूण जेटली की अध्यक्षता वाली एफीलियेशन कमेटी ने विभिन्न एसोसियेशन से साक्षात्कार करने के बाद भी आजतक उसकी रिर्पोट ही सबमिट नहीं की है। यह हाल है क्रिकेट के खेल को प्रमोट करने वाली संस्था बीसीसीआई का, जहां हर नेता किसी न किसी कमेटी का अध्यक्ष बना हुआ है, और अपना-अपना खेल कर रहा है, भले ही क्रिकेट रसातल में चली जाये।
    Arun Jaitley,BJP Leader & Official, Delhi & Districts Cricket Association.

    इण्डिया सीमेन्ट के मालिक हैं, श्रीनिवासन जो वर्तमान में बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं तथा पूर्व में इसके सचिव रह चुके हैं। इण्डिया सीमेन्ट की टीम चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान हैं एम.एस.धौनी,जो इसी के साथ-साथ भारत की क्रिकेट टीम के भी कप्तान हैं। कुल मिलाकर बीसीसीआई के आस-पास एक नेक्सस बन गया है जिसके कारण टीम के चयन में भाई-भतीजाबाद और भ्रष्टाचार चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया है।
    उत्तर प्रदेश के क्रिकेट प्रेमियों को उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसियेशन की अक्षमता के लिए एक पीआईएल अवश्य दाखिल करनी चाहिए। मोहाली तक में मैच आयोजित होते हैं और इतना बड़ा उत्तर प्रदेश इससे अछूता रहता है, वह भी तब जबकि यहां पहले से ही टेस्ट मैच आयोजित होते रहे हैं। पहला वनडे 29 नवम्बर को खेला जायेगा। नजा़रा स्टेडियम के खाली रहने तक ही सीमित नहीं है। टी0वी0 पर मैच देखने वालों में भी कमी आई है। अब लोगों का उत्साह स्कोर जानने तक ही सीमित होता जा रहा है, जो धीरे-धीरे अपने अन्त की ओर है। 
    क्रिकेट की सीरीज ने अपने को हॉकी की सीरीज में तब्दील कर लिया है, जबकि हॉकी की ऐसी स्थिति उसका कोई पोषक न होने के कारण हुई है और क्रिकेट की ऐसी स्थिति पोषक होने के साथ-साथ अत्यधिक शोषक पैदा हो जाने के कारण हो रही है।
    आगे हम आपको विस्तार से विभिन्न क्रिकेट एसोसियेशन विशेषकर लखनऊ क्रिकेट एसोसियेशन के बारे में तफसील से बतायेंगे। यदि आपके पास भी क्रिकेट के मुताल्लिक कोई जानकारी हो अथवा कुछ कहना चाहते हों तो jnnnine@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।
    सतीश प्रधान

    Monday, November 7, 2011

    स्फूर्ति दे थकान मिटाये, गरमा गरम चाय


              ब्रिटिशर्ष की देन चाय ने भारतीय समाज में अपना विशेष स्थान बना लिया है। एक प्याली चाय पर किसी को भी आमंत्रित करना अथवा आये हुए को एक प्याली चाय से नवाजना आने वाले के मान सम्मान में बेशक इजाफा करता है। झुग्गी-झोंपड़ी हो मुख्यमंत्री का आवास अथवा कार्यालय या कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का कार्यालय या आवास, सभी जगह आपको इस अनूठे पेय के दर्शन आसानी से हो जायेंगे।
              यह बात अलग है कि झुग्गी-झोंपड़ी (स्लम एरिया) में आपको जो चाय मिलगी वह ब्राण्डेड कम्पनी की न होकर खुली चूरा चायपत्ती (रेड डस्ट) से बनी हो तथा सस्ते कॉंच की गिलास अथवा प्लास्टिक की गिलास में मिले जबकि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के यहॉं आसाम और दार्जलिंग की बड़ी पत्ती (ऑरेन्ज पोक) वाली ग्रीन लेवल (ब्रुक बॉण्ड की ब्राण्डेड) चाय केतली में खौलते पानी में डालकर, थोडी देर ढ़ककर रखने के बाद आपको सर्व की जाये। इसमें दूध,चीनी अथवा नीबू अलग से रखकर दिया जाता है, या केतली में पत्ती डालने के स्थान पर तुलसी चायपत्ती/बड़ी पत्ती के टी बैग्स अलग से सर्व किये जायें। ऐसी चाय पीने के लिए आपको बोन चाइना के लॉ-ओपाला वाले टी सेट्स, अलग से दिखाई देंगे, जो चाय के स्वाद को वाह चाय में बदलने का एहसास कराते हैं। इस प्रकार से देखा जाये तो सड़क और ढ़ाबों से लेकर फाइव स्टार होटलों तक में चाय का चलन पूरे उत्कर्ष पर दिखाई देता है।
              भारत में चाय का उत्पादन आसाम, दार्जलिंग, कुन्नूर और ऊटी में किया जाता है, इसी के साथ-साथ उत्तराखण्ड राज्य में भी इसकी पैदावार को बढ़ाकर वहॉं पर इसकी प्रोसेसिंग की तैयारी की जा रही है। सबसे अच्छी चायपत्ती दार्जलिंग (भारत) की होती है, जिसका 80 प्रतिशत हिस्सा विदेश के लिए निर्यात कर दिया जाता है। इसके बाद नम्बर आता है आसाम(भारत) की चाय पत्ती का, इसका भी 50 प्रतिशत हिस्सा विदेश में निर्यात कर दिया जाता है। अन्त में नम्बर आता है, साऊथ के तमिलनाडू राज्य में स्थित कुन्नूर और ऊटी के पहाड़ों पर उगाई जाने वाली चाय पत्ती का।
              चाय का पौधा नींबू के पौधे से छोटा ही होता है, एवं इसके एक पेड़ से कई वर्षों तक चाय की पत्तियों को चुना जाता है। इसके पौधे से एक-एक पत्तियॉं चुनी जाती हैं। इन्हें झकझोर कर तोड़ा नहीं जाता है, इसी कारण चाय की पत्तियों को तोड़ने के स्थान पर चुनने शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इन चुनी पत्तियों को किसान द्वारा चाय की फैक्ट्री को बेंच दिया जाता है, जहॉं पर इसकी प्रोसेसिंग होती है और फैक्ट्री में चाय का उत्पादन किया जाता है। प्रत्येक फैक्ट्री से चाय की बोरों में पैकिंग की जाती है, जिन्हें टी-बोर्ड द्वारा नीलाम किया जाता है, नीलामी में केवल वही एजेण्ट हिस्सा ले सकते हैं जो टी बोर्ड में रजिस्टर्ड हैं। इन्हीं एजेन्टों द्वारा टी-बोर्ड से लाट में खरीदे गये चायपत्ती के बोरे बड़े ग्राहकों को बेंचे जाते हैं।
              टी-बोर्ड से खरीदे गये इन्हीं बोरों से कोई इसे खुली चाय के रूप में बेचता है तो कोई इसकी ब्राडिंग करके एज मैन्यूफेक्चरर, पैकेट में बेचता है, जिन्हें मार्केटिंग कम्पनियों द्वारा छोटी-छोटी दुकानों तक पहुंचाया जाता है, जहॉं से जनता इसे खरीदकर इस्तेमाल करती है। जनता जिस चाय की पत्ती को 200 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदती है, उसका उत्पादित मूल्य 50 रूपये प्रति किलो से कतई ऊपर नहीं होता है। फैक्ट्री से 120 रूपये प्रति किलो बिकने वाली चाय पत्ती मार्केट में 600 रूपये प्रति किलो से नीचे कतई नहीं बिकती है।
              भारत के मार्केट में चूरा चाय के नाम से जो चाय बिकती है, उसे रेड डस्ट कहा जाता है, जिसे उत्तर प्रदेश में लोग अच्छा नहीं मानते हैं, और दानेदार चाय की पत्ती को ही बेहतर चाय मानते हैं। चूरा चायपत्ती और दानेदार चाय कलर देती हैं, जबकि बड़ी पत्ती (ओ0पी0) फ्लेवर देती है। 90 प्रतिशत जनता बड़ी पत्ती का मतलब ग्रीन लेवल समझती है, जबकि ग्रीन लेबल तो ब्रुक बाण्ड कम्पनी का ब्राण्ड नेम है। बड़ी पत्ती चाय को ओ0पी0 के नाम से जाना जाता है। अब यदि आप भी लखनऊ में ही इसकी पैकेजिंग करना चाहते हैं तो बड़े आराम से टी-बोर्ड से चाय पत्ती के गनी बैग खरीदकर उसकी अपने नाम से ब्रैन्डिग एवं पैकेजिंग कर सकते हैं।
              कुन्नूर और ऊटी की चाय, लखनऊ के पानी में कड़क स्वाद देती है। यही पत्ती जब आप महाराष्ट्र के पानी में बनाकर पीयेंगे तो आपको कडक नहीं लगेगी। चाय की पत्ती का मजा, पानी के स्वाद, उसके हल्के और भारी होने, निर्मल और कठोर होने पर अलग-अलग आता है। यदि आप मिनरल वाटर में इसे बनायें तो इसका स्वाद अलग होगा और भारत के ताजमहल स्थित शहर के पानी में उसी पत्ती की चाय बनवाये तो उसका स्वाद निश्चित रूप से अलग होगा। हो सकता है कि ताजमहल ब्राण्ड नेम की चाय पत्ती जो मजा मुम्बई में दे रही हो वह आगरा में एकदम बेस्वाद हो जाये और जो मुम्बई में एकदम बेस्वाद हो वह आगरा में आपके मुख से निकाल दे वाह ताज!  
              ए-वन कड़क चाय के नाम से बेची जाने वाली चाय पत्ती तमिलनाडू के कुन्नूर और ऊटी की होती है जो उत्तर प्रदेश, विशेष तौर पर लखनऊ में कम इस्तेमाल की जाती है, क्योंकि यहॉं के पानी में कड़वी और कषैली लगती है, जिसे कम्पनियॉं कड़क शब्द का ठप्पा लगाकर बेंचती हैं। उत्तर प्रदेश के अनुरूप आसाम और दार्जलिंग की चाय होती है जबकि आसाम की चायपत्ती तमिलनाडू और महाराष्ट्र में एकदम बकवास लगती है, इसी प्रकार ऊटी की चाय उत्तर प्रदेश, आसाम, दार्जलिंग, बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए दो कौडी की होती है। ठीक इसी प्रकार आसाम की चाय तमिलनाडू, केरल आदि प्रदेश में एकदम बेकार का स्वाद देती है।
              चाय पत्ती की जिस क्वालिटी को उत्तर प्रदेश में निम्न स्तर का माना जाता है, वह है रेड डस्ट यानी चुरा चाय, जबकि यही रेड डस्ट तमिलनाडू, केरल और महाराष्ट्र में सबसे मंहगी बिकती है। भारत में ठेले, छोटे रेस्टोरेन्ट, बस स्टैण्ड और रेलवे प्लेटफार्म पर बिकने वाली चाय इसी रेड डस्ट की बनी होती है। इसके दो कारण हैं, एक तो यह सस्ता मिलता है, दूसरे इससे चाय तैयार करने में देर नहीं लगती। छननी में रेड डस्ट डाला और ऊपर से गर्म पानी, बस गिलास में तैयार हो गई चाय।
              अब यह बताना आवश्यक हो गया है कि जो लोग यह समझते हैं कि चाय में कैफीन होती है और वह नुकसान पहुंचाती है, तो वे लोग यह भी समझ लें कि चाय की पत्ती से कैफीन तभी निकलेगी जब पत्ती को खूब उबाला जायेगा। यदि चाय को खूब उबाला न जाये तो कैफीन जिसकी प्रतिशतता 4 से 5 होती है, कभी भी आपकी चाय में नहीं आयेगी। यही वजह है कि चाय किसी को तभी नुकसान पहुंचायेगी जब वह इसके तैयार करने में लापरवाही बरतेगा। भारत में अन्य सारी समस्याओं की तरह चाय भी मध्यम वर्ग को ही नुकसान पहुंचाती है, क्योंकि यही वर्ग चाय की पत्ती (दानेदार चायपत्ती) को खूब उबालकर चाय तैयार करता है। ऊपर का इलीट वर्ग जहॉं ग्रीन लेवल (बडी पत्ती जिसे ओ0पी0 कहते हैं) का इस्तेमाल करता है,वहीं निम्न वर्ग रेड डस्ट (चूरा चाय पत्ती) का इस्तेमाल करता है, जिसे उबालने की जरूरत ही नहीं पड़ती है।
    दरअसल दानेदार चाय, बी0पी0/एस0बी0पी0,सी0टी0सी0 होती है, जिससे चाय का रंग प्राप्त करने के लिए खूब उबालना आवश्यक होता है। ग्रीन लेवल चाय मध्यम वर्ग को इसलिए पसन्द नहीं आती क्योंकि वह कलर नहीं देती। इसी के साथ मध्यम वर्ग का कुछ प्रतिशत हिस्सा बड़ी चाय पत्ती (ग्रीन लेवल) एवं दानेदार चाय पत्ती को आपस में मिलाकर इसका इस्तेमाल करता है।
              यदि चाय की पत्ती को उबाला न जाये, केवल खौलते पानी में डालकर थोड़ी देर ढ़ककर रखने के बाद इस्तेमाल की जाये तो नुकसान को रखिये कोसों दूर, यह केवल और केवल फायदा ही पहुंचायेगी। इसीलिए यदि अच्छी क्वालिटी की चाय का चूरा कलर के लिए और फ्लेवर के लिए बड़ी चाय पत्ती (ग्रीन लेवल) दोनों का इस्तेमाल किया जाये तो चाय का रंग भी आयेगा और फ्लेवर भी मिलेगा। किसी भी ब्राण्डेड कम्पनी ने अभीतक इस नुस्खे का ईजाद नहीं किया है। लेकिन इसे पाठकगण आजमा कर देख सकते हैं। एक केतली में बड़ी चायपत्ती (लांग लीफ जिसे ग्रीन लेवल समझिये) डालें, उसके ऊपर छननी रखें जिसमें रेड डस्ट (चायपत्ती का चूरा) डालें, फिर उसके ऊपर खौलता पानी डालकर उसे थेाड़ी देर के लिए केतली का ढ़क्कन बन्द करके रख दें। इसके बाद चीनी,दूध अथवा नीबू जैसा आप चाहें मिलाकर उसका आनन्द लें। यह चाय आपको कभी भी नुकसान नहीं पहुंचायेगी।
              चाय फायदे के अलावा नुकसान पहुंचा ही नहीं सकती यदि इसके सेवन का सही तरीका आप इस्तेमाल करें। भारतीय समाज में चाय का इस्तेमाल आवभगत से लेकर मनोरंजन के माहौल तक में और महिलाओं की डिलीवरी के बाद से लेकर थकान मिटाने तक में बड़ी तत्परता एवं उत्सुकता से किया जाता है। डाक्टर्स भी महिलाओं की सीजेरियन डिलीवरी के बाद सबसे पहले उसके तीमारदारों को चाय-बिस्कुट ही देने को कहते हैं। चाय देने के बाद ऐसी महिलाओं पर किये गये परीक्षण से यह तथ्य उभरकर सामने आये हैं जिसने चाय के फायदे पहुंचाने के गुण को उजागर किया है।
              चाय का रासायनिक विश्लेषण भी निम्न तथ्य को उजागर करता है। इसमें पाये जाने वाले रासायनों की संख्या 500 से भी अधिक है, किन्तु कुछ खास तत्व निम्न प्रकार हैं।


    पॅालीफिनाल-20से30 प्रतिशत,  कैफीन-04से05  प्रतिशत,  अमीनो एसिड-02से04 प्रतिशत,
    लिपिड्रस-01से05 प्रतिशत,  मिनरल-15से20 प्रतिशत,  प्रोटीन-20से25 प्रतिशत

    पॉलीफिनाल - एण्टी ऑक्सीडेन्ट और कैंसर रोधी यौगिक है।
    कैफीन - ‘वसन उत्प्रेरक तथा ‘वास रोगियों के लिए उपयोगी होती है एवं आराम पहुंचाती है।
    अमीनो एसिड  - अमीनोब्यूटिक एसिड विद्यमान होने के कारण चाय एनेलजेसिक और एण्टी पायरेटिक  होती है। इसी कारण बुखार होने पर चाय पीना फायदेमन्द होता है।
    विटामिन बी - चाय पीने से मनुष्य की प्रतिदिन की विटामिन बी काम्पलेक्स की जरूरत पूरी होती है।

    चाय के फायदेः
    1. पाचनतंत्र और मस्तिष्कतंत्र दोनों के लिए लाभदायक है।
    2. इसके पीने से थकान मिटती है और स्फूर्ति आती है।
    3. बैक्टीरिया प्रतिरोधी और जीवाणू प्रतिरोधी होती है।
    4. अमाशय में एल्कोलाइड्स को अवक्षेपित कर उससे उत्पन्न होने वाले विष से छुटकारा दिलाती है।
    5. लिनिओल, सिलीकेट और हेक्सेनॉल विद्यमान होने के कारण यह एण्टी क्लाटिंग प्रभाव रखती है। इस गुण के कारण यह दिल के रोगियों के लिए उपयोगी है। साथ ही एण्टी क्लाटिंग होने के कारण यह कोरोनरी नलिका को शिथिल करके उसमें रक्त का संचार बढ़ाती है।
    6. इसके पीते रहने से दांतों में कीड़ा नहीं लगता। इससे फ्लूरोएटाइट बनता है जो दांतों के इनेमल को मजबूत करता है।
    7. चोट को धोने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
    8. गले में खराश होने पर चाय की पत्ती को गरम पानी में डालकर इससे गरारा करने से शीघ्र ही आराम   मिलता है।
    9. इसमें फ्लेवानोल ग्लाइकोसाइड पाये जाने के कारण यह गले की सूजन में भी आराम पहुंचाती है।
    10.  एक प्याला गरम चाय में 500 से भी अधिक रसायन पाये गये हैं। 
              केवलमा़त्र चाय ही ऐसा पेय है जिसमें अनेक गुण हैं और अमृत समान है। यह अनेक बीमारियों में फायदा पहुंचाती है, लेकिन इसी के साथ यह भी सत्य है कि प्रत्येक चीज सीमा के अन्दर ही लाभ पहुंचा सकती है। अति हर चीज की नुकसानदायक होती है (अति सर्वत्र वर्जयते) फिर चाहे यह असली घी हो या शुद्ध मक्खन!   
     सतीश प्रधान


    Thursday, October 27, 2011

    रोमांचकारी फॉर्मूला-1 ग्रेटर नोएडा में


              भारत के ग्रेटर नोएडा शहर में जे0पी0ग्रुप द्वारा तकरीबन 2000,00,00,000 ( दो हजार करोड़) रुपये की लागत से फॉर्मूला-1 के लिए बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट(बीआईसी) बनाया गया है, जिस पर 30 अक्टूबर 2011 को इण्डियन ग्राण्ड प्रिक्स का आयोजन होगा। जे0पी0एस0आई0लि0 के अध्यक्ष श्री मनोज गौण का कहना है कि यह एक मेगा इवेन्ट है, जबकि मेरा मानना है कि यह मेगा नही बल्कि मेगा का भी बाप,एक गीगा इवेन्ट है। ट्रैक को मोटर स्पोर्ट्स की विश्व संस्था फेडरेशन इण्टरनेशनल डि ऑटोमोबाइल (एफआईए) की तकनीकी समिति पहले ही हरी झण्डी दिखा चुकी है।

              फेडरेशन ऑफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब इन इण्डिया (एफएमएससीआई) के भारत में अध्यक्ष विकी चण्डोक हैं। मि0 चण्डोक,  सहारा फोर्स इण्डिया और भारतीय टीम के ड्राइवर नरेन कार्तिकेयन का कहना है कि बीआईसी, दुनिया का सबसे बेहतरीन ट्रैक है। इस ट्रैक पर फॉर्मूला-1 कार, 210 किलोमीटर प्रति घन्टे की औसत रफ्तार पकड़ सकती हैं। तीसरे और चौथे मोड़ों के बीच सबसे अधिक फासला लगभग एक किलोमीटर का है, जहॉं पर कार 320 किलोमीटर की स्पीड पकड़ सकती है।
              भारत की राजधानी नई दिल्ली से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट (बीआईसी) 875 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसकी लम्बाई 5.14 किलोमीटर है। इसकी चौड़ाई 18-20 मीटर है, जबकि बीआईसी का ट्रैक 250 एकड़ में फैला हुआ है। कुल 16 मोड़ वाले इस ट्रैक को दुनिया का सबसे तेज और रोमांचक फॉर्मूला-1 ट्रैक कहा जा रहा है। दुनिया के 20 फॉर्मूला-1 ट्रैक में से बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट ही ऐसा अकेला सर्किट है जिसका स्वामित्व निजी हांथों (जे0पी0ग्रुप) में है एवं इसका डिजाइन जर्मनी के मशहूर ट्रैक डिजायनर हर्मन टिल्के ने तैयार किया है। जे0पी0समूह के चेयरमैन श्री मनोज गौण का कहना है कि किसी निजी संस्था द्वारा बनाया गया यह सबसे बड़ा खेल ढांचा है। सर्किट की दर्शक क्षमता एक लाख पच्चीस हजार है। इसी के साथ उनका कहना है कि खेल की 90 प्रतिशत टिकटें बिक चुकी हैं। न्यूनतम टिकट 2500 रुपये एवं अधिकतम टिकट 35000 रुपये के साथ इलीट क्लास/बिजनेस हाऊसेज के लिए अलग से कॉटेज की व्यवस्था की गई है,जिसकी दर लाखों रुपये है। इसी के साथ उनका कहना है कि भले ही इस इवेन्ट को खेल का दर्जा नहीं दिया गया है, लेकिन इससे होने वाले आर्थिक लाभ का पता नवम्बर माह में ही लग पायेगा।
              सर्किट पर अत्याधुनिक सुविधाओं वाला मेडीकल सेन्टर स्थापित किया गया है, जिसमें दो हेलीकॉप्टर एम्बूलेन्स तैनात की गई हैं। फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल ऑटोमोबाइल (एफआईए) के 225 मेडीकल स्टाफ नियुक्त किये गये हैं। पैडॉक एरिया के आगे मेन ग्रान्ड स्टैण्ड के सामने सभी 12 टीमों के लिए रूम बनाये गये हैं। ये टीमें हैं, रेड बुल, मैकलॉरेन मर्सिडीज, फेरारी, मर्सीडीज, रेनॉ, सहारा फोर्स इण्डिया, सॉवर-फेरारी, टोरो रोसो, विलियम्स, लोटस रेनॉ, वर्जिन एवं हिस्पेनिया। 
    फॉर्मूला-1 की इन टीमों के 24 ड्राइवर्स इस प्रकार हैं।
    1. नरेन कार्तिकेयन एवं डेनियल रिकॉर्डो (हिस्पेनिया)
    2. एड्रियन सुटिल एवं पॉल डी रेस्टा (सहारा फोर्स इण्डिया)
    3. सेबेस्टियन विटेल एवं मार्क वेबर (रेड बुल)
    4. जेंसन बटन एवं लुईस हेमिल्टन (मैकलॉरेन)
    5. फर्नाडो ओलांसो एवं फेलिपमासा (फेरारी)
    6. निको रोजबर्ग एवं माइकल शूमाकर (मर्सिडीज)
    7. विटाले पेट्रोव एवं बूनो सेना (रेनॉ)
    8. कामुइ कोबायाशी एवं सर्गियो परेज (सॉबर)
    9. जैमे अलगुएरसुआरी एवं सेबेस्टियन बुएमी (टोरो रोसो)
    10. रुबेंस बारीचेलो एवं पास्तोर मैलडोनाडो(विलियम्स) 
    11. जानों त्रुली एवं हेइक्की कोवालाएनेन (टीम लोटस)
    12. जेरोम डि एमब्रोसियो एवं टिमोग्लॉक (वर्जिन) 
              एक टीम में ज्यादा से ज्यादा चार ड्राइवर हो सकते हैं, जिनमें से दो रेस मे उतरते हैं। दो ड्राइवर अतिरिक्त तौर पर रखना आवश्यक होता है। ड्राइवरों का टीम से सालाना का पैकेज तय होता है। ये एक साल मे इतना कमाते हैं, जितना भारत के सुपर क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धौनी और सचिन तेन्दूलकर पॉंच साल में भी नहीं कमा पाते। फेरारी टीम ने पिछले सत्र में अपने ड्राइवरों को वेतन के रूप में करीब 60 मिलियन यूरो (तकरीबन 3086 करोड़ रुपये) दिये।
              उपरोक्त ड्राइवर्स एफआईए से सुपर लाइसेन्स प्राप्त हैं। इस प्रकार देखा जाये तो यह विश्व का सबसे मंहगा इवेंट है, जिसका मैनेजमैन्ट करना पड़ता है। फुटबॉल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल माना जाता है, लेकिन फॉर्मूला-1 का लुत्फ उठाने वालों की संख्या किसी भी मायने में फुटबॉल के दीवानों से कम नहीं कही जा सकती। दुनियाभर में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला खेल भी यही है। दुनियाभर में इस खेल का लुत्फ उठाने वालों की संख्या 60 करोड़ से ऊपर है। राजशाही अन्दाज के लिए इसकी तुलना गोल्फ से की जा सकती है, लेकिन जबरदस्त रोमांच के कारण इसने गोल्फ को एक किनारे कर दिया है। कार-रेसिंग के कितने ही सारे गेम आजकल बच्चे, टी.वी., कम्प्यूटर, आई पैड, पीएसपीओ पर खेलते आपको नज़र आ जायेंगे। आखिरकार रेस ही जीवन का सबसे महत्वपूर्णं एवं अहम हिस्सा है। जो जिन्दगी की रेस में आगे निकल गया वह सिकन्दर, बाकी जो पीछे छूट गया वो बन्दर।
           विश्व की सबसे पहली फॉर्मूला-1 रेस ब्रिटेन के सिल्वरस्टोन ट्रैक पर 1950 में हुई थी। इससे पहले इस रेस को ग्राण्ड प्रिक्स मोटर रेसिंग कहा जाता था। इसके बाद फेडरेशन ऑफ इण्टरनेशनल डि ऑटोमोबाइल्स (एफआईए) ने कार रेस के लिए कुछ नियम बनाये, इन नियमों (जिसे फॉर्मूला कहा गया और इसका नाम फॉर्मूला-1 रखा गया) विश्व चैम्पियनशिप की शुरूआत वर्ष 1958 से ही हुई है।
              फॉर्मूला-1 रेस के लिए एक खास प्रकार का ट्रैक होता है, जिसकी लम्बाई 5 से 6 किलोमीटर के बीच एवं गोलाकार होती है। रेसिंग कार जब इस ट्रैक का एक चक्कर पूरा करती है, तो इसे एक लैप कहा जाता है। इण्डियन ग्राण्ड प्रिक्स की एक लैप 5.14 किलामीटर की है, जिसे एक मिनट 27 सेकण्ड में पूरा किया जाना है। इस प्रकार देखा जाये तो एक रेस कुल 55 से 60 लैप की होती है। कार की रफ्तार 320 किमी प्रति घण्टा तक भी पहुंचती है तथा किसी-किसी मोड़ पर यह न्यूनतम 90 किमी प्रति घण्टा भी रह जाती है। औसतन एक रेस को पूरा करने में तकरीबन एक घण्टा पन्द्रह मिनट का समय लगता है।
              अमूमन ग्राण्ड प्रिक्स रेस का कार्यक्रम तीन दिनों का होता है। ये दिन शुक्रवार, शनिवार और रविवार ही रखे जाते हैं। भारत को छोड़ अन्य देशों में शनिवार एवं रविवार को लोग एन्जॉय करते हैं, उनकी छुट्टी रहती है और इस रेस को देखने के लिए कोई बन्क नहीं मारना पड़ता, कोई छुट्टी नहीं लेनी पड़ती, जबकि इण्डिया में केवल रविवार की छुट्टी रहती है, वह भी सरकारी दफ्तरों में, जबकि प्राइवेट सेक्टर में तो रविवार को भी काम लिया जाता है। भारत में होने वाली इस रेस को जो भी दर्शक देखेगा, वह या तो छुट्टी लेगा अथवा बन्क मारेगा या फिर ड्यूटी दिखाकर दर्शक दीर्घा में मौजूद रहेगा। शुक्रवार को दो अभ्यास रेस का आयोजन होता है। शनिवार सुबह भी अभ्यास रेस होती है, जिसके बाद क्वालीफाइंग रेस होती है। इस क्वालीफाइ्रग रेस से ही रविवार को होने वाली मुख्य रेस के लिए टीमों की पोजीशन तय होती है। दो अभ्यास रेस में से जो ड्राइवर सबसे तेज समय निकालता है, वह मुख्य रेस की शुरूआत सबसे आगे वाले स्थान से करता है।
              इस खेल को संचालित करने वाली मुख्य संस्था का नाम एफआईए है तथा फॉर्मूला-1 संस्था इसे जमीनी स्तर पर संचालित करती है। इस इवेन्ट की कर्ताधर्ता यही संस्था है। यह एक प्राइवेट बिजनेस संस्था है, जैसे क्रिकेट के खेल के लिए हमारी बीसीसीआई संस्था है। फॉर्मूला-1 संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बर्नी एस्सेलेस्टॉन हैं। फॉर्मूला-1 के एक सत्र में 19 से 20 रेस होती हैं। इसमें 12 टीमें हिस्सा लेती हैं, प्रत्येक टीम से दो ड्राइवर और उसकी टीम को प्रदर्शन के मुताबिक अंक मिलते हैं। सत्र के अन्त में सर्वाधिक अंक हासिल करने वाला ड्राइवर और उसकी टीम, चैम्पियन घोषित किये जाते हैं।
              अब तक के दो या उससे ज्यादा बार चैम्पियन रहे ड्राइवर निम्न प्रकार से हैं।
    एलबर्टो अस्कारी(दो बार)                       1952 एवं 1953
    जिम क्लार्क(दो बार)                             1963 एवं 1965
    ग्राह्म हिल(दो बार)                           1962 एवं 1968
    एमरसन फिटीपाल्डी(दो बार)               1972 एवं 1974
    मिका हक्किनेन(दो बार)                    1998 एवं 1999
    फर्नांडो ओलोंसो(दो बार)                     2005 एवं 2006
    जैक ब्राब्हम(तीन बार)                       1959,1960 एवं 1966
    जैकी स्टीवर्ट(तीन बार)                      1969, 1971 एवं 1973
    नेलसन पिक्वेट(तीन बार)                  1981, 1983 एवं 1087
    निकी लाइडा(तीन बार)                       1975, 1977 एवं 1984
    आर्यटन सेना(तीन बार)                     1988, 1990 एवे 1991
    एलियन प्रोस्ट(चार बार)                    1985, 1986, 1989 एवं 1993
    जुआन मैनुअल फैंजियो(पांच बार)       1951,1954,1955,1956 एवं 1957
    माइकल शूमाकर(सात बार)                1994,1995,2000,2001,2002, 2003 एवं 2004
              सत्र 2010 से पूर्व रेस में शीर्ष छह ड्राइवरों को अंक दिये जाते थे, लेकिन बाद में नियमों में बदलाव करके अंक पाने वाले ड्राइवरों और टीम का दायरा बढ़ाकर दस कर दिया गया है। 24 ड्राइवरों में से जो सबसे तेज समय निकालते हुए समस्त लैप पूरे करता है वह विजेता होता है। इसके पश्चात समय के आधार पर मेरिट बनती है। मेरिट के आधार पर ही ड्राइवरों और टीमों को अंक मिलते हैं। प्रत्येक ग्राण्ड प्रिक्स में मिलने वाले इन्हीं अंकों के आधार पर सत्र के अन्त में फॉर्मूला-1 चैम्पियन ( ड्राइवर और टीम ) की घोषणा होती है। सत्र 2010 की 16 रेस हो चुकी हैं। 17वीं इण्डियन ग्राण्ड प्रिक्स 30 अक्टूबर 2011 को भारत के ग्रेटर नोएडा स्थित बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट पर होगी। 18वीं अबू धाबी और अंतिम 19वीं ब्राजील ग्राण्ड प्रिक्स, साओ पाउलो में 27 नवम्बर 2011 को सम्पन्न होगी, जिसके बाद इस सत्र के चैम्पियन की घोषणा की जायेगी।
    कुल मिलाकर इलीट क्लास का यह मेगा इवेन्ट, इलीट दर्शकों के लिए ही आयोजित होता है, जिसे मेरी राय में मेगा इवेन्ट कहना, एक तरह की नाइंसाफी है, दरअसल यह तो उससे भी 1024 गुणा बड़ा, एक गीगा इवेन्ट है। इस इवेन्ट की भव्यवता का अंदाजा इसी एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि सर्किट की सुरक्षा के लिए सात स्तर की सुरक्षा व्यवस्था की गई है, जिसके दायरे में दर्शकों से लेकर रेस अधिकारी, कार्पोरेट, टीम और वी.आई.पी. रहेंगे। आपत्तिजनक चीजों का प्रवेश रोकने के लिए कॉम्पलेक्स की सड़कों के नीचे सेंसर लगाये गये हैं। पूरे सर्किट की अन्दरूनी सुरक्षा के लिए इण्टरनेशनल प्राइवेट सुरक्षा ऐजेन्सी (कैम्स) की सेवायें ली गई हैं, जिसके पास टिकटों की जांच से लेकर फॉर्मूला-1 की टीमों और ट्रैक की सुरक्षा का भी जिम्मा है। अलावा इसके, उत्तर प्रदेश राज्य के अधीन आने वाले ग्रेटर नोएडा क्षेत्र स्थित इस आयोजन स्थल के सुरक्षा प्लान, उपकरण की उपलब्धता और ड्यूटी चार्ट पर आखिरी कवायद के लिए प्रदेश पुलिस के तीन एडीशनल डायरेक्टर जनरल क्रमशः श्री सुबेश कुमार सिंह, रजनीकान्त मिश्र और के0एल0मीणा, यहॉं का जायजा ले चुके हैं। प्रदेश पुलिस ने फॉर्मूला-1 रेस की सुरक्षा व्यवस्था को बाहरी और आंतरिक दो हिस्सों में बांट दिया है। बाहरी सर्किल की सुरक्षा, नोएडा पुलिस की होगी, जिसके प्रभारी, एस.एस.पी. नेाएडा ज्योति नारायण हैं एवं आन्तरिक सर्किल की सुरक्षा व्यवस्था बाहर से आई फोर्स और पी.ए.सी. के हांथ में होगी,जिसके प्रभारी 32वीं बटालियन पीएसी के एस.एस.पी. नवीन अरोड़ा हैं।
    सत्र 2010 की ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता निम्न प्रकार से हैं।
    ग्राण्ड प्रिक्स                     डेट                 विनर/टाइम

    1. आस्ट्रेलिया                           27 मार्च                       सेबेस्टियन विटेल
    2. मलेशिया                            10 अप्रैल                       सेबेस्टियन विटेल
    3. चाइना                                 17 अप्रैल                      लुईस हेमिल्टन
    4. टर्की                                   08 मई                          सेबेस्टियन विटेल
    5. स्पेन                                   22 मई                         सेबेस्टियन विटेल
    6. मोनेको                               29 मई                          सेबेस्टियन विटेल
    7. कनाडा                                12 जून                         जेंसन बटन
    8. यूरोप                                  26 जून                         सेबेस्टियन विटेल
    9. ग्रेट ब्रिटेन                           10 जुलाई                     फर्नाडो ओलोंसो
    10.  जर्मनी                               24 जुलाई                      लुईस हेमिल्टन
    11.  हंगरी                                 31 जुलाई                      जेंसन  बटन
    12.  बेल्जियम                           28 अगस्त                     सेबेस्टियन विटेल
    13.  इटली                                11 सितम्बर                   सेबेस्टियन विटेल
    14.  सिंगापुर                            25 सितम्बर                   सेबेस्टियन विटेल
    15.  जापान                              09 अक्टूबर                   जेंसन बटन
    16.  साउथ कोरिया                  16 अक्टूबर                     सेबेस्टियन विटेल
    17.  इण्डिया                            30 अक्टूबर                     सेबेस्टियन विटेल 
    18.  अबूधाबी                          13 नवम्बर                                1300
    19.  ब्राजील                            27 नवम्बर                                 1600
              इस प्रकार 16 ग्राण्ड प्रिक्स में से दस के विजेता सेबेस्टियन विटेल रहे हैं। तीन ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता जेसन बटन, दो ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता लुईस हेमिल्टन और एक ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता फर्नाडो ओलोन्सो रहे हैं। तीन ग्राण्ड प्रिक्स अभी होनी हैं। 27 नवम्बर 2011 को 19वीं रेस के बाद इस सत्र का फाइनल विजेता घोषित किया जायेगा। सतीश प्रधान 

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