ये काले लुटेरे इस देश का धन लूटकर विदेशी खजाने में जमा कर रहे हैं। इसे ही कालाधन कहा जाता है, क्योंकि इस पर भारत में आयकर अदा नहीं किया जाता। आयकर इसलिए जमा नहीं किया जाता क्योंकि इसका श्रोत बताने लायक नहीं है। भारत में कालेधन के खिलाफ चहुं ओर से उठ रही आवाज, बाबा रामदेव के कालेधन के खिलाफ किये गये राष्ट्रव्यापी आंदोलन एवं उच्चतम न्यायालय में दाखिल पीआईएल पर कोई फैसला आये इससे पूर्व ही डा0 मनमोहन सिंह की सरकार ने बड़ी होशियारी से केन्द्रीय राजस्व सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया और उसमें सीबीआई एवं प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक राजस्व खुफिया के महानिदेशक, नारकोटिक्स के महानिदेशक एवं सीबीडीटी के अध्यक्ष सहित कुछ अन्य को सदस्य बनाकर यह दिखाने की कोशिश की कि वे इस समस्या से आहत हैं तथा ईमानदारी से इसकी तह तक जाकर विदेश में जमा काले धन को भारत में लाना चाहते हैं।
ध्यान रहे ये सारे अधिकारी और विभाग वैसे भी डा0 मनमोहन सिंह के अधीन ही हैं फिर क्यों जांच समिति बनाने की जरूरत पड़ी? दरअसल ये सब सरकार की नौटंकी है, क्योंकि कालेधन को भारत में लाने की मांग करने वाले बाबा रामदेव के साथ कैसा क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया किसी से छिपा नहीं है। यही कृत्य दर्शाता है कि सरकार ने ठीक वैसा ही कार्य किया जैसे कि कोई दरोगा रात में सिविल ड्रेस में डकैती डाले और दिन में वर्दी पहनकर स्वयं उस डकैती की जांच पर निकल पड़े। चिदम्बरम, कपिल सिब्बल और डा0 मनमोहन सिंह ने ठीक वैसा ही किया। दिन के उजाले में कालेधन को बाहर भेजने में मदद की तथा उसकी जांच की मांग करने वाले बाबा को रात के अंधेरे में आतंकित किया। कालेधन से देश को हो रहे नुकसान से यदि कोई सबसे ज्यादा चिंचित था तो बाबा रामदेव, उच्चतम न्यायालय और इस देश की 121.90 करोड़ निरीह जनता, जिसके पास पांच साल तक इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प शेष नहीं है। इसी के साथ सत्ता में रहने वाली अथवा विपक्ष की भूमिका निभा रहीं सारी पार्टियों का चरित्र एक सा दिखाई दिया। केन्द्र में विपक्ष की भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी का चरित्र भी कमोबेश सत्तापक्ष वाला ही है। जिधर निगाह डालिए सभी राजनीतिक दल कम्बल ओढ़कर मलाई चट करने में लगे हैं। भाजपाईयों ने तो सारी सीमाएं लांघ डाली हैं, और पूरी बेशर्मी के साथ लुटिया चोर मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा को खुली छूट दे रखी है।
भगवान ही मालिक है इस देश का कि पूरी सरकार ही चोरों की जमात या कहिए अलीबाबा और 40 चोर वाली हो गयी है, केन्द्र हो या कर्नाटक की धरती। कर्नाटक में पूरी सरकार दोनो हांथो से कर्नाटक की धरती में दबे लोहे की लूट डंके की चोट पर करती रही है। ऐसी सरकार को क्या सरकार कहना उचित है? लुटेरों के सत्ता पर काबिज होने का इससे बड़ा उदाहरण आजतक कहीं नहीं देखा गया है। इसपर बेशर्मी ये कि भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन चला रही है! जिस पार्टी को लूट के धन से चलाया जा रहा हो क्या वह इस देश के लोगों को स्वच्छ प्रशासन दे सकती है?
ऐसा केवल कर्नाटक में ही हो रहा है, ऐसा भी नही है। हरियाणा में अवैध खनन का एक माफिया प्रत्येक उस राज्य में खटाक से पहुच जाता है जहॉं भी भाजपा की सरकार बनती है। इसके कार्य करने की पद्वति जरा अलग है, पहले यह वहॉं से अखबार निकालता है और फिर खनन के कारोबार में घुसकर राष्ट्रभक्ति के गीत गाता हुआ भाजपाईयों की सेवा करता है। लगता है भाजपा अब ऐसे ही लोगों के पैसों से चलेगी। कौन सा ऐसा कारण है कि इस अवैध खनन के करोबारी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सम्मानित सदस्य बनाया गया है? क्या इस पार्टी का यही आर्थिक दृष्टिकोंण है कि सरकारी माल को बाप की जागीर समझो और ऐश करो। कांगे्सियों ने तो राजनीति को व्यापारिक दृष्टि से चलाने की ठान ली है मगर भाजपाईयों से यह अपेक्षा कहॉं थी कि वे सीधे ही इसे बाजार में बिकने की वस्तु बना देंगे।
किस्मत देखिए इस देश की कि दक्षिण भारत में पहली बार कर्नाटक में भाजपा का कमल खिला तो उसने पूरे राज्य को ही कीचड़ में तब्दील कर दिया, जिसके कारनामों को उसकी पार्टी का अध्यक्ष अनैतिक तो कहता है, लेकिन असंवैधानिक नहीं। क्या खूब तोड़ निकाला है चोरों को चोर रास्ते से बाहर सुरक्षित निकालने का। धिक्कार है ऐसी पार्टी और नेताओं पर जो सब कुछ अनैतिक मानते हुए भी कहते हैं कि हम कानून के अनुसार काम करेंगे।ऐसी ही विषम परिस्थितियों में उच्चतम न्यायालय ने विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर अभूतपूर्व एवं बहुत ही तर्कसंगत और राष्ट्रहित में बुद्धिमता पूर्ण फैसला दिया है। उच्चतम न्यायालय ने धू्रतापूर्वक बनाई गई उच्च स्तरीय जांच समिति को ही एस.आई.टी. में तब्दील करते हुए उसके अध्यक्ष पद पर पूर्व न्यायाधीश श्री बीपी जीवन रेड्डी तथा उपाध्यक्ष पद पर पूर्व न्यायाधीश को सम्मिलित करते हुए इसमें रॉ के पूर्व निदेशक को भी बतौर सदस्य सम्मिलित कर अपने अधीन कर लिया। देश हित में इससे अच्छा फैसला कोई दूसरा हो ही नहीं सकता। अब एस.आई.टी को विदेशी बैंकों में जमा भारत के कालेधन के बारे में जांच करने के साथ-साथ आपराधिक कार्रवाई एवंअभियोजन का भी अधिकार होगा। ऐसा पहलीबार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे जांच का काम अपने हाथ में ले लिया है। ऐसा उसने क्यों किया इसके भी पर्याप्त कारण हैं।
अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर कालेधन का विदेशों में जाना बताता है कि संविधान के परिप्रेक्ष्य में शासन को दुरुस्त तरीके से चलाने की केन्द्र सरकार की क्षमता क्षीण हो गई है। यह नोबेल पुरस्कार विजेता गुजर मिरइल के ‘नरम राष्ट्र’ की अवधारणा की याद दिलाता है। राज्य जितना ही नरम होगा कानून बनाने वालों, कानून की रखवाली करने वालों तथा कानून तोड़ने वालों में अपवित्र गठजोड़ की संभावना उतनी ही बलवती होगी। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि हसन अली एवं काशीनाथ तापुरिया तक से पूछताछ लम्बे समय तक नहीं हुई है और जब अदालत के निर्देश पर ऐसा किया गया तो कई कार्पोरेट घरानों के दिग्गजों, राजनीतिक रूप से शक्तिशाली लोगों तथा अंतर्राष्ट्रीय हथियार विक्रेताओं के नाम सामने आए। इसी के साथ केन्द्र सरकार मन्थर गति से चल रहे अन्वेषण का भी कोई संतोषजनक कारण नहीं बता पाई।
निर्णय में यह भी कहा गया कि स्विट्जरलैण्ड के यूबीएस बैंक को रिटेल बैंकिंग के लिए लाइसेंस देने से भारतीय रिजर्व बैंक ने 2003 में इस आधार पर मना कर दिया था कि हसन अली मामले में प्रर्वतन निदेशालय उसकी जांच कर रहा है। 2009 में यूबीएस बैंक को लाइसेंस जारी कर दिया गया तथा अपने निर्णय को बदलने का आर.बी.आई. द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया। यह संस्थान भी खूब गोरखधंधा करता है तथा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कालाधान एक अत्यंत ही गंभीर समस्या है जिसका नकारात्मक प्रभाव केवल अर्थव्यवस्था पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी पड़ता है, क्योंकि आतंकवादी गतिविधियों में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। अब सवाल यह भी उठता है कि क्या विशेष जांचदल (एसआईटी) के गठन से कालाधान वापस लाने की प्रक्रिया तेज हो पाएगी? हवाला मामले में उच्चतम न्यायालय की निगरानी में की गई जांच के बावजूद एक भी आरोप पत्र ट्रायल कोर्ट में खरा नहीं उतरा और सभी अभियुक्त दोषमुक्त हो गये।
अभी 42 देशों के बैंकों में भारत का कालाधन है। इनमें 26 देशों से भारत सरकार की सहमति होनी है। दरअसल 2008 में पूरे विश्व में आये क्रेडिट क्रन्च के बाद सभी देशों का ध्यान इस समस्या पर गया तो संयुक्त राष्ट्र ने इस बारे में प्रस्ताव पारित किया जिससे इन देशों के ऊपर दबाव बढ़ा, किन्तु अभी भी कई देश अपने गोपनीय कानून को बदलने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका में फ्लोरिडा की अदालत में यूबीएस बैंक के विरुद्ध एक मुकदमा दायर हुआ तो बैंक उन चार हजार अमेरिकियों के नाम देने पर सहमत हो गया जिनके खाते उस बैंक में थे, किन्तु स्विट्जरलैण्ड की संसद ने उस करार को रद्द करते हुए कहा कि वह जुर्माना भरना पसंद करेगा किन्तु गोपनीयता कानून के साथ समझौता नहीं करेगा। इसका सीधा सा मतलब है कि उस देश की पूरी अर्थव्यवस्था ही गोपनीय खातों में जमा धन से चल रही है।
एसआईटी गठन से देश को लाभ ही होगा और वह सरकार को आवश्यक कार्रवाई के लिए आवश्यक निर्देश दे पायेगा। उच्चतम न्यायालय ने सपाट शब्दों में कहा कि असफलता संवैधानिक मर्यादाओं या राज्य को प्राप्त शक्तियों की नहीं है बल्कि उन व्यक्तियों की है जो विभिन्न एजेन्सियों को चला रहे हैं। ऐसा कृत्य नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन है। संविधान के अनुच्छेद-14 के अन्तर्गत कानून की नजर में सभी समान हैं। अदालत ने माना है कि यहां कानून तोड़ने वालों को राज्य का संरक्षण मिल जाता है। सेन्ट्रल हाल में बात के बतंगड़ कार्यक्रम में ऐसे फैसलो पर ईटीवी के हरिशंकर व्यास और मि. शर्मा जो हिन्दुस्तान टाइम्स में थे ने टी.वी. चैनल पर समीक्षा करते हुए कहा कि यह तो सरकार के कार्यक्षेत्र में बेजा दखल है। उन्हें सरकार द्वारा की जा रही भ्रष्ट कारगुजारियां इसलिए नहीं दिखाई दे रहीं क्योंकि वे भी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। ये सब या इनके चैनल, सरकार के रहमोकरम पर जीते हैं। हरिशंकर तो टी.वी.पर एकदम जनाने स्टाइल में वार्ता करते हैं। उन्हें देख कितने ही लोग टी.वी. बंद कर देते हैं। दलाल पत्रकारों का पूरा गैंग इस समय एक चैनल में घुस गया है। ये ऐसे लोग हैं जो सत्ता के गलियारे में सरकार के खिलाफ चिल्लाते हैं लेकिन सरकार के रूम में पहुंचते ही बिस्तर पर लेट जाते हैं।
दरअसल मीडिया के ज्यादातर लोगों की कलम और समीक्षा करने की शक्ति अपने व्यक्तिगत लालच के चक्कर में सरकार के पास बंधक पड़ी है। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि पत्रकारों के पास भी करोड़ों की कीमत के बंगले हैं। वे भी ऑडी और मर्सेडीज में घूमते हैं। साथ ही मौज-मस्ती के लिए बहुत सी नीरा राडिया भी उनके पास हैं। विदेश में जमा कालाधन वापस भारत में लाने के साथ-साथ इसी भारतवर्ष में जमा/रखे काले धन को भी खोजना होगा। जिसने भी काला धन विदेश में जमा किया है निश्चित रूप से समझ लीजिये कि जितना उसने विदेशी बैंकों में डाला है उससे कई गुना अधिक इसी देश में रखा है। इस देश में खजाना ही खजाना है। अंग्रेज बेवकूफ नहीं हैं कि भारत को सोने की चिड़िया कहता है। यहां तो इतना खजाना है कि कुबेर का खजाना भी कम पड़ जाये। हमारी मनोधारणा ऐसी है कि आज भी हम यह सोच बैठे हैं कि खजाना तो राजा-महाराजाओं के पास ही होता था लेकिन उनको पता नहीं कि हिन्दुस्तान में राजाओं को भिखारी बना देने के बाद खजाना कहीं गुल थोड़े ही हो गया। जिस तरीके से राजाओं के पास खजाना एकत्र होता था ठीक उसी तरह से अब आज की सत्ता के पास खजाना एकत्र होता है। पहले इस देश में 543 राजा थे अब 543 की जगह, केन्द्र में पूरा मंत्रिमण्डल है, राज्यों में पूरा मंत्रिमण्डल है तथा केन्द्र शासित प्रदेशों का पूरा मंत्रिमण्डल है।
खजाने की जानकारी मिलना शुरू हुई हर्षद मेहता के हजारों करोड़ के शेयर घोटाले से। इससे देश की जनता को पहली बार पता लगा कि असली खजाना तो शेयर दलालों के पास है। इसके बाद एक राजनेता के यहां रजाई-तकियों में और यहां तक की बड़ी-बड़ी पन्नियों में नोट मिले तो लगा अरे खजाना शेयर दलाल के यहां नहीं नेताओं के पास है। लेकिन उदारीकरण के दौर में जब हमारे यहां के करोड़पतियों की संख्या बढ़ने लगी और वे फोर्ब्स पत्रिका की सूची में जगह पाने लगे, कोई दुनिया के अमीरों में सर्वोच्च स्थान पाने लगा और कोई पहले दस में आने लगा तो लगा पिछला आंकड़ा सब बकवास है, खजाना, तो वास्तव में इन धन्ना सेठों/उद्योगपतियों के पास है। इसके बाद जब नेताओं की ही तरह आईएएस अफसरों के यहा भी रजाइयों के अलावा नोट गिनने की मशीन पकड़ी गई तो लगा अरे ये शेयर दलाल, धन्ना सेठ/उद्योगपतिें/नेता तो सब इनके सामने बौने हैं। असली खजाना तो इन अधिकारियों के पास है। इसके अलावा भी इनके पास से बैंक लॉकर में करोड़ों रुपया, फार्म हाउस और रीयल इस्टेट में उनके निवेश का पता लगा तो पक्का हुआ कि असली खजाना इन्हीं के पास है।
आगे जानकारी मिली कि घोड़ों के व्यापारी हसन अली के पास भी साठ-सत्तर हजार करोड़ का खजाना है तो लगा कि भाई इस भारत वर्ष में खजाने की कोई कमी नहीं है। सज्जन व्यक्ति को छोड़कर खजाना बहुतेरे के पास है। नेता ए. राजा के पास एक लाख करोड़ से ऊपर का खजाना है। सुरेश कलमाड़ी और कनिमोझी के पास भी खजाने की कमी नहीं है। खजाना शरद पवार के पास है, मधुकोड़ा के पास है, मुलायम सिंह के पास है, अमर सिंह के पास है, कपिल सिब्बल के पास है, सोनिया गांधी के पास है। बाबा रामदेव ने ऐसे खजाने के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया कि देश का खजाना कुछ तथाकथित लोगों के विदेशी बैंक खाते में जमा हैं, जिसे वापस भारत लाया जाये तो पूरी केन्द्र सरकार गुण्डई पर उतर आई। बाबा रामदेव से नाराज होने पर केन्द्र सरकार ने बाबा के ही खिलाफ जांच बैठा दी कि बाबा के ट्रस्ट की जांच की जाये जिस पर बाबा ने ट्रस्ट की एवं अपनी सम्पत्ति की घोषणा कर दी। जांच बाबा रामदेव के खिलाफ बैठी लेकिन परेशानी अन्य बाबाओं को होने लगी। तब पता लगा कि अरे बहुत बड़ा खजाना तो इन बाबाओं के पास भी है। अभी हाल में पुट्टापर्थी के सांईबाबा की मृत्यु के बाद तथा केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर का तहखाना खुला तो पता चला कि खजाना तो वास्तव में भगवान जी के तहखाने में छिपा है। तब पता लगा कि असली खजाना तो भारत में पुजारी जी छिपाये बैठे हैं।
अब बताइये भारत में खजाने की कमी कहां है। जरूरत तो इसे राष्ट्रहित में जब्त करने और गरीबों के उत्थान में खर्च करने की है। कालेधन की जांच पर विशेष जांच दल (एस.आई.टी) के गठन के फैसले से असहमत हुई सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसकी समीक्षा करने और इसे वापस लेने की अपील की है। सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई को एसआईटी के गठन का आदेश दिया था। सरकार का कहना है कि यह आदेश उसका पक्ष पूरी तरह सुने बगैर दिया गया था। एसआईटी के गठन फैसलें पर पुर्नविचार के साथ आदेश को वापस लेने वाली याचिका दायर करने का फैसला इसलिए लिया गया है ताकि उसे अदालत में अपनी बात कहने का मौका मिल सके। दरअसल पुर्नविचार याचिका की समीक्षा बंद कमरे में होती है और इसमें वकीलों को भी उपस्थित रहने की इजाजत नहीं होती जबकि आदेश वापस लेने की याचिका की सुनवाई खुली अदालत में होती है।
इस याचिका की जरूरत ही क्या है. सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश क्या किसी विदेशी एजेंसी से कराने के दिये है। यदि केंद्र सरकार ईमानदार है तो उसे परेशान होने की जरूरत ही नहीं है। एसआईटी में उसी के विभाग के अधिकारी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने किसी अधिकारी का आयात नहीं किया है फिर क्यों मनमोहन सरकार चिंतित है? सुप्रीम कोर्ट को अटार्नी जनरल और अन्य ऐसे सरकारी वकीलों को भी आगाह करना चाहिए कि बेतुके और जनहित/देशहित के विपरीत किये गये कार्यपालिका के काम के बचाव में याचिका दाखिल करने की कोशिश ना करें। सरकार को सही राय दें। कानून मंत्रालय में बैठे न्यायिक सेवा के अधिकारियों को भी सचेत किया जाना चाहिए कि किसी भी प्रकार की ऐसी सलाह ना दे जो जनहित/देशहित के विपरीत हो।
सतीश प्रधान