Ad

Thursday, October 27, 2016

डीएवीपी को तोड़ दिया जाये, काम विदेशी ऐजेन्सी को दिया जाये

 
DAVP, a unit of I&B Ministry, havily destroying
 the public image of Prime Minister of India in the Media
        
        समाचार-पत्रों  के कार्पोरेट मीडिया घरानों के प्रकाशक, (ए0बी0सी0) आडिट ब्यूरो आॅफ सर्कुलेशन, रजिस्ट्रार न्यूजपेपर्स आॅफ इण्डिया (आर0एन0आई), प्रेस काउन्सिल, प्राइवेट न्यूज ऐजेन्सियां और डीएवीपी के कमीशन खोर अधिकारियों का खेल है, प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016, बगैर एक्ट, बगैर किसी रूल, बिना किसी नोटिफिकेशन के जारी की गई प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016, जिसमें मीडिया के बारे में तो एक शब्द भी नहीं है, सिवाय विज्ञापन व्यवस्था को किस तरह से ऐसा बनाया जाये कि प्रतिमाह मोटी कमाई डीएवीपी के अधिकारी हड़प लें, केवल इसी का तसकरा है। देश का मीडिया जाये ऐसी-की-तैैसी में। वो परेशान होता है तो करे भाजपा और उसके नरेन्द्र मोदी को बदनाम।
Act overruled, unlawfull Print Media Advt. Policy-2016,
 framed in the regime of  the above  Minister.
.
  ये फर्जी तथाकथित नीति, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिए कांग्रेसी  शासन में नियुक्त डीएवीपी के महानिदेशक के0 गणेशन एवं उनके चेले आर0सी0जोशी की देन है, जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है, जो न्यायालय में एक मिनट भी नहीं ठहर सकती और जिसे जज महोदय एक झटके में उठाकर फेंकने के साथ ही इन अधिकारियों के खिलाफ स्ट्रक्चर पास कर सकते हैं, क्योंकि इस ड्राफ्ट को तो कैबीनेट तक में नहीं रखा गया है, और मनमानापन कर रहे हैं।
  ये देश ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की मनमर्जी एवं मनमाने तरीके से नहीं चलाया जा सकता? डीएवीपी के तो अभी अपने ही कार्यालय पूरे देश में नहीं हैं। जिन कार्यालयों के दम पर डीएवीपी अपनी वर्किंग करने की कोशिश कर रहा है, वे पी0आई0बी0 के कार्यालय हैं, पी0आई0बी0 अलग महानिदेशालय है, और उसके अलग महानिदेशक हैं। पी0आई0बी0 के अधिकारी और कर्मचारी इतने खाली हैं कि उनके पास काम नहीं है, और वे डीएवीपी का काम करने के लिए खाली हैं तो उनके कार्यालय को खत्म करके पूरी तौर पर डीएवीपी को दे देना चाहिये।
  एकदम फर्जी एवं बकवास नीति-2016 के माध्यम से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की छवि को मीडिया विरोधी घोषित करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, वो कतई ठीक नहीं है। इस नीति को हवा दी है, पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने, वह भी के0 गणेशन के निर्देशन में। एक विज्ञापन बांटने वाली ऐजेन्सी डीएवीपी को मीडिया अच्छा नहीं लग रहा, क्योंकि  उसके अधिकारियों का करेक्टर लायजनिंग वाला है। उसे तो अपनी ही तरह के दलाल चाहिए। इसीलिए उसका सारा जोर ऐजेन्सियों पर ही रहता है, फिर चाहे ये विज्ञापन की हों अथवा न्यूज की।
  इस बनाई गई क्या पैदा की गई फर्जी नीति में कहीं भी न्यूज कनटेन्ट की ना तो कोई बात है, और ना ही कोई प्वाइंट। पी0आई0बी0 की खबरों, लेख और फोटोज् को छापने के लिए कुछ भी नहीं कहा गया है। कोई अखबार कितने प्रतिशत विज्ञापन छापेगा और कितना परसेन्ट उसमें न्यूज कनटेन्ट होगा, इसका भी जिक्र नहीं है। क्योंकि अखबार किसे कहते हैं, इसका तो डीएवीपी के अधिकारियों का ज्ञान ही नहीं है। बस अपनी चौधराहट दिखाने के लिए डीएवीपी वसूली ऐजेन्ट की भूमिका में कार्य कर रहा है।
  प्रेस काउन्सिल की लेवी की वसूली उसने एक झटके में करा दी। सारा अधिकार प्रेस काउन्सिल के पास होने के बाद भी वह अपनी लेवी नहीं ले पा रहा था, लेकिन डीएवीपी के एक फर्जी और अन्यायिक आदेश/नीति ने करोड़ों की वसूली करा दी। डीएवीपी ठीक उसी रोल में कार्य कर रहा है, जैसे एक माफिया/ डाॅन करता है। जो अरबपति/व्यवसायी अपने यहाॅं कार्यरत स्टाफ को उनकी उचित सेलरी तक नहीं देता, माफिया/डान की एक फोन काॅल पर करोड़ों हग ही नहीं देता है बल्कि उसके दरवाजे पर पहुंचकर अपनी और अपने परिवार के प्राणों की भीख भी मांगता है। अपना मूंह बांधकर नगद/कैश अपनी गाड़ी में रखकर अकेला डाॅन के बताये स्थान पर पहुंचाता है, सुरक्षित लौट आये तो बहुत बड़ी बात।
  छोटे एवं मझोले अखबारों के लिए डीएवीपी ऐसा ही माफिया डाॅन बना हुआ है। एक बात और है कि उस डाॅन के पीछे वहां का सरकारी तंत्र उसके साथ होता है, तभी वह ऐसा कर पाता है, वरना तो उ0प्र0 में भी श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे माफिया डाॅन का सरकार के मुखिया ने ही एनकाउन्टर करा दिया। उसी का नहीं सारे माफियाओं /गुण्डों का यही हश्र होता है, बशर्तेे सरकार में बैठे किसी ईमानदार नेता अथवा अधिकारी को समझ में आ जाये कि इसने बहुत अत्याचार कर लिया अब बस। बस समझिये जिस दिन कायदे के ईमानदार और देशभक्त सचिव अथवा कैबीनेट सचिव को समझ में आ गया कि डीएवीपी की तो आवश्यकता ही नहीं, ये काम तो अंर्तराष्ट्रीय   स्तर की किसी संस्था से भी कराया जा सकता है, तो उसी पन्द्रह प्रतिशत के कमीशन में ही वह ऐजेन्सी डीएवीपी से अच्छा कार्य कर देगी, जिसे डीएवीपी समाचार-पत्रों को जारी किये गये विज्ञापन में से काट लेता है। वैसे डीएवीपी जैसे सफेद हांथी की इस गरीब देश में  कोई आवश्यकता नहीं है। ये संस्थान केवल भ्रष्टाचार करने के लिए बना हेै।
  ए0एम0ई0 और एम0ई0, उप-निदेशक, निदेशक, अति0 महानिदेशक एवं महानिदेशक के पदों पर बैठे अधिकारियों के पाप का घड़ा अब भर गया है, जिसका फूटना अत्यंत आवश्यक है। कितने अधिकारी सी0बी0आई0 की गिरफ्त में आयेंगे, कितने सोसाइड करेंगे, इनकी गिनती किया जाना ही शेष है। देश के छोटे एवं मझोले समाचार-पत्रों को समाप्त करने के उद्देश्य से बड़े कहे जाने वाले कार्पाेरेट मीडिया घरानों के नेक्सस ने ऐसी नीति को बनाने में अपनी महत्वपूंर्ण भूमिका निभाई है। अरबों के विज्ञापन बटोरने के बाद भी उसका पेट नहीं भर रहा।
  अपने यहाॅं कार्यरत पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए उसके पास पैसा नहीं है, लेकिन नर्तकी नचाने, इवेन्ट आयोजित करने, बालीवुड में प्रोग्राम आयोजित करने और फैशन शो आयोजित करने के लिए धन की कमी नहीं है। उसने अपने संस्थान से सम्पादकीय लोगों को किनारे कर दिया है। प्रबन्ध सम्पादक और सम्पादक पद पर मालिक बैठ गया है अथवा विज्ञापन का कार्य करने वाले को बिठाकर हर तरह से सरकारी और गैर सरकारी विज्ञापन लूटने में लगा है। जिसके लिए वह कमीशन और लड़कियों का भी इस्तेमाल करता है। 
  वरना तो हालात ये हैं कि अपने को अंर्तराष्ट्रीय  स्तर का घोषित करने वाला समाचार-पत्र जिलों-जिलों से निकलता है, डाक संस्करण बताकर, जबकि प्रेस एण्ड बुक्स रजिस्ट्रेशन एक्ट में ऐसे किसी संस्करण का कोई स्थान/औचित्य नहीं है। जिलों-जिलों से संस्करण निकाल कर यह केवल छोटे एवं मझोले समाचार-पत्रों का हक ही नहीं मार रहा है, बल्कि उनके हक पर डांका डाल रहा है। ये है इथिक्स इन तथाकथित बड़े कहे जाने वाले अखबारों की। ऐसे जिलों-जिलों से छपने वाले अखबार को कैसे अंर्तराष्ट्रीय स्तर का कहा जा सकता है, आप ही समझिये। जो व्यक्ति पार्षद हो और कहे कि मैं अंर्तराष्ट्रीय स्तर का हूं तो कौन कैसे समझेगा, ये आप ही समझिए।
  खैर! ऐसे अंर्तराष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्र के सम्पादक, प्रबन्ध सम्पादक कम मालिकान की उसकी कोठी में घुसकर एक डीआईजी ने उसके घर की महिलाओं की जो बेइज्जती की कि क्या कहा जाये। यहाॅं तक कि महिलाओं की ......तक फाड़ डाली, लेकिन ऐसे अंर्तराष्ट्रीय अखबार का प्रबन्धतंत्र चूं तक नहीं कर पाया। एक काॅलम की खबर अपने अखबार में नहीं छाप पाया, बल्कि उस दिन तो सारे नियम कायदे तोड़ते हुए उसके अखबार में 80 प्रतिशन विज्ञापन छपा। इज्जत गई तेल लेने। इससे तो वे कमजोर और दीन-हीन महिलाएं बेहतर हैं जो अपने साथ घटी शर्मनाक घटनाओं पर एफ0आई0आर0 तो दर्ज कराती हैं।
  बहरहाल इनकी मजबूरी भी ही है, एक्शन ना लेने की, क्योंकि चोरी की प्रिन्टिंग मशीन इनके यहाॅं लगी है, एक फायनान्स कम्पनी की कई एकड़ जमीन फर्जी कागजातों पर इन्होंने कब्जाई हुई है। चीनी, वनस्पति का धंधा ये करते हैं। जाने दीजिए कुछ चीजें दबा भी देता हूॅं। वरना एक रामनाथ गोयनका जी भी थे और उनका था एक अखबार। जिसने इंदिरा गाॅंधी जैसी डिक्टेटर की हेकड़ी मिट्टी में मिला दी थी। उन्हीं की कलम के दम से खिन्न होकर इन्दिरा ने इमरजेन्सी लगाई और उसके बाद जेल भी गईं, लेकिन बहुत बड़ा व्यापार चलाने के बाद भी स्व0 श्री रामनाथ गोयनका का बाल भी टेढा नहीं कर पाई इन्दिरा गाॅंधी।
  दरअसल कलम की मार का डीएवीपी को अन्दाजा नहीं है, वो कमीशन की चकाचैंध में अन्धा होकर इतरा रहा है, उसे केवल इतना पता है कि जो ज्यादा बिकता है, प्रचार वहाॅं से मिलता है। प्रसार तो रेड लाइट एरिया का भी ज्यादा होता है। पोर्न स्टार के ग्राहक और लाइक करने वाले करोड़ों हैं, तो डीएवीपी को सरकार के प्रचार के लिए ऐसी ही जगहों पर जाना चाहिए। क्या जरूरत प्रिन्ट मीडिया में विज्ञापन देने की। उसे याद रखना चाहिए कि भारत एक कल्याणकारी राज्य है। यहाॅं सारी चीजें मात्र नफा-नुकसान के लिए ही नहीं रची जा सकतीं।
  विज्ञापन व्यवस्था को स्ट्रीम लाइन करने के नाम पर डीएवीपी ने नये धन्धे की ही शुरूआत कर दी। उसने समाचार-पत्रों के पेज को भी प्रीमियम पर विज्ञापन देने का नया धन्धा शुरू कर दिया है।
The only work of DAVP, to collect the money, either form
 Publication, Drama, Nautanki or from release  Advts.
डीएवीपी के अधिकारियों ने इतना भ्रष्टाचार कर लिया है कि या तो एक-एक अधिकारी की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच कर ली जाये एवं इस विभाग को खत्म करते हुए इसका कार्य किसी अन्र्तराष्ट्रीय स्तर की संस्था को अधिकतम पन्द्रह प्रतिशत के कमीशन की दर पर दे दिया जाये। इससे भ्रष्टाचार भी खत्म हो जायेगा और सरकार को भी डीएवीपी केएस्टेब्लिशमेंट पर होने वाले करोड़ों रूपये की बचत होगी अलग से। वैसे भी हमें अमेरिका की नीति का पालन करते हुए अपने यहाॅं ज्यादातर चीजें प्राइवेट सेक्टर में देनी चाहिए। फिर इसकी शुरूआत डीएवीपी से ही क्यों नहीं  
सतीश  प्रधान, उपाध्यक्ष
उ0प्र0राज्यमुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति (रजि0 अण्डर दी सो0 रजि0 एक्ट)

Monday, October 24, 2016

अलोकतांत्रिक और डेकोइट संस्थान बना, डीएवीपी

सतीश प्रधान, उपाध्यक्ष
उ0प्र0राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति 
(रजिस्टर्ड अण्डर दी सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट)

           लखनऊ-भारत में सामाजिक परिवर्तन लाने और आर्थिक ग्रोथ को बढ़ाने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए मल्टी मीडिया एडवरटाइजिंग एजेंसी के रूप में खड़े किये गये डीएवीपी (द्र्श्य प्रचार एव विज्ञापन निदेशालय) को समझना अब अपरिहार्य हो गया है। डीएवीपी एक सर्विस एजेंसी है, जिसका कार्य विभिन्न केन्द्रीय मंत्रालय की ओर से उक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार द्वारा ग्रासरूट तक पहुंचाना है, लेकिन यह तो ग्रासरूट तक पहुचने के बजाय पंचसितारा होटल तक पहुच गया है। डीएवीपी की खोज वल्र्ड वॉर द्वितीय से करते हैं। द्वितीय विव युद्ध खत्म होने के बाद तत्कालीन सरकार ने एक मुख्य मीडिया सलाहकार (चीफ प्रेस एडवाइजर) की नियुक्ति करके, एडवरटाइजिंग का दायित्व सौंपा।
       जून 1941 में उसी चीफ प्रेस एडवाइजर केअधीन एक एडवरटाइजिंग कनसलटेन्ट की नियुक्ति की गयी। डीएवीपी की भूमिका यहीं से बननी शुरू हो गयी। 01 मार्च 1942 को एडवरटाइजिंग कनसलटेन्ट को कार्य करने के लिए एक कक्ष सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में ही दे दिया गया। 01 अक्टूबर 1955 को उस एडवरटाइजिंग कनसलटेन्ट के कार्यालय का नाम डीएवीपी कर दिया गया। इसके बाद 04 अप्रैल 1959 को उसे एक हेड ऑफ डिपार्टमेन्ट की मान्यता देते हुए, भारत सरकार ने उस संस्था को वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार भी हस्तांतरित कर दिये। 
              भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के कितने रिश्तेदार, नातेदार, अक्षम ,अपंग एवं नकारे उस संस्थान में नियुक्ति पाये होंगे इसका अंदाजा आप नही लगा सकते। बस तभी से डीएवीपी के कर्मचारी नशे में आ गये हैं और विज्ञापन जारी करने के नाम पर उस मीडिया का खून चूसने लगे हैं, जो समाज की सेवा में लगा हुआ है। 
              वर्तमान में हालात यहाँ तक पहुच गये हैं कि अधिकारी कहे जाने वाले बाबू स्तर के ए,एम,ई (असिस्टेन्ट मीडिया एग्जीक्युटिव) उन समाचार पत्र प्रकाशकों के साथ बदतमीजी करते हैं जो उन जैसे ए,एम,ई को नौकरी पर रखलें। ऐसा ये इसलिए करते हैं, क्योंकि ऐसे प्रकाशक, भूले -भटके ही उनके पास पहुँचते हैं और उनको ये पता नही होता कि ये ए,एम,ई केवल एजेंटों (दलालों) के माध्यम से आने वाले प्रकाशकों/प्रतिनिधियों से ही ठीक से बात करते है, बाकी के लिए उनके पास ना तो वक्त होता है, ना ही तमीज। 
            ये केवल ऐसे प्रकाशको के ही साथ रहते है जो विज्ञापन का फिफ्टी प्रतिशत उन्हें सौपने के साथ ही उनकी शामें भी रंगीन बनाये। ये ऐसे समाचार पत्र वाले है, जिनको ना तो लिखना आता है ना पढ़ना। ये उस कैटेगरी के प्रेस वाले हैं जो आपके कपड़ों पर प्रेस करते हैं। हालात यहां तक पहुच गए है कि कम्पोजीटर और मशीनमैन के साथ-साथ अण्डा बेचने वाले और समाचार-पत्र के हॉकर भी अखबार निकालने लगे हैं और मालिक एवं प्रकाशक हो गये हैं। ऐसे ही तथाकथित प्रकाशक औैर मालिक इनके साॅफ्ट टारगेट हैं।
            आपको आश्चर्य होगा कि जिस देश का प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी जैसे व्यक्तित्व वाला शक्स हो, जिसके दरवाजे इस संचारक्रान्ति के युग में आम जनता के लिए खुले हुए हों, उन्हीं के सूचना मंत्रालय के अधीन डीएवीपी के मुखिया ने अपनी ईमेल आई0डी0 अपने प्राइवेट सेक्रेटरी के नाम से बनवाई हुई है, जो है (psdg.davp@nic.in) लेकिन जिसपर भेजे जाने वाले सारे ईमेल बाउन्स हो जाते हों, तो ऐसे डी,जी, को क्या एक मिनट भी उस पद पर बनाये रखे जाने का कोई औचित्य है?
Contact List of DAVP without email

          जबकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के पास अपनी बात उनके ट्वीटर एकाउन्ट, फेसबुक एकाउन्ट, इन्स्टाग्राम, पिनट्रेस्ट अथवा ऑफिसियल से लेकर प्राईवेट वेबसाइट तक पर पहुचाने के लिए आम जनता को आसानी से सुलभ है, जबकि डीएवीपी जो कि मीडिया संस्थानों के लिए ही बना है, उसके हाल ये हैं। आप ना तो डीजी का टवीटर एकाउन्ट जान सकते हैं, ना ही फेसबुक एकाउन्ट ना ही मोबाइल नं0। डी0जी0 हैं अथवा लोकतंत्रिक देश में एक तानाशाह। डीएवीपी एकदम बद्त्तर और डेकोइट संस्थान बन गया है। 
     इस महानिदेशालय में बस दो ईमेल mediarate@gmail.com और mediarate1@gmail.com..ही टनाटन काम करते हैं। जिसे डीएवीपी के अधिकारियो ने नियमविरुद्ध तरीके से बनाया हुआ है। इसे gmail.com  पर किस अधिकारी ने स्थापित करने की अनुमति दी और किस ऑफिस मेमो के तहत ? इसकी गहनता से जांच होनी चाहिए।
Contact List of I&B Ministry with Email ID's and Address of the Officials
               यदि सरकारी कार्य किया जा रहा है तो उसे @nic.in  अथवा @gov.in  पर बना होना चाहिए। डीएवीपी बहुत बड़ा भ्रष्टाचार इस ईमेल के माध्यम से कर रहा है जिसमें कपतमबजवत (डत्ब्) का उल्लेख रहता है। gmail.com पर बने ये पते धन वसूली के काम आ रहे हैं। इन ईमेल पर म्उचंदमसउमदज के व्इरमबजपवद डालकर प्रकाशकों को बुलाया जाता है, वह भी ...... और घिसे-पिटे ऑबजेक्शन लगाकर। 
                  एम्पेनलमेंट के लिए फाइल लगी फरवरी 2016 में उसका परिणाम सितम्बर 16 में निकाला गया। एम्पेनलमेंट, एप्रूव होने के तुरन्त बाद mediarate@gmail.com से दो माह के अखबार पुनः मांगे जाते हैं। ये कौन सा एप्रूवल हुआ? जब कमी थी तो एप्रूवल क्यों हुआ? और नहीं है तो डायरेक्टर (एम0आर0सी0) द्वारा (mediarate@gmail.com) से अखबार की  प्रतियां क्यों मांगी जा रही हैं?
                @gmail.com पर बने ये पते धन वसूली के काम आ रहे हैं। इन ईमेल पर एम्पेनलमेन्ट के आॅब्जेक्शन डालकर प्रकाशकों को बुलाया जाता है, वह भी प्रोटोटाइप और घिसे-पिटे आॅब्जेक्शन लगाकर। प्रकाशकों को परेशान करने और एकदम चूस लेने की व्यवस्था डीएवीपी ने की हुई है। इतना बड़ा खेल चल रहा है, और डीएवीपी के निदेशक एवं महानिदेशक को पता नहीं हो, ऐसा कैसे समझा जा सकता है। यदि डीजी, डीएवीपी पाक साफ हैं तो सी0बी0आई0 जांच की संस्तुति सूचना मंत्रालय से करें, यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो निश्चित रूप से वे भी इस खेल में सम्मलित हैं।
भरपूर पैसा कमाने के लिए डीएवीपी ने बिना किसी एक्ट-रूल के फर्जी प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016 को लागू कर दिया है, जिसके माध्यम से प्वाइन्ट सिस्टम लागू करते हुए विज्ञापनों को प्रीमियम दरों पर जारी किये जाने की व्यवस्था की ली है। यह नया तरीका बेशक बड़े (कार्पोरेट मीडिया घरानों) ग्रुप की मिलीभगत का ही परिणाम है।
क्या कर्मचारियों और अधिकारियों का वेतन सिस्टम एक सा है? क्या दोनों को एक सी सुविधायें सरकार देती है? नहीं। फिर किस तरह से लघु, मध्यम, एवं बड़े समाचार-पत्रों के लिए एक सी नीति रखी गई? जब डीएवीपी के बजट में लघु, मध्यम एवं बड़े ग्रुप के लिए अलग-अलग बंटवारा किया गया है तो उनके लिए बनाई गई पालिसी भी अलग-अलग होनी चाहिए।
तीनों का अलग बजट और अलग-अलग, नियम होने चाहिए। बड़े ग्रुप को प्रिंटिग मशीन लगाना उसकी मजबूरी है, जबकि यही शर्त लघु दर्जे के अखबार वाले के लिए जबरिया थोपी गई शर्तें हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं हैं। यदि वह भी मशीन लगाने की हैसियत में हो तो वह लघु वर्ग में क्यों रहेगा। समाचार ऐजेन्सी की सेवा लेना बड़े ग्रुप की मजबूरी है, जबकि लघु ग्रुप वाले के तो परिवार के ही तीन-चार लोग अखबार के काम में लगे रहते हैं। क्यों लें वे सड़ी-गली ऐजेन्सियों की सेवा, जिनके यहाॅं मात्र तीन हजार पर रखे गये टाइपिस्ट खबरें भेजते हैं।
लघु, मध्यम और बड़े ग्रुप का वर्गीकरण भी डीएवीपी ने जायज तरीके से नहीं किया है। ये इस प्रकार से होना चाहिए। लघु ग्रुप में 0001 से लेकर 15,000 तक। मध्यम ग्रुप में 15,001 से लेकर 50,000 तक एवं बड़े ग्रुप मे 50,001 से लेकर अधिकतम जो भी हो।
                   समाचार-पत्र अपनी प्रेस में छप रहे हैं अथवा काॅन्ट्रैक्ट पर दूसरी प्रेस में इससे डीएवीपी का क्या लेना देना? समाचार-पत्र अपने संवाददाताओं तथा फ्री की न्यूज ऐजेन्सी द्वारा निकाले जा रहे हैं अथवा पेड न्यूज ऐजेन्सी से, इससे भी डीएवीपी का क्या मतलब? समाचार-पत्रों ने प्रेस काउन्सिल की लेवी दी या नहीं दी इससे भी डीएवीपी का क्या मतलब? क्या डीएवीपी ने सबकी दुकान चलाने का ठेका लिया हुआ है। या वो माफिया के रूप में उभरना चाह रहा है। 
यदि हम हांथ से लिखकर फोटोकाॅपी कराकर अखबार निकालें तो क्या डीएवीपी रोक सकता है? पैम्फलेट छापकर जब अंग्रेज भारत से भगाये जा सकते हैं तो फिर ये तो डीएवीपी में बैठे काले अंग्रेज हैं, जिनके भ्रष्टाचार/कारनामों की एक हजार पैम्फलेट छापकर इनकी कालोनियों में वितरित कर दी जाये तो इसके लिए किस ऐम्पेनेलमेन्ट की आवश्यकता है। इसके लिए भी क्या अपनी प्रेस होना जरूरी है। या इसके लिए किसी ऐजेन्सी की सेवा जरूरी है। किसी की भी आवश्यकता नहीं है।
सूचना सचिव, श्री अजय मिततल को डीएवीपी द्वारा अवैध कमाई के लिए चलाये जा रहे ईमेल (mediarate@gmail.com) और (mediarate1@gmail.com) की पूरी रिर्पाेट google के CEO लैरी पेज से मंगानी चाहिए कि ये कब बना, किसने बनाया और इसके इनबाॅक्स, सेन्ट मेल, स्पैम, ट्रैस, ड्राफ्ट आदि में क्या-क्या है। इसी से डीएवीपी में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा हो जायेगा। मेरे हिसाब से इसे वर्षों से एक ही पद 
पर बैठे मीडिया एग्जीक्यूटिव बी0पी0 मीना द्वारा संचालित किया जा रहा है। इसी के साथ बी0पी0 मीना के मोबाइल नं0 की भी जांच होनी चाहिए।

Saturday, October 22, 2016

भ्रष्टाचार की रेलम-पेल, गणेशन पास, मित्तल फेल

सतीश प्रधान 

उ0प्र0 राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति

लखनऊ। डीएवीपी (डायरेक्टोरेट आफ एडवरटाइजिंग एण्ड वीज्यूल पब्लिसिटी) में भ्रष्टाचार, इस कदर हावी है कि सूचना सचिव, श्री अजय मित्तल जो कि कुछ माह पूर्व ही हिमांचल प्रदेश से दिल्ली आये हैं, कुछ भी करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, और उनके नाम की आड़ में डीएवीपी भ्रष्टाचार मचाये हुआ है। उन्हीं का नाम लेकर समाचार-पत्रों को प्वांट सिस्टम में बांधने और लघु एवं मध्यम समाचारपत्रों को तबाह करने का खेल खेला जा रहा है। डीएवीपी के अधिकारी खुलेआम कह रहे हैं कि जो कुछ भी डीएवीपी में हो रहा है, वह सारा कुछ सूचना मंत्रालय के निर्देश पर ही हो रहा है। मित्तल जी हिमांचल में भी पी0आर0 देखते रहे हैं और साराकुछ उन्हीं के निर्देशन पर हो रहा है, इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं।
Ajay Mittal, Secretary, Information & Broadcasting, Govt. of India

तो क्या ये समझा जाये कि डीएवीपी के अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस, सूचना मंत्रालय ने जारी कर दिया है। डीएवीपी के निदेशक, आर0सी0 जोशी, महानिदेशक श्री के0 गणेशन, मीडिया एग्जीक्यूटिव, बी0पी0 मीना और सहा0 मीडिया एग्जीक्यूटिव्स का एक कॉकस बना हुआ है, जो करोड़ों के भ्रष्टाचार में लिप्त है और माननीय नरेन्द्र मोदी की सरकार को ठेंगे पर रखे हुये है। या ये समझा जाये कि डीएवीपी के अधिकारी भ्रष्टाचार से कमाई जा रही रकम का कुछ हिस्सा ऊपर भी पंहुचा रहे हैं।
                एक हकीकत पेश करता हूं। अत्तर प्रदेश के एक छोटे से जनपद इटावा के लिए डीएवीपी द्वारा 01 अप्रैल, 2016 से 19 अक्टूबर 2016 तक जारी किये गये विज्ञापनों की कम्परेटिव लिस्ट, जो मेरुदण्ड विहीन समाचार-पत्र मालिकों की चेतना को जाग्रत कर पाये तो उन्हीं के हित में है।
K.Ganeshan,Director General of DAVP
उ0प्र0 के जनपद इटावा से प्रकाशित डीएवीपी में जिन हिन्दी दै0 को विज्ञापन जारी किये गये हैं, वो हैं सात। इनमें 13:49 प्रतिवर्ग से0मी0 की दर से लेकर रु28.44 प्रतिवर्ग से0मी0 की दर तक के समाचार-पत्र हैं, लेकिन सबसे अधिक 46 विज्ञापन जिस समाचार-पत्र को दिये गये हैं उसका नाम है, आज का विचार, राष्ट्रीय विचार (इसकी दर है रु 20.68 प्रतिवर्ग से0मी0) जिसे 26 हजार 421 वर्ग से0मी0 के विज्ञापन जारी किये गये हैं, जो सेटिंग-गेटिंग का मास्टर है।
          ताज्जुब इस बात का है कि समाचार-पत्र, ब्लैक एण्ड व्हाइट ही छपता है और उसी में रजिस्टर्ड फिर भी है, फिर भी सारे के सारे विज्ञापन उसे रंगीन ही जारी किये गये हैं, जिसकी कुल धनराशि रुपये छह लाख, चालीस हजार बयालिस रुपये है। डीएवीपी के मीडिया एग्जीक्यूटिव बी0 पी0 मीना ने इसके एवज में रू0 तीन लाख बीस हजार रूपये वसूले हैं। जाहिर है, ये विज्ञापन एडीजी स्तर से ही पास हुए होंगे, इसलिए ये कैसे समझा जा सकता है कि ये कारनामा केवल मीना का ही है।
          इटावा से प्रकाशित देशधर्म, हिन्दी दै0 को कुल 4083.00 वर्ग से0मी0 के मात्र सात विज्ञापन दिये गये हैं, जबकि उसकी दरें, इससे कहीं अधिक रू0 24.03 प्रतिवर्ग से0मी0 हैं। इसी तरह दै0 सबेरा को कुल 10,002 वर्ग से0मी0 के विज्ञापन जारी किये गये हैं जबकि उसकी दरें रू0 28.44 प्रतिवर्ग से0मी0 हैं तथा मूल्य बना है मात्र दो लाख इकतालिस हजार। इसी प्रकार हिन्दी दै0 दिन-रात को मात्र एक लाख ग्यारह हजार के कुल 6338 से0मी0 के 11 विज्ञापन जारी किये गये हैं, जबकि दर उसकी भी रू0 20.68 ही है। माधव सन्देश हिन्दी दै0 को एक लाख छह हजार रूपये के 5135 से0मी0 के 8 विज्ञापन ही जारी किये गये।
         सबसे दुखदायी और विडम्बना वाली बात यह है कि इटावा से प्रकाशित होने वाले दोनों उर्दू दैनिक समाचार-पत्र यथा पैगाम-ए-अजीज और जमीनी आवाज को इस दौरान एक धेले का भी विज्ञापन जारी नहीं किया गया है, जबकि उनकी दरें भी क्रमशः रू0 17.12 एवं रू0 13.49 प्रति वर्ग से0मी0 हैं।
छयालिस विज्ञापन वो भी छब्बीस हजार चार सौ इक्कीस से0मी0 के तो लखनऊ से प्रकाशित होने वाले नामी-गिरामी अखबारों को भी नहीं जारी किये गये, जबकि उनकी हैसियत, आज का विचार, राष्ट्रीय विचार से कहीं अधिक है। इनमें हैं, दै0 आज, जिसे कुल 19,295 से0मी0 के 25 विज्ञापन ही मिले हैं। नवभारत टाइम्स (दिल्ली) को 22,025 से0मी0 के मात्र 30 विज्ञापन, स्वतंत्र भारत को 15, जनसत्ता को 12, वायस आफ लखनऊ को 6, नार्थ इण्डिया स्टेट्समैन को 8टेलीग्राफ इण्डिया को 7, अवधनामा को 13, प्रभात को 11 वहीं इसके दूसरी तरफ स्पष्ट वक्ता को 22, स्वतंत्रता चेतना को 16, तरूण मित्र को 15यूनाइटेड भारत को 27, वायस आफ मूवमेन्ट को 17 विज्ञापन जारी किये गये हैं, और इनमें भी बड़ा खेल किया गया है। लखनऊ के लिए जारी किये गये विज्ञापनों की समीक्षा अगली बार की जायेगी। नागराज दर्पण ने भी किस तरह से डीएवीपी को अपने कब्जे में लिया हुआ है, इसकी स्टोरी भी आगे दी जायेगी।
हम आपको इसी तरह प्रत्येक जनपद की समीक्षात्मक रिर्पाेट प्रस्तुत करेंगे और इसके बाद मा0 न्यायालय में रिट फाइल की जायेगी, यदि इन तथ्यों पर सूचना सचिव श्री अजय मित्तल जी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं तो।

Sunday, October 16, 2016

jnn9: डीएवीपी की हो सीबीआई जांच

jnn9: डीएवीपी की हो सीबीआई जांच

डीएवीपी की हो सीबीआई जांच

सतीश प्रधान  

उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति 
(अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत) 

सूचना सचिव श्री अजय मित्तल जी आपके कक्ष में लगे निम्न कुटेशन को पढ़कर अधोहस्ताक्षरी की ऊर्जा में गजब का संचार हुआ, और दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ कि इस देश के संचार मंत्रालय का सचिव भारत में मीडिया को रेगूलेट करने की मंशा रखता है याकि उसके अधीन कार्यरत डी0ए0वी0पी0 के अधिकारियों की साजिश में सम्मलित हो सकता है। 

डी0ए0वीपी0 के अधिकारियों ने एक ऐसा फर्जी दस्तावेज (प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016) बनाकर श्री नरेन्द्र मोदी जो को मीडिया विरोधी घोषित करने की तैयारी की है, जो किसी भी तरह का अधिकृत सांविधिक डाक्यूमेन्ट नहीं है। जिस पर ना तो किसी अधिकारी के हस्ताक्षर हैं और ना ही उसे किसी एक्ट अथवा नियमावली के तहत बनाया गया है। जिस प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016 को लागू करने के लिए रोजाना डीएवीपी द्वारा एडवाइजरी जारी की जाती है, उसका भी कहीं कोई वजूद नहीं है। ये केवल देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं उनकी भाजपा सरकार को मीडिया में बदनाम करने की एक गहरी साजिश है। 
उक्त नीति किस अधिनियम/नियम अथवा नोटिफिकेशन के तहत बनाई गई है, उसका वर्णन एवं प्रमाणित डाक्यूमेन्ट डी0ए0वी0पी0 से मंगवाना चाहें।
डीएवीपी के अधिकारियों के इस कृत्य के विरोध में उत्तर प्रदेश की राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति ने अपने समस्त साथियों, पत्रकार बन्धुओं एवं उनके पोशक समाचार-पत्र मालिकान और प्रकाशकों के हित में फैसला लिया है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किये जा रहे अन्याय एवं पक्षपातपूंर्ण रवैइये के तहत आफिसियल मेमो से पैदा की गई प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति- 2016 का विरोध किया जाये तथा पन्द्रह दिनों के अन्दर यदि संविधान के आर्टिकल-14 में प्रदत्त हमारे अधिकारों के हनन को रोका नहीं जाता तथा उक्त असांविधिक नीति-2016 को रद्द नहीं किया जाता है तो माननीय न्यायालय में रिट दाखिल की जाये, क्योंकि प्रिन्ट मीडिया को स्ट्रीम लाइन करने के नाम पर डी0ए0वी0पी0 ने जिस प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति -2016 (नान स्टेच्यूटरी/असांविधिक दस्तावेज) का निर्माण आपके रहते किया है, वह लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र प्रकाशकों एवं उसमें कार्य करने वाले पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों को कुचलने की साजिश है। इसी के साथ इस रेगूलेटरी एक्शन को नीति का नाम दिया जा रहा है, जिसका आधार ना तो कोई एक्ट है, ना ही कोई नियमावली। यहॉं तक की इस पालिसी पर ये भी अंकित नहीं था कि यह भारत सरकार के किस नोटिफिकेशन के तहत जारी की गई है और ना ही इस पर कोई डिस्पैच संख्या अथवा दिनांक पड़ा था, लेकिन मेरी खबर के बाद इस पर आफिस मेमो नं0 (OM NO.) के साथ दिनांक डाल दिया गया है, लेकिन ऐसी चतुराई की गई है कि इसका प्रिन्ट नहीं निकाला जा सकता।
कृपया पॉलिसी की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना चाहें।
यदि वास्तव में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को मीडिया को स्ट्रीम लाइन करना ही है तो उसके लिए एक्ट लाने की आवश्यकता है, जिसके तहत नियमावली बनाई जाये, फिर उसके तहत मीडिया को रेगूलेट किया जाय, इसके लिए मंत्रालय चाहे तो मेरी सहायता ले सकता है। असांविधिक एवं असंवैधानिक तरीके से मीडिया के केवल लघु एवं मध्यम स्तर के समाचार पत्रों को ही रेगूलेट करना किसी भी प्रकार से जायज एवं न्यायिक ना होने के साथ ही असंवैधानिक भी है। निश्चित तौर पर यह एक षड़यन्त्र है, जिसके द्वारा एक नोडल ऐजेन्सी डी0ए0वी0पी0 जैसी संस्था मनमानी करने पर उतारू है। 
आज ही भारत सरकार को एक छोटे से मसले को कैबीनेट में लाना पड़ा, जो कि पैट्रोल में सम्मिश्रण के लिए मिलाये जाने वाले ईथनाल (जो कि गन्ने से बनता है) की कीमत में तीन रूपये की कमी के लिए कैबीनेट में निर्णय लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या ऐसा आफिस मेमो के तहत नहीं किया जा सकता था? डी0ए0वी0पी0 जैसे अधिकारी तो इसे एक आफिस मेमो के तहत ही साल्व कर देते? लेकिन नहीं, कोई भी नीति बगैर केबीनेट में पास हुए लागू नहीं की जा सकती? फिर किस बिना पर डीएवीपी इस फर्जी डाक्यूमेन्ट को नीति बताकर गुण्डई मचाये हुए है?
कृपया प्रमाण उपलब्य कराये जायें कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डीएवीपी की नीति के उक्त ड्राफ्ट को प्रधानमंत्री को किस दिनांक को सम्पन्न हुई कैबीनेट बैठक में रखा और उस पर माननीय राष्ट्रपति महोदय ने किस दिनांक को हस्ताक्षर किये। यदि डीएवीपी महानिदेशालय के अधिकारी किसी असांविधिक ड्राफ्ट को नीति की शक्ल देकर उसके बल पर सबकुछ तहस-नहस कर देने की मंशा बनाये हुए हैं तो उनकी मंशा को कैसे कामयाब होने दिया जा सकता है। यदि एक असांविधिक नीति बनाकर पूरे देश को कन्ट्रोल किया जा सकता है, तो फिर लोकसभा, राज्य सभा, विधान सभा, विधान परिषद, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के साथ ही जिला अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक की आवश्यकता ही क्या है? फिर तो किसी भी विभाग का कोई भी भ्रष्ट अधिकारी कोई भी आदेश जारी कर दे और न्यायालय भी उसे बगैर किसी एक्ट-रूल के प्राविधान के सांविधिक मान ले, तब तो हो गया बंटाधार इस देश का। ऐसी स्थिति से तो देश में तबाही ही मच जायेगी। ऐसी स्थिति के लिए आप महानिदेशालय के किस अधिकारी को दण्डित करेंगे।
कृपया उस अधिकारी का नाम और पदनाम स्पष्ट करना चाहें।
डीएवीपी का गठन मीडिया का स्लाटर (कत्लेआम) करने के लिए नहीं किया गया है, और वह भी मात्र लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र/पत्रिकाओं के। बड़े ग्रुप (कार्पोरेट मीडिया घरानों) के संस्करणों को मलाई चटाने और उस मलाई में से स्वंय को भी हिस्सा मिलता रहे, इसकी भरपूर व्यवस्था डीएवीपी ने इस फर्जी नीति में बड़ी चतुराई से कर ली है। इसीलिए स्वामी/प्रकाशकों के हितार्थ वर्किंग जर्नलिस्ट और समाचार-पत्र संस्थानों में कार्यरत गैर पत्रकारों के कल्याणार्थ इस समिति ने संघर्ष का फैसला लिया है। आखिरकार जब समाचार-पत्र संगठन ही नहीं रहेंगे तो हम कहॉं रहेंगे़? हमें अपने मालिकों के साथ-साथ देश को भी बचाना है। इस फर्जी नीति से मरता क्या ना करता वाली स्थिति पैदा हो गई है।
विज्ञापनों में पेज नं0 के हिसाब से प्रीमियम देने की व्यवस्था किस उद्देष्य से की गई है, इसका स्पष्टीकरण भी दिलाना चाहें।
अभीतक डीएवीपी की विज्ञापन वितरण व्यवस्था स्ट्रीम लाइन नहीं थी तो इसके लिए कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं? जबकि डीएवीपी का उदय ही विज्ञापन बांटने के नाम पर हुआ। डीएवीपी के अधिकारियों द्वारा समाचार-पत्रों के ऐम्पेनलमैन्ट के लिए ली जा रही प्रति समाचार-पत्र दो-दो लाख की रिश्वत मि0 मीना से लेकर गणेशन तक पहुंच रही है? ऐसे-ऐसे समाचार-पत्रों को फिफ्टी-फिफ्टी कमीशन की दर पर अब भी रोजाना विज्ञापन जारी किये जा रहे हैं, जिनकी प्रिन्टिंग प्रेस का ही असतित्व नहीं है। डीएवीपी के ज्यादातर अधिकारियों के बेटे, बेटियों, मॉं, भाई, बाप, बहन के नाम पर समाचार-पत्रों का प्रकाषन किया जा रहा है तथा लाखों रूपये प्रतिमाह बटोरे जा रहे हैं। इसकी जांच आप कब करायेंगे?
क्या आपकी राय में सबसे पहले डीएवीपी को स्ट्रीम लाइन करने की जरूरत नहीं है। डीएवीपी के कितने अधिकारियां ने अपनी आय की घोषणा की हुई है? क्या सी0बी0आइ्र्र0 अथवा सतर्कता आयोग द्वारा उन अधिकारियों की आय की जॉंच नहीं होनी चाहिए जो वर्षो से विज्ञापन जारी किये जाने वाली सीट पर प्रतिमाह मोटी कमाई श्री के0 गणेशन को पहुंचा रहे हैं। डीएवीपी का बाबू र्स्पोट्स यूटीलिटी व्हीकल से आता-जाता है, करोड़ों के उसके पास फ्लैट हैं, और जिसकी प्रत्येक शाम पंचसितारा होटल में ऐसे ही स्वामी/प्रकाशकों के साथ गुजरती है, जो उनकी शाम रंगीन कराते हैं।
उक्त पर सी0बी0आई0/सतर्कता आयोग से जांच के लिए आपको कौन रोक रहा है?
डीएवीपी के हालात ये हैं कि वह दलालों का अड्डा बना हुआ है। फिफ्टी-फिफ्टी की तर्ज पर विज्ञापन दिलाने वाली प्रा0 लि0 कम्पनियां तक गठित हैं, जो यहॉं के विज्ञापन जारी करने वाले अधिकारियों को पैसे से लेकर लड़कियां तक सप्लाई करके व्यवसाय कर रही हैं। ऐसी व्यवस्था अपनी ऑंखों से आप स्वंय डीएवीपी में अन्दर घुसकर देख सकते हैं। जो इसके विरोध में कुछ करने-कहने की कोशिश करता है, उससे कहा जाता है कि चले हो भगत सिंह बनने! अरे जैसे उसे फांसी पर लटका दिया गया, वैसे तुम भी लटका दिये जाओगे, इसलिए जैसी व्यवस्था चल रही है, उसी में अपने को एडजस्ट करना सीखो और मजे करो। आपका अपना परिवार है, कौन इस देश में सुधार करने आया है, जो कुर्सी पर बैठता है, वही लूट में लग जाता है। तुम भी कोई एजेन्ट पकड़ लो और डीएवीपी से रोजाना विज्ञापन पाओ। ये नरेन्द्र मोदी का देश है, यहॉं अडानी और अम्बानी जैसे ही जिन्दा रहेंगे, हम-तुम जैसे नहीं। ये कहना है, डीएवीपी में विज्ञापन जारी करने वाले एक मीडिया एग्जीक्यूटिव का।
डीएवीपी के ऐसे अधिकारी देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करते हुए अपने एक्शन/नीति को जस्टीफाई करते हुए करोड़ों कमा रहे हैं। के0 गणेशन इस सरकार के आने के पूर्व से ही महानिदेशक की कुर्सी पर बैठे हैं, अतिरिक्त महानिदेशक श्री रेड्डी और शर्मा भी तब ही से हैं, और निदेशक श्री जोशी को श्री गणेशन, महानिदेशक नियुक्त होने के बाद लेकर आये हैं। डीएवीपी के भ्रष्टाचार में इनके आने के बाद से चार गुना इजाफा हुआ है।
के0 गणेशन तो किसी छोटे एवं मध्यम समाचार-पत्र के प्रकाशक से मिलना तो दूर टेलीफोन पर भी वार्ता नहीं करते। उनके निजी सचिव, बमुश्किल यदि फोन उठा लें तो पहले पूछेंगे कि आपकी समस्या क्या है, यदि आपने कहा कि समस्या कोई नहीं, मुझे उनसे मिलना है, तो कहेंगे कि जब समस्या नही तो मिलकर उनका समय क्यों बर्बाद करेंगे। अतः जो समस्या है बताइये, और आपने यदि समस्या बताई तो निदान सिर्फ यही है कि वह किसी दूसरे अधिकारी से मिलने को ठेल देंगे। अब बताईये मुझ शिकायत करनी है कि आपके यहॉं विज्ञापन की सीट पर बैठा अमुक अधिकारी कहता है कि विज्ञापन चाहिए तो दलाल को पकड़िये, तो इसे कौन सुनेगा। महानिदेशक श्री के0 गणेशन के कार्यालय का तो हाल यह है कि उनको ईमेल पर भेजे मैसेज बाउन्स होकर वापस आ जाते हैं, जिसकी ताजा स्थिति का प्रमाण नीचे अंकित है।

इस समिति का निवेदन है कि मीडिया को स्ट्रीम लाइन करने से पहले डीएवीपी के महानिदेशक, श्री के0 गणेशन, अति0 महानिदेशक, श्री रेड्डी एवं श्री शर्मा, एवं निदेशक श्री आर0सी0जोशी तथा विज्ञापन व्यवस्था से जुड़े प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच की जाये एवं सभी से प्रत्येक छह-छह माह में आय का घोषणा-पत्र इस शर्त के साथ लिया जाये कि यदि जांच में गैर-आनुपातिक आय पाई जाती है तो उसे सेवा से बर्खास्त करने के साथ ही उसकी सारी सम्पत्ति जब्त करते हुए उससे दस गुना जुर्माना वसूल लिया जाये।
ए0बी0सी0 तो नेक्सस है, कार्पोरेट मीडिया घरानों के संस्करणों का, तीन सौ से ऊपर सी0ए0 के समूह का, विदेशी असतित्व वाली विज्ञापन ऐजेन्सियों का, विदेशी विज्ञापन दाता कम्पनी (जैस कोका कोला, एवं आई0टी0सी0) एवं न्यूज ऐजेन्सियों का। क्या आपको पता है कि किस तरह से ए0बी0सी0 को कम्पनीज एक्ट के सेक्शन-25 के तहत निगमित किया गया है? इस संस्था का गठन ही अपरोक्ष रूप से बड़े मीडिया घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए ही किया गया है।
कृपया प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई करते हुए जांच के आदेश एवं उत्तर से अवगत कराना चाहें, अन्यथा मजबूरन हम पत्रकारों को हजारों परिवारों की जीवन एवं देश की रक्षा तथा देश कल्याणकारी राज्य बना रहने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल करनी पड़ेगी, जिसके समस्त हर्जे-खर्चे के लिए सूचना मंत्रालय ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार होंगा।
लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र के मालिकान एवं प्रकाशकों को आपके मंत्रालय के अधीन डीएवीपी द्वारा दी गई मानसिक प्रताड़ना को देखते हुए लिखे गये इस पत्र में यदि कुछ अनुचित लिख गया हो तो वह जिन्दा हूॅं, तो इसीलिए दिखा भी रहा हूॅं कि जिन्दा ही नहीं हूॅं, अभी शरीर में खून भी दौड़ रहा है। मैं एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी का बेटा हूॅं जिसने भारत सरकार द्वारा दिये गये ताम्रपत्र को यह कहकर लौटा दिया कि अब सरकार यह पत्र देकर बतायेगी कि मैं देश के लिए लड़ा तब मैं स्वतंत्रता सेनानी कहलाऊंगा, रखो अपना ताम्रपत्र अपने पास।
कृपया डीएवीपी में व्याप्त भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच किये जाने का आदेश तुरन्त निर्गत करना चाहें।