लखनऊ-एक तुम ही बचे हो भारत में जो डायलिसिस पर पड़ी भारतीय जनता को जिन्दा रखे हो, वरना तो इण्डियन सरदार मनमोहन सिंह एण्ड कम्पनी ने इस देश की ऐसी की तैसी करके रख दी है। गाली नहीं लिख सकता, इसीलिए कुण्ठा में ऐसी की तैसी लिखकर ही दिल को ठंडक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूँ।
इस देश में नेता, नेता को बचा रहा है, अफसर, नेता को बचा रहा है। ये दोनों फंसते हैं तो वकील उन्हें बचा रहे हैं। और इन सबको पाल रहा है या यूं कहिए बचा रहा है पूंजीपति। सबसे ज्यादा मजे में इस हिन्दुस्तान में यदि कोई है तो वह है उद्योगपति/पूंजीपति। कुल मिलाकर भ्रश्ट, भ्रष्ट को बचा रहा है, लेकिन जनता है कि सबको बचा रही है और खुद मरी जा रही है। उसके खून में ग्लूकोज़ की कमी हो गई है। वह इतनी कमरतोड़ मंहगाई एवं दिन-रात लुटने के बाद भी सड़क पर उतरने को तैयार नहीं दिखाई देती।
मेरी कुण्ठा से भारत का सुप्रीम कोर्ट भी इत्तेफाक रखता है, इसकी बानगी आप नीचे उद्धृत अंश से देख सकते हैं।
सम्पत्ति का अधिकार, संवैधानिक अधिकार है।
सम्पत्ति का अधिकार, संवैधानिक अधिकार है।
-सुप्रीम कोर्ट आफ इण्डिया-
सम्पत्ति का अधिकार, संवैधानिक अधिकार है, और सरकार मनमाने तरीके से किसी व्यक्ति को उसकी भूमि से वंचित नहीं कर सकती है। न्यायमूर्ति जी.एस.सिंद्यवी और न्यायमूर्ति ए.के.गांगुली की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि जरुरत के नाम पर निजी संस्थानों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में सरकार के काम को अदालतों को सन्देह की नज़र से देखना चाहिए।
पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति सिंद्यवी ने कहा कि अदालतों को सतही नज़रिया नहीं अपनाना चाहिए। सामाजिक और आर्थिक न्याय के संवैधानिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर मामले में फैसला करना चाहिए। सम्पत्ति का अधिकार यद्यपि मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह अब भी महत्वपूंर्ण संवैधानिक अधिकार है, और यदि संविधान के अनुच्छेद 300ए के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति से कानून के प्राधिकार के अलावा किसी भी तरह से वंचित नहीं किया जा सकता है।
सीबीआई कारपोरेट दिग्गजों को बचा रही है।
सीबीआई कारपोरेट दिग्गजों को बचा रही है।
-सुप्रीम कोर्ट आफ इण्डिया-
यह टिप्पणी माननीय कोर्ट ने 2-जी स्पैक्ट्रम द्योटाले में कारपोरेट दलाल नीरा राडिया और अन्य के खिलाफ आयकर चोरी की जॉंच की धीमी गति पर की है। जॉंच में सीबीआई, आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय एवं आर.बी.आई तबतक तेजी नहीं दिखायेंगे, जबतक माननीय सुप्रीम कोर्ट इसकी सुस्ती में धन सप्लाई की खोज़ की जॉंच के आदेश नहीं देगा और जबतक किसी एक विभाग के मुखिया को इसमें बर्खास्त नहीं करेगा। बड़ी मोटी खाल के हैं ये अधिकारी।
ये आंकड़े दिमाग को झकझोर कर रख देने वाले हैं।
-सुप्रीम कोर्ट आफ इण्डिया-
यह टिप्पणी मा0 सुप्रीम कोर्ट ने 2-जी स्पैक्ट्रम द्योटाले में आयकर विभाग की ओर से सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई पहली रिर्पोट में VªkUtsD”ku के आंकड़ों को देखकर करनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट सन्न रह गया, और उसे यह कहना पड़ा कि ये आंकड़े दिमाग को झकझोर कर रख देने वाले हैं। पीठ ने कहा कि हम लोगों ने अपनी जिन्दगी में इतने जीरो कभी नहीं देखे। यहॉं तक कि इसके आधे जीरो भी नहीं देखे हैं। इतने जीरो तो सिर्फ स्कूल की गणित की किताब में होते हैं।
अदालत यह महसूस करती है कि जॉंच विषेश जॉंच दल को सौंपी जानी चाहिए, साथ ही इस मामले की जॉंच हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या अन्य सक्षम व्यक्ति की निगरानी में की जानी चाहिए।
-सुप्रीम कोर्ट आफ इण्डिया-
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विदेश में कालाधन रखने वाले सभी भारतीयों की जॉंच हो। भारत सरकार के ढुलमुल रवैये और यह कहने पर की कालेधन के मुद्दे पर कई एजेन्सियॉं जॉंच कार्य कर रही हैं तथा कोई रिजल्ट नहीं निकल रहा है। सुप्रीम कोर्ट को आर.बी.आई. और पासपोर्ट के मामले में सीबीआई को जॉंच के लिए आदेश देने चाहिए।
जॉच हसन अली पर ही क्यों टिकी है।
-सुप्रीम कोर्ट आफ इण्डिया-
घोड़ा व्यापारी एवं हवाला कारोबारी हसन अली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम बहुत ही सादगी और सीधे तौर पर पूछ रहे हैं कि क्या स्विस बैंक में खाता रखने वाला और कोई व्यक्ति सन्देह के घेरे में नहीं है ?
न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एस.एस.निज्जर की खण्डपीठ ने विदेशी बैंकों में कालाधन जमा करने वालों के नाम का खुलासा करने एवं एस.आई.टी. के गठन पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
रामजेठमलानी और अन्य ने कालेधन को विदेश से वापस लाने की अपील की है, इसी के साथ रामजेठमलानी, डी.एम.के. प्रमुख करुणानिधी की बेटी कनिमोझी जो कि 2-जी स्पैक्ट्रम द्योटाले में फंसी हैं, को बचाने के लिए भी पैरवी कर रहे हैं और सुना गया है कि इस कार्य के लिए उन्होंने एक करोड़ की फीस वसूली है। यह कैसा दोहरा चरित्र है जो एक ओर स्विस बैंक के खातेदारों का नाम खुलवाना चाहता है, वहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों को बचाना चाहता है जो तबियत से इस देश को लूट रहे हैं।
रामजेठमलानी की सारी काबलियत मा0 सुप्रीम कोर्ट ने घुसेड़ दी। उसने अनतत्वोगत्वा कनिमोझी को तिहाड़ जेल पहुंचा ही दिया, लेकिन इतनी परिणति ही काफी नहीं है। इन सबसे दस गुनी रकम का रिकवरी सर्टीफिकेट जारी किया जाना चाहिए जितने का इन्होंने द्योटाला किया है।
राष्ट्रीय क्षितिज पर यह Li’Vदेश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने बीड़ा उठाया हुआ है वह निसन्देह सराहना के योग्य है।
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई में चलाया जा रहा अभियान क्लीन इण्डिया को जितना ज्यादा से ज्यादा सर्पोट हम दे पायेंगे, उतना ज्यादा से ज्यादा हम सुखी और खुशीपूर्वक रह पायेंगे। सुप्रीम कोर्ट के इसी बेलाग प्रयास पर बोलने को क्या चिल्लाने का मन करता है कि सुप्रीम कोर्ट जिन्दाबाद, सुप्रीम कोर्ट जिन्दाबाद............. सुप्रीम कोर्ट अमर रहे।
आज की तारीख में जितने भी बड़े मगरमच्छ हैं, चाहे वह ए.राजा हो अथवा कलमाड़ी। रिलायन्स के अधिकारी हों या अन्य। सभी को अपनी हैसियत समझ में आ गई होगी। भ्रष्टाचार के अगेन्स्ट में जितना भी कुछ हो रहा है वह केवल सुप्रीम कोर्ट का ही डण्डा है, वरना तो हमारे इण्डियन सरदार मनमोहन सिंह इतने ढ़ीठ हैं कि कुछ भी करने वाले नहीं हैं। वह तो स्विस बैंक में भारतीय मगरमच्छों के जमा कालेधन को भी दोहरी कर नीति के चक्कर में फंसा कर किसी का भी नाम ना जाहिर करने का मन बना चुके हैं।
अब देखना यही है कि सुप्रीम कोर्ट आफ इण्डिया के चाबुक में कितना दम है। उसे निःसन्देह वह सब करना चाहिए जो इस देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट को ही भारत को हांगकांग बनाना है। भारतीय जनता अन्ना हजा़रे से कहीं ज्यादा सुप्रीम कोर्ट का साथ देगी, यदि सुप्रीम कोर्ट ईमानदारी से इसी तरह कार्रवाई करता रहा तो।
विधायिका, कार्यपालिका और चौथा खम्भा जो इन्हीं दोनों के नेक्सस का पार्ट है, धीरे-धीरे स्वंय ही सुधार जायेगा, यदि सुप्रीम कोर्ट अपना तेवर बरकरार रखे। क्या कहा जाये कितने ही इलैक्ट्रानिक चैनल और प्रिन्टमीडिया के संस्थान विदेश से ब्लैंक चेक पाते हैं। जाहिर है ये ब्लैंक चेक ईमानदारी से काम करने के लिए तो नहीं ही आते होंगे। ये तो राड़िया, बरखादत्त, सिंद्यवी जैसों के लिए आते हैं कि खूब भ्रष्टाचार करो और हमारे मन मुताबिक काम करो।
एक चैनल को तो केवल इसलिए ब्लैंक चेक आता है कि वह कैसे गुजरात में केवल मुस्लिम और ईसाइयों पर हुई छोटी सी भी घटना को बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित करें। मीडिया, सरकारों का गुलाम हो गया है। मान्यता प्राप्त पत्रकार पैदा करके सरकार ने ईमानदार पत्रकारिता की कमर तोड़ दी है। आसानी से समझा जा सकता है कि मान्यता किसे और क्यों दी जाती है। यहॉं इसकी समीक्षा किया जाना आवश्यक है कि क्या अंग्रेज सरकार भारतीय उन पत्रकारों को मान्यता देती थी जो देश के स्वतंत्रता सेनानियों का साथ देते थे तथा अंग्रेज सरकार के काले कारनामों का पर्दाफाश करते थे।
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