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Saturday, October 29, 2016

डीएवीपी का न्यू मीडिया में भी खेल

      सतीश प्रधान    

डीएवीपी के एक निदेशक है, अनिन्दय सेनगुप्ता, जिनके पास वेबसाइट्स को सूचीबद्ध किये जाने का अधिकार के0 गणेशन, महानिदेशक डीएवीपी ने दिया है। 01 जून 2016 को उन्होंने फाइल नं0 Dir(New Media) /EAC/Websites/2014/New Media  दिनांक 01 जून 2016 से वेबसाइट्स के सूचीबद्धीकरण और उनके रेट फिक्स करने के लिए पालिसी गाइडलाइन बनाई और डीएवीपी की साइट पर अपलोड की। यहाॅं भी एक अलग स्कैण्डल तैयार हो रहा है।
उक्त गाइडलाइन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आफिस मेमो नं/45/2011-MUC  दिनांक 25 मई 2016 के तहत जारी की गई है।इनके द्वारा जारी गाइडलाइन के प्रथम पेज को यहाॅं इसलिए स्पष्ट करना चाहता हूं कि ये अधिकारी जानबूझकर नोटिफिकेशन का गलत मतलब निकालकर मीडिया को धोखा दे रहे हैं। पालिसी के प्रथम पेज की फोटो पेस्ट की जा रही है।

इसमें सेनगुप्ता ने लिखा है कि The Policy Guidelines for Emplacement and Rate Fixation for Central Govt. Advertisements on Websites are being notified.
क्या सेनगुप्ता बतायेंगे कि इसके ड्राफट को कैबीनेट से कब पास कराया गया और इसे लोकसभा में कब प्रस्तुत किया गया? अथवा सरकार ने इसका नोटिफिकेशन कब जारी किया। 
इस नीति में इसका भी जिक्र है कि वेबसाइट को सूचीबद्ध कराने वालों के लिए अलग से प्रार्थना-पत्र आमंत्रित किये जायेंगे। वे समय-समय पर वेबसाइट को चेक करते रहें। इसमें सेनगुप्ता ने कम्पीटेन्ट अथारिटी का जिक्र किया है, लेकिन ये नहीं बताया है कि आखिरकार काम्पीटेन्ट अथारिटी है, कौन?
इस तथाकथित नीति में यूनिक यजर्स की बात की गई है। वेबसाइट सूचीबद्धता को तीन भागों में विभक्त किया गया है। ए, बी, एवं सी कैटेगरी। सी कैटेगरी के लिए न्यूनतम ढ़ाई लाख से बीस लाख यूनिक यूजर्स, बी केटेगरी के लिए बीस लाख एक से पचास लाख तक, एवं आ कैटेगरी के लिए पचास लाख प्लस यूनीक यूजर्स की शर्त रखी गई है अब इसे देखिए, ये शर्त व्यावहारिक है अथवा अव्यावहारिक।
डीएवीपी ने अपनी वेबसाइट वर्ष 2012 में बनाई है और आज दिनांक 29 अक्टूबर 2016 के दो बजकर दस मिनट तक उसकी ही वेबसाइट को क्लिक करने वालों की संख्या 1,77,75,232 (दो करोड़ सत्तर लाख पचहत्तर हजार दो सौ बत्तीस) है। जबकि हालात ये हैं कि अपने ही कम्प्यूटर पर एक के बाद, दूसरी, तीसरी,..........दसवीं विण्डो आप खोलें तो 30 सेकण्ड में ही विजिटर की संख्या 100 से भी ऊपर पहुंच जाती है। यानी ये यूनीक यूजर्स नहीं हैं।
यूजर्स तो आप अकेले ही हैं, लेकिन जितनी बार आप डीएवीपी की विण्डो  खोलेंगे उतने ही नम्बर इसके बढ़ जायेंगे। अब देखिये 2012 से इस गति  से चल रही इस वेबसाइट की हालत की इन लगभग 55 महीनों में उसकी साइट पर विजिटर्स की संख्या हुई 3,23,186 (तीन लाख तेईस हजार एक सौ छियासी) ये पेज व्यू हैं, यूनीक यूजर्स नहीं। इसके यूनिक यूज़र्स निकाले जायँ  तो ये बीस हज़ार से अधिक नहीं बैठेंगे। देखिए जब वेबसाइट सूचीबद्ध करने वाले डीएवीपी संस्थान की हालत ये है कि वो स्वंय सी  केटेगरी में नही आ रहा, तो अन्य का आना कैसे सम्भव है, जबकि डीएवीपी की वेबसाइट रोजाना खोलना तो लाखों लोगों की मजबूरी है।
Websites will get the advertisements like this.
इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि डीएवीपी के ये अधिकारी कितने नासमझ, अव्यवहारिक और वास्तविकता से दूर हैं। ये कौन सी वेबसाइट्स को सूचीबद्ध करना चाहते हैं, और डीएवीपी के फण्ड को किस तरीके से साइफन करना चाहते हैं, ये जाँच का विषय है.
सुनने में आया है कि वेबसाइट को सूचीबद्ध करने का रेट आठ लाख रूपये है। कितना विज्ञापन ये वेबसाइट पर देंगे, ये तो लेने वाले ही जानें। जैसे प्रिन्ट में लगे अधिकारी दैनिक समाचार-पत्रों की सूचीबद्धता में दो-दो लाख ले लेते हैं, उसके बाद उनका काम खत्म। अब विज्ञापन चाहिए तो उसके लिए पचास प्रतिशत अलग से लेकर विज्ञापन दिलाने वाले दलाल को पकड़िए, वही हाल इस न्यू मीडिया में सेनगुप्ता भी करने जा रहे हैं।
हालात ये हैं कि ये वेबसाइट का सूचीबद्धीकरण कर रहे हैं अथवा ठेकेदारों का। इन्होंने तो टेण्डर निकाल दिया है। जिसमें दो तरह की बिड पड़नी हैं, एक कामर्शियल और दूसरी फायनेन्सियल। डीएवीपी के ये अधिकारी लूट का धन्धा स्थापित कर रहे हैं, वो भी नरेन्द्र मोदी की सरकार में।
स्थापित की गई इस फर्जी नीति के बिन्दु-4 के द्वितीय पैरा में लिखा है कि सूचीबद्धता के लिए विण्डों को- The Window for applications for the next panel will be opened from 01 Dec. to 31 of the previous year for the panel that will come into the following year. For example, the Window for the panel that will come into effect from April 01, 2018 shall be opened from Dec 01 to 31, 2017. The first panel under these Guidelines shall be valid till March 31, 2017.

इसके बाद भी इस फर्जी नीति के तहत अभी से आवेदन-पत्र कैसे मांग लिए गये। इतनी जल्दी सेनगुप्ता को कयों हुई? किसका दबाव था, समय से पूर्व आवेदन पत्र आमंत्रित करने की? ये गणेशन के आदेश पर हुआ अथवा सूचना सचिव श्री अजय मित्तल का वर्तमान में खोली गई विंण्डो पर फायनेन्सियल बिड़ की अन्तिम तिथि बढ़ाये जाने के बाद 10 नवम्बर 2016 है। अब जिस वेबसाइट वाले को एक वर्ष 10 नवम्बर को पूरा हो रहा है, उसका तो सेनगुप्ता ने हक़ मार ही दिया, वो भी भ्रष्टाचार के इटरेस्ट में। 
वेबसाइट के टेण्डर में भाग लेने वाले सावधान रहें, और आठ लाख रुपया कतई ना दें, क्यों कि कुछ लोग न्यायालय में जा रहे हैं। और मामला स्टे हो गया तो कब खुलेगा, पता नहीं। तबतक डीएवीपी के इन अधिकारियों पर क्या गाज गिरती है, पता नहीं।
कुछ पत्रकारों का कहना है कि इसमें से कुछ अधिकारियों ने अपना कालाधन विदेश में रखा हुआ है। और कुछ ने अभी-अभी 40 प्रतिशत देकर सफेद किया है। इनका काला धन खोजने में सी0बी0आई को भी पसीने आ जायेंगे।
सेनगुप्ता जी  वेबसाइट के लिए आवेदन की तिथि को 31 दिसम्बर 2016 तक बढ़ा दें, अन्यथा आप भी जानबूझकर लोगों को गुमराह करने, सूचना मंत्रालय को धोखे में रखने तथा वेबसाइट वालों को गुमराह करने के दाषी पाये जायेंगे। गणेशन,  नाम रख लेने मात्र से गणेश जी नहीं बचायेंगे। ऐसा ही हाल डीएवीपी के प्रकाशन विंग का भी है, जिसकी  कहानी आपको आगे बताई जाएगी। साथ ही ये भी बताया जायेगा की डीएवीपी का उक्त प्रिंटिंग प्रेस से कैसा एग्रीमेंट है। क्या वैसा ही एग्रीमेंट है, जैसा प्रोफॉर्मा उसने हम प्रकाशकों को जारी किया है. क्या उसका एग्रीमेंट भी वैसा ही नहीं होना चाहिए जैसा उसने प्रकाशकों के लिए जारी किया है।.

Saturday, October 22, 2016

भ्रष्टाचार की रेलम-पेल, गणेशन पास, मित्तल फेल

सतीश प्रधान 

उ0प्र0 राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति

लखनऊ। डीएवीपी (डायरेक्टोरेट आफ एडवरटाइजिंग एण्ड वीज्यूल पब्लिसिटी) में भ्रष्टाचार, इस कदर हावी है कि सूचना सचिव, श्री अजय मित्तल जो कि कुछ माह पूर्व ही हिमांचल प्रदेश से दिल्ली आये हैं, कुछ भी करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, और उनके नाम की आड़ में डीएवीपी भ्रष्टाचार मचाये हुआ है। उन्हीं का नाम लेकर समाचार-पत्रों को प्वांट सिस्टम में बांधने और लघु एवं मध्यम समाचारपत्रों को तबाह करने का खेल खेला जा रहा है। डीएवीपी के अधिकारी खुलेआम कह रहे हैं कि जो कुछ भी डीएवीपी में हो रहा है, वह सारा कुछ सूचना मंत्रालय के निर्देश पर ही हो रहा है। मित्तल जी हिमांचल में भी पी0आर0 देखते रहे हैं और साराकुछ उन्हीं के निर्देशन पर हो रहा है, इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं।
Ajay Mittal, Secretary, Information & Broadcasting, Govt. of India

तो क्या ये समझा जाये कि डीएवीपी के अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस, सूचना मंत्रालय ने जारी कर दिया है। डीएवीपी के निदेशक, आर0सी0 जोशी, महानिदेशक श्री के0 गणेशन, मीडिया एग्जीक्यूटिव, बी0पी0 मीना और सहा0 मीडिया एग्जीक्यूटिव्स का एक कॉकस बना हुआ है, जो करोड़ों के भ्रष्टाचार में लिप्त है और माननीय नरेन्द्र मोदी की सरकार को ठेंगे पर रखे हुये है। या ये समझा जाये कि डीएवीपी के अधिकारी भ्रष्टाचार से कमाई जा रही रकम का कुछ हिस्सा ऊपर भी पंहुचा रहे हैं।
                एक हकीकत पेश करता हूं। अत्तर प्रदेश के एक छोटे से जनपद इटावा के लिए डीएवीपी द्वारा 01 अप्रैल, 2016 से 19 अक्टूबर 2016 तक जारी किये गये विज्ञापनों की कम्परेटिव लिस्ट, जो मेरुदण्ड विहीन समाचार-पत्र मालिकों की चेतना को जाग्रत कर पाये तो उन्हीं के हित में है।
K.Ganeshan,Director General of DAVP
उ0प्र0 के जनपद इटावा से प्रकाशित डीएवीपी में जिन हिन्दी दै0 को विज्ञापन जारी किये गये हैं, वो हैं सात। इनमें 13:49 प्रतिवर्ग से0मी0 की दर से लेकर रु28.44 प्रतिवर्ग से0मी0 की दर तक के समाचार-पत्र हैं, लेकिन सबसे अधिक 46 विज्ञापन जिस समाचार-पत्र को दिये गये हैं उसका नाम है, आज का विचार, राष्ट्रीय विचार (इसकी दर है रु 20.68 प्रतिवर्ग से0मी0) जिसे 26 हजार 421 वर्ग से0मी0 के विज्ञापन जारी किये गये हैं, जो सेटिंग-गेटिंग का मास्टर है।
          ताज्जुब इस बात का है कि समाचार-पत्र, ब्लैक एण्ड व्हाइट ही छपता है और उसी में रजिस्टर्ड फिर भी है, फिर भी सारे के सारे विज्ञापन उसे रंगीन ही जारी किये गये हैं, जिसकी कुल धनराशि रुपये छह लाख, चालीस हजार बयालिस रुपये है। डीएवीपी के मीडिया एग्जीक्यूटिव बी0 पी0 मीना ने इसके एवज में रू0 तीन लाख बीस हजार रूपये वसूले हैं। जाहिर है, ये विज्ञापन एडीजी स्तर से ही पास हुए होंगे, इसलिए ये कैसे समझा जा सकता है कि ये कारनामा केवल मीना का ही है।
          इटावा से प्रकाशित देशधर्म, हिन्दी दै0 को कुल 4083.00 वर्ग से0मी0 के मात्र सात विज्ञापन दिये गये हैं, जबकि उसकी दरें, इससे कहीं अधिक रू0 24.03 प्रतिवर्ग से0मी0 हैं। इसी तरह दै0 सबेरा को कुल 10,002 वर्ग से0मी0 के विज्ञापन जारी किये गये हैं जबकि उसकी दरें रू0 28.44 प्रतिवर्ग से0मी0 हैं तथा मूल्य बना है मात्र दो लाख इकतालिस हजार। इसी प्रकार हिन्दी दै0 दिन-रात को मात्र एक लाख ग्यारह हजार के कुल 6338 से0मी0 के 11 विज्ञापन जारी किये गये हैं, जबकि दर उसकी भी रू0 20.68 ही है। माधव सन्देश हिन्दी दै0 को एक लाख छह हजार रूपये के 5135 से0मी0 के 8 विज्ञापन ही जारी किये गये।
         सबसे दुखदायी और विडम्बना वाली बात यह है कि इटावा से प्रकाशित होने वाले दोनों उर्दू दैनिक समाचार-पत्र यथा पैगाम-ए-अजीज और जमीनी आवाज को इस दौरान एक धेले का भी विज्ञापन जारी नहीं किया गया है, जबकि उनकी दरें भी क्रमशः रू0 17.12 एवं रू0 13.49 प्रति वर्ग से0मी0 हैं।
छयालिस विज्ञापन वो भी छब्बीस हजार चार सौ इक्कीस से0मी0 के तो लखनऊ से प्रकाशित होने वाले नामी-गिरामी अखबारों को भी नहीं जारी किये गये, जबकि उनकी हैसियत, आज का विचार, राष्ट्रीय विचार से कहीं अधिक है। इनमें हैं, दै0 आज, जिसे कुल 19,295 से0मी0 के 25 विज्ञापन ही मिले हैं। नवभारत टाइम्स (दिल्ली) को 22,025 से0मी0 के मात्र 30 विज्ञापन, स्वतंत्र भारत को 15, जनसत्ता को 12, वायस आफ लखनऊ को 6, नार्थ इण्डिया स्टेट्समैन को 8टेलीग्राफ इण्डिया को 7, अवधनामा को 13, प्रभात को 11 वहीं इसके दूसरी तरफ स्पष्ट वक्ता को 22, स्वतंत्रता चेतना को 16, तरूण मित्र को 15यूनाइटेड भारत को 27, वायस आफ मूवमेन्ट को 17 विज्ञापन जारी किये गये हैं, और इनमें भी बड़ा खेल किया गया है। लखनऊ के लिए जारी किये गये विज्ञापनों की समीक्षा अगली बार की जायेगी। नागराज दर्पण ने भी किस तरह से डीएवीपी को अपने कब्जे में लिया हुआ है, इसकी स्टोरी भी आगे दी जायेगी।
हम आपको इसी तरह प्रत्येक जनपद की समीक्षात्मक रिर्पाेट प्रस्तुत करेंगे और इसके बाद मा0 न्यायालय में रिट फाइल की जायेगी, यदि इन तथ्यों पर सूचना सचिव श्री अजय मित्तल जी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं तो।

Sunday, October 16, 2016

डीएवीपी की हो सीबीआई जांच

सतीश प्रधान  

उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति 
(अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत) 

सूचना सचिव श्री अजय मित्तल जी आपके कक्ष में लगे निम्न कुटेशन को पढ़कर अधोहस्ताक्षरी की ऊर्जा में गजब का संचार हुआ, और दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ कि इस देश के संचार मंत्रालय का सचिव भारत में मीडिया को रेगूलेट करने की मंशा रखता है याकि उसके अधीन कार्यरत डी0ए0वी0पी0 के अधिकारियों की साजिश में सम्मलित हो सकता है। 

डी0ए0वीपी0 के अधिकारियों ने एक ऐसा फर्जी दस्तावेज (प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016) बनाकर श्री नरेन्द्र मोदी जो को मीडिया विरोधी घोषित करने की तैयारी की है, जो किसी भी तरह का अधिकृत सांविधिक डाक्यूमेन्ट नहीं है। जिस पर ना तो किसी अधिकारी के हस्ताक्षर हैं और ना ही उसे किसी एक्ट अथवा नियमावली के तहत बनाया गया है। जिस प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016 को लागू करने के लिए रोजाना डीएवीपी द्वारा एडवाइजरी जारी की जाती है, उसका भी कहीं कोई वजूद नहीं है। ये केवल देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं उनकी भाजपा सरकार को मीडिया में बदनाम करने की एक गहरी साजिश है। 
उक्त नीति किस अधिनियम/नियम अथवा नोटिफिकेशन के तहत बनाई गई है, उसका वर्णन एवं प्रमाणित डाक्यूमेन्ट डी0ए0वी0पी0 से मंगवाना चाहें।
डीएवीपी के अधिकारियों के इस कृत्य के विरोध में उत्तर प्रदेश की राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति ने अपने समस्त साथियों, पत्रकार बन्धुओं एवं उनके पोशक समाचार-पत्र मालिकान और प्रकाशकों के हित में फैसला लिया है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किये जा रहे अन्याय एवं पक्षपातपूंर्ण रवैइये के तहत आफिसियल मेमो से पैदा की गई प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति- 2016 का विरोध किया जाये तथा पन्द्रह दिनों के अन्दर यदि संविधान के आर्टिकल-14 में प्रदत्त हमारे अधिकारों के हनन को रोका नहीं जाता तथा उक्त असांविधिक नीति-2016 को रद्द नहीं किया जाता है तो माननीय न्यायालय में रिट दाखिल की जाये, क्योंकि प्रिन्ट मीडिया को स्ट्रीम लाइन करने के नाम पर डी0ए0वी0पी0 ने जिस प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति -2016 (नान स्टेच्यूटरी/असांविधिक दस्तावेज) का निर्माण आपके रहते किया है, वह लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र प्रकाशकों एवं उसमें कार्य करने वाले पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों को कुचलने की साजिश है। इसी के साथ इस रेगूलेटरी एक्शन को नीति का नाम दिया जा रहा है, जिसका आधार ना तो कोई एक्ट है, ना ही कोई नियमावली। यहॉं तक की इस पालिसी पर ये भी अंकित नहीं था कि यह भारत सरकार के किस नोटिफिकेशन के तहत जारी की गई है और ना ही इस पर कोई डिस्पैच संख्या अथवा दिनांक पड़ा था, लेकिन मेरी खबर के बाद इस पर आफिस मेमो नं0 (OM NO.) के साथ दिनांक डाल दिया गया है, लेकिन ऐसी चतुराई की गई है कि इसका प्रिन्ट नहीं निकाला जा सकता।
कृपया पॉलिसी की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना चाहें।
यदि वास्तव में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को मीडिया को स्ट्रीम लाइन करना ही है तो उसके लिए एक्ट लाने की आवश्यकता है, जिसके तहत नियमावली बनाई जाये, फिर उसके तहत मीडिया को रेगूलेट किया जाय, इसके लिए मंत्रालय चाहे तो मेरी सहायता ले सकता है। असांविधिक एवं असंवैधानिक तरीके से मीडिया के केवल लघु एवं मध्यम स्तर के समाचार पत्रों को ही रेगूलेट करना किसी भी प्रकार से जायज एवं न्यायिक ना होने के साथ ही असंवैधानिक भी है। निश्चित तौर पर यह एक षड़यन्त्र है, जिसके द्वारा एक नोडल ऐजेन्सी डी0ए0वी0पी0 जैसी संस्था मनमानी करने पर उतारू है। 
आज ही भारत सरकार को एक छोटे से मसले को कैबीनेट में लाना पड़ा, जो कि पैट्रोल में सम्मिश्रण के लिए मिलाये जाने वाले ईथनाल (जो कि गन्ने से बनता है) की कीमत में तीन रूपये की कमी के लिए कैबीनेट में निर्णय लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या ऐसा आफिस मेमो के तहत नहीं किया जा सकता था? डी0ए0वी0पी0 जैसे अधिकारी तो इसे एक आफिस मेमो के तहत ही साल्व कर देते? लेकिन नहीं, कोई भी नीति बगैर केबीनेट में पास हुए लागू नहीं की जा सकती? फिर किस बिना पर डीएवीपी इस फर्जी डाक्यूमेन्ट को नीति बताकर गुण्डई मचाये हुए है?
कृपया प्रमाण उपलब्य कराये जायें कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डीएवीपी की नीति के उक्त ड्राफ्ट को प्रधानमंत्री को किस दिनांक को सम्पन्न हुई कैबीनेट बैठक में रखा और उस पर माननीय राष्ट्रपति महोदय ने किस दिनांक को हस्ताक्षर किये। यदि डीएवीपी महानिदेशालय के अधिकारी किसी असांविधिक ड्राफ्ट को नीति की शक्ल देकर उसके बल पर सबकुछ तहस-नहस कर देने की मंशा बनाये हुए हैं तो उनकी मंशा को कैसे कामयाब होने दिया जा सकता है। यदि एक असांविधिक नीति बनाकर पूरे देश को कन्ट्रोल किया जा सकता है, तो फिर लोकसभा, राज्य सभा, विधान सभा, विधान परिषद, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के साथ ही जिला अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक की आवश्यकता ही क्या है? फिर तो किसी भी विभाग का कोई भी भ्रष्ट अधिकारी कोई भी आदेश जारी कर दे और न्यायालय भी उसे बगैर किसी एक्ट-रूल के प्राविधान के सांविधिक मान ले, तब तो हो गया बंटाधार इस देश का। ऐसी स्थिति से तो देश में तबाही ही मच जायेगी। ऐसी स्थिति के लिए आप महानिदेशालय के किस अधिकारी को दण्डित करेंगे।
कृपया उस अधिकारी का नाम और पदनाम स्पष्ट करना चाहें।
डीएवीपी का गठन मीडिया का स्लाटर (कत्लेआम) करने के लिए नहीं किया गया है, और वह भी मात्र लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र/पत्रिकाओं के। बड़े ग्रुप (कार्पोरेट मीडिया घरानों) के संस्करणों को मलाई चटाने और उस मलाई में से स्वंय को भी हिस्सा मिलता रहे, इसकी भरपूर व्यवस्था डीएवीपी ने इस फर्जी नीति में बड़ी चतुराई से कर ली है। इसीलिए स्वामी/प्रकाशकों के हितार्थ वर्किंग जर्नलिस्ट और समाचार-पत्र संस्थानों में कार्यरत गैर पत्रकारों के कल्याणार्थ इस समिति ने संघर्ष का फैसला लिया है। आखिरकार जब समाचार-पत्र संगठन ही नहीं रहेंगे तो हम कहॉं रहेंगे़? हमें अपने मालिकों के साथ-साथ देश को भी बचाना है। इस फर्जी नीति से मरता क्या ना करता वाली स्थिति पैदा हो गई है।
विज्ञापनों में पेज नं0 के हिसाब से प्रीमियम देने की व्यवस्था किस उद्देष्य से की गई है, इसका स्पष्टीकरण भी दिलाना चाहें।
अभीतक डीएवीपी की विज्ञापन वितरण व्यवस्था स्ट्रीम लाइन नहीं थी तो इसके लिए कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं? जबकि डीएवीपी का उदय ही विज्ञापन बांटने के नाम पर हुआ। डीएवीपी के अधिकारियों द्वारा समाचार-पत्रों के ऐम्पेनलमैन्ट के लिए ली जा रही प्रति समाचार-पत्र दो-दो लाख की रिश्वत मि0 मीना से लेकर गणेशन तक पहुंच रही है? ऐसे-ऐसे समाचार-पत्रों को फिफ्टी-फिफ्टी कमीशन की दर पर अब भी रोजाना विज्ञापन जारी किये जा रहे हैं, जिनकी प्रिन्टिंग प्रेस का ही असतित्व नहीं है। डीएवीपी के ज्यादातर अधिकारियों के बेटे, बेटियों, मॉं, भाई, बाप, बहन के नाम पर समाचार-पत्रों का प्रकाषन किया जा रहा है तथा लाखों रूपये प्रतिमाह बटोरे जा रहे हैं। इसकी जांच आप कब करायेंगे?
क्या आपकी राय में सबसे पहले डीएवीपी को स्ट्रीम लाइन करने की जरूरत नहीं है। डीएवीपी के कितने अधिकारियां ने अपनी आय की घोषणा की हुई है? क्या सी0बी0आइ्र्र0 अथवा सतर्कता आयोग द्वारा उन अधिकारियों की आय की जॉंच नहीं होनी चाहिए जो वर्षो से विज्ञापन जारी किये जाने वाली सीट पर प्रतिमाह मोटी कमाई श्री के0 गणेशन को पहुंचा रहे हैं। डीएवीपी का बाबू र्स्पोट्स यूटीलिटी व्हीकल से आता-जाता है, करोड़ों के उसके पास फ्लैट हैं, और जिसकी प्रत्येक शाम पंचसितारा होटल में ऐसे ही स्वामी/प्रकाशकों के साथ गुजरती है, जो उनकी शाम रंगीन कराते हैं।
उक्त पर सी0बी0आई0/सतर्कता आयोग से जांच के लिए आपको कौन रोक रहा है?
डीएवीपी के हालात ये हैं कि वह दलालों का अड्डा बना हुआ है। फिफ्टी-फिफ्टी की तर्ज पर विज्ञापन दिलाने वाली प्रा0 लि0 कम्पनियां तक गठित हैं, जो यहॉं के विज्ञापन जारी करने वाले अधिकारियों को पैसे से लेकर लड़कियां तक सप्लाई करके व्यवसाय कर रही हैं। ऐसी व्यवस्था अपनी ऑंखों से आप स्वंय डीएवीपी में अन्दर घुसकर देख सकते हैं। जो इसके विरोध में कुछ करने-कहने की कोशिश करता है, उससे कहा जाता है कि चले हो भगत सिंह बनने! अरे जैसे उसे फांसी पर लटका दिया गया, वैसे तुम भी लटका दिये जाओगे, इसलिए जैसी व्यवस्था चल रही है, उसी में अपने को एडजस्ट करना सीखो और मजे करो। आपका अपना परिवार है, कौन इस देश में सुधार करने आया है, जो कुर्सी पर बैठता है, वही लूट में लग जाता है। तुम भी कोई एजेन्ट पकड़ लो और डीएवीपी से रोजाना विज्ञापन पाओ। ये नरेन्द्र मोदी का देश है, यहॉं अडानी और अम्बानी जैसे ही जिन्दा रहेंगे, हम-तुम जैसे नहीं। ये कहना है, डीएवीपी में विज्ञापन जारी करने वाले एक मीडिया एग्जीक्यूटिव का।
डीएवीपी के ऐसे अधिकारी देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करते हुए अपने एक्शन/नीति को जस्टीफाई करते हुए करोड़ों कमा रहे हैं। के0 गणेशन इस सरकार के आने के पूर्व से ही महानिदेशक की कुर्सी पर बैठे हैं, अतिरिक्त महानिदेशक श्री रेड्डी और शर्मा भी तब ही से हैं, और निदेशक श्री जोशी को श्री गणेशन, महानिदेशक नियुक्त होने के बाद लेकर आये हैं। डीएवीपी के भ्रष्टाचार में इनके आने के बाद से चार गुना इजाफा हुआ है।
के0 गणेशन तो किसी छोटे एवं मध्यम समाचार-पत्र के प्रकाशक से मिलना तो दूर टेलीफोन पर भी वार्ता नहीं करते। उनके निजी सचिव, बमुश्किल यदि फोन उठा लें तो पहले पूछेंगे कि आपकी समस्या क्या है, यदि आपने कहा कि समस्या कोई नहीं, मुझे उनसे मिलना है, तो कहेंगे कि जब समस्या नही तो मिलकर उनका समय क्यों बर्बाद करेंगे। अतः जो समस्या है बताइये, और आपने यदि समस्या बताई तो निदान सिर्फ यही है कि वह किसी दूसरे अधिकारी से मिलने को ठेल देंगे। अब बताईये मुझ शिकायत करनी है कि आपके यहॉं विज्ञापन की सीट पर बैठा अमुक अधिकारी कहता है कि विज्ञापन चाहिए तो दलाल को पकड़िये, तो इसे कौन सुनेगा। महानिदेशक श्री के0 गणेशन के कार्यालय का तो हाल यह है कि उनको ईमेल पर भेजे मैसेज बाउन्स होकर वापस आ जाते हैं, जिसकी ताजा स्थिति का प्रमाण नीचे अंकित है।

इस समिति का निवेदन है कि मीडिया को स्ट्रीम लाइन करने से पहले डीएवीपी के महानिदेशक, श्री के0 गणेशन, अति0 महानिदेशक, श्री रेड्डी एवं श्री शर्मा, एवं निदेशक श्री आर0सी0जोशी तथा विज्ञापन व्यवस्था से जुड़े प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच की जाये एवं सभी से प्रत्येक छह-छह माह में आय का घोषणा-पत्र इस शर्त के साथ लिया जाये कि यदि जांच में गैर-आनुपातिक आय पाई जाती है तो उसे सेवा से बर्खास्त करने के साथ ही उसकी सारी सम्पत्ति जब्त करते हुए उससे दस गुना जुर्माना वसूल लिया जाये।
ए0बी0सी0 तो नेक्सस है, कार्पोरेट मीडिया घरानों के संस्करणों का, तीन सौ से ऊपर सी0ए0 के समूह का, विदेशी असतित्व वाली विज्ञापन ऐजेन्सियों का, विदेशी विज्ञापन दाता कम्पनी (जैस कोका कोला, एवं आई0टी0सी0) एवं न्यूज ऐजेन्सियों का। क्या आपको पता है कि किस तरह से ए0बी0सी0 को कम्पनीज एक्ट के सेक्शन-25 के तहत निगमित किया गया है? इस संस्था का गठन ही अपरोक्ष रूप से बड़े मीडिया घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए ही किया गया है।
कृपया प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई करते हुए जांच के आदेश एवं उत्तर से अवगत कराना चाहें, अन्यथा मजबूरन हम पत्रकारों को हजारों परिवारों की जीवन एवं देश की रक्षा तथा देश कल्याणकारी राज्य बना रहने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल करनी पड़ेगी, जिसके समस्त हर्जे-खर्चे के लिए सूचना मंत्रालय ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार होंगा।
लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र के मालिकान एवं प्रकाशकों को आपके मंत्रालय के अधीन डीएवीपी द्वारा दी गई मानसिक प्रताड़ना को देखते हुए लिखे गये इस पत्र में यदि कुछ अनुचित लिख गया हो तो वह जिन्दा हूॅं, तो इसीलिए दिखा भी रहा हूॅं कि जिन्दा ही नहीं हूॅं, अभी शरीर में खून भी दौड़ रहा है। मैं एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी का बेटा हूॅं जिसने भारत सरकार द्वारा दिये गये ताम्रपत्र को यह कहकर लौटा दिया कि अब सरकार यह पत्र देकर बतायेगी कि मैं देश के लिए लड़ा तब मैं स्वतंत्रता सेनानी कहलाऊंगा, रखो अपना ताम्रपत्र अपने पास।
कृपया डीएवीपी में व्याप्त भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच किये जाने का आदेश तुरन्त निर्गत करना चाहें।