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Tuesday, November 22, 2011

क्यों चुप हैं क्रिकेट के भगवान


काम्बली सच्चा, अजहर झूंठा
लेकिन मजबूत, अजहर का खूंटा


          1996 के विश्वकप सेमी फाइनल का वह मुकाबला जो कोलकाता के ईडन गार्डेन स्टेडियम पर श्रीलंका और भारत के बीच खेला गया,किसी ड्रामे से कम नहीं था, जिस पर वहां मौजूद क्रिकेट प्रेमियों ने कोल्ड ड्रिंक की बोतलें फेंकी, जूते-चप्पलों की बौछार करते हुए जबरदस्त हंगामा काटा एवं आग लगाकर उसका जबरदस्त विरोध प्रदर्षित किया, जिसके कारण मैच को बीच में ही रोकना पड़ा। इसके बाद जब मैच शरू किया गया तो पुनः जोरदार हंगामा होने लगा और अन्ततः जब विरोध प्रदर्शन ने थमने का नाम नहीं लिया तो 35 ओवर की समाप्ति पर मैच समाप्ति की घोषणा करते हुए,स्थापित नियमों के आधार पर परीक्षणोपरान्त श्रीलंका की टीम को विजयी घोषित कर दिया गया।
          उस समय दूरदर्शन पर मैच देख रहे करोड़ों लोगों के जेहन में दबकर रह गये सारे प्रश्न अब फिर से जीवन्त हो उठे हैं। उस समय के सीन को उन्होंने अब जब अपनी आंखों के सामने से गुजरते हुए देखा कि कैसे विनोद काम्बली रोते हुए क्रिकेट के मैदान से भागते हुए पैवेलियन आये थे,और अब जब उन्होंने स्टार न्यूज चैनल पर इसका रहस्योदघाटन किया है तो किस प्रकार से रो पड़े हैं,तो क्रिकेट प्रेमियों का खून खौल रहा है।
             मैच फिक्सिंग के इस करिश्माई करतब,जो पन्द्रह वर्ष पहले घटित हुआ,को दबाने की कोशिश में जो भी लोग लगे हैं,वे सब किसी न किसी प्रकार से उस मैच फिक्सिंग को आर्मी की कनात में दबाने की भरपूर कोशिश ही नहीं कर रहे हैं अपितू आगे भी यह इसी स्वरूप में जारी रहे,इसकी भी पटकथा लिख रहे हैंयदि विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन में दम नहीं है तो अजीत वाडेकर,कपिल देव,राजीव शुक्ला,शरद पवार, मदन लाल,   ....... आदि ये सब बतायें कि विश्वकप सेमी फाइनल में आखिरकार वे क्या कारण थे कि स्टेडियम में मौजूद सारे क्रिकेट प्रेमियों ने अपना आपा ही नहीं खोया,अपितू जूते-चप्पलों और कोल्ड ड्रिंक की बोतलों की बौछार की? दर्शकों ने पागलपन की हद तक हंगामा क्यों काटा? क्यों नहीं वे दोबारा मैच देखने के लिए शांत हुए? हंगामें में किसी भी प्रकार की कमी ना आने की संभानाओं के कारण ही मैच को बीच में समाप्त कर रिजल्ट की घोषणा करनी पड़ी थी।

          अलावा इसके टी0वी0 पर मैच देख रहे करोड़ों लोग गुस्से में क्यों आ गये थे? कुछ ने तो अपने टी0वी0 ही फोड़ डाले थे,यह कहते हुए कि साले फिक्स करके मैच खेलते हैं! क्या सारे क्रिकेट प्रेमी जो मैदान पर थे या टी0वी0 देख रहे थे,सिरफिरे और पागल थे? जैसा कि विनोद काम्बली को अजहरूद्दीन घोषित करने की कोशिश कर रहे हैं। केवलमात्र अजहरूद्दीन और उनका साथ देने वाले ही स्वस्थ्य, दुरूस्त एवं मेडीकली फिट हैं,बाकी का पूरा हिन्दुस्तान पागल है! इस देश का हर वो इन्सान पागल है,चरित्रहीन है,सिरफिरा है, जो किसी सत्य को उदघाटित करता है अथवा करना चाहता है। एकदम दुरूस्त हालात में अजहरूद्दीन जैसे लोग ही रहते हैं जो इस देश की इज्जत को तार-तार कर रहे हैं एवं अच्छे-खासे इन्सान को पागल करार दिये जाने की साजिश रच रहे हैं। दिग्विजय सिंह जैसे लोगों के बयान उनके पक्ष में आने का मतलब यह नहीं है कि वे पाक-साफ हैं। इस बयान के बाद तो अजहरूद्दीन का कथन और भी संदेहों से घिर गया है,क्योंकि दिग्विजय सिंह कभी भी, कहीं भी, किसी भी साफ सुथरे इन्सान का बचाव करते ही नहीं। उनके पास तो वह पंजा है,कि जिसकी पीठ पर लगा देंगे वहीं दाग लग जायेगा।
          कुछ का तो कहना है कि सारा विश्व जानता है कि 1996 को तो कीजिए दरकिनार बल्कि 1990 के बाद से होने वाले ज्यादातर मैचों में मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग एक अनवरत चली आ रही प्रक्रिया है,जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता। लेकिन क्रिकेट के जानकार कुछ लोगों का कहना है कि ऐसे समय में विनोद काम्बली से ऐसे रहस्योदघाटन की वजह भी एक साजिश है जो अजहरूद्दीन को फिर से कटघरे में खड़ा कर रही है,जब वे इस आरोप से बरी होने वाले हैं। कुरेदने पर पता चला कि अजहरूद्दीन,दरअसल अदालत से पाक-साफ बरी होने वाले हैं। मतलब यहॉं भी फिक्सिंग की संभावनाए प्रबल हैं,तभी तो कहा जा रहा है कि वे बेदाग बरी होने वाले हैं।
          काम्बली के रहस्यदोघाटन के जो भी कारण हों,वे एक तरफ हैं,लेकिन देश की अस्मिता से जुड़ा मैच फिक्सिंग का यह प्रश्न अंगद के पैर की तरह अपनी जगह पर जड़ता से खड़ा है,और देशद्रोहियों से जबाव मांग रहा है। इसके विरोध में इस सफाई के कोई मायने नहीं कि- विनोद काम्बली ने यह बात 1996 में ही क्यों नहीं उठाई! सभी को पता है कि जिन्न सालों-साल बोतल में बन्द रहता है,कोई फर्क नहीं पड़ता,लेकिन जब भी बोतल से बाहर आता है तो बवंडर मचना लाजिमी है,और तब सबकुछ तहस-नहस हो जाता है।
         1996 की मैच फिक्सिंग का वह जिन्न अब बोतल से बाहर आ चुका है। अब इस बात के कोई मायने नहीं कि 15 सालों बाद उस बोतल का ढ़क्कन खोलकर,मैच फिक्सिंग के जिन्न को विनोद काम्बली ने बाहर क्यों निकाला! अब जबकि मैच फिक्सिंग का जिन्न बाहर आ ही गया है तो यह साफ हो ही जाना चाहिए कि क्रिकेट के ये जादूगर, क्रिकेट प्रेमियों को कितने सालों से बेवकूफ बना रहे हैं। यह क्रिकेट खेल के असतित्व से भी जुड़ा प्रश्न है और इसी के साथ करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की आस्था से भी जुड़ा है,जिसकी बिना पर सचिन तेंदुलकर को भगवान घोषित कराये जाने की जबरदस्त हूक उठी है।

          देश क्या पूरे क्रिकेट जगत में इतना भयंकर तूफान आया हुआ है लेकिन क्रिकेट का यह भगवान मुंह में ताला लगाये खड़ा है। इस पृथ्वी पर जब भी अराजकता फैलती है, अत्याचार चरम पर पहुचता है,लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगते हैं तो भगवान ही अवतार लेते हैं और शत्रुओं का नाश करके भोली-भाली जनता को शत्रुओं से मुक्ति दिलाते हैं,लेकिन भारत की इस धरती पर जिन्दा खड़ा क्रिकेट का यह भगवान जो 1996 के उस विश्व कप सेमी फाइनल का जीता जागता उदाहरण भी है,जिसने सारा नजा़रा अपनी आंखों के सामने होते हुए देखा ही नहीं है अपितु उसका एक हिस्सा भी रहा है,मुंह बन्द किये क्यों खड़ा है? देश को पहली बार पता लगा है कि भारत की धरती पर क्रिकेट के क्षेत्र में जन्मा क्रिकेट का यह भगवान किसी सही बात को स्वीकार करने या अस्वीकार करने की स्थिति में गूंगा हो जाता है,एवं बोलने की स्थिति में नहीं रहता।
          इस भगवान को एक योजना के तहत,भारत सरकार से भारत रत्न दिलवाने की मुहिम हो अथवा मैच फिक्सिंग का इतना बड़ा और गम्भीर संकट, जिसमें भारत की प्रतिष्ठा को जबरदस्त धक्का लग रहा है,एवं भारत का नाम भी बदनाम हो रहा है,इसमें से किसी भी विषय पर क्रिकेट के भगवान घोषित किये गये इस शख्स ने अपनी जुबान नहीं खोली है। क्या कारण है कि सचिन को सभी क्रिकेट प्रेमी भगवान मानते हैं और कहते हैं लेकिन उन्होंने कभी भी इसका खण्डन नहीं किया,इसका मतलब है कि वे भी मानते हैं कि वे भगवान हैं। इसीलिए उन्हें भारत रत्न देने की मांग पुरजोर पकड़ती जा रही है। 
          जबकि सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन के लिए स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने भारत रत्न देने की मांग की तो महानायक ने यह कहकर कि-मैं इतने बड़े सम्मान का अधिकारी नहीं  हूँ, अपने को इस योग्यता से कमतर आंका। इसी से महानता का पता चलता है। यही वजह है कि देश की करोड़ों करोड़ जनता उन्हें सदी का महानायक पुकार कर उनसे ज्यादा खुद को प्रफुल्लित करती है,जबकि क्रिकेट के ये भगवान तो वर्तमान में संकट और सवालों के घेरे में खड़े हैं।
         दो दर्जन जुबानों पर एक सा सवाल है कि विनोद काम्बली 15 सालों से चुप क्यों रहे,तब क्यों नहीं बोले? 15 सालों से करोड़ों क्रिकेट प्रेमी जनता चुप है अथवा काम्बली चुप रहे तो गुनाहगार हैं और आप दो दर्जन भर लोग, जिसमें अजहरूद्दीन,अजय जडेजा,अजय शर्मा,मनोज प्रभाकर मैच से प्रतिबन्धित किये गये,तब भी आप गुनाहगार नहीं हैं और हेकडी दिखाकर काम्बली का ही मुंह बन्द करने की कोशिश कर रहे हैं। खुले मैदान सत्य का गला घोटने का इससे बड़ा उदाहरण और कहां देखा जा सकता है! ऐसे औचित्यहीन कुतर्कों से काम्बली को निरूत्साहित किया जा सकता है,लेकिन क्रिकेट के दुनियाभर में मौजूद क्रिकेट प्रेमियों का मुंह बन्द नहीं किया जा सकता। क्रिकेट प्रेमियों की आस्था के साथ इतना बड़ा विश्वासघात किसी भयंकर कुठाराघात से कम नहीं है। यह दर्शकों की पीठ में छुरा घुसाने वाला अपराध है।
          भारत सरकार,भारत के उच्चतम न्यायालय,देश के विभिन्न प्रदेशों में गठित राज्य एवं जिला स्तरीय क्रिकेट एसोसियेशन तथा क्रिकेट से अन्यत्र खेलों के खिलाड़ियों को भी इस मैच फिक्सिंग से पर्दा उठाने के लिए अपने-अपने स्तर से तीव्र प्रयास करने चाहिए,और यदि काम्बली के बयान में सच्चाई न निकले तो उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए वरना समस्त दोषियों को दण्डित करने के साथ-साथ उनसे आर्थिक जुर्माना वसूल कर काम्बली को दिया जाना चाहिए। वैसे मैच फिक्सिंग का यह मामला प्रथम दृष्टया ही भरपूर सम्भावनाओं से ओत-प्रोत है(जिसकी पूरी पृष्ठभूमि स्पष्ट और उज्जवल है)। पन्द्रह साल पूर्व की घटना कोई बहुत पुरानी नहीं है,सिवाय इस तथ्य के की पन्द्रह वर्ष पूर्व विनोद काम्बली, सचिन तेंदुलकर से ज्यादा जाना पहचाना नाम था। भारत में तो वयस्कता की उम्र ही 18 वर्ष है। 15 साल वाले को उसके किये गलत कार्यों की यदि सजा मिलती है तो बाल अधिनियम के तहत ही मिलती है। उस हिसाब से भी मैच फिक्सिंग की यह दुघर्टना तो अभी इलाज किये जाने के काबिल है।
          इसलिए मूल सवाल आज भी वहीं खड़ा है कि आखिरकार अजहरूद्दीन और अजय जडेजा को 4 साल बाद ही सही फिक्सिंग के कारण ही प्रतिबन्धित किया गया है। उनके खिलाफ आज भी अदालत में मामला विचाराधीन है। यदि मैच फिक्सिंग के आरोप गलत हैं तो उन्हें क्रिकेट से प्रतिबन्धित क्यों किया गया? ऐसी विषम परिस्थितियों में विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन को खारिज किया जाना और अजहरूद्दीन की बात पर यकीन किया जाना दुर्भाग्यपूर्णं होगा,जबकि सीबीआई के एक अधिकारी को दिये गये बयान में वे स्वयं कबूल कर चुके हैं कि उन्हें दस लाख रुपये दिये गये,और वह अकेले ही नहीं हैं बल्कि अजय जड़ेजा और नयन मोंगिया भी शामिल थे। इसके अलावा जो अन्य मैच फिक्स थे,उसका भी उन्होंने खुलासा किया था।
          वैसे भी यदि इससे किसी सच्चाई का पता चलता है तो वह सामने आनी ही चाहिए। यदि इस सच्चाई को सामने लाना गड़े मुर्दे उखाड़ने वाली बात है तो आज पच्चीस साल बाद इकबाल मिर्ची को भारत लाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। तब तो सभी अपराधियों को क्लीन चिट दे देनी चाहिए! क्यों भाई दिग्विजय सिंह जी, फिर इकबाल मिर्ची की वकालत क्यों नहीं करते?
          कपिल देव का कहना है कि काम्बली 15 वर्ष पूर्व बोलता। क्या कपिल देव विश्वकप जीतने की घटना को भूल गये हैं,क्या आज पच्चीस सालों के बाद वे इसका उल्लेख कहीं नहीं करते हैं? सम्भवतः वह आज भी उन यादों को ऐसे संजोए होंगे जैसे यह कल की ही बात हो। इतने वरिष्ठ खिलाड़ी से ऐसे वकतव्य की उम्मीद किसी भी क्रिकेट प्रेमी को कतई नहीं थी। जिस प्रकार उनके लिए 25 वर्ष पूर्व विश्वकप की जीत आज भी खुशी का अनुभव देती हैठीक उसी प्रकार विनोद काम्बली के लिए पन्द्रह वर्ष पूर्व की वह मनहूस घड़ी आज भी दुख की टीस देती है,जिसके कारण उसका कैरियर तबाह हो गया। पन्द्रह साल बाद मुंह खोलने का मतलब यह कतई नहीं है कि अपराध पुराना हो गया,इसलिए अब इसकी जांच का कोई मतलब नहीं एवं अपराधी को ना पकड़े जाने का लाइसेन्स मिल गया है।
          1996 में की गई मैच फिक्सिंग आज के दिन में वो हवन है,जिसमें यदि कोई जानबूझकर हवन सामग्री की जगह पानी डालने की कोशिश करेगा तो पानी पैट्रोल का काम करेगा तथा आग और भडकेगी। इस आग की शान्ति और हवन का आयोजन तभी सफल होगा जब इसमें हवन सामग्री डाली जायेगी,और हवन की सामग्री है,उस समय की भारतीय टीम के खिलाड़ी। इस हवन सामग्री रूपी टीम को भी बड़ी बारीकी से जांचा-परखा जाना होगा कि इसके कनटेन्ट सही और शुद्ध हैं कि नहीं। राजनीति की चाह में क्रिकेट में राजनीति करने वाले खिलाड़ियों और धन अर्जित करने की चाह में क्रिकेट एसोसियेशन के माध्यम से क्रिकेट में घुसे ज्यादातर राजनीतिज्ञों ने भारत के इस सबसे बड़े खेल को मृत्यु के मुहाने पर ला खड़ा किया है,जिसका स्पष्ट गवाह है वर्तमान में हो रहे मैचों के दौरान खाली पड़े क्रिकेट के स्टेडियम।
          अजहरूद्दीन,काम्बली को पागल,चरित्रहीन और ना जाने क्या-क्या नहीं बता रहे हैं,जो वास्तव में अजहरूद्दीन के दिमाग को सेन्टर से हट जाने (एसेन्ट्रिक होने) का ही संकेत देते हैं। जिस प्रकार अजहरूद्दीन की पूरी गैंग काम्बली से सुबूत पेश करने की बात कर रही है,वे बतायें,स्वंय उनके या उनकी मण्डली के पास क्या सुबूत हैं कि वो मैच फिक्स नहीं था? जबकि उस मैच फिक्सिंग की सारी संभावनायें आजतक मौजूद हैं। अजहरूद्दीन केवल मात्र टीम बैठक का हवाला देकर,मैच फिक्सिंग के सत्य पर पर्दा डालना चाह रहे हैं। टीम का कैप्टन उन्हें इसलिए नही बनाया गया था कि सर्वसम्मति का फैसला दिखाकर मैच फिक्स करें। उनका व्यंगात्मक लहजे में कहना कि जब पूरी टीम फैसला ले रही थी तो काम्बली सो रहे थे। क्या वे सिद्ध कर सकते हैं कि टीम ने पहले फील्डिंग करने का फैसला लिया था और मीटिंग में काम्बली सो रहे थे। है उनके पास कोई सुबूत? क्या वे कोई वीडियो क्लिपिंग दिखा सकते हैं जिसमें मीटिंग चल रही हो तथा लालू यादव एवं देवेगौणा की तरह काम्बली सो रहे थे।
          बहरहाल इस बेचैनी भरे माहैाल में उस टीम के अन्य खिलाडी़ अपनी जुबान नहीं खोल रहे हैं,और उनमें से मात्र सचिन को छोड़कर सारे के सारे क्रिकेट से अलविदा हो चुके हैं, इनमें मनेाज प्रभाकर, अजय शर्मा, अजय जड़ेजा, नवजोत सिंह सिद्धू, प्रमुख हैं। इन खिलाड़ियों को आगे बढ़कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए,जिससे वर्तमान और भविष्य में उन जैसे यंग रहे खिलाड़ियों का भविष्य बर्वाद न हो, जैसा उनका हुआ है।
          उस समय के तेज गेंदबाज वेंकटपति राजू का उदाहरण अहम है। राजू ने खुलकर कह दिया है कि उस टीम बैठक में सिद्धू जैसे कुछ बल्लेबाज इस बात से सहमत नहीं थे कि टीम को पहले क्षेत्ररक्षण करना चाहिए। वेंकटपति राजू द्वारा खोले गये इस राज की भाजपा सांसद सिद्धू को पुष्टि करनी चाहिए। उन्हें सांसद होने के नाते अपने हम बिरादर दूसरे सांसद का बचाव नहीं करना चाहिए। यह उनकी क्रेडेबिलिटी का भी सवाल है। मूल सवाल,क्रिकेट,क्रिकेट प्रेमियों और देश की अस्मिता से जुड़ा है,इसलिए ऐसा नहीं है कि सिद्धू मुंह नहीं खोलेंगे और अजहरूद्दीन का साथ देंगे तो सही करार दिये जायेंगे। वैसे तो सिद्धू किसी भी बात को कहने के लिए बहुत बड़ा मुंह खोलते हैं और किसी भी विषय पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए उनके पास मुहावरों एवं लोकोक्तियों की कमी नहीं रहती है। फिर अब क्या हो गया गुरू! कहां छिपे हो गुरू? सामने क्यों नहीं आते गुरूरू............सच स्वीकार करना तो सीखो गुरू,वरना कामेडियन बनकर ही रह जाओगे गुरू।
          क्रिकेट से जुड़ा बहुत बड़ा जनमानस आज यह जान चुका है कि 1996 का वह मैच सौ प्रतिशत फिक्स था, फिर भी खिलाड़ियों को ईमानदारी के तराजू में तौलना चाहता है। विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन की पुष्टि श्रीलंका टीम के मैनेजर श्री समीर दास गुप्ता,हैन्सी क्रोनिए,पूर्व क्यूरेटर प्रवीर मुखर्जी,पूर्व क्यूरेटर कल्याण मित्रा (मैं, कप्तान होता तो पहले बल्लेबाजी करता) के बयान कर रहे हैं। 1996 विश्वकप टीम के सलेक्टर सबरन मुखर्जी का कहना है कि, वे तो सरप्राइज ही हो गये जब सुना कि टॉस जीतकर इण्डियन टीम बोलिंग करने जा रही है। ये सारे बयान इस ओर स्पष्ट इशारा करते हैं कि 1996 का विश्वकप सेमीफाइनल में अनहोना हुआ,जिसे नहीं होना चाहिए था।
          आज ऐसा समय आ गया है कि सभी वरिष्ठ खिलाड़ियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिन खिलाड़ियों पर हम गर्व करते हैं या भगवान की तरह पूजते हैं,वह सचिन हों या कपिल,सुनील गवास्कर,दिलीप वेंगसरकर,श्रीकान्त या फिर रवि शास्त्री,अगर आगे नहीं आते हैं तो कहीं ऐसा ना हो कि आगे आना वाला समय उन्हें माफ ना करे और उन्हें उनके प्यारे दर्शकों की निगाह में गिराकर अर्श से फर्श पर पहुचा दे। क्योंकि ये सभी वरिष्ठ खिलाड़ी 90 के दशक से मैदान पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़े रहे हैं।
          इसकी जॉंच का तरीका केवल एक बचा है कि उस समय के समस्त खिलाड़ियों को एक साथ बुलाने की बजाय अकेले-अकेले बुलाकर यू0पी0पुलिस से इंटेरोगेट कराया जाये तथा इसका मुकदमा ब्रिटेन स्थित साउथवर्क कोर्ट के जस्टिस कुक के हवाले कर देना चाहिए जिसने सलमान बट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमेर को सजा सुनाई। ऐसे में भारत के खेलमंत्री श्री अजय माकन का यह बयान देश की प्रतिष्ठा के हित में दिखाई देता है कि -काम्बली के दावों की बीसीसीआई को जांच करनी चाहिए। उन्होने कहा कि यदि क्रिकेट बोर्ड जांच नहीं करता है तो उनका मंत्रालय दखल दे सकता है। माकन ने कहा कि जब टीम का कोई खिलाड़ी आरोप लगाता है तो उसकी पूरी जॉंच होनी ही चाहिए। खिलाड़ी के आरोप सही हों या गलत लोगों को सच जानने का अधिकार है, इसकी पूरी जॉंच होनी चाहिए और यदि कुछ गलत हुआ है तो दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए।
          इस स्तम्भकार का स्पष्ट मत है कि खेलमंत्री को ही इसमें दखल देना चाहिए, क्योंकि यह दो देशों के बीच का मामला है। मैच फिक्सिंग से फायदा श्रीलंका की टीम को ही ज्यादा हुआ। श्रीलंका की टीम को जब पता चला कि वह टॉस हार गई है तो उनकी टीम में मायूसी छा गई थी,क्योंकि उनकी टीम का भी डिसीजन यही था कि टॉस जीतने पर पहले बैटिंग करेंगे,लेकिन जैसे ही पता चलाकि अजहरूद्दीन ने पहले फील्डिंग करने का निर्णय लिया है,उनकी टीम के खिलाड़ी उछल पड़े,मानो उनकी जीत उसी समय पक्की हो गई थी। इसलिए निशाने पर उसको भी रखा जाना चाहिए,क्योंकि यह मात्र भारतीय टीम का ही मामला नहीं है,जो बीसीसीआई जांच करे और इतिश्री हो जाये, वह तो पहले ही चार खिलाड़ियों को खेल से प्रतिबंन्धित कर इस मैच फिक्सिंग की इतिश्री कर चुका है।
=         देश से बड़ा इस देश में कोई नहीं है,इसलिए राष्ट्रहित में मैच फिक्सिंग की इस घटना की जॉंच के लिए खेल मंत्री को अपने स्तर से आईसीसी से जांच किये जाने के लिए पत्र लिखना चाहिए, अथवा उच्चतम न्यायालय को इसकी जॉच के लिए एसआईटी का गठन कराना चाहिए,यदि इसके लिए किसी पीआईएल की आवश्यकता उच्चतम न्यायालय महसूस करता है तो इस लेख पर ही सज्ञान लिये जाने के लिए यह स्तम्भकार स्वीकृति प्रदान करता है। (सतीश प्रधान)

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Tuesday, November 15, 2011

क्रिकेट खेल है या कैसिनो


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      क्रिकेट की हालत देखकर क्रिकेट प्रेमियों ने कहना शुरू कर दिया है कि क्रिकेट अब आनन्द 
का विषय नहीं रहा। सही भी है, रहेगा भी कैसे? जब खेल को आप व्यापार बना देंगे
तो फिर उसमें आनन्द कहॉं! आईये आज से शुरू करते हैं क्रिकेट का अध्याय।

N. Srinivasan, President, BCCI & Vilas Rao Deshmukha, a Minister of India. 

क्रिकेट के स्टेडियम अब खाली दिखते हैं। टी0वी0 पर क्रिकेट की जगह लोगों ने मनोरंजक कार्यक्रम देखने शुरू कर दिये हैं, जबकि वहॉं भी भोण्डापन ही परोसा जा रहा है, पर मरता क्या न करता वाली स्थिति में ही दर्शक जीने को मजबूर हैं। भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट प्रेमी देश है, उसमें क्रिकेट को संचालित करने वाली संस्था बीसीसीआई (बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल फॉर क्रिकेट इन इण्डिया) ने उसे उस मुहाने पर ला खड़ा किया है जहॉं से दोबारा पूर्व स्थिति में पहुंचना बहुत टेढ़ी खीर है। और ऐसा हुआ है क्रिकेट में घुस गये राजनीतिज्ञों के कारण। शरद पवार, राजीव शुक्ला, अरुण जेटली, ललित मोदी, विलास राव देशमुख आदि ने इसे सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी बना दिया है एवं क्रिकेट प्रेमियों को अण्डा खरीदने वाला ग्राहक। इतने पर भी जब राजनीतिज्ञों को संतोष नहीं हुआ तो इन्होंने मुर्गी भी अपने हिसाब से पैदा करनी शुरू कर दी और अण्डों की मैन्यूफेक्चरिंग भी करने लगे। 
M.S.Dhoni, Captain, Indian Cricket Team & Chennai Super Kings with  N.Srinivasan,President,BCCI.

हफ्तों का मैच सिमटाकर 20-20 पर ले आये। खिलाड़ियों को मुर्गी बनाकर उनसे 20-20 ओवर में सोने के अण्डे देने की चाहत रखने लगे। आपलोग देख ही रहे हैं कि क्रिकेट के नाम पर कौन-कौन सा खेल खेला जा रहा है। इसमें चीयर्स गर्ल्स घुसा दी गईं, जैसे कैसिनो में पीयर्स गर्ल्स होती हैं, ठीक उसी तर्ज पर। गोया यह क्रिकेट नहीं कैसिनो हो गया है। क्रिकेट को इन नेताओं ने कैसिनो में तब्दील कर दिया है। यही कारण है कि अब क्रिकेटर की जगह आपको फिक्सर क्रिकेटर अपनी ऑखों से देखने पड़ रहे हैं। क्रिकेटर के बारे में तो आपसे अच्छा कौन जानता है, लेकिन अब जानिए फिक्सर क्रिकेटर के बारे में।
Sharad Pawar, a sh rued politician, Agriculture Minister of India  & President of ICC.

          क्रिकेट के इतिहास में आपराधिक सजा का पहला मामला विश्व के क्रिकेट प्रेमियों के सामने अब आया है। इससे पूर्व ब्रिटेन की अदालत में धोखाधड़ी के लिए खिलाड़ियों को सजा सुनाने का एकमात्र मामला 1964 में सामने आया था, जब तीन फुटबॉलरों को मैच गंवाने के लिए जेल की सजा सुनाई गई थी। वर्तमान में क्रिकेट के मैदान पर संदिग्ध आचरण के लिए, पाकिस्तान के पूर्व कप्तान सलमान बट और उनके दो साथी, तेज गेंदबाज मुहम्मद आसिफ और मुहम्मद आमेर, भ्रष्टाचार के लिए सजा पाने वाले विश्व के पहले क्रिकेटर बन गये हैं। स्पॉट फिक्सिंग का दोषी पाए जाने पर, साजिश रचने और अवैध धनराशि लेने के कारण सलमान बट को 30 महीने, जालसाजी का दोषी पाये जाने पर मुहम्मद आसिफ को 12 महीने और गलत काम में साथ देने का दोषी पाये जाने पर मुहम्मद आमेर को 6 महीने तथा भ्रष्ट आचरण का दोषी पाये जाने के कारण बुकी मजहर मजीद को 32 महीने की जेल की सजा से नवाजा गया है। जबकि आई0सी0सी0 (इण्टरनेशनल क्रिकेट काउन्सिल) ने सटोरिये मजहर मजीद और तेज गेंदबाज मुहम्मद आमेर के साथ मिलकर लार्ड्‌स टेस्ट के दौरान जानबूझकर नो-बॉल फेंकने की साजिश रचने के लिए सलमान बट को 10 साल, मुहम्मद आसिफ को 7 साल और मुहम्मद आमेर को 5 साल के लिए खेल से प्रतिबन्धित किया है। ये दोनों ही सजायें साथ-साथ चलेंगी।
          लन्दन की साउथवर्क कोर्ट के न्यायमूर्ति कुक की टिप्पणी वास्तव में प्रशंसनीय एवं सराहनीय है, और इस कृत्य की गंभीरता की ओर इशारा करती है कि- जिसे कभी खेल समझा जाता था, वह अब व्यवसाय बन गया है। इसकी छवि और अखण्डता से सभी की नज़रों में नुकसान पहुंचा है, जिनमें कई युवा भी शामिल हैं, जो तुम तीनों (सलमान बट, मुहम्मद आसिफ और मुहम्मद आमेर) को हीरो समझते थे और तुम्हारी तरह खेलने की कोशिश करते थे। न्यायमूर्ति कुक ने कहा कि रियायत की अपील के बावजूद ये अपराध इतने गम्भीर हैं कि जेल की सजा ही उपयुक्त होगी। अपने साथियों को भ्रष्ट करने वाले सलमान बट को इस पूरे घोटाले का सूत्रधार कहा गया है। उन्होंने कहा, अब जब लोग मैच में हैरान करने वाली चीजें देखेंगे या कोई हैरानी भरा नतीजा आयेगा तो पैसे खर्च करके मैच देखने वाले खेल के प्रशंसक सोचेंगे कि कहीं यह मैच फिक्स तो नहीं है, या जो उसने देखा क्या वह स्वाभाविक था!
ऐसा नहीं है कि मैच फिक्सिंग कोई नवीन ईजाद है। यह तो आज से दो शताब्दि (दो सौ साल) पूर्व ही शुरू हो चुकी थी, जब क्रिकेट की शुरूआत भी नहीं हुई थी, तब 1817 में पहली बार मैच फिक्सिंग का मामला सामने आया था। नाटिंघम के बल्लेबाज विलियम लैंबार्ट पर मैच फिक्सिंग के लिए प्रतिबन्ध लगाया गया था, जिसके बाद वह फिर कभी क्रिकेट नहीं खेल पाये। मैच फिक्सिंग की दूसरी घटना 1873 की है जब सरे के खिलाड़ी टेड पुली ने वार्कशायर से हारने के लिए 50 पौण्ड लिये थे। इसके लिए सरे ने पुली को तब निलम्बित किया था।
पिछले एक दशक में कई देशों के क्रिकेट खिलाड़ियों को इस तरह के आरोपों के कारण प्रतिबन्धित किया गया है, उनमें हैं दक्षिण अफ्रीका के हर्शल गिब्स, जिन्हें वर्ष 2000 में भारत के खिलाफ नागपुर वनडे में कमजोर प्रदर्शन करने के लिए सहमत होने पर 6 माह का प्रतिबन्ध लगाया था। दक्षिण अफ्रीका के ही हैन्सी क्रोन्ये पर तो मैच फिक्सिंग और सटोरियों से पैसे लेने के कारण आजीवन प्रतिबन्ध लगा। दक्षिण अफ्रीका के ही हेनरी विलियम्स निकले जिन्हें वर्ष 2000 में खिलाड़ियों को रिश्वत की पेशकश का दोषी पाये जाने पर वर्ष 2008 से आजीवन पाबन्दी लगा दी गई।
 Cricket Writer peter Roebuck

क्रिकेट के सबसे सम्मानित कमेंटेटरों और लेखकों में से एक पीटर रोबक की केपटाउन के होटल में 13 नवम्बर 2011 को संदेहास्पद परिस्थितियों में लाश पाई गई है। दक्षिण अफ्रीकी पुलिस का कहना है कि उन्होंने होटल की छटी मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या की है। उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी। ब्रिटेन में जन्मे 55 वर्षीय रोबक ने 1980 के दशक में समरसेट की कप्तानी की थी। वे वहॉं आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच टेस्ट सीरीज कवर करने गये थे। 
पाकिस्तान के क्रिकेट कोच बॉब वूल्मर की भी 2007 में वेस्टइंडीज में हुए विश्व कप के दौरान होटल के कमरे में ही रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। वूल्मर की हत्या को भी कभी हत्या और कभी आत्महत्या करार दिया जाता रहा और उनकी मौत का रहस्य आजतक बरकरार है। कमोबेश यही स्थिति इस मौत की भी रहनी है। दक्षिण अफ्रीकी पुलिस का कहना है कि शनिवार 12 नवम्बर 2011 की रात्रि सवा नौ बजे यह घटना घटी है और आत्महत्या के कारणों की पड़ताल की जा रही है तथा इस मामले में कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है। मामला यहॉं भी संदिग्ध नज़र आता है।
वर्ष 2000 में भारत के अजहरूद्दीन पर भी आजीवन पाबन्दी लगी, मामला अदालत में विचाराधीन है, लेकिन आजतक वे मैच नही खेल पाये। भारत के ही अजय शर्मा पर भी वर्ष 2000 में सटोरियों के साथ सम्पर्क रखने का देाषी मानते हुए आजीवन पाबन्दी लगी। भारत के ही अजय जडेजा पर वर्ष 2000 में ही सटोरियों से सम्पर्क का दोषी पाये जाने पर पांच साल की पाबन्दी लगी जो वर्ष 2003 में हटा ली गई, लेकिन वे आजतक एक मैच भी नहीं खेल पाये। भारत के ही धुरन्धर मनोज प्रभाकर निकले जिन पर वर्ष 2000 में सटोरियों से सम्पर्क का दोषी मानते हुए पांच वर्ष का प्रतिबन्ध लगा और उनकी आजतक वापसी नहीं हो पाई है।
केन्या के मौरिश औंडुबे को सटोरिये से धन लेने का दोषी पाये जाने पर पांच साल का प्रतिबन्ध लगा, जबकि वेस्ट इंडीज के मर्लोन सेम्युअल्स पर सटोरिये से धन लेने का दोषी पाते हुए दो साल का प्रतिबन्ध लगा और पाकिस्तान के अता-उर-रहमान एवं सलीम मलिक को वर्ष 2008 में सटोरियों से सांठ-गांठ के मामले में दोषी पाते हुए आजीवन प्रतिबन्ध लगाया गया। ऐसे हालातों के बाद कोई मूर्ख अथवा मूर्ख बनाने वाला ही स्टेडियम को हाऊस फुल देखने का ख्वाब संजो सकता है।
Green Park Cricket Stadium, Kanpur, U.P., India.

भारत में इन दिनों वेस्ट इंडीज की टीम दौरे पर है। जिसको तीन टेस्ट मैच और पाँच वनडे मैच खेलने हैं। पहला टेस्ट मैच हो चुका है और उसमें भारत विजयी रहा है। दूसरा 14 नवम्बर से कोलकाता में खेला जा रहा जिसमें भारत ने 5 विकेट पर 346 रन बना लिए हैं। इंग्लैण्ड के बाद इस सीरीज को भी दर्शकों के लाले पड़े हुए हैं। दिल्ली में खेले गये पहले टेस्ट मैच में स्टेडियम खाली पड़ा था जो क्रिकेट एसोसियेशन दिल्ली के कर्ताधर्ता अरूण जेटली की करनी पर आंशू बहा रहा था। 45 हजार क्षमता वाले फिरोजशाह कोटला स्टेडियम की दर्शक दीर्घा में बमुश्किल 10 हजार दर्शक होंगे और इनमें भी ज्यादातर फ्री पास वाले थे, जो दीर्घा को ज्यादा से ज्यादा भरने के उद्देश्य से लाये गये थे।
Feroz Shah Kotla Stadium, Delhi, India.
जानकारी मिली है कि कोलकाता के ईडन गार्डेन्स में हो रहे दूसरे और मुम्बई में होने वाले तीसरे टेस्ट मैच के लिए भी दर्शक ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। कोलकाता में टिकट काउन्टर्स खाली पड़े हैं। मुम्बई में टिकट के दाम काफी कम कर दिये जाने के बावजूद काउन्टर खाली पड़े हैं। 
यही हाल वनडे मैचों का भी है। आगामी वनडे सीरीज के मैचों के भी टिकट अपनी बदहाली पर आंशु बहा रहे हैं। ये मैच कटक, विशाखापतनम, अहमदाबाद, इन्दौर और चेन्नई में होने हैं। इनमें से उत्तर प्रदेश तो राजीव शुक्ला की मेहरबानी से एकदम गायब हो गया है। राजीव शुक्ला क्या-क्या करेंगे? वे बीसीसीआई के वाइस प्रेसीडेन्ट हैं। इण्डियन प्रीमीयर लीग के कमिश्नर हैं,यू0पी0सी0ए0(उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसियेशन) के सचिव हैं। इसके अलावा वे केन्द्र में मंत्री भी हैं, तथा इलैक्ट्रानिक चैनल न्यूज-24 भी उनके दिशा निर्देशन में चलता है,क्योंकि उनकी पत्नी अनुराधा प्रसाद इस चैनल की मालकिन हैं और भारतीय जनता पार्टी के नेता रविशंकर प्रसाद की बहन हैं। 
Rajiv Shukla, Indian Premier League (IPL) Commissioner, State Minister of India & VP, BCCI.
 
पहले जब विदेश से टीमें आती थीं और जितने भी चार-पांच मैच होते थे, वे कानपुर, दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई और मद्रास में होते थे। उसमें से एक कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में होना लाजमी था, बाकी छोटे-मोटे मैच दूसरी जगहों पर होते थे। लेकिन भारत का सबसे बड़ा स्टेट, उत्तर प्रदेश और उसमें लाखों क्रिकेट प्रशंसक मौजूद होने के बावजूद कानपुर का ग्रीन पार्क स्टेडियम मैच के नक्शे से गायब कर दिया गया है। क्यों? इसकी पृष्टभूमि में राजीव शुक्ला, ज्योति बाजपेई और बीसीसीआई से मिलने वाली करोड़ों की धनराशि ही मूल वजह है।
यू0पी0क्रिकेट एसोसियेशन वैसे भी उत्तर प्रदेश के समस्त जिलों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है और ना ही इसके प्रयास किये जाते हैं कि छूटे हुये जनपदों को विस्तार दिया जाये। प्रयास उत्तर प्रदेश को छोड़कर उत्तराखण्ड में अपने जेबी संगठन बनाने के लिये किये गये हैं, ऐसे ही एक संगठन में राजीव शुक्ला ने अपने भाई को घुसा दिया है। ऐसा ही दिल्ली क्रिकेट एसोसियेशन के अरूण जेटली भी कर रहे हैं, उनकी भी दखलनदाजी उत्तराखण्ड की एक क्रिकेट एसोसियेशन में है। भारत का अकेला राज्य है उत्तराखण्ड जहॉं पर आजतक किसी भी क्रिकेट एसोसियेशन को बीसीसीआई से मान्यता इसलिए नहीं दी जा सकी है क्योंकि बीसीसीआई के किसी न किसी पदाधिकारी के निहितार्थ वहां गठित की गई एसोसियेशन से हैं। 
29 अगस्त 2009 को उत्तराखण्ड राज्य के लिए मान्यता देने के सम्बन्ध में बीसीसीआई की अरूण जेटली की अध्यक्षता वाली एफीलियेशन कमेटी ने विभिन्न एसोसियेशन से साक्षात्कार करने के बाद भी आजतक उसकी रिर्पोट ही सबमिट नहीं की है। यह हाल है क्रिकेट के खेल को प्रमोट करने वाली संस्था बीसीसीआई का, जहां हर नेता किसी न किसी कमेटी का अध्यक्ष बना हुआ है, और अपना-अपना खेल कर रहा है, भले ही क्रिकेट रसातल में चली जाये।
Arun Jaitley,BJP Leader & Official, Delhi & Districts Cricket Association.

इण्डिया सीमेन्ट के मालिक हैं, श्रीनिवासन जो वर्तमान में बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं तथा पूर्व में इसके सचिव रह चुके हैं। इण्डिया सीमेन्ट की टीम चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान हैं एम.एस.धौनी,जो इसी के साथ-साथ भारत की क्रिकेट टीम के भी कप्तान हैं। कुल मिलाकर बीसीसीआई के आस-पास एक नेक्सस बन गया है जिसके कारण टीम के चयन में भाई-भतीजाबाद और भ्रष्टाचार चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया है।
उत्तर प्रदेश के क्रिकेट प्रेमियों को उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसियेशन की अक्षमता के लिए एक पीआईएल अवश्य दाखिल करनी चाहिए। मोहाली तक में मैच आयोजित होते हैं और इतना बड़ा उत्तर प्रदेश इससे अछूता रहता है, वह भी तब जबकि यहां पहले से ही टेस्ट मैच आयोजित होते रहे हैं। पहला वनडे 29 नवम्बर को खेला जायेगा। नजा़रा स्टेडियम के खाली रहने तक ही सीमित नहीं है। टी0वी0 पर मैच देखने वालों में भी कमी आई है। अब लोगों का उत्साह स्कोर जानने तक ही सीमित होता जा रहा है, जो धीरे-धीरे अपने अन्त की ओर है। 
क्रिकेट की सीरीज ने अपने को हॉकी की सीरीज में तब्दील कर लिया है, जबकि हॉकी की ऐसी स्थिति उसका कोई पोषक न होने के कारण हुई है और क्रिकेट की ऐसी स्थिति पोषक होने के साथ-साथ अत्यधिक शोषक पैदा हो जाने के कारण हो रही है।
आगे हम आपको विस्तार से विभिन्न क्रिकेट एसोसियेशन विशेषकर लखनऊ क्रिकेट एसोसियेशन के बारे में तफसील से बतायेंगे। यदि आपके पास भी क्रिकेट के मुताल्लिक कोई जानकारी हो अथवा कुछ कहना चाहते हों तो jnnnine@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।
सतीश प्रधान