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Saturday, September 5, 2015

सियासत के भंवर में फंसा उत्तराखण्ड क्रिकेट

उत्तराखण्ड को अलग राज्य बने 15 साल का लंबा वक्त हो गया हो चुका है, लेकिन प्रदेश में क्रिकेट दूसरों के रहमो-करम पर चल रहा है। बोर्ड आॅफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इण्डिया से राज्य को यही सुविधा मिली कि उसको उत्तर प्रदेश से संबद्ध कर रखा है। ऐसे में प्रदेश के युवा क्रिकेटरों को कितना मौका मिल रहा है यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। साफ है कि जब तक राज्य की अपनी एसोसिएशन नहीं होगी तब तक राज्य की क्रिकेट में भटकाव का ही दौर रहेगा। उत्तराखण्ड क्रिकेट पर सियासत हावी है। उत्तराखंड के सितारे दुनिया के क्रिकेट के आकाश में चाहे जितनी चमक बिखेर रहे हों, यहां बीसीसीआइ से मान्यता की डगर अभी मुश्किल है.....

आशीष वशिष्ठ

उत्तराखंड मूल के क्रिकेट खिलाड़ी देश भर में धूम मचा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद यहां आज तक क्रिकेट का बुनियादी ढांचा तक खड़ा नहीं हो पाया है। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के ल्वाली गांव के हैं तो पीयूष पांडे बागेश्वर और उन्मुक्त चंद पिथौरागढ़ से ताल्लुक रखते हैं। गढ़वाल एक्सप्रेस के नाम से विख्यात यहीं के पवन सुयाल दिल्ली से और राबिन बिष्ट राजस्थान से रणजी के लिए खेलते हैं। मगर उत्तराखंड की यह क्रिकेट पौध अपने गृह राज्य से नहीं खेल सकती क्योंकि भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों के नेता भी अपनी-अपनी एसोसिएशन लेकर क्रिकेट के खैरख्वाह होने का दावा कर रहे हैं। सबको अपनी दुकान चलानी है और सब बीसीसीआइ की राज्य एसोसिएशन से संबद्धता की राह में रोड़ा बने हुए हैं। नतीजतन यहां क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता सियासत की भेंट चढ़ गई है।

वर्तमान में प्रदेश में क्रिकेट को लेकर उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) ही सबसे अधिक सक्रिय और संजीदा दिखाई देती है। उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के निदेशक व सचिव दिव्य नौटियाल के अनुसार, प्रदेश में यूसीए ही एकमात्र एसोसिशन है जिससे राज्य के सभी 13 जिलों में क्रिकेट एसोसिएशन जुड़ी हैं। बकौल नौटियाल हम सीनियर, जूनियर, महिला और दृष्टि बाधित सभी कैटगरी की प्रतियोगिताओं का लगातार आयोजन कर रहे हैं।

धोनी और उनमुक्त के अलावा भारतीय क्रिकेट में न जाने कितने खिलाड़ी और कोच भारतीय क्रिकेट को दिये हैं। पीयूष पांडे, पवन सुयाल, राबिन बिष्ट, मनीष पाण्डे, एकता बिष्ट, हेमलता काला भारतीय क्रिकेट वो चंद चमकते सितारे हैं जो उत्तराखण्ड से आते हैं। दिल्ली, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब समेत अनेक राज्यों की टीमों में उत्तराखंड मूल के खिलाड़ी खेल रहे हैं, लेकिन विडंबना देखिए कि उत्तराखंड की क्रिकेट अकादमियों को अब तक बीसीसीआइ की मान्यता नहीं मिल पाई है। राज्य में क्रिकेट की एक मान्यता प्राप्त एसोसिएशन तक नहीं है। इसलिए उत्तराखंड की टीम रणजी ट्राफी जैसी क्रिकेट सीरीज तक में भाग लेने से वंचित है। काफी समय से बीसीसीआइ के अधिकारी उत्तराखंड का दौरा कर आश्वस्त कर रहे हैं, लेकिन यह भी हवाई वायदों से ज्यादा कुछ नहीं है। असल में उत्तराखंड में क्रिकेट में सियासत भारी पड़ रही है।

वर्ष 2000 में उत्तराखण्ड गठन के साथ गठित हुए अन्य राज्यों झारखण्ड को बीसीसीआई से 2004 में मान्यता मिल गई थी जबकि छत्तीसगढ़ को 2008 में मान्यता मिली। उत्तराखण्ड का मामला एसोसिएशनों के झगड़े के कारण लटका हुआ है। जब तक ये पेंच नहीं सुलझते उत्तराखण्ड की किसी क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई से मान्यता मिलना दूर की कौड़ी है।

दरअसल उत्तराखण्ड में राज्य स्तर की कई क्रिकेट एसोसिएशन होने से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से किसी एक एसोसिएशन को मान्यता का मामला वर्ष 2008 से लटका हुआ है। बीसीसीआई को प्रदेश से मान्यता के लिए कई एसोसिएशनों ने आवेदन किया था। इस कारण किसी एसोसिएशन को मान्यता नहीं मिल पा रही थी।

बीसीसीआइ से मान्यता के सवाल पर दोनों प्रमुख एसोसिएशनों का रुख अलग है। उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के सचिव चंद्रकांत आर्य कहते हैं कि सन 2000 में हमने रजिस्ट्रेशन के साथ बीसीसीआइ में मान्यता के लिए आवेदन किया था जिसके बाद 2001 में रत्नाकर शेट्टी, शरद दिवाकर और शिवलाल यादव की तीन सदस्यीय एफलिएशन कमेटी ने देहरादून का दौरा भी किया था। 2004 में दोबारा दौरा हुआ, लेकिन नए राज्यों को मान्यता देने के सवाल पर बीसीसीआइ में ही आपसी मतभेद थे। साथ ही वह यह चाहती है कि हम एक दूसरे एसोसिएशन (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड) को भी थोड़ा प्रतिनिधित्व दें।
2011 में बीसीसीआइ की गवर्निंग काउंसिल ने इस मामले को सितंबर, 2012 तक के लिए टाल दिया। आर्य को उम्मीद है कि तब तक मान्यता मिल जाएगी। लेकिन दूसरी ओर क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के सचिव पी.सी. वर्मा का कहना है कि उन्होंने मान्यता के सवाल पर सीधे शशांक मनोहर से बात की थी, लेकिन यह सब बीसीसीआइ की बहानेबाजी है। वह जब चाहेगी, तभी मान्यता मिलेगी।

राज्य की दूसरी चार एसोसिएशनों को तो बीसीसीआइ पहले ही टरका चुकी है। मान्यता के सवाल पर 2009 में मुंबई और 2010 में दिल्ली में हुई बैठकों में भी इन दोनों एसोसिएशनों को ही बुलाया गया। लेकिन उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन का मानना है कि उसका दावा ज्यादा मजबूत है। आर्य कहते हैं, ‘यूसीए इकलौती ऐसी एसोसिएशन है, जिसके पास पूरे राज्य में अपनी बॉडी है। हम बीसीसीआइ की गाइडलाइन के मुताबिक ही काम करते हैं।’ बीसीसीआइ के कहने पर यूसीए ने सीनियर लेबल क्रिकेट बंद कर अब अंडर 14, 16, 19 और 22 पर फोकस करना शुरू कर दिया है। बकौल आर्य बीसीसीआइ सबसे अधिक पत्र व्यवहार भी उनसे ही करती है। लेकिन सीएयू के सचिव वर्मा भी बीसीसीआइ के पत्र दिखाते हैं।

उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के सचिव दिव्य नौटियाल के अुनसार, यूसीए का गठन कंपनी एक्ट 1956 के तहत वर्ष 2000 में हुआ। यूसीए के पदाधिकारी मान्यता के लिये बीसीसीआई की मान्यता कमेटी से 29 अगस्त 2009 को मिले थे। हमने यूसीए को प्रदेश में मान्यता देने के लिये कमेटी के सामने तमाम सूबूत और कागजात पेश किये थे, बावजूद इसके अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। बकौल नौटियाल, बीसीसीआई के रवैये से नाराज होने और घर बैठने की बजाय पिछले 15 सालों से हम प्रदेशभर में क्रिकेट प्रतियोगिताओं का आयोजन करवा रहे हैं।

28 फरवरी 2015 को उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव सचिव दिव्य नौटियाल ने बीसीसीआइ्र को पत्र लिखकर ये अवगत कराया कि अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी के आरपी ईश्वरन, तनिष्क क्रिकेट अकादमी के त्रिवेंद्र सिंह रावत व यूनाईटेड क्रिकेट एसोसिएशन के राजेंद्र पाल और आलोक गर्ग उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीएस) के निदेशक बन गए है। उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव व निदेशक दिव्य नौटियाल का दावा है कि इससे बीसीसीआई को फैसला लेने में आसानी होगी।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से मान्यता के लिए भले ही उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए), यूनाईटेड क्रिकेट एसोसिएशन, तनिष्क क्रिकेट अकादमी और अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी ने खुद का उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन में विलय कर दिया हो लेकिन मान्यता के मामले में अभी कई पेंच है।

यूनाईटेड क्रिकेट एसोसिएशन के के त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि अब दो अन्य एसोसिएश उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन और क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ उत्तराखण्ड को नई एसोएिसशन में विलय कर लेना चाहिए ताकि उत्तराखण्ड की क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई के समक्ष उत्तराखउ की क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता का मामला रखा जा सके। जानकारों का कहना है कि जब तक चंद्रकांत आर्य और हीरा सिंह बिष्ट के संरक्षण वाली एसोसिएशन साथ नहीं आती मान्यता का मामला लटका रह सकता है।

देवभूमि उत्तराखण्ड की प्रतिभाओं ने यूं तो हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है, लेकिन इस पहाड़ी राज्य में क्रिकेट की मूलभूत सूहलियतें न होने के बावजूद भी यहां के लड़के-लड़कियों ने देश-विदेश में अपने देश-प्रदेश का नाम रोशन करने का काम किया है। इस समय राज्य के 20 से अधिक खिलाड़ी दूसरे राज्यों की टीमों से जूनियर व सीनियर क्रिकेट टीम में खेल रहे हैं। लड़के ही नहीं, उत्तराखंड की लड़कियां भी क्रिकेट में नाम कमा रही हैं। अल्मोड़ा की एकता बिष्ट राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम की सदस्य हैं और इस समय ऑस्ट्रेलिया के साथ विशाखापत्तनम में श्रृंखला खेल रही हैं। अकेले पंजाब की महिला क्रिकेट टीम में उत्तराखंड की चार लड़कियां खेल रही हैं।

इन उपलब्धियों के बावजूद यहां के युवा उत्तराखंड टीम से क्यों नहीं खेल सकते? वे दूसरे राज्यों में जाकर खेलने को विवश क्यों हैं? इस राज्य में क्रिकेट की शुरुआत 1937 में देहरादून से डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के गठन के साथ हुई। फिर यह एसोसिएशन पहले देहरादून और बाद में नैनीताल में गठित की गई। देहरादून की डिस्ट्रिक्ट लीग को इस साल 61 साल पूरे हो गए हैं, जबकि नैनीताल की क्रिकेट लीग भी लगातार आयोजित होती रही है। भारतीय टीम के कई सितारे इससे पूर्व देहरादून में आयोजित होने वाले गोल्ड कप में खेल चुके हैं। खुद भारत के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने दो बार गोल्ड कप में झारखंड की टीम से भाग लिया है।
इस सबके बावजूद राज्य के क्रिकेट-प्रेमी खिलड़ियों ने हार नहीं मानी है। उनका संघर्ष जारी है और राज्य के युवाओं की क्रिकेट के प्रति दीवानगी साफ नजर आती है। मैदानों की तो बात ही जाने दीजिए, यहां पहाड़ों पर भी आपको अगर कोई खेल दिखाई देगा तो वह क्रिकेट ही है। राज्य के क्लबों और एसोसिएशनों से जुड़े खिलाड़ी इस समय पंजाब, राजस्थान, सिक्किम और दिल्ली जैसे राज्यों से खेल रहे हैं। यह सिर्फ बीसीसीआइ की मान्यता न मिलने के कारण है कि इन खिलाड़ियों को दूसरे राज्यों से खेलना पड़ रहा है। इस मामले में प्रदेश सरकार भी अब सक्रिया दिख रही है। राजधानी देहरादून के रायपुर में राजीव गांधी अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण तेजी से चल रहा है और हल्द्वानी में भी जल्द ही इसी तरह का क्रिकेट स्टेडियम अस्तित्व में आ जाएगा।

वर्तमान में प्रदेश में क्रिकेट को लेकर उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) ही सबसे अधिक सक्रिय और संजीदा दिखाई देती है। उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के निदेशक व सचिव दिव्य नौटियाल के अनुसार, प्रदेश में यूसीए ही एकमात्र एसोसिशन है जिससे राज्य के सभी 13 जिलों में क्रिकेट एसोसिएशन जुड़ी हैं। बकौल नौटियाल हम सीनियर, जूनियर, महिला और दृष्टि बाधित सभी कैटगरी की प्रतियोगिताओं का लगातार आयोजन कर रहे हैं।

राज्य गठन को 15 साल हो गए हैं, लेकिन क्रिकेट दूसरों के रहम करम पर चल रही है। बीसीसीआई से राज्य को यही सुविधा मिली कि उसको उत्तर प्रदेश से संबद्ध किया हुआ है। लेकिन क्रिकेटरों को कितना मौका मिल रहा है यह वे ही जानते हैं। साफ है कि जब तक राज्य की अपनी एसोसिएशन नहीं होगी तब तक राज्य की क्रिकेट में भटकाव का ही दौर रहेगा। पर इस धकमपेल से साफ जाहिर है कि उत्तराखंड के सितारे दुनिया के क्रिकेट के आकाश में चाहे जितनी चमक बिखेर रहे हों, यहां बीसीसीआइ से मान्यता की डगर अभी मुश्किल है।

Thursday, June 25, 2015

Rocketing Institutes of India

Aerospace/Aeronautical Engineering,  also known as ‘Rocketery/Aviation Science’, is a Specialized Field of Engineering that involves the science & engineering of aircrafts and spacecrafts including aeroplanes, helicopters, rockets, missiles, space stations, UAVs etc. operating within and outside the earth’s atmosphere. It involves studying, designing, construction and maintenance of aerial vehicles.
A Space-Shuttle Carrier Aircraft
This special feature of JNN9 India (Website-Blog-Journal) in collaboration with North India Statesman (Daily Newspaper) brings you the Top Engineering colleges offering Aerospace Engineering and the scope and opportunities in this branch.  Else-where in the World, universities have been separately rated for specific branches of science; But apparently, our young enthusiast have a little glitch in finding ranks of colleges in India strictly concerned to their academic discipline. Our team took this enormous task and began updating its database of 700+ colleges/deemed universities & autonomous institutes, also consulting them with the ranking process, we also took slight account of other rating agencies and segregated our database. We gathered the data based on funding & infrastructural public record from Central & State Govt., NAAC rating score, and most importantly the GATE results- signifying the emphasis on the ‘dream’ institutes of students and their parents as well. So,  let’s find out.
A vapor-cloud formation on a fighter jet - F15

     The best Aero-Institutes in India are as follows :-

AIR=  All India Rank
  1. Indian Institute of Science Bangalore
  2. Indian Institute of Technology, Bombay (Mumbai)
  3. Indian Institute of Technology, Kanpur
  4. Indian Institute of Space Science and Technology, Thiruvananthapuram
  5. Indian Institute of Technology, Madras (Chennai)
  6. Indian Institute of Technology, Kharagpur
  7. Indian Institute of Engineering Science and Technology, Shibpur (Howrah)
  8. PEC University of Technology Chandigarh
  9. Feroze Gandhi Institute of Engineering and Technology Rai Bareli
  10. Madras Institute of Technology, Anna University, Chennai
  11. Birla Institute of Technology, Mesra, Ranchi
  12. Andhra University College of Engineering (a declared IIEST), Visakhapatnam
  13. University College of Engineering, RTU, Kota, Rajasthan

The following award only Masters or higher degrees, so of little interest to Bachelors aspirants and hence placed comparatively lower:

Two of these institutes deserve special notes, namely- IISc Bengaluru and FGIET, Rai Bareilly. Both as compared to each other are a contrast image. IISc being a very old established Institute of National Importance whereas FGIET is a nascent institute but still competing with other prestigious Institutes of National Importance like the IITs, IIEST's and IISc. IISc is profoundly funded and administered by the MHRD whereas FGIET is a state-funded institution. But, the common thing between these two is that both are contributing to the Nation. Also, the other ranking and top-notch colleges hold promises that our nation is surely leaping bounds in aerospace capabilities. 


Iridescent Star Performer:

In IISc-Bangalore, the most fascinating thing is the course-study and it’s promising final output. The faculty is handpicked and owing to much innovative and flexible course structure allows a firm research base development. Students enrolled in the program take courses in Engineering, Mathematics and Physics for three semesters (1-3) which are common and compulsory to all. In the next four semesters (4-7), they choose a major discipline of study and take a handful of other science courses and a stipulated number of engineering courses. The last semester is devoted to a final project. Besides, all the students, spend a couple of months in various research institutes across the country exploring a topic or a research problem of their interest which boosts their innovation index . The academic structure seems to be much inspired from the Foreign Research Institutes (MIT, CalTech, Harvard, Standford, Princeton etc.) which have a diverse and interdisciplinary study course.


Young Missile Performer:

FGIET, Rai Bareli, UP established in 2004 is relative a very young institute when compared to other top ranking colleges. It is also the only-State Government funded institute in the Top 10, all others are profoundly funded by the Central Govt. and other organizations/ Departments.

Despite it’s comparatively small budget than the million dollar IITs/IISc , the FGIET students are developing deep understanding of the subject by being introduced to live aircrafts through IGRUA, an innovative approach by the Management to instil practical know-how of aero-machinery without a heavy consumption of monetary resources.   The tailored students have begun fruiting as they are performing well in esteemed GATE exams.
In the 2015 results, 11 students so far have been admitted in IISc/IITs/IIST. That's a pretty impressive digit since out of total 30 seats, only 11 are unreserved, the rest being reserved as per the State Government policy.

All India Topper (AIR 1)of Aerospace Branch - Raghu is an FGIET-2014 passout.
All India Rank 3, Mohd. Anwar had been offered IISc Bengaluru, IIT Bombay, IIT Madras, IIST Thiruvananthapuram and several other IITs.
Similarly, Mayank Verma received offers from IIT Kanpur, IIT Kharagpur, IIT Bhubaneshwar, IIT Guwahati  and reputed NITs.
Many other students got below hundred rank in GATE hence are expected to get through the prestigious institutes of the nation like the IITs/IIST/IISc and several other prominent engineering science research institutes.
Concept Drawing: Adaptive Morphing Aerial Vehicle

Ranks of Other Reputed Institutes (privately-financed) are:- 

(List Accordingly these institutes thus achieved 16th AIR to 30th AIR resp. )

           PIR-Private Institute Ranking                                                                                      
After you earn a degree in aeronautical engineering, you can work almost anywhere in the world where there is aviation utilization. Their job is concerned with various areas like design, maintenance and development, besides which there are teaching positions in top universities. They can work in air turbine production plants, manufacturing units, airlines, and many more fields. In fact most of the engineers at NASA are Indian engineering graduates. In the computer field, you can also draw plans using CAD software. Another important field is the air accident investigation, which tries to eliminate air mishaps.


The job is very attractive and provides a prestigious position as well. Besides, the salary is lucrative, which is why many youth are attracted towards making a career in this field. The average starting salary is much higher as compared with other fields of engineering.

But there’s more than just salary, more important is being associated with Nation’s top R&D programs is itself an honorary work. The aspirants instilled with Nationalism and sense of service to Nation would find very satisfying career prospects in this sector. You can do wonders to the pride of Nation. Even our P.MHon’ble Narendra Damodardas Modi is keenly interested in development of Defence through air-superiority and it’s indigenization program would only be possible through our own scholars. Multitude of billion-dollar deals with leading International industries is just the commencement of the enormous flow of economic and technological revenue going to take place in India. Thus it’s not rocket-science to estimate that in coming years we are going witness a rocket-boom in our upcoming aero-hub.
Rocket Propulsion (a.k.a Rocket Science)

Monday, July 28, 2014

रेप्लिका आफ सरदार पटेल

इतिहास बताता है कि भारत वर्ष 1947 में आजाद हो चुका है, लेकिन सही मायनों में कहा जाए तो भारत को अंग्रेजों के कब्जे से भले ही आजादी 1947 में मिल गई होलेकिन असली आजादी तो 26 मई 2014 को ही मिली है,जिस दिन आजाद भारत में ही जन्मे भाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने भारत के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है।

स्वामी विवेकानन्द जी एवं नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे देशभक्तों के विचारों एवं गुणों से ओत-प्रोत और सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमूर्तिभाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने पूरे हिन्दुस्तान में नई ऊर्जा का संचार ही नहीं किया हैअपितु उनका व्यक्तित्व निश्चित रूप से भारत देश को उन बुलन्दियों पर पहुंचायेगा जिसकी कल्पना हमारे पूर्वजों ने अपना बलिदान देकर की थी।
दो सौ वर्षों की गुलामी कराने के बाद अंग्रेजों ने जिस हिन्दुस्तान को आजाद किया था,दरअसल उसकी चाबी अंग्रेजों ने अपने पिठ्ठुओं के ही हांथ सौंपी थी। हिन्दुस्तान का पहला प्रधानमंत्री जो व्यक्ति बनावह सम्पूर्ण कांग्रेस की पसन्द का कतई ना होकर मात्र महात्मा गांधी और अंग्रेजों की पसन्द का ही था। वरना क्या वजह थी कि उस समय मौजूद पन्द्रह कांग्रेस कमेटियों में से 12 कांग्रेस कमेटियों द्वारा सरदार पटेल का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए संस्तुत किये जाने के बाद और तीन कांग्रेस कमेटियों द्वारा किसी के भी नाम की संस्तुति ना करने के बाद भी एवं किसी भी एक कांग्रेस कमेटी से पं0 जवाहर लाल नेहरू के नाम की संस्तुति ना होने के पश्चात भी पं0 नेहरू को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बना दिया गया।
दरअसल सम्पूंर्ण कांग्रेस कमेटी द्वारा सरदार पटेल के नाम की ही सिफारिश मिलने के बाद महात्मा गांधी जी ने सरदार पटेल पर दबाव डाला कि वे इस पद से इस्तीफा दे दें,क्योंकि वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ही बनें। महात्मा जी की बात का आदर करते हुए सरदार पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने से इन्कार कर दिया और पं0 नेहरू का नाम प्रधानमंत्री के लिए प्रशस्त हो गया। इसी दरम्यान लेडी माउण्टबेटन द्वारा जिन्ना के कान भरे गये कि जब एक भी कांग्रेस कमेटी द्वारा नेहरू के नाम की सिफारिश ना आने के बाद भी उनका नाम प्रधानमंत्री बनाये जाने के लिए आ रहा है,तो तुम किस हिसाब से उनसे कम हो! जिन्ना को लेडी माउण्टबेटन ने बरगलाकर प्रधानमंत्री पद लिए दौड़ लगवा दी।

बस फिर क्या था,जिन्ना ने भी प्रधानमंत्री बनने की जिद पकड़ ली और नतीजा सबकी आंखों के सामने है कि जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हिन्दुस्तान के दो टुकड़े करके पाकिस्तान को अलग राष्ट्र बना दिया गया। तथ्यात्मक विश्लेषण से प्रकट होता है कि अंग्रेजों ने जाते-जाते हिन्दुस्तान के दो टुकड़े ही नहीं किये अपितु उस महात्मा की भी छुट्टी करा दी,जिसने उनके कहे पं0 नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री पद सौंप दिया था। इतना ही नहीं अंग्रेज ऐसा बीज बोकर गये कि उसका खामियाजा हम हिन्दुस्तानी आजतक भुगत रहे हैं।
सोचिए यदि हिन्दुस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल होते तो जिन्ना भी मैदान में ना आते,पाकिस्तान का भी उदय ना होता और कश्मीर के लिए धारा-370 के सृजन की भी आवश्यकता नहीं पड़ती! जिस पर आज बहस के लिए भी लोग जहर उगल रहे हैं। यह सब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पं0 नेहरू को ही प्रधानमंत्री बनाये जाने की जिद के ही कारण हुआ। नरेन्द्र मोदी से पूर्व के समस्त प्रधानमंत्रियों में से एकमात्र लालबहादुर शास्त्री ही ऐसे प्रधानमंत्री थे जो यदि जिन्दा होते तो भारत की तस्वीर भी दूसरी होती। लेकिन उनकी संदेहास्पद मौत के बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम ना कराया जाना निश्चित रूप से जांच के दायरे में आना चाहिए था लेकिन ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया।

इसी तरह इस देश के गौरव पुरूष सुभाष चन्द्र बोस को भी गुमनामी की अंधेरी खोह में इरादतन डुबो दिया गया। जिस शक्स ने अपने देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजादी दिलाने के लिए इण्डियन सिविल सेवा में टाप करने के बाद भी उसे ज्वाइन ना किया हो और स्वतन्त्रता के लिए इण्डियन सिविलियन आर्मी (आजाद हिन्द फौज) का गठन किया हो एवं अंग्रेजों से लोहा लेकर जंग जीती हो वह भारत को आजादी दिलाने के बाद कहीं छिप क्यों जायेगा? कहीं भाग क्यों जायेगा? जिस विमान दुघर्टना में उनके मारे जाने का भ्रम फैलाया गया है,मेरा मानना है कि दरअसल ऐसी कोई विमान र्दुघटना तब हुई ही नहीं थी।
ऐसे वीर सपूतों के हांथ में यदि भारत की सत्ता आई होती तो माना जाता कि देश स्वतन्त्र हुआ लेकिन भारत देश वास्तव में 26 मई 2014 की दोपहर तक परतन्त्र ही था। असली मायनों में स्वराज तो 26 मई की शाम को आया है, जब इस देश के प्रधानमंत्री की शपथ भाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने ली है। इस आजाद भारत के प्रधानमंत्री को मेरी एक छोटी सी सलाह है कि वे अबसे किसी भी मायने में सरदार वल्लभ भाई पटेल वाली गलती नहीं दोहरायेंगे। अब आप देश के लिए हैं। आपका समय, आपका शरीरआपकी आत्मा सब देश के लिए हैऔर ऐसा आप कर भी रहे हैं, फिर भी इसे आपको हमेशा अपने जहन में रखना होगा।
सरदार पटेल ने यदि महात्मा गांधी जी की बात ना मानी होती और पन्द्रह कांग्रेस कमेटियों द्वारा उनके नाम को संस्तुत किये जाने को देशहित में मानते हुए आदर-सम्मान दिया होता तो निश्चित रूप से भारत आज विश्व का लीडर एवं हरा भरा खुशहाल राष्ट्र होता! तब धारा-370 का ना तो उदय होता और ना ही इस पर किसी बहस की आवश्यकता होती! इसीलिए नरेन्द्र मोदी जी को कोई भी निर्णय इसलिए नहीं लेना है यदि ऐसा नहीं किया तो वो नाराज हो जायेगा और वैसा ना किया तो ये नाराज हो जायेगा। आपको भीष्म पितामह की तरह हस्तिनापुर से बंधे नहीं रहना हैभले ही हस्तिनापुर में अधर्म होता रहे। वे इस देश के सवा सौ करोड़ से अधिक भारतीयों के संरक्षक हैं,वे अब मात्र भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नहीं हैंवे भारतीय जनता पार्टी के नेता तो हैं, लेकिन प्रधानमंत्री भारत के हैं और पूरा भारत किसी एक पार्टी का कतई ना तो है और ना ही हो सकता है।
इसी वेबसाइट पर कई एक ऐसे लेख विगत तीन वर्षां के दौरान लिखे गये है जब स्तम्भकार को पता ही नहीं था कि इस देश से एक राजवंश का शासन कभी समाप्त भी होगा। ऐसे लेखों के लिंक नीचे लगाये जा रहे हैं। अपने उस सलाहकार को सुपुर्द करना चाहें जो जोधा की तरह अकबर को चाहता हो ना कि बेगम रूकईया की तरह शहंशाह को। तय मानिये शहंशाह जलाल को अकबर महान बनाने में एकमात्र योगदान जोधा एवं उसके बीरबल जैसे सलाहकारों का ही था।
नरेन्द्र मोदी नाम की शक्सियत एक मिश्रित व्यक्तित्व हैसरदार पटेल,स्वामी विवेकानन्द और सुभाष चन्द्र बोस का। निश्चित रूप से सरदार पटेललौह पुरूष थेलेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भारत को आवश्यकता है स्टील पुरूष की,जिसमें लचीलापन भी हो और दृढ़ता भी। नरेन्द्र मोदी जी के शीर्ष प्राथमिकता पर इण्टरनल और बार्डर सीक्योरिटी होनी चाहिए और इन सबसे ऊपर उनकी अपनी सीक्योरिटी! मोदी जी के दुश्मनों की तादाद 26 मई 2014 के बाद से बहुत बढ़ गई हैफिर चाहे यह अपने देश में छिपे गद्दारों से हो अथवा विदेशीयों से। यह कोई हल्के में लेने या ओवर कान्फीडेन्स में होने का प्रश्न नहीं है।
आखिरकार लाल बहादुर शास्त्री को दूर देश में ही मरा पाया गया और वीर बहादुर सिंह भी विदेश में ही मारे गये। अन्दरूनी आतंक और उससे जुड़ा आतंकवाद बहुत बड़ी समस्या है। एनआईआईबीरास्पेशल ब्यूरो जैसी संस्थायें जो सुप्तावस्था में हैंउन्हें जगाने और ताकतवर बनाने की आवश्यकता है। उनके पास सारी जानकारी रहती है, वे इसे समय-समय पर सरकार के मुखिया को उपलब्ध भी कराती हैंलेकिन जब मुखिया ही उन्हें देखकर साइड-ट्रैक करने के मूड में रहता हो तो वे क्या कर सकती है। र्दुभाग्य रहा है इस देश का कि उनकी एडवाइस और फाइलें वे देखते हैं जो स्वंय गुनहगार हैं।
मेरा निश्चित मत है कि नरेन्द्र मोदी जी सरदार पटेल की ही रेप्लिका हैं। जिस सरदार पटेल ने 543 रियासतों को भारत में मिलाकर संसद की उत्पत्ति की,उस सरदार पटेल की कश्मीर के मामले में दी गई सलाह को पं0 नेहरू ने ना मानकर कश्मीर मुद्दे को यूनाइटेड नेशन काउन्सिल को रेफर कर दिया,वही मुद्दा आजतक नहीं निपट सका है और झगड़े की जड़ बना हुआ है। यही इतिहास की सबसे बड़ी भूल है, जिसके लिए नेहरू कम सरदार पटेल ज्यादा जिम्मेदार हैं। मोदी जी ध्यान रखें जो होस्टाइल कंडीशन भारत की तथाकथित आजादी से पूर्व थीं,वे ही कन्डीशन वर्तमान में भी मौजूद हैं,क्योंकि 25 मई तक इस देश में एक राजवंश का ही शासन था।
       The problem of the State (India) is so difficult that only & only Narendra Modi alone can handle it. Satish Pradhan

मेरे जैसे और भी लाखों भारतवासी आपको भारत का स्वतंत्र पंधानमंत्री बनते देख अपार खुशी का अनुभव करते हैं और आपके दीर्घायू होने और देशहित में कठोर से कठोर निर्णय लेने की कामना करते हैं। यदि शरीर का कोई अंग कैंसर से पीड़ित है तो उसका पोषण करने के बजाय उसका काटा जाना ही श्रेष्ठ इलाज है।
आपके साथ इस देश के 282 सांसद ही नहीं हैं, पूरा देश आपके साथ है। देशहित के हर निर्णय में यह पूरा देश आपके साथ खड़ा मिलेगा। इसे ना तो जयललिता रोक सकती हैंना ही ममता अथवा कोई और। बस जिसकी जगह जहां हैउसे वहीं पहुंचा दीजिए। जिसका जो काम हैउसे वही करना चाहिए। सरकार का काम नीतियां बनानाशासन एवं प्रशासन चलाना और अपना इकबाल कायम करना है। उसका काम आटादालतेलजूतामिट्टी का तेल और पैट्रोल बेचना नहीं है। इस पैरे को यदि सरकारें जान जाएं तो किसी भी और नुस्खे की आवश्यकता नहीं है।

Sunday, July 1, 2012

पत्रकारों की सम्पत्ति का खुलासा क्यों नहीं?


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने अपनी सरकार की छवि साफ सुथरी रखने के लिए अपने सभी मंत्रियों के वास्ते आचार संहिता तय कर दी है। मुख्यमंत्री ने न सिर्फ मंत्रियों को अपनी व परिवार के सभी सदस्यों की संपत्ति घोषित करने का निर्देश दिया है अपितु पांच हजार से अधिक का उपहार लेना भी प्रतिबंधित कर दिया है। इसके लिए उन्होंने सभी मंत्रियों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के प्राविधानों को भी पत्र में संलग्नक के रूप में भेजा है। मंत्री को अपने उन रिश्तेदारों का भी विवरण देना होगा जो उनपर आश्रित हैं। यह विवरण सिर्फ अचल सम्पत्ति तक ही सीमित नहीं है, अपितु यदि किसी के पास शेयर हैं, नकदी व ज्वैलरी है तो इसका भी विवरण देना होगा। पाँच हजार से अधिक मूल्य के उपहार को उन्होंने सरकारी सम्पत्ति घोषित कर दिया है।
ऐसी स्थिति में जबकि उ0प्र0 के मुख्यमंत्री ने मंत्रियों के लिए सम्पत्ति के खुलासे को अनिवार्य कर दिया है, और जब आई0ए0एस0, आई0पी0एस0 एवं पी0सी0एस0 अधिकारियों पर सम्पत्ति की घोषणा करने के लिए न्यायालय तक दखल दे चुका है तो राज्य मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकार इससे अछूते क्यों हैं? यहॉं पर समस्त पत्रकारों की बात नहीं की जा रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश के राज्य मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकारों के लिए तो इसे अपरिहार्य बनाया ही जाना चाहिए। चौथा खम्भा कहलाने में हमें बड़ा गर्व महसूस होता है, लेकिन जब बाकी तीनों खम्भों के लिए सम्पत्ति का खुलासा करना अपरिहार्य हो गया है, तो फिर राज्य मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकारों पर ये प्रतिबन्ध क्यों नहीं? श्री अखिलेश यादव का यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय एवं प्रशंसनीय है।
मुख्यालय पर मान्यताप्राप्त पत्रकारों को निर्देशित किया जाना चाहिए कि वे अपनी सम्पत्ति का खुलासा तीस दिन के अन्दर करें, अन्यथा कि स्थिति में उनकी मुख्यालय पर मान्यता निरस्त कर देनी चाहिए। इसी प्रकार जो पत्रकार मुख्यालय की मान्यता के लिए आवेदन करता है या उसकी सिफारिश/संस्तुति जो संस्थान करता है उसे उसके आवेदन के साथ सम्पत्ति के खुलासे का प्रमाण संलग्न करना चाहिए एवं बगैर इसके उस पत्रकार को राज्य मुख्यालय की मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। सूचना निदेशक, सूचना सचिव, सचिव मुख्यमंत्री एवं प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री को ऐसा प्रारूप तैयार कराना चाहिए जिससे पत्रकार आन-लाइन सम्पत्ति की घोषणा कर सकें। साथ ही प्रतिवर्ष इसको अद्यतित किये जाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
ध्यान रहे इसी लखनऊ में ऐसे-ऐसे पत्रकार हैं जो करोड़पति ही नहीं अपितु अरबपति हैं। पत्रकारिता से वेतन के नाम पर उनको पन्द्रह हजार भी वेतन नहीं मिलता है, लेकिन करोड़ों की अचल सम्पत्ति के वे मालिक हैं, बड़ी-बड़ी स्पोट्‌र्स यूटिलिटी व्हीकिल्स (एस0यू0वी0) से वे अपने तो घूमते ही हैं, कुछ तथाकथित बड़े कहलाने वाले पत्रकारों को भी ऐसे वाहन उपलब्ध कराकर उनकी आत्मा को तृप्त करते हुए ओबलाइज करते हैं। यही तथाकथित बड़े कहलाने वाले पत्रकार उन जैसे संदिग्ध एवं आय से अधिक सम्पत्ति धारण करने वाले पत्रकारों को प्रश्रय एवं संरक्षण दिये हुए हैं।
संदिग्ध एवं गलत धन्धों में लिप्त, बिल्डर और माफिया पत्रकारिता के पेशे में घुसकर अपने जैसे ही लोगों को पत्रकार का ठप्पा लगाकर सचिवालय एनेक्सी के मीडिया सेन्टर में घुसा चुके हैं। गैराज से अखबार निकालने वाले लोग आज की तारीख में कई करोड़ के आसामी ही नहीं हैं अपितु इनका नेक्सस इतना तगड़ा है कि कई एस0पी0, सी0ओ0, दारोगा इनके नेक्सस का हिस्सा हैं। इनकी सच्चाई का जो भी पत्रकार खुलासा करने की हिम्मत करता है, उसे यह जबरन फंसाने के लिए फर्जी एफ0आई0आर0 विभिन्न थानों में लिखवा देते हैं, जिसमें यही दरोगा, सी0ओ0, एस0पी0 और तो और एस0एस0पी0 (आई0जी0रेन्क के अधिकारी तक) इनकी खुले आम चाहे-अनचाहे मदद करते हैं।

क्या इससे कोई इंकार कर सकता है कि आई0बी0 की सूचना पर जो सतर्कता, सचिवालय मुख्य भवन, सचिवालय एनेक्सी, बापू भवन, राज्यपाल भवन के लिए बरतनी पड़ी उसमें किसी ऐसी व्यक्ति का हांथ नहीं है, जो पत्रकारिता के पेशे में घुसा हुआ है। जब महाराष्ट्र की शिक्षामंत्री की संलिप्तता आतंकवादियों से हो सकती है, तो पत्रकारिता के पेशे में ऐसे भेड़ियों की क्यों नहीं, आखिरकार इसकी गारण्टी कौन देगा। इसलिए राज्य मुख्यालय पर मान्यता पाये और मान्यता चाहने वाले पत्रकारों की जॉंच एल0आई0यू0 के स्थान पर आई0बी0 से होनी चाहिए।
सचिवालय एनेक्सी में लगे सी0सी0टी0वी0 कैमरों की रिकार्डिंग में क्या इसकी मॉनीटरिंग होती है कि कौन व्यक्ति कैसे और किस व्यवस्था के तहत पंचम तल तक पहुंच रहा है, और वहॉं कर क्या रहा है। ट्रान्सफर-पोस्टिंग के धन्धे में लगे इन तथाकथित पत्रकारों की जॉंच आखिरकार क्यों नहीं होती? कोई अपने को सचिव मुख्यमंत्री श्रीमती अनीता सिंह का खास बताता है तो कोई अपने को शम्भू सिंह यादव का। इनमें से एक अपने को मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव का खास बताता है, जबकि मुख्यमंत्री के यहॉं उसकी एन्ट्री ही बन्द है। आखिरकार ये कैसे हो रहा है कि जब कोई भी पत्रकार पंचमतल पर बैठे अधिकारियों की मर्जी से बने पास के बगैर वहॉं नहीं पहुंच सकता तो ये कैसे ऊपर पहुंच जाते हैं? ग्रह विभाग में तिलचट्टे की तरह घुसे इन पत्रकारों की निगरानी का समय आ गया है।

अब समय आ गया है जब मुख्यालय पर पत्रकार मान्यता दिये जाने की अधिनियम के तहत नियमावली बने तथा पन्द्रह वर्ष से कम अनुभव रखने वाले किसी भी पत्रकार को राज्य मुख्यालय की मान्यता प्रदान न की जाये, भले ही वह कितने ही बड़े ग्रुप से ताल्लुक क्यों ना रखता हो, उसे लिखना-पढ़ना आता हो, जिस भाषा के समाचार-पत्र से वह मान्यता चाह रहा है उस भाषा का उसे ज्ञान हो, साथ ही ए-4 साइज का एक पन्ना वह लिखने में तो सक्षम हो, क्योंकि राज्य मुख्यालय पर एक से एक वरिष्ठ अधिकारी से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री तक यहॉं बैठते हैं, इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उनसे पत्रकार के रूप में मिलने वाले व्यक्ति को लिखना-पढ़ना आता हो, सलीका आता हो, और कुल मिलाकर वह सभ्य हो।

पत्रकारिता ही एक ऐसा पेशा है जिसके नाम पर कोई भी कहीं भी घुस सकता है। इसलिए अब इसपर निगरानी की आवश्यकता आन पड़ी है। पत्रकार मान्यता नियमावली के प्रख्यापन के साथ ही पत्रकार आवास आवंटन नियमावली-1985 को भी संशोधित किये जाने की आवश्यकता है। कितने ही पत्रकार ऐसे हैं, जिनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनके घर वाले उस सरकारी आवास पर जबरन कब्जा बनाये हुए हैं और अपने निजी मकान को अस्सी-अस्सी हजार रूपये किराये पर उठाये हुए हैं। सरकारी आवास निरस्त होने के बावजूद उनके खिलाफ पब्लिक प्रिमाइसेज इविक्शन एक्ट के तहत कार्रवाई ना होना ही सबसे बड़ा दुखद पहलू है।
(सतीश प्रधान)

Monday, June 18, 2012

माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा

लगभग 44 वर्ष की उम्र तक पत्रकारिता से दूर-दूर तक का नाता ना रखने वाले एवं प्रबन्धकीय पद पर कार्य करने वाले एक व्यक्ति नेअचानक रातों-रात लखनऊ से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक समाचार-पत्र, जनसत्ता एक्सप्रेस (फ्रेन्चाइजी के तहत वर्तमान में बन्द हो चुके) के तत्कालीन अनुबन्धकर्ता एवं स्वामी डा0 अखिलेश दास की मेहरबानी से महाप्रबन्धक होने के बावजूद सम्पादक का चार्ज ले लिया और पत्रकार बन गये। डा0 अखिलेश दास ने भी बगैर यह विचार किये कि इस महाप्रबन्धक का पत्रकारिता से कोई लेना-देना ही नहीं है, फिर भी सम्पादकीय विभाग में एक से एक पत्रकारों के मौजूद रहने के बाद भी उन सबको नजरअन्दाज करते हुए समाचार-पत्र का सम्पादक बना दिया। मि0 दास एक बिजनेसमैन हैं और उन्होंने अपने फायदे के लिए ही ऐसा कर डाला। दोनों पद एक व्यक्ति को देकर उन्होंने सम्पादक को दी जाने वाली सेलरी को आराम से बचा लिया।
इस प्रकार सीनियर प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों को आम की पेटी एवं उपहार के बल पर अपने को जिन्दा रखने वाले इस व्यक्ति, मि0 पंकज वर्मा ने महाप्रबन्धक एवं सम्पादक का चार्ज लेते ही समाचार-पत्र के ब्यूरो प्रमुख की मेहरबानी से दिनांक 31 जनवरी 2004 को राज्य सम्पत्ति विभाग का शासकीय आवास, राजभवन कालोनी में नं0-1 आवंटित करा लिया। वर्ष 2005 में मि0 पंकज वर्मा को डा0 अखिलेश दास ने विज्ञापन के धन में हेरा-फेरी करने के आरोप में नौकरी से भी निकाल बाहर किया।
पंकज वर्मा के पत्रकार न रहने और मेसर्स शोंख टैक्नोलॉजी इण्टरनेशनल लिमिटेड में वाइस प्रेसीडेन्ट का पद पाने और इसके बाद हेरम्ब टाइम्स में राजनीतिक सम्पादक होने और फिर वारिस-ए-अवध का संवाददाता दर्शाने की स्थिति में विशेष सचिव एवं राज्य सम्पत्ति अधिकारी, उ0प्र0 शासन ने 15 फरवरी 2006 को उनका आवंटन आदेश निरस्त कर दिया। इस आदेश के विरूद्ध मि0 पंकज वर्मा ने वर्ष 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में रिट पिटीसन संख्या-1272 दाखिल की।

जिसकी पूरी तरह से सुनवाई करने के बाद विद्धान न्यायाधीषों क्रमशः श्री संजय मिश्रा एवं श्री राजीव शर्मा ने रिट पिटीसन संख्या-1272 पर फाइनल आर्डर किया कि- 
                   The impugned order does not suffer from any error in law and as such, the writ petition having  no merit is accordingly dismissed. 

इसके बाद मि0 पंकज वर्मा ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में संख्या-18145 से वर्ष 2007 में एस0एल0पी0 दाखिल कर दी।
माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 05 अक्टूबर 2007 को हुई पहली सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Upon hearing counsel the court made the following ORDER-
              Issue notice. Status quo shall be maintained in the meantime. 

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 04 फरवरी 2008 को हुई दूसरी सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Ms Shalini Kumar, learned Advocate appearing on behalf of Ms. Niranjana Singh, Advocate on Record accepts notice for all the respondents and seeks time to file Vakalatnama & Counter Affidavit. 
              They may do so, before 29th Feb. 2008. 
              List the matter on 29th Feb. 2008.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 29 फरवरी 2008, को हुई तीसरी सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Office is directed to rectify the data base so as to disclose the names of all the concerned Advocates in the Cause List who have filed their appearance. 
               List the matter before the Hon’ble Court. 

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 21 अप्रैल 2008, को हुई चैथी सुनवाई में आदेश हुए कि-
              Two weeks time is granted to file rejoinder affidavit.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 14 जुलाई 2008, को हुई पांचवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-

             We find that the petitioners counsel had made a request by letter dated 16/04/2008 for grant of time & time was accordingly granted on 21/04/2008. 
             Again similar request is made by writing an identical letter. We see no ground for extending the time.The request for extending further time to file a rejoinder is rejected. 

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 19 अगस्त 2008, को हुई छठी सुनवाई में आदेश हुए कि-
             Place before appropriate Bench.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 13 अक्टूबर 2008, को हुई सातवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             Order dated 14/07/2008 is recalled. Rejoinder affidavit be filled within two days.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 01 जनवरी 2009, को हुई आठवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             Pleadings are complete. List this matter for hearing in the last week of Feb.2009. In the meantime, the State Govt. is at liberty to take a decision on the representation stated to have been filed by the petitioner if the said representation is still pending for decision.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 23 फरवरी 2009, को हुई नौवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             In view of the letter circulated on behalf of learned counsel for the petitioner, list after four weeks.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 27 मार्च 2009, को हुई दसवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
            On the joint request made by the parties, list this matter after the ensuing Summer Vacation.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 06 जुलाई 2009 को ग्यारहवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             List for final disposal in Nov. 2009.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 17 सितम्बर 2010 को हुई बारहवीं सुनवाई में आदेश हुए कि-
             The matter is adjourned for eight weeks.

माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 26 अगस्त 2011 को हुई फाइनल सुनवाई में एस0एल0पी0संख्या-18145 को न्यायमूर्ति माननीय श्री आर.बी रविन्द्रन और न्यायमूर्ति माननीय श्री ए0के0पटनायक ने अंतिम रूप से निस्तारित करते हुए आदेश दिये कि-
           
         Upon hearing counsel the Court made the following ORDER-
             Special Leave Petition is dismissed.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी पंकज वर्मा के वकील महोदयों ने टाइम-पर टाइम लेने और कोर्ट का समय जाया करने की असफल कोशिश की, एवं मा0 सुप्रीम कोर्ट की जल्द निपटारे की मंशा के बाद भी चार साल लग गये। मि0 पंकज वर्मा ने इस प्रकार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वाद दाखिल करके छह साल आराम से गुजार दिये और अब 26 अगस्त 2011 को दिये गये सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी अनादर करते हुए आराम से उसी सरकारी आवास में अवैध एवं अविधिक कब्जा जमाये हुए हैं।

जिस आवास को खाली कराने के लिए राज्य सम्पत्ति विभाग ने जनता के धन के लाखों रूपये वकीलों की फीस के रूप में खर्च कर डाले और दोनों ने मिलकर माननीय हाई कोर्ट और माननीय सुप्रीम कोर्ट का समय भी बर्बाद किया, उसी आवास को पुलिस बल से कब्जा मुक्त कराने की कोई मंशा राज्य सम्पत्ति विभाग की नहीं दिखाई देती। नहीं तो क्या कारण है कि 26 अगस्त 2011 को मा0 सुप्रीम कोर्ट से फैसला राज्य सम्पत्ति विभाग के पक्ष में होने के बावजूद राज्य सम्पत्ति विभाग आज दिनांक 18 जून 2012 तक मि0 पंकज वर्मा से शासकीय आवास रिक्त नहीं करा पाया है? जब मि0 पंकज वर्मा से आवास खाली ही नहीं कराना था तो आवंटन आदेश रद्द ही क्यों किया गया? और मा0 हाईकोर्ट में एवं मा0 सुप्रीम कोर्ट में प्रतिवाद ही क्यों किया गया? यदि प्रतिवाद सही किया गया तो राज्य सम्पत्ति विभाग मि0 पंकज वर्मा के खिलाफ पब्लिक प्रिमाइसेज (इविक्सन) एक्ट के तहत बेदखली की कार्रवाई क्यों नहीं करता है?

मि0 पंकज वर्मा ने भी वकीलों की फौज पर लाखों रूपये बहाये, आखिरकार इतना धन मि0 पंकज वर्मा कहॉं से लाये? इनके पास आय से अधिक सम्पत्ति की आखिरकार जॉंच क्यों नहीं होनी चाहिए? उ0प्र0की राजधानी लखनऊ में तकरीबन तीन दर्जन पत्रकार ऐसे हैं जो करोड़पति हैं, एक दर्जन ऐसे हैं जो अरबपति हैं और प्रदेश की मीडिया को, नौकरशाही को एवं सरकार को अपनी उंगली पर नचाते हैं एवं पत्रकारिता की ऐसी की तैसी कर रखी है। प्रदेश के समस्त मान्यता प्राप्त पत्रकारों की आय से अधिक सम्पत्ति की जॉंच तो होनी ही चाहिए, यदि देश के इस चौथे खम्भे को दुरूस्त रखना है तो।

मि0 पंकज वर्मा और राज्य सम्पत्ति विभाग, दोनों ने मिलकर क्या माननीय उच्च एवं उच्चतम न्यायालय का वक्त बर्बाद करते हुए उसके दिये गये आदेश को ठेंगा नहीं दिखाया। यदि यह मुकदमा दोनों न्यायालय में ना लगा होता तो मा0 दोनों न्यायालयों को किसी और विशेष मुकदमे को निपटाने का समय मिला होता एवं वास्तव में किसी गरीब-गुरबे की सुनवाई हुई होती और उसे राहत मिली होती। यहॉं तो कुल मिलाकर माननीय न्यायालयों को ही बेवकूफ बनाने में दोनों पक्ष एकमत रहे

उत्तर प्रदेश में ज्यादातर पत्रकारों ने इसी तरह फर्जी तरीके से सरकारी आवास पाये हुए हैं। अपना मकान होते हुए भी (जिसे सरकार ने 40 प्रतिशत की सबसिडी पर दिया है) उसे अस्सी-अस्सी हजार रूपये प्रतिमाह किराये पर उठाकर, राज्य सम्पत्ति विभाग में झूंठा शपथ-पत्र प्रस्तुत कर कई दशकों से सरकारी आवास पर कब्जा जमाये हुए हैं और संस्थान से रिटायर होने के बावजूद पत्रकार मान्यता पाने के लिए और आवास पर कब्जा बरकरार रखने के लिए वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र पत्रकार की श्रेणी बनवाकर शासकीय आवास पर कब्जा किये हुए हैं। कितने तो करोड़ों की अचल सम्पत्ति रखने के बाद भी सरकारी आवास पर काबिज हैं। क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि 70 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति भी पत्रकार बने रहकर सरकारी आवास घेरे हुए हैं और आर्थिक रूप से कमजोर एवं नौजवान, कर्मठ लगभग तीन दर्जन पत्रकार सरकारी आवास पाने से वंचित हैं और किसी तरह से गुजर-बसर कर रहे हैं।

माननीय मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट श्री एस0एच0 कपाड़िया जी से अनुरोध है कि मेरी इस अपील को पब्लिक इंटीरेस्ट लिटिगेसन की तरह ट्रीट करते हुए मुझ समेत समस्त पक्ष को नोटिस जारी करना चाहें, जिससे भविष्य में आपके न्यायालय तक पहुंचने वाला वादी और प्रतिवादी आपके आदेश का अक्षरशः पालन करे, उसके साथ ढ़ींगा-मुस्ती करने की हिम्मत ना दिखा पाये।

उपरोक्त की हार्ड कॉपी मय आवश्यक कागजातों के द्वारा रजिस्ट्री आपके पास इस उम्मीद से भेज रहा हॅूं कि आपके आदेश के बाद भी मि0 पंकज वर्मा का निरस्त आवास संख्या-1, राजभवन कालोनी, लखनऊ जो मुझे 30 मई 2012 को आवंटित किया गया है,उस पर अभी तक मि0 पंकज वर्मा का कब्जा किस प्रकार से बना हुआ है? आवास निरस्तीकरण के बाद फैसला आने पर भी राज्य सम्पत्ति विभाग ने अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
(सतीश प्रधान)
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