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Saturday, April 17, 2021

भारत से अपनी दुकान क्यों समेट रहा सिटी बैंक

प्रमुख अमेरिकी बैंक “सिटी बैंक” का भारत में अपना कारोबार समेटने का फैसला कुछ गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। आखिरकार क्यों विदेशी बैंकों के भारत में पैर उखड़ रहे हैं? इनके लिए भारत क्यों कठिन काम करने का स्थान साबित हो रहा है, वो भी कारोबार करने के लिहाज से ?


सिटी बैंक ने कहा कि ग्लोबल स्ट्रैटजी के हिस्से के रूप में वह भारत में अपना कंज्यूमर बैंकिंग बिजनेस बंद करने जा रहा है। 1985 में सिटी बैंक ने भारत में कंज्यूमर बैंकिंग बिजनेस शुरू किया था।

अगर पीछे मुड़कर देखें तो पता चलता है कि बैंक आफ अमेरिका ने 1998 में, एएनजे ग्रिंडलेज बैंक ने 2000 में, एबीएन ऐमरो बैंक ने 2007 में, ड्यूश बैंक ने 2011 में, आईएनजी ने 2014, आबीएस ने 2015 में अपने भारत के कारोबार को या तो कम किया या बंद कर दिया। एचएसबीसी ने 2016 में अपने कामकाज बंद तो नहीं किया पर अपनी शाखाओं की तादाद को बहुत ही कम कर दिया।

विदेशी बैंकों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि यह सिर्फ मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरू, कोलकता, चैन्नई जैसे महानगरों और अहमदाबाद, गुरुग्राम, चंडीगढ़, इंदौर जैसे बड़े नगरों और शहरों में कार्यरत रहकर ही अपने लिए मोटे मुनाफे की उम्मीद करते हैं। ये गिनती भर की शाखाएं ही खोलते हैं।

ये सोचते है कि एटीएम खोलने भर से बात बन जाएगी। ये एटीएम को शाखा के विकल्प के रूप में देखते हैं। यह सोच बिल्कुल सही नहीं है। इन्हें समझ ही नहीं आता कि आम हिन्दुस्तानी को बैंक में जाकर बैंक कर्मी से अपनी पास बुक या एफडी पॉलिसी को अपडेट करवाने में ही आनंद मिलता है। वहां पर उसे बैंक की नई स्कीमों के बारे में भी पता चलता है।

बैंकिग सेक्टर को जानने वाले जानते हैं कि जो बैंक जितनी नई शाखाएं खोलता है, वह उतना ही जनता के बीच में या कहें कि अपने ग्राहकों के पास पहुंच जाता है। स्टेट बैंक और एचडीएफसी बैंक की राजधानी के व्यावसायिक हब, कनॉट प्लेस इलाके में ही लगभग 10-10 शाखाएं कार्यरत हैं।

इसी तरह से कई प्रमुख भारतीय बैंक भारत के छोटे-छोटे शहरों, कस्बों और गांवों तक में फैले हुये हैं। एचडीएफसी, कोटक महेंद्रा बैंक, आईसीआईसीआई बैंक तो प्राइवेट बैंक हैं। फिर भी इन्हें पता है कि ये उसी स्थिति में आगे जाएंगे जब ये भारत के सभी हिस्सो में अपनी शाखाएं या एटीएम खोलेंगे। ये इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

आप बता दीजिए कि क्या किसी विदेशी बैंक ने बिहार के किसान को ट्रैक्टर खरीदने या आंध्र प्रदेश के युवा उद्यमी को अपना कारोबार चालू करने के लिए लोन दिया? क्या किसी को याद है कि एएनजे ग्रिंडलेज बैंक, एबीएन ऐमरो बैंक, ड्यूश बैंक, आईएनजी या आरबीएस ने कभी झारखंड के ग्रामीण इलाकों, छतीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों या फिर उड़ीसा के सुदूर इलाकों में अपनी कोई शाखा खोली हो ?

अगर नहीं खोली तो क्यों नहीं खोली? क्या इनके लिए भारत का मतलब सिर्फ चंद-एक गिनती भर के शहर हैं। यह तो कोई बात नहीं हुई। इन्हें भारत में अपना कारोबार करने का अधिकार है। इन्हें यह भी अधिकार है कि ये भारत में कारोबार करके मुनाफा भी कमाएं। आखिर इन्होंने निवेश भी किया होता है। पर इन्हें सिर्फ और सिर्फ मुनाफे को लेकर नहीं सोचना चाहिए।

कहने दें कि ये विदेशी बैंक तो मोटी जेबों वालों के लिए ही अपनी आकर्षक सेवाएं लेकर आते हैं। इनके टारगेट वे ग्राहक पढ़े लिखे आधुनिक नौजवान भी होते हैं जो मोटी सैलरी पर नौकरी कर रहे होते हैं। सिटी बैंक कंज्यूमर बैंकिंग बिजनेस में क्रेडिट कार्ड्स, रीटेल बैंकिंग, होम लोन जैसी सेवाएं दे रहा था।

इस समय भारत में सिटी बैंक की 35 शाखाएं हैं। गौर करें कि सिर्फ 35 शाखाओं के साथ चल रहे “सिटी बैंक” को वित्त वर्ष 2019-20 में 4,912 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था जो इससे पूर्व के वित्त वर्ष में 4,185 करोड़ रुपये था।

देखिए कि भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) सर्वोच्च बैंकिंग नियामक अथॉरिटी है। आरबीआई देश में बैंकिंग व्यवस्था के लिए नियम बनाता है और देश की मौद्रिक नीति के बारे में फैसले लेता है। भारत के बैंकिंग क्षेत्र में पांच तरह के बैंक काम करते हैं। ये हैं निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, विदेशी बैंक, ग्रामीण बैंक और कोआपरेटिव बैंक।

अगर बात प्राइवेट क्षेत्र के बैंकों से शुरू करें तो हमारे प्रमुख प्राइवेट बैंक हैं; एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, इंडसइंड बैंक और एक्सिस बैंक आदि। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक उन्हें कहा जाता है जिनमें मेजर हिस्सेदारी (51%) सरकार के पास होती है। इनमें पंजाब नेशनल बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया एवं अन्य कॉमर्सियल बैंक आदि आते हैं।

अब बात करते हैं विदेशी बैंकों की। भारत के लिए विदेशी बैंक दो प्रकार के होते हैं। पहले, वे बैंक जो भारत में अपनी ब्रांच खोलते हैं और दूसरे वे बैंक जो भारत में अपनी प्रतिनिधि बैंकों की शाखा के माध्यम से बिज़नेस करते हैं। इन बैंकों में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस और सिटी बैंक आदि आते हैं। इनके अलावा, भारत में विभिन्न ग्रामीण बैंक और कोआपरेटिव बैंक अर्बन कोआपरेटिव बैंक सहित भी सक्रिय हैं। इनकी ग्राहक संख्या भी लाखों में है।

एक बिन्दु पर साफ राय रखने की जरूरत है कि उन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में कामकाज के स्तर को बहुत बेहतर करने की जरूरत है जिन्हें हम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कहते हैं। इनकी स्थिति से तो सारा देश वाकिफ है। देखिए कि बैंकिंग अपने आप में आम जनता से जुड़े हुए सेवा का क्षेत्र है। यह सेवा क्षेत्र में ही आता है। अबकि अब ऐसा नहीं है और सेवा के नाम पर यहां भी सेवा शुल्क की वसूली शुरू हो चुकी है। अब सेवा के नाम पर एक भी कार्य ऐसा नहीं बचा है, जो बगैर शुल्क के किाया जाता हो।

यहां पर तो वही बैंक आगे जाएगा जो अपने ग्राहकों को बेहतर सुविधाएं देगा, जिसकी अधिक से अधिक शाखाएं होंगी, उसके अफसर और बाकी स्टाफ अपने ग्राहकों के हितों का ध्यान रखेंगे। कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक तो इसलिए ही जनता के बीच जमे हुए हैं, क्योंकि, उन्हें भारत सरकार से भी मोटा बिजनेस मिल जाता है। अगर सरकार उन्हें अपने रहमो करम पर छोड़ दे तो ये पानी भी न मांगे।

देखिए भारत का बाजार अपने आप में अनंत सागर की तरह है। इसमें सबके लिए काम करके जगह बनाने और कमाने के पर्याप्त अवसर हैं। पर भारत के बाजार में वही बैंक टिकेंगे जो ग्राहकों को बेहतर सुविधाएं और जिनकी उपस्थिति महानगरों से लेकर गांवों-कस्बों तक में होगी।

राज किशोर सिन्हा

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तम्भकार और पूर्व सांसद हैं।)

Saturday, January 30, 2021

बिलों पर मोदी बनाते थे दबाव: अंसारी



भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपनी आत्मकथा बाय मैनी अ हैप्पी एक्सीडेंट में दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन पर हंगामे के बीच राज्यसभा में बिलों को पारित करने का दबाव डाला था। अंसारी के मुताबिक उन्होंने हंगामे के बीच किसी भी बिल को पारित करने से इनकार किया था।

अंसारी ने किताब में लिखा है कि एक दिन अचानक पीएम मोदी उनके कमरे में आ गए। सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता कि कोई पीएम बिना किसी कार्यक्रम के ऐसे सभापति से मिले। लेकिन पीएम पहुंचे और बोले कि सभापति के रूप में उनकी यह भूमिका की कोई भी बिल हंगामे में पारित नहीं होगा] राज्यसभा से बिल पारित कराने में अड़चन पैदा कर रहा है।

उन्होंने कहा कि आप से बड़ी जिम्मेदारियों की अपेक्षा है, लेकिन आप मेरी मदद नहीं कर रहे हैं। अंसारी ने इस किताब में लिखा है कि एनडीए को ऐसा लगा कि लोकसभा में उसका बहुमत उसे राज्यसभा के नियमों को दरकिनार करने का नैतिक अधिकार देता है। अपनी किताब में अंसारी ने कहा है कि उन्होंने बतौर राज्यसभा के सभापति, निर्णय लिया था कि वह कोई भी विधेयक हंगामे और शोर-शराबे में पारित नहीं होने देंगे।

Monday, January 25, 2021

भारतीय गणतंत्र दिवस पर इतिहास की अजूबी किसान ट्रैक्टर रैली

विश्व की यह पहली किसान क्रान्ति है जिसका किसान आंदोलन के रूप में आज 61वां दिन है। मंगलवार यानी 26 जनवरी 2021 को जब किसान आंदोलन अपने 62वें दिन में प्रवेश करेगें तो विश्व पटल पर एक नया इतिहास रचा जायेगा। एक तरफ जहां पारंपरिक रूप से राजपथ पर परेड निकलेगी तो वहीं दूसरी तरफ किसान ट्रैक्टर रैली का एक विहंगम दृश्य अवलोकित होगा जो निश्चित रूप से एक ऐसा इतिहास लिखेगा जो अबतक की सारी क्रान्तियों को पीछे छोड़ देगा। 




पिछले दो महीने से किसान भारत की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर आनन-फानन में लाये गये तीन नए कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। लगभग एक दर्जन दौर की बातचीत सरकार और किसानों के बीच हो चुकी है। लेकिन नतीजा ढ़ाक के तीन पात बराबर ही है। किसान जहां नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं तो वहीं सरकार वापस लेने की बजाय संशोधन पर ही जोर दे रही है।

बहरहाल विश्वभर की निगाहें भारत में होने वाली कल की ट्रैक्टर रैली पर टिकी हैं। दिल्ली पुलिस के इस खुलासे के बाद कि पाकिस्तान से ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा भड़काने की कोशिश हो रही है। सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी गई है। दिल्ली पुलिस के अनुसार, 13 से 18 जनवरी के बीच दिल्ली पुलिस की खुफिया शाखा ने पाकिस्तान से संचालित हो रहे 308 ट्विटर हैंडिल की पहचान की है। इनके जरिए किसान आंदोलन के दौरान हिंसा भड़काने की साजिश रची जा रही थी। यह खुलासा दिल्ली पुलिस इंटेलिजेंस के स्पेशल कमिश्नर दीपेंद्र पाठक ने किया है।




संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस रिलीज

दिल्ली पुलिस के इस खुलासे के बाद किसान संगठन भी सतर्क हो गए हैं और उन्होंने रैली में शामिल होने के लिए एक गाइडलान जारी की है। संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से योगेंद्र यादव ने परेड से संबंधित जानकारियां साझा की हैं। उसके अनुसार, परेड में ट्रैक्टर और दूसरी गाड़ियां चलेंगी, लेकिन ट्रॉली नहीं जाएगी। जिन ट्रालियों में विशेष झांकी बनी होगी, उन्हें छूट दी जा सकती है। मोर्चा ने परेड में शामिल होने के इच्छुक लोगों के लिए एक नंबर भी जारी किया है, जिस पर मिस्ड कॉल देने पर व्यक्ति परेड में शामिल हो सकता है।

24 घंटे का रखना होगा राशन-पानी

साथ ही परेड में शामिल लोगों को अपने साथ 24 घंटे का राशन-पानी का इंतजाम भी करने को कहा गया है, ताकि जाम में फंसने पर किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। हर ट्रैक्टर या गाड़ी पर किसान संगठन के झंडे के साथ-साथ राष्ट्रीय झंडा भी लगाया जाए। ट्रैक्टर या परेड में किसी भी राजनीतिक पार्टी का झंडा नहीं लगेगा। साथ ही लोगों को किसी भी तरह हथियार रखने और भड़काऊ नारा लगाने से भी परहेज करने को कहा गया है।

जरूरी सूचना: किसान गणतंत्र परेड में इन राज्यों से दिल्ली आए जो किसान अपने राज्य की झांकी में हिस्सा लेना चाहते हैं वो तुरंत संपर्क करें।

राज्य: हिमाचल, गुजरात, गोवा, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़,झारखंड, बिहार, सिक्किम, मेघालय, मणिपुर,मिजोरम, नागालैंड,अरुणाचल

संपर्क: 9872890401 pic.twitter.com/iDtwbxZyma

— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) January 24, 2021

परेड के दौरान हिदायतें

मोर्चा ने परेड के दौरान की हिदायत जारी करते हुए कहा है कि परेड की शुरुआत किसान नेताओं की गाड़ी से होगी। उनसे पहले कोई ट्रैक्टर या गाड़ी रवाना नहीं होगी। वहीं परेड में शामिल सभी को हरे रंग की जैकेट पहने ट्रैफिक वॉलिंटियर की हर हिदायत को मानना ही पड़ेगा।

सभी गाड़ियां तय रूट पर ही चलेंगी, जो गाड़ी रूट से बाहर जाने की कोशिश करेगी, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अगर कोई गाड़ी सड़क पर बिना कारण रुकने या रास्ते में डेरा जमाने की कोशिश करती है, तो वॉलंटियर उन्हें हटाएंगे। एक ट्रैक्टर पर ज्यादा से ज्यादा ड्राइवर समेत पांच लोग सवार होंगे। बोनट, बंपर या छत पर कोई नहीं बैठेगा। ट्रैक्टर में कोई अपना ऑडियो डेक नहीं बजाएगा। परेड में किसी भी किस्म के नशे की मनाही रहेगी। साथ ही औरतों की इज्जत करनी होगी और सड़क पर कचरा फेंकना मना होगा।

इमरजेंसी की हिदायतें

परेड के दौरान किसी भी आपातकालीन स्थिति से निबटने के लिए भी मोर्चे की तरफ से कुछ हिदायतें जारी की गई हैं, जिसके अनुसार लोगों को अफवाह से बचने और सूचना की प्रामाणिकता जांचने की सलाह दी गई है। परेड में एंबुलेंस की व्यवस्था भी रहेगी।

जरूरी सूचना: किसान गणतंत्र परेड में इन राज्यों से दिल्ली आए जो किसान अपने राज्य की झांकी में हिस्सा लेना चाहते हैं वो तुरंत संपर्क करें।

राज्य: हिमाचल, गुजरात, गोवा, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़,झारखंड, बिहार, सिक्किम, मेघालय, मणिपुर,मिजोरम, नागालैंड,अरुणाचल

संपर्क: 9872890401 pic.twitter.com/iDtwbxZyma

— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) January 24, 2021

किसी भी तरह की मेडिकल इमरजेंसी होने पर हेल्पलाइन नंबर या नजदीकी वालंटियर से संपर्क करने की सलाह दी गई है। ट्रैक्टर या गाड़ी खराब होने की स्थिति में उसे बिल्कुल साइड में लगाया जाएगा और किसी भी तरह की वारदात होने पर पुलिस से संपर्क करने की सलाह दी गई है।

ट्रैक्टरों की संख्या से जुड़े सवाल के जवाब में स्पेशल कमिश्नर दीपेंद्र पाठक ने बताया कि अभी ट्रैक्टरों की संख्या का पता नहीं चल पाया। मौजूदा समय में दिल्ली के चारों प्रदर्शन स्थल पर लगभग 10 से 12 हजार ट्रैक्टर मौजूद हैं। अभी कुछ ट्रैक्टरों के आने की भी सूचना है तो ऐसे में हम उम्मीद लगा रहे हैं कि 14 से 15 हजार ट्रैक्टर किसान परेड में शामिल होंगे। किसानों के ट्रैक्टर परेड के दौरान परेड का दिल्ली में 100 किलोमीटर से ज्यादा का रूट होगा। इन सभी मार्गों पर दिल्ली पुलिस द्वारा सुरक्षा के विशेष इंतजाम भी किए जाएंगे।

किसान संगठनों का दावा

ट्रैक्टर रैली के बारे में किसान यूनियन के सदस्य जसवंत सिंह ने बताया कि 26 तारीख को अलग-अलग राज्यों से लगभग 30 लाख ट्रैक्टर दिल्ली पहुंचेंगे। इसमें 1 लाख ट्रैक्टर पंजाब से, 1.5 लाख ट्रैक्टर हरियाणा से, 50 हजार ट्रैक्टर यूपी से, 50 हजार ट्रैक्टर राजस्थान से, 25 हजार ट्रैक्टर उत्तराखंड से आ रहे हैं। इसके अलावा 50 हजार ट्रैक्टर बिहार और अन्य कई राज्यों से भी आ रहे हैं। इसमें मध्य प्रदेश, केरल और गुजरात आदि राज्य शामिल हैं। इस ट्रैक्टर रैली में 3 करोड़ किसान शामिल होंगे जो सरकार को अपनी एकता का सुबुत देंगे।



निकलेंगी झांकियां

आंदोलनकारी किसानों की 'गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर परेड' में विभिन्न राज्यों की कई झांकियां होंगी जो ग्रामीण जीवन, केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के साथ ही आंदोलनकारियों के साहस को दर्शाएंगी। यह जानकारी आयोजकों ने दी। एक किसान नेता ने बताया कि प्रदर्शन में शामिल होने वाले सभी संगठनों को परेड के लिए झांकी तैयार करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा, देशभर से लगभग एक लाख ट्रैक्टर-ट्रॉलियां परेड में शामिल होंगी। इनमें से लगभग 30 प्रतिशत पर विभिन्न विषयों पर झांकियां होंगी, जिसमें भारत में किसान आंदोलन का इतिहास, महिला किसानों की भूमिका और विभिन्न राज्यों में खेती के अपनाये जाने वाले तरीके शामिल होंगे।

भ्रष्टाचार से घिरे नेतन्याहू

इजराइल में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ साप्ताहिक प्रदर्शन क लिए यरूशलम में हजारों लोग जमा हुए और उनसे इस्तीफे की मांग की। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी चौराहों और पुलों पर कई छोटे-छोटे प्रदर्शन भी हुए।



नेतन्याहू पर धोखाधड़ी, विश्वासघात और तीन मामलों में रिश्वत लेने के आरोप लग रहे हैं। ये मामले उनके अरबपति सहयोगीयों और मीडिया के क्षेत्र के दिग्गजों से जुड़े हैं। लगभग यही हालात भारत के भी हैं, यहॉं तो ऐसी मीडिया को गोदी मीडिया के नाम से पहचान मिल गई है। इसे अब पहचान का संकट नहीं रहा।

इससे इतर नेतन्याहू इन सभी आरोपों से इंकार करते हैं और ऐसा सभी करते ही हैं। दूसरी तरफ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि आरोप के साथ वह उचित तरीके से देश का नेतृत्व नहीं कर सकते हैं। पिछले साल गर्मी के मौसम से ही प्रत्येक सप्ताह इन प्रदर्शनों का आयोजन किया जा रहा है। खास तौर पर यरूशलम के एक चौराहे पर नेतन्याहू के आधिकारिक आवास के निकट विरोध प्रदर्शन का आयोजन होता है।

सर्दी के मौसम में भले ही इसमें शामिल होने वाले लोगों की संख्या कम हुई हो लेकिन प्रदर्शन जारी रहा। इजराइल में दो वर्ष की भीतर मार्च में चौथी बार चुनाव होंगे और प्रधानमंत्री को अपनी लिकुड पार्टी (A centre-right political party in Israel ) के भीतर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।


Monday, January 15, 2018

CJI रहित संविधान पीठ को न्याय की दरकार


भारत  की जनता के लिए  गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए कि ऐसा क्या हुआ कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीषों को अपनी बात कहने के लिए देश की मीडिया के सामने आना पड़ा?

Justice J Chelameswar and three other senior Supreme Court judges had held a press conference.


देखा जाये तो न्यायिक इतिहास की यह अभूतपूर्व घटना साबित होगी। भारत में न्यायपालिका और विशेषकर उच्चतम न्यायालय एक ऐसा संस्थान है, जिसपर भारत का जनमानस बहुत अधिक विश्वास करता है। जब पीड़ित हर तरफ से न्याय की उम्मीद छोड़ चुका होता है तो यही संस्थान जिसे न्यायालय कहा जाता है, उसके उम्मीद की एक किरण होती है।
उम्मीद की यही किरण उसे अधीनस्थ न्यायालय से उच्चतम न्यायालय लाती है कि न्याय के अंतिम पायदान पर तो उसे न्याय नसीब होगा ही। जबकि बहुत से वरिष्ठ वकीलों से मैंने सुना है कि न्यायलय में न्याय नहीं जजमेन्ट मिलता है।


अदालत के सामने एक केस होता है, जिस पर न्यायालय दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाता है।  पेश किये गये तथ्यों, उस पर दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद कानून में नीहित प्राविधानों के मद्देनजर, अदालत जजमेन्ट देती है। अब किसको न्याय मिला नहीं मिला ये सब गौण हैं।
चारों जजों ने अपने को मीडिया के समक्ष पेश किया और अपनी बात रखी, इसलिए यह कोई केस तो हुआ नहीं कि इस पर अदालत फैसला दे। यहॉं तो बात न्याय की है और वो भी इन जजों को मिलता है कि नहीं, ये तो आने वाला समय ही बतायेगा।
शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीषों द्वारा पता नहीं किस मजबूरी में एक संवाददाता सम्मेलन बुलाना पड़ा और एक संयुक्त पत्र जारी कर देश की सबसे बड़ी अदालत के मुख्य न्यायाधीष पर न्यायसम्मत तरीके से कार्य न करने की बात कहनी पड़ी।
उन्होंने मुख्य न्यायाधीष के प्रशासनिक अधिकार की ओर उंगली उठाते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीष अपने इस अधिकार का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। उन चारों का कहना रहा कि अगर हम आज उच्चतम न्यायालय की मौजूदा स्थिति के खिलाफ न खड़े होते तो अब से 20 साल बाद समाज के कुछ बुद्धिमान व्यक्ति यह कहते कि हम चार जजों ने ‘अपनी आत्मा बेच’ दी थी।
इन चारों न्यायाधीषों ने यह भी बयान किया कि हम इस मामले में चीफ जस्टिस के पास गए थे, लेकिन वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा। ये भी बड़ा गंभीर विषय है कि उच्चतम न्यायालय के ही चार वरिष्ठ न्यायाधीषों की बात मुख्य न्यायाधीष ने नहीं सुनी।
इस प्रेस कांफ्रेंस को संपन्न हुए पांच मिनट भी नहीं हुए थे कि कई वरिष्ठ वकीलों ने पक्ष-विपक्ष में अपने-अपने तर्क देने शुरू कर दिए। वकील प्रशांत भूषण ने मीडिया में आकर मुख्य न्यायाधीष के कथित चहेते जजों का नाम और वे मामले जो उन्हें सौंपे गए, बताना शुरू कर दिया तो पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आर0एस0 सोढ़ी ने इन चार जजों के कदम को उच्चतम न्यायालय की गरिमा गिराने वाला, हास्यास्पद और बचकाना करार दिया।
वकील के0टी0एस0 तुलसी और इंदिरा जयसिंह ने चार जजों का पक्ष लिया तो पूर्व अटार्नी जनरल एवं वरिष्ठ वकील सोली सोराबजी ने चार जजों की ओर से प्रेस कांफ्रेंस करने पर घोर निराशा जताई। चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस के औचित्य-अनौचित्य को लेकर तरह-तरह के तर्कों के बाद आम जनता के लिए यह समझना कठिन हो गया कि यह सब क्यों हुआ और इसके क्या परिणाम होंगे?
उसके मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरकार उच्चतम न्यायालय में क्या चल रहा है? इन सवालों का चाहे जो जवाब हो, लेकिन पहली नजर में यही लगता है कि एक विश्वसनीय संस्थान व्यक्तिगत अहंकार या कहिए वर्चस्व की जंग का शिकार हो गया है।
जब प्रेस कांफ्रेंस में चार न्यायाधीषों से पूछा गया कि क्या वे मुख्य न्यायाधीष के खिलाफ महाभियोग लाने के पक्षधर हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि यह समाज को तय करना है। इसका सीधा और साफ मतलब यही निकलता है कि उच्चतम न्यायालय के ये चारों जज मुख्य न्यायाधीष के खिलाफ महाभियोग चलाये जाने के पक्ष में हैैं?
ज्ञात हो कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के जजों को, मात्र महाभियोग लगाकर ही हटाया जा सकता है। और यह बहुत ही कठिन प्रक्रिया है।
भारत में उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीषों की पीठ को संविधान पीठ का दर्जा मिला हुआ है और उसके फैसलों में कानून की ताकत होती है। आपने अभी तक कभी-कभार ही केंद्रीय बार काउंसिल और राज्य बार एसोसिएशनों द्वारा जजों के खिलाफ व्यक्तिगत मामलों में आरोप लगते हुए देखा-सुना होगा?
लेकिन पिछले 70 सालों में एक बार भी ऐसा देखने को नहीं मिला होगा कि उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ जज अपने मुख्य न्यायाधीष के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस करें और वह भी केसों के आवंटन में कथित पक्षपात को लेकर। इन चार जजों का कहना है कि कौन केस किस बेंच के पास जाएगा, यह तो मुख्य न्यायाधीष के अधिकार क्षेत्र में है।

लेकिन यह प्रक्रिया भी कुछ संस्थापित परंपराओं के अनुरूप चलाई जाती है। सामान प्रकृति के मामले सामान बेंच को जाते हैं। और यह निर्धारण, मामलों की प्रकृति के आधार पर होता है, ना कि केस के आधार पर।

कुछ विद्वानों का मत है कि अगर यह तरीका कारगर नहीं हुआ जैसा कि जजों द्वारा संकेत किया गया है तो फिर ये जज मुख्य न्यायाधीष की केस आवंटन प्रक्रिया के खिलाफ स्वयं संज्ञान लेते हुए फैसला दे सकते थे। ऐसा कोई फैसला स्वत: सार्वजनिक होता और कम से कम उससे यह ध्वनि न निकलती कि सार्वजनिक तौर पर कुछ जज मुख्य न्यायाधीष के खिलाफ सड़क पर आ गए हैैं।
कैसी-कैसी हास्यास्पद बातें की जा रही हैं। यदि ऐसा कुछ इन चार जजों में से किसी के भी द्वारा ऐसा किया जाता तो तब पूरा देश उन्हें कटघरे में खड़ा करता कि अगर उन्हें मुख्य न्यायाधीष की कार्यप्रणाली से कोई शिकायत थी तो वे कहीं उचित फोरम पर अपनी बात रखते? स्वंय मुख्य न्यायाधीष के एक्शन के खिलाफ स्यो-मोटो फैसला लेना कहॉं तक उचित था।

प्रेस के सामने आना कोई गुनाह नहीं होना चाहिए,और गुनाह होता भी नहीं है। इस देश में हर व्यक्ति न्याय पाने के लिए अपनी बात कहीं भी और विशेषतौर पर मीडिया के सामने रखने के लिए स्वतंत्र है। और विशेषतौर पर मीडिया के समक्ष रखना ही उसे ज्यादा आसान दिखाई देता है।  
इस देश के आम नागरिक से लेकर, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री, छोटे से अधिकारी से लेकर बड़े-बड़े ब्यूरोक्रेट्स तक, एवं विपक्षी पार्टीयों से लेकर मुख्य न्यायाधीष तक प्रेस के सामने आये ही हैं।

फिर ऐसी सूरत में संविधान पीठ के चार जज यदि अपनी बात की सुनवाइ उसी संविधान पीठ के एक अन्य जज जो कि मुख्य न्यायाधीष हैं द्वारा उनकी ही बात ना सुने जाने पर प्रेस के सामने आ गये तो कौन सा अपराध हो गया?
अपनी ही न्यायपालिका के जज हैं अपने ही देश में अपनी ही प्रेस के सामने आ गये तो क्या हो गया?

उन्होंने जो कहा और उस पर जो नतीजा सामने आयेगा, उससे हमारी न्यायपालिका  और अधिक न्यायिक नज़र आयेगी। उन्होंने प्रेस के सामने यह तो नहीं कहा कि संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है, इसलिए वे प्रेस के अलावा कहॉं जाते?
मुख्य न्यायाधीष ने भी अबतक निभाई जा रही मान्य परम्पराओं का निर्वहन करते हुए अपना अधिकार समझते हुए निर्णय लिए।

अब यदि उन प्रशासनिक निर्णयों से अपनी ही पीठ के चार अन्य जज सहमत नहीं हैं तो, सर्वमान्य प्रक्रिया का प्रतिपादन हो सकता है। इसे परिवार में हुए मन-मुटाव के अलावा अन्य किसी भी तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए।
मैं तो अपनी छोटी सी बुद्धि के बल पर यही कहूंगा कि ये कोई ऐसा मसला नहीं कि इसका हल ना निकले, इससे पहले रविवार को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से मुलाकात की थी।
विकास सिंह ने शीर्ष न्यायपालिका में संकट को लेकर एक प्रस्ताव सौंपा था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ की बैठक होने की संभावना है, जिसमें मौजूदा संकट पर चर्चा हो सकती है।

वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने सीजेआई दीपक मिश्रा से मुलाकात करने के बाद बताया कि उन्होंने एससीबीए के प्रस्ताव की एक प्रति प्रधान न्यायाधीश को सौंपी, जिन्होंने उस पर गौर करने का आश्चासन दिया है। उनकी न्यायमूर्ति मिश्रा से करीब 15 मिनट बातचीत हुई।
सिंह ने कहा,‘मैं प्रधान न्यायाधीश से मिला और प्रस्ताव की प्रति उन्हें सौंपी। उन्होंने कहा कि वह इस पर गौर करेंगे और सुप्रीम कोर्ट में जल्द-से-जल्द सौहार्द कायम करेंगे।’

सतीश प्रधान
(लेखक: वरिष्ठ पत्रकार,स्तम्भकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार है)