एक खांटी किसान, एक सच्चा नेता ,एक बेलाग व्यक्तित्व एवं एक इंसान इस दुष्ट दुनिया से विदा हो गया। किसी ने कहा है कि- दुनिया का सबसे असाधारण काम है साधारण इन्सान बनना। और सच मानिये यह असाधारण काम किया चैkधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने। वह शुरू से आखिर तक साधारण इन्सान ही रहे। वह हमेशा किसान रहे और खेती एवं किसानी के काम में ही लगे रहे।
किसानों के मसीहा महात्मा और बाबा के नाम से जाने जाने वाले चैाधरी महेन्द्र सिंह टिकैत जो किसानों के लिए शेर की तरह दहाड़े और शेर की ही तरह मौन हो गये। सादा जीवन उच्च विचार को अपना आदर्श बनाने वाले टिकैत अपने घर की दीवार की लिपाई भी स्वंय करते थे तथा उसके लिए मिट्टी भी स्वंय खेादते थे। उन्होंने कभी अपने आपको नेता नहीं माना। वह हमेशा किसान ही रहे और खेती- किसानी में ही लगे रहे।
वैसे तो चैाधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने आदर्श वर्ष की उम्र से ही किसानों के हक की लड़ाई में शामिल होना शुरू कर दिया था किन्तु खाप ने चैाधरी महेन्द्र सिंह टिकैत को 52 वर्ष की उम्र में पकड़ी पहनाई थी। उस पकड़ी की लाज़ उन्होंने अपनी अन्तिम साँस तक निभाई।
सातवीं तक ही शिक्षा ग्रहण करने वाले चैाधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का कहना था कि डीजल या पैट्रोल की कीमत के अनुपात में किसानों को फसल का मूल्य मिलना चाहिए। चैाधरी महेन्द्र सिंह टिकैत यह मांग करते रहे कि 1967 को आधार वर्ष मानकर किसान की फसलों का मूल्य तय किया जाना चाहिए। धुन के धनी टिकैत इतना गूढ़ अर्थशास्त्र समझते थे इसका अन्दाजा कोई नहीं लगा सकता। इसके अलावा वह फौज की रणनीति के तहत कार्य करने में माहिर थे। कहीं भी आन्दोलन करने से पूर्व वह वहॉं पहले अपने दूतों को जायज़ा लेने भेजते थे जिसे आर्मी की भाषा में रेकी कहते हैं। वह एकदम कमान्डोज़ की भाँति घेराबन्दी करते थे।
प्रशासन को मुसीबत में डालने के लिए उन्होंने एक नायाब तरीका ढूंढा था। वह पषुओं के साथ गिरफ्तारी देने का। यदि किसानों को हिरासत में लिया जाता था तो थानों की हालत किसी पशुशाला जैसी ही हो जाती थी। इसी कारण उन्हें गिरफ्तार करने में प्रशासन को भी पसीने आने लगते थे।
चैाधरी महेन्द्र सिंह टिकैत और भारतीय किसान यूनियन का खौफ भ्रष्ट अधिकारियों पर इतना था कि उस दौर में मलाईदार विभाग के अधिकारी इस भ्रष्ट पट्टी में अपना ट्रान्सफर नहीं चाहते थे और जो पद पर थे वे वहॉं से भागना चाहते थे। किसानों को टिकैत के नेतृत्व के बाद अब निर्बल किसान के रुप में देखना गलत फहमी होगी। यह बात अलग है कि किसान अब भी बेमौत मारे जा रहे हैं। दोष उनका केवल इतना है कि उनके पास जो जमीन है उसे सरकार जबरदस्ती उनसे छीनना चाहती है और किसान डण्डे के जोर पर पूंजीपति लैण्ड माफियाओं को औने-पौने दाम पर देना नहीं चाहते। क्या इस तरह से जमीन अधिग्रहीत करके उद्योगपतियों को देना सीलिंग एक्ट की मूल भावना के विपरीत नहीं है।
जब हवाला के व्यापारियों टैक्स की चोरी करके हजा़रों करोड़ के स्वामी बने पूंजीपतियों से सरकार उनकी दौलत नहीं छीन सकती तो किसान से उसकी अपनी पुश्तैनी जमीन जिससे उसके घर-परिवार का भरण पोषण होता है गुण्डई के बल पर कैसे अधिग्रहीत कर सकती है। यह सरासर नाइंसाफी गुण्डई और लैण्ड माफियाओं को प्रश्रय देना हीं कहा जायेगा। सरकार जनमानस के भले के लिए बनती है चन्द पूंजीपतियों की तिजोरी बड़ी करने के लिए नहीं। अब चैाधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की भरपाई कौन करेगा यह तो अब खांटी किसान को ही सोचना होगा।
सतीश प्रधान
सतीश प्रधान