Ad

Showing posts with label Rule of Law. Show all posts
Showing posts with label Rule of Law. Show all posts

Sunday, August 21, 2011

संविधान से ऊपर नहीं है संसद

             इस देश में कानून का राज (रूल ऑफ लॉ) चलता है। ये हमारे संविधान के मूल ढ़ांचे का हिस्सा है। इसे संसद भी नष्ट या समाप्त नहीं कर सकती, बल्कि वह भी इससे बंधी है। रूल ऑफ लॉ, भूमि अधिग्रहण के उन मामलों में भी लागू होता है, जहॉं कानून को अदालत में चुनौती देने से संवैधानिक छूट मिली हुई है। यह बात सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सम्पत्ति पर अधिकार के कानून की व्याख्या करते हुए अपने फैसले में कही है।
            मुख्य न्यायाधीश माननीय एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने भूमि अधिग्रहण कानून को चुनौती देने वाली के0टी0 प्लांटेशन प्रा0लि0 की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि वैसे तो कानून के शासन यानी रूल ऑफ लॉ की अवधारणा हमारे संविधान में कहीं देखने को नहीं मिलती, फिर भी यह हमारे संविधान के मूल ढ़ाचे का हिस्सा है। इसे संसद भी नष्ट या समाप्त नहीं कर सकती। बल्कि ये संसद पर बाध्यकारी हैं। केशवानन्द भारती के मामले में दिए गये फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रूल ऑफ लॉ के सिद्धान्त को सबसे महत्वपूंर्ण हिस्सा माना है। संविधान पीठ ने कहा है कि एक तरफ तो रूल ऑफ लॉ संसद की सर्वोच्चता निर्धारित करता है, लेकिन दूसरी तरफ संविधान के ऊपर संसद की सम्प्रभुता को नकारता है, यानी संसद संविधान के ऊपर नहीं है।

    कोर्ट ने कहा है कि वैसे तो सैद्धान्तिक तौर पर रूल ऑफ लॉ के कोई विशिष्ट चिन्ह नहीं हैं, लेकिन ये कई रूपों में नजर आता है। जैसे प्राकृत न्याय के सिद्धान्त का उल्लंघन रूल ऑफ लॉ को कम करके आंकता है। मनमानापन या तर्क संगत न होना रूल ऑफ लॉ का उल्लंघन हो सकता है लेकिन ये उल्लंघन किसी कानून को अवैध ठहराने का आधार नहीं हो सकते। इसके लिए रूल ऑफ लॉ का उल्लंघन इतना गंभीर होना चाहिए कि वह संविधान के मूल ढ़ाचे और लोकतांत्रिक सिद्धान्तों को कमजोर करता हो।
सतीश प्रधान