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Thursday, October 27, 2011

रोमांचकारी फॉर्मूला-1 ग्रेटर नोएडा में


          भारत के ग्रेटर नोएडा शहर में जे0पी0ग्रुप द्वारा तकरीबन 2000,00,00,000 ( दो हजार करोड़) रुपये की लागत से फॉर्मूला-1 के लिए बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट(बीआईसी) बनाया गया है, जिस पर 30 अक्टूबर 2011 को इण्डियन ग्राण्ड प्रिक्स का आयोजन होगा। जे0पी0एस0आई0लि0 के अध्यक्ष श्री मनोज गौण का कहना है कि यह एक मेगा इवेन्ट है, जबकि मेरा मानना है कि यह मेगा नही बल्कि मेगा का भी बाप,एक गीगा इवेन्ट है। ट्रैक को मोटर स्पोर्ट्स की विश्व संस्था फेडरेशन इण्टरनेशनल डि ऑटोमोबाइल (एफआईए) की तकनीकी समिति पहले ही हरी झण्डी दिखा चुकी है।

          फेडरेशन ऑफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब इन इण्डिया (एफएमएससीआई) के भारत में अध्यक्ष विकी चण्डोक हैं। मि0 चण्डोक,  सहारा फोर्स इण्डिया और भारतीय टीम के ड्राइवर नरेन कार्तिकेयन का कहना है कि बीआईसी, दुनिया का सबसे बेहतरीन ट्रैक है। इस ट्रैक पर फॉर्मूला-1 कार, 210 किलोमीटर प्रति घन्टे की औसत रफ्तार पकड़ सकती हैं। तीसरे और चौथे मोड़ों के बीच सबसे अधिक फासला लगभग एक किलोमीटर का है, जहॉं पर कार 320 किलोमीटर की स्पीड पकड़ सकती है।
          भारत की राजधानी नई दिल्ली से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट (बीआईसी) 875 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसकी लम्बाई 5.14 किलोमीटर है। इसकी चौड़ाई 18-20 मीटर है, जबकि बीआईसी का ट्रैक 250 एकड़ में फैला हुआ है। कुल 16 मोड़ वाले इस ट्रैक को दुनिया का सबसे तेज और रोमांचक फॉर्मूला-1 ट्रैक कहा जा रहा है। दुनिया के 20 फॉर्मूला-1 ट्रैक में से बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट ही ऐसा अकेला सर्किट है जिसका स्वामित्व निजी हांथों (जे0पी0ग्रुप) में है एवं इसका डिजाइन जर्मनी के मशहूर ट्रैक डिजायनर हर्मन टिल्के ने तैयार किया है। जे0पी0समूह के चेयरमैन श्री मनोज गौण का कहना है कि किसी निजी संस्था द्वारा बनाया गया यह सबसे बड़ा खेल ढांचा है। सर्किट की दर्शक क्षमता एक लाख पच्चीस हजार है। इसी के साथ उनका कहना है कि खेल की 90 प्रतिशत टिकटें बिक चुकी हैं। न्यूनतम टिकट 2500 रुपये एवं अधिकतम टिकट 35000 रुपये के साथ इलीट क्लास/बिजनेस हाऊसेज के लिए अलग से कॉटेज की व्यवस्था की गई है,जिसकी दर लाखों रुपये है। इसी के साथ उनका कहना है कि भले ही इस इवेन्ट को खेल का दर्जा नहीं दिया गया है, लेकिन इससे होने वाले आर्थिक लाभ का पता नवम्बर माह में ही लग पायेगा।
          सर्किट पर अत्याधुनिक सुविधाओं वाला मेडीकल सेन्टर स्थापित किया गया है, जिसमें दो हेलीकॉप्टर एम्बूलेन्स तैनात की गई हैं। फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल ऑटोमोबाइल (एफआईए) के 225 मेडीकल स्टाफ नियुक्त किये गये हैं। पैडॉक एरिया के आगे मेन ग्रान्ड स्टैण्ड के सामने सभी 12 टीमों के लिए रूम बनाये गये हैं। ये टीमें हैं, रेड बुल, मैकलॉरेन मर्सिडीज, फेरारी, मर्सीडीज, रेनॉ, सहारा फोर्स इण्डिया, सॉवर-फेरारी, टोरो रोसो, विलियम्स, लोटस रेनॉ, वर्जिन एवं हिस्पेनिया। 
फॉर्मूला-1 की इन टीमों के 24 ड्राइवर्स इस प्रकार हैं।
1. नरेन कार्तिकेयन एवं डेनियल रिकॉर्डो (हिस्पेनिया)
2. एड्रियन सुटिल एवं पॉल डी रेस्टा (सहारा फोर्स इण्डिया)
3. सेबेस्टियन विटेल एवं मार्क वेबर (रेड बुल)
4. जेंसन बटन एवं लुईस हेमिल्टन (मैकलॉरेन)
5. फर्नाडो ओलांसो एवं फेलिपमासा (फेरारी)
6. निको रोजबर्ग एवं माइकल शूमाकर (मर्सिडीज)
7. विटाले पेट्रोव एवं बूनो सेना (रेनॉ)
8. कामुइ कोबायाशी एवं सर्गियो परेज (सॉबर)
9. जैमे अलगुएरसुआरी एवं सेबेस्टियन बुएमी (टोरो रोसो)
10. रुबेंस बारीचेलो एवं पास्तोर मैलडोनाडो(विलियम्स) 
11. जानों त्रुली एवं हेइक्की कोवालाएनेन (टीम लोटस)
12. जेरोम डि एमब्रोसियो एवं टिमोग्लॉक (वर्जिन) 
          एक टीम में ज्यादा से ज्यादा चार ड्राइवर हो सकते हैं, जिनमें से दो रेस मे उतरते हैं। दो ड्राइवर अतिरिक्त तौर पर रखना आवश्यक होता है। ड्राइवरों का टीम से सालाना का पैकेज तय होता है। ये एक साल मे इतना कमाते हैं, जितना भारत के सुपर क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धौनी और सचिन तेन्दूलकर पॉंच साल में भी नहीं कमा पाते। फेरारी टीम ने पिछले सत्र में अपने ड्राइवरों को वेतन के रूप में करीब 60 मिलियन यूरो (तकरीबन 3086 करोड़ रुपये) दिये।
          उपरोक्त ड्राइवर्स एफआईए से सुपर लाइसेन्स प्राप्त हैं। इस प्रकार देखा जाये तो यह विश्व का सबसे मंहगा इवेंट है, जिसका मैनेजमैन्ट करना पड़ता है। फुटबॉल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल माना जाता है, लेकिन फॉर्मूला-1 का लुत्फ उठाने वालों की संख्या किसी भी मायने में फुटबॉल के दीवानों से कम नहीं कही जा सकती। दुनियाभर में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला खेल भी यही है। दुनियाभर में इस खेल का लुत्फ उठाने वालों की संख्या 60 करोड़ से ऊपर है। राजशाही अन्दाज के लिए इसकी तुलना गोल्फ से की जा सकती है, लेकिन जबरदस्त रोमांच के कारण इसने गोल्फ को एक किनारे कर दिया है। कार-रेसिंग के कितने ही सारे गेम आजकल बच्चे, टी.वी., कम्प्यूटर, आई पैड, पीएसपीओ पर खेलते आपको नज़र आ जायेंगे। आखिरकार रेस ही जीवन का सबसे महत्वपूर्णं एवं अहम हिस्सा है। जो जिन्दगी की रेस में आगे निकल गया वह सिकन्दर, बाकी जो पीछे छूट गया वो बन्दर।
       विश्व की सबसे पहली फॉर्मूला-1 रेस ब्रिटेन के सिल्वरस्टोन ट्रैक पर 1950 में हुई थी। इससे पहले इस रेस को ग्राण्ड प्रिक्स मोटर रेसिंग कहा जाता था। इसके बाद फेडरेशन ऑफ इण्टरनेशनल डि ऑटोमोबाइल्स (एफआईए) ने कार रेस के लिए कुछ नियम बनाये, इन नियमों (जिसे फॉर्मूला कहा गया और इसका नाम फॉर्मूला-1 रखा गया) विश्व चैम्पियनशिप की शुरूआत वर्ष 1958 से ही हुई है।
          फॉर्मूला-1 रेस के लिए एक खास प्रकार का ट्रैक होता है, जिसकी लम्बाई 5 से 6 किलोमीटर के बीच एवं गोलाकार होती है। रेसिंग कार जब इस ट्रैक का एक चक्कर पूरा करती है, तो इसे एक लैप कहा जाता है। इण्डियन ग्राण्ड प्रिक्स की एक लैप 5.14 किलामीटर की है, जिसे एक मिनट 27 सेकण्ड में पूरा किया जाना है। इस प्रकार देखा जाये तो एक रेस कुल 55 से 60 लैप की होती है। कार की रफ्तार 320 किमी प्रति घण्टा तक भी पहुंचती है तथा किसी-किसी मोड़ पर यह न्यूनतम 90 किमी प्रति घण्टा भी रह जाती है। औसतन एक रेस को पूरा करने में तकरीबन एक घण्टा पन्द्रह मिनट का समय लगता है।
          अमूमन ग्राण्ड प्रिक्स रेस का कार्यक्रम तीन दिनों का होता है। ये दिन शुक्रवार, शनिवार और रविवार ही रखे जाते हैं। भारत को छोड़ अन्य देशों में शनिवार एवं रविवार को लोग एन्जॉय करते हैं, उनकी छुट्टी रहती है और इस रेस को देखने के लिए कोई बन्क नहीं मारना पड़ता, कोई छुट्टी नहीं लेनी पड़ती, जबकि इण्डिया में केवल रविवार की छुट्टी रहती है, वह भी सरकारी दफ्तरों में, जबकि प्राइवेट सेक्टर में तो रविवार को भी काम लिया जाता है। भारत में होने वाली इस रेस को जो भी दर्शक देखेगा, वह या तो छुट्टी लेगा अथवा बन्क मारेगा या फिर ड्यूटी दिखाकर दर्शक दीर्घा में मौजूद रहेगा। शुक्रवार को दो अभ्यास रेस का आयोजन होता है। शनिवार सुबह भी अभ्यास रेस होती है, जिसके बाद क्वालीफाइंग रेस होती है। इस क्वालीफाइ्रग रेस से ही रविवार को होने वाली मुख्य रेस के लिए टीमों की पोजीशन तय होती है। दो अभ्यास रेस में से जो ड्राइवर सबसे तेज समय निकालता है, वह मुख्य रेस की शुरूआत सबसे आगे वाले स्थान से करता है।
          इस खेल को संचालित करने वाली मुख्य संस्था का नाम एफआईए है तथा फॉर्मूला-1 संस्था इसे जमीनी स्तर पर संचालित करती है। इस इवेन्ट की कर्ताधर्ता यही संस्था है। यह एक प्राइवेट बिजनेस संस्था है, जैसे क्रिकेट के खेल के लिए हमारी बीसीसीआई संस्था है। फॉर्मूला-1 संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बर्नी एस्सेलेस्टॉन हैं। फॉर्मूला-1 के एक सत्र में 19 से 20 रेस होती हैं। इसमें 12 टीमें हिस्सा लेती हैं, प्रत्येक टीम से दो ड्राइवर और उसकी टीम को प्रदर्शन के मुताबिक अंक मिलते हैं। सत्र के अन्त में सर्वाधिक अंक हासिल करने वाला ड्राइवर और उसकी टीम, चैम्पियन घोषित किये जाते हैं।
          अब तक के दो या उससे ज्यादा बार चैम्पियन रहे ड्राइवर निम्न प्रकार से हैं।
एलबर्टो अस्कारी(दो बार)                       1952 एवं 1953
जिम क्लार्क(दो बार)                             1963 एवं 1965
ग्राह्म हिल(दो बार)                           1962 एवं 1968
एमरसन फिटीपाल्डी(दो बार)               1972 एवं 1974
मिका हक्किनेन(दो बार)                    1998 एवं 1999
फर्नांडो ओलोंसो(दो बार)                     2005 एवं 2006
जैक ब्राब्हम(तीन बार)                       1959,1960 एवं 1966
जैकी स्टीवर्ट(तीन बार)                      1969, 1971 एवं 1973
नेलसन पिक्वेट(तीन बार)                  1981, 1983 एवं 1087
निकी लाइडा(तीन बार)                       1975, 1977 एवं 1984
आर्यटन सेना(तीन बार)                     1988, 1990 एवे 1991
एलियन प्रोस्ट(चार बार)                    1985, 1986, 1989 एवं 1993
जुआन मैनुअल फैंजियो(पांच बार)       1951,1954,1955,1956 एवं 1957
माइकल शूमाकर(सात बार)                1994,1995,2000,2001,2002, 2003 एवं 2004
          सत्र 2010 से पूर्व रेस में शीर्ष छह ड्राइवरों को अंक दिये जाते थे, लेकिन बाद में नियमों में बदलाव करके अंक पाने वाले ड्राइवरों और टीम का दायरा बढ़ाकर दस कर दिया गया है। 24 ड्राइवरों में से जो सबसे तेज समय निकालते हुए समस्त लैप पूरे करता है वह विजेता होता है। इसके पश्चात समय के आधार पर मेरिट बनती है। मेरिट के आधार पर ही ड्राइवरों और टीमों को अंक मिलते हैं। प्रत्येक ग्राण्ड प्रिक्स में मिलने वाले इन्हीं अंकों के आधार पर सत्र के अन्त में फॉर्मूला-1 चैम्पियन ( ड्राइवर और टीम ) की घोषणा होती है। सत्र 2010 की 16 रेस हो चुकी हैं। 17वीं इण्डियन ग्राण्ड प्रिक्स 30 अक्टूबर 2011 को भारत के ग्रेटर नोएडा स्थित बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट पर होगी। 18वीं अबू धाबी और अंतिम 19वीं ब्राजील ग्राण्ड प्रिक्स, साओ पाउलो में 27 नवम्बर 2011 को सम्पन्न होगी, जिसके बाद इस सत्र के चैम्पियन की घोषणा की जायेगी।
कुल मिलाकर इलीट क्लास का यह मेगा इवेन्ट, इलीट दर्शकों के लिए ही आयोजित होता है, जिसे मेरी राय में मेगा इवेन्ट कहना, एक तरह की नाइंसाफी है, दरअसल यह तो उससे भी 1024 गुणा बड़ा, एक गीगा इवेन्ट है। इस इवेन्ट की भव्यवता का अंदाजा इसी एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि सर्किट की सुरक्षा के लिए सात स्तर की सुरक्षा व्यवस्था की गई है, जिसके दायरे में दर्शकों से लेकर रेस अधिकारी, कार्पोरेट, टीम और वी.आई.पी. रहेंगे। आपत्तिजनक चीजों का प्रवेश रोकने के लिए कॉम्पलेक्स की सड़कों के नीचे सेंसर लगाये गये हैं। पूरे सर्किट की अन्दरूनी सुरक्षा के लिए इण्टरनेशनल प्राइवेट सुरक्षा ऐजेन्सी (कैम्स) की सेवायें ली गई हैं, जिसके पास टिकटों की जांच से लेकर फॉर्मूला-1 की टीमों और ट्रैक की सुरक्षा का भी जिम्मा है। अलावा इसके, उत्तर प्रदेश राज्य के अधीन आने वाले ग्रेटर नोएडा क्षेत्र स्थित इस आयोजन स्थल के सुरक्षा प्लान, उपकरण की उपलब्धता और ड्यूटी चार्ट पर आखिरी कवायद के लिए प्रदेश पुलिस के तीन एडीशनल डायरेक्टर जनरल क्रमशः श्री सुबेश कुमार सिंह, रजनीकान्त मिश्र और के0एल0मीणा, यहॉं का जायजा ले चुके हैं। प्रदेश पुलिस ने फॉर्मूला-1 रेस की सुरक्षा व्यवस्था को बाहरी और आंतरिक दो हिस्सों में बांट दिया है। बाहरी सर्किल की सुरक्षा, नोएडा पुलिस की होगी, जिसके प्रभारी, एस.एस.पी. नेाएडा ज्योति नारायण हैं एवं आन्तरिक सर्किल की सुरक्षा व्यवस्था बाहर से आई फोर्स और पी.ए.सी. के हांथ में होगी,जिसके प्रभारी 32वीं बटालियन पीएसी के एस.एस.पी. नवीन अरोड़ा हैं।
सत्र 2010 की ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता निम्न प्रकार से हैं।
ग्राण्ड प्रिक्स                     डेट                 विनर/टाइम

1. आस्ट्रेलिया                           27 मार्च                       सेबेस्टियन विटेल
2. मलेशिया                            10 अप्रैल                       सेबेस्टियन विटेल
3. चाइना                                 17 अप्रैल                      लुईस हेमिल्टन
4. टर्की                                   08 मई                          सेबेस्टियन विटेल
5. स्पेन                                   22 मई                         सेबेस्टियन विटेल
6. मोनेको                               29 मई                          सेबेस्टियन विटेल
7. कनाडा                                12 जून                         जेंसन बटन
8. यूरोप                                  26 जून                         सेबेस्टियन विटेल
9. ग्रेट ब्रिटेन                           10 जुलाई                     फर्नाडो ओलोंसो
10.  जर्मनी                               24 जुलाई                      लुईस हेमिल्टन
11.  हंगरी                                 31 जुलाई                      जेंसन  बटन
12.  बेल्जियम                           28 अगस्त                     सेबेस्टियन विटेल
13.  इटली                                11 सितम्बर                   सेबेस्टियन विटेल
14.  सिंगापुर                            25 सितम्बर                   सेबेस्टियन विटेल
15.  जापान                              09 अक्टूबर                   जेंसन बटन
16.  साउथ कोरिया                  16 अक्टूबर                     सेबेस्टियन विटेल
17.  इण्डिया                            30 अक्टूबर                     सेबेस्टियन विटेल 
18.  अबूधाबी                          13 नवम्बर                                1300
19.  ब्राजील                            27 नवम्बर                                 1600
          इस प्रकार 16 ग्राण्ड प्रिक्स में से दस के विजेता सेबेस्टियन विटेल रहे हैं। तीन ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता जेसन बटन, दो ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता लुईस हेमिल्टन और एक ग्राण्ड प्रिक्स के विजेता फर्नाडो ओलोन्सो रहे हैं। तीन ग्राण्ड प्रिक्स अभी होनी हैं। 27 नवम्बर 2011 को 19वीं रेस के बाद इस सत्र का फाइनल विजेता घोषित किया जायेगा। सतीश प्रधान 

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भारत के इण्डिया गेट पर स्पीड स्ट्रीट शो

ख्वाब माल्या का, पूरा किया जे0पी0 ने

जेट उड़ाने से कठिन है, फॉर्मूला-1 कार ड्राइविंग


Thursday, October 20, 2011

जेट उड़ाने से कठिन है, फॉर्मूला-1 कार ड्राइविंग


          इण्डिया के ग्रेटर नोएडा स्थित, बुद्ध इन्टरनेशनल सर्किट पर 30 अक्टूबर 2011 को पहली फॉर्मूला-1 कार रेस इंडियन ग्राण्ड प्रिक्स के आयोजन से पहले जे0के0एशिया सीरीज और दिल्ली एमआरएफ चैम्पियनशिप का आयोजन 28-30 अक्टूबर के दौरान इसी ट्रैक पर होगा। पहला अभ्यास सत्र 28 अक्टूबर को सुबह 10 बजे और दूसरा दोपहर दो बजे से शुरू होना है, तीसरा और आखिरी अभ्यास सत्र 29 अक्टूबर को 11 बजे यानी क्वालीफाइंग रेस से
तीन घण्टा पूर्व होगा।                                        

  अभ्यास सत्रों के मध्य दर्शकों के मनोरंजन के लिए दिल्ली चैम्पियनशिप और जे0के0एशिया सीरीज की दो रेस सेटरडे और सण्डे को होनी हैं। जे0पी0 स्पोर्ट्स इंटरनेशनल लि0 के प्रबन्ध निदेशक एवं सीईओ श्री समीर गौण ने बताया कि वह भारत में पहली एफ-1 ग्राण्ड प्रिक्स के आयोजन से उतने ही रोमांचित हैं, जितना कि कोई आविष्कारक अपने आविष्कार से होता है, इसीलिए वह इसे वर्ष की सबसे यादगार रेस बनाना चाहते हैं। ध्यान रहे कि इस सत्र(2010) में 19 रेस होनी हैं। 15-16 अक्टूबर 2011 को योनगाम(Yeongam)में आयोजित कोरियन ग्राण्ड प्रिक्स रेस 16वीं थी। 17वीं इण्डियन ग्राण्ड प्रिक्स, बुद्ध इण्टरनेशनल सर्किट, ग्रेटर नोएडा में 60 लैप की फाइनल फॉर्मूला-1 रेस 30 अक्टूबर, सण्डे को दोपहर तीन बजे होगी। 18वीं अबुधाबी ग्राण्ड प्रिक्स, यास मरीना (Yas Marina) में 12 एवं 13 नवम्बर 2011 को तथा इस सत्र की अंतिम 19वीं ब्राजीलियन ग्राण्ड प्रिक्स 26-27 नवम्बर 2011 को इंटरलागोस (Interlagos) में समपन्न होनी है। 
  अब आइये इस रेस से जुड़ी कुछ खास जानकारी भी शेयर करते हैं। रेस की कार, पंख, इंजन, गीयर, स्टीयरिंग, टायर और ब्रेक के बारे में आपको जानकारी से लैस कराते हैं, जिससे कि आपका रोमांच भी 320 किलोमीटर प्रति घण्टा की स्पीड पकड़ सके।
कारः फॉर्मूला-1 कार, कार्बन-फाइबर और बेहद ही हल्के कलपुर्जो से बनी होती है। इसका न्यूनतम वजन भी तय किया गया है। नियम के अनुसार ड्राइवर सहित इसका वजन 640 किलोग्राम से कम नहीं होना चाहिए, लेकिन ज्यादातर कारों का वजन इससे कम ही होता है, वह भी लगभग 440 किलोग्राम। ऐसी स्थिति में टीमें कार का वजन बढ़ाने के लिए पूरक भार (ऐसा भार जो गाड़ी को स्थिर बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाये) का प्रयोग करती हैं। नियम के ही अनुसार एफ-1 कार की चौड़ाई 180 से0मी0 और उंचाई 95 से0मी0 से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि इसकी लम्बाई के सन्दर्भ में नियम बिल्कुल मौन हैं।
पंख (विंग्स): फॉर्मूला-1 कार के सस्पेंशन, कार की चेसिस को उसके चकों (पहिए) से जोड़ने वाले आधार से लेकर उसके ड्राइवर के हेलमेट तक, प्रत्येक कोंण से एयरोडायनमिक्स का ध्यान रखा जाता है, लेकिन ध्यान रहे इन एयरोडायनमिक्स में सबसे खास ख्याल कार के पंख का ही रखा जाता है, जो कि 320 किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार तक कार का संतुलन बनाये रखने में अपनी महत्वपूंर्ण भूमिका अदा करते हैं। इन पंखों को बनाने से पूर्व बाज़ पक्षी के पंख एवं उसके वर्किंग सिस्टम पर वर्षों रिसर्च की जा चुकी है। पंख,कार को जमीन पर उसकी पकड़ बनाने में मददगार साबित होते हैं,ठीक उसी तरह जैसे बाज़ पक्षी जब अपने शिकार पर झपट्टा मारता है तो उसके पंख मददगार होते हैं। फॉर्मूला वन कार में भी दो ही पंख होते हैं,एक आगे और एक पीछे।
इंजन: फॉर्मूला-1, कार में 2.4 लीटर, वी-8 इंजन का इस्तेमाल होता है जो 18000 राउण्ड प्रति मिनट (आर.पी.एम.) की स्पीड देता है। इससे कार का इंजन औसतन 320 किलोवॉट की उर्जा उत्सर्जित करता है, और इस प्रक्रिया में तापमान तकरीबन 1000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इंजन, ईधन को 20 प्रतिशत अधिक क्षमता से ऊर्जा में तब्दील करता है। फॉर्मूला वन कार का इंजन, ड्राइवर सीट और पिछले एक्सेल के बीच में स्थित होता है। तापमान और जबरदस्त गुरूत्वाकर्षक दबाव के कारण एक रेस के दौरान फॉर्मूला-1 कार ड्राइवर के शरीर से तकरीबन दो से चार लीटर पसीना बह जाता है।
गीयरः फॉर्मूला-1 कार में सात फॉरवर्ड गीयर और एक रिवर्स गीयर होता है। फॉर्मूला वन कार का गीयर बॉक्स कार्बन-टाइटेनियम का बना होता है और पूरी तौर पर ऑटोमैटिक होता है।
स्टीयरिंगः फॉर्मूला-1 कार का स्टीयरिंग सामान्य नहीं होता है, उसमें कई तरह के फंक्शनल स्विच बटन होते हैं। रेस के दौरान ड्राइवर स्टीयरिंग पर लगे इन स्विचों की मदद से क्लच ऑपरेट करते हैं, गीयर बदलते हैं, पैट्रोल और हवा के दबाव पर नज़र रखते हैं। स्टीयरिंग पर एक स्क्रीन भी लगी होती है, जिसमें ड्राइवर लैप टाइम, स्पीड एवं गीयर देख सकते हैं। फाइबर से ही बने इस स्टीयरिंग का वजन 1.3 किलोग्राम तक होता है।
टायरः फॉर्मूला-1 कार के टायर की चौड़ाई 245 मिलीमीटर से अधिक नहीं होती है। यह एक खास रबर के बने होते हैं। जहॉं एक सामान्य कार के टायर की उम्र 80,000 किलोमीटर होनी चाहिए, वहीं इन फॉर्मूला-1 कार के टायर की उम्र महज 300 किलोमीटर ही होती है।
ब्रेकः फॉर्मूला-1 कार के ब्रेक पैड 1000 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान सहने में सक्षम होते हैं। सर्किट पर ब्रेक के अलावा इंजन की गति कम करके भी रफ्तार पर नियन्त्रण करते हैं। फॉर्मूला-1 कार का ब्रेकिंग सिस्टम इतना जबरदस्त होता है कि महज 15 मीटर की दूरी के अन्दर ही 100 किलोमीटर प्रति घन्टे की स्पीड को जीरो पर लाया जा सकता है।
  रेस के दौरान सर्किट पर 300-320 किलोमीटर प्रति घन्टा की स्पीड से दौड़ती फॉर्मूला-1 कार में ड्राइवर को उच्च तापमान और जबरदस्त ग्रेविटेशनल फोर्स का सामना करना पड़ता है। इस स्पीड पर ग्रेविटेशनल फोर्स, सामान्य का तीन गुणा हो जाता है। सर्किट पर कुछ मोड़ ऐसे भी होते हैं, जहॉं से टर्न लेने पर यह फोर्स पांच गुणा भी हो जाता है। ड्राइवर जहॉं बैठता है, उसे कॉकपिट ही समझिये, जहॉं का तापमान किसी भट्टी से कम नहीं होता है। ऐसे हालातों में ड्राइवर की जान को पल-पल का खतरा बना रहता है। आर्यटन सेना जैसे चैम्पियन-ड्राइवर इस खेल में अपनी जान से हांथ धो बैठे हैं। जरा सी चूक हुई नहीं कि इस स्पीड मशीन को आग के गोले में तब्दील होने में एक सेकण्ड का भी समय नहीं लगता है। इसी वजह से एफआईए ने ड्राइवर की सुरक्षा के लिए खास-आवश्यक नियम बनाये हैं। इसमें ड्राइवर का सेफ्टी ड्रेस कोड सबसे अहम है।
जूतेः फॉर्मूला-1 ड्राइवर के जूते खास तरह के बनाये जाते हैं। इन्हें भी आग और तगड़े झटके झेलने के हिसाब से बनाया जाता है, लेकिन एक्सीलेटर और ब्रेक पर कन्ट्रोल के लिए इनके सोल को बेहद पतला रखा जाता है, ये कार्बन-फाइबर के बने होते हैं और दस हजार डॉलर से भी ज्यादा कीमत के होते हैं। जिस देश में डालर चलता है, वहॉं के हिसाब से मंहगे नहीं हैं लेकिन यदि इसे नेपाल देश की करेन्सी में बदलेंगे तो निश्चित ही बहुत ही मंहगे दिखाई पड़ेंगे।
ग्लब्सः ड्राइवर के दस्ताने भी एंटी फॉयर मैटीरियल के बने होते हैं। इन्हें कार्बन फाइबर से बनाया जाता है। इन्हें बनाते वक्त इनकी मोटाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। इनकी मोटाई 0.55 मिलीमीटर से ज्यादा नहीं होती है, जिससे ग्लब्स पहने के बाद भी ड्राइवर की अंगुलियां सामान्य तरीके से काम करती रहती हैं। ये भी तापमान रोधी, पसीना सोखनेवाले और बेहद आरामदायक होते हैं, जिससे पूरी रेस के दौरान लगातार स्टीयरिंग पकड़े रहने में ड्राइवर को कोई दिक्कत न महसूस हो।
शोल्ड स्ट्रिपः सूट में कंधे पर चैड़ी पट्टी लगी होती है, यह काफी मजबूत होती है जो दुघर्टना की स्थिति में ड्राइवर को जल्द से जल्द कार से बाहर खींचने के काम आती है। आग अथवा कार क्रैश होने की स्थिति में बचावकर्मी इसी पट्टी के सहारे ड्राइवर को फौरन खींचकर बाहर निकालते हैं।
गर्दन का बचावः सिर और गर्दन को एक सीध में रखने के लिए एक हार्ड-ब्रेक फ्रेम सिर से गर्दन के पीछे लगाया जाता है,जिससे दुघर्टना की स्थिति में गर्दन के मुड़ने का खतरा न्यूनतम हो जाता है।
बॉडी सूटः ड्राइवर को एक खास प्रकार का बॉडी सूट पहनना होता है, जिसका वजन 1.9 किलोग्राम होता है। यह अग्निरोधी होता है। यह 1500 डिग्री सेल्सियस के तापमान को आराम से सह सकता है। इसमें सिलाई नहीं होती है। यह सूट उच्च तकनीक से निर्मित फॉयर-प्रूफ आर्मीड प्लास्टिक से बनाया जाता है एवं इसका फैब्रिक कुछ इस तरह से तैयार किया जाता है कि यह ड्राइवर के शरीर के तापमान को सहनीय बनाता है। इस फैब्रिक में कई रोम-छिद्र होते हैं, जो तापमान को बढ़ने से रोकते हैं। बावजूद इसके, एक रेस के दौरान ड्राइवर के शरीर से दो से चार लीटर तक बहने वाले पसीने को यह आसानी से सोख लेता है। सूट पर लगा टीम का लोगो अलग से सिला या चिपकाया हुआ नही होता है, बल्कि यह सूट में ही उभारा जाता है।
मास्कः ड्राइवर हेलमेट के नीचे मास्क पहनते हैं। यह उसके पूरे सिर, चेहरे और गर्दन को कवर करते हुए कंधे तक पहुंचते हैं। चेहरे पर सिर्फ आख और नाक का हिस्सा ही खुला रहता है। ये मास्क भी पॉली- कार्बोनिक फाइबर के बने होते हैं। ड्राइवर के सिर और चेहरे से बहने वाले पसीने को यह सोख लेते हैं।
हेलमेटः ड्राइवर की सुरक्षा के लिहाज से हेलमेट सबसे खास होता है, क्योंकि ड्राइवर खुले कॉकपिट में बैठे होते हैं। हेलमेट की बनावट में एयरोडायनेमिक्स के सिद्धान्त को ध्यान में रखा जाता है। इसकी बाहरी परत, दो अन्तः परतों से बनी होती हैं। ऐसी ही हार्ड प्लास्टिक बुलेट प्रूफ जैकेट में भी इस्तेमाल की जाती है।

जेट विमान और एफ वन कार चलाने में अन्तर

1. जेट विमान हवा में उड़ाया जाता है, जबकि फॉर्मूला-1 कार जमीन पर दौड़ानी पड़ती है।
2. हवा में उड़ते जेट को लोग हवा में देखने के बजाय जमीन से देखते हैं,जबकि फॉर्मूला-1 कार जो कि जमीन पर ही दौड़ती है, और दर्शक जमीन स्थित दीर्घा से ही देखते हैं।
3. जेट विमान उड़ाने में पायलट को पसीना नहीं आता है, जबकि फॉर्मूला-1 कार ड्राइवर को एक रेस में दो से चार लीटर पसीना बहाना ही पड़ता है।
4. जेट में एक सेकण्ड को आख बन्द भी हो जाये तो भी कोई आफत नहीं आने वाली लेकिन फॉर्मूला-1 कार ड्राइवर की रेस के दौरान एक बटा दस सेकण्ड के लिए भी आंख बन्द हो जाये तो वह खुदा को प्यारा हो सकता है।
5. जेट उड़ाने में न्यूनतम रिस्क है, जबकि फॉर्मूला-1 कार रेस ड्राइवर को रिस्क ही रिस्क है।
6. जेट उड़ाना आसान है, जबकि फॉर्मूला-1 कार दौड़ाना उतना ही कठिन है, क्योंकि इसमें उतार-चढाव और कई मोड़ वाले सर्किट पर फॉर्मूला-1 कार को नियंत्रित करना बहुत ही कठिन कार्य है।
7. जेट, जब करतब दिखाते हैं तब रोमांचकारी लगते हैं, लेकिन फॉर्मूला-1 कार रेस का आयोजन ही रोमांच से भर देता है, और इस रेस को आंखों से देखना ही शरीर में सिरहन पैदा कर देता है।


सतीश प्रधान