भारत में जनता की पसन्द का बहाना लेकर सत्ता पर काबिज राजवंश अब जनता की परवाह न करने वाले तानाशाह के रूप में सामने आ गया है। प्रधानमंत्री और संसद की ओर से सरकार के वरिष्ठ मंत्री द्वारा संसद में दिया गया आश्वासन {जिसे सेन्स ऑफ हाऊस कहना ज्यादा उचित है} को दरकिनार कर जनता को खुलेआम धोखा दिया जा रहा है। पूरी की पूरी सरकार राजवंश के इशारे पर नाचती हुई उल-जुलूल वक्तव्यों से जनता की इच्छा को पैंरों तले रौंद रही है और किसी को भी पूरे भारत में इटली के कैसीनो का साम्राज्य गुण्डई के साथधन्धा करते दिखाई नहीं दे रहा है।
ट्यूनेशिया से चला चमेली क्रान्ति का यह रथ उत्तरी अफ्रीका से लेकर मध्य पूर्व से होते हुए गेटवे ऑफ इण्डिया के रास्ते भारत में प्रवेशकर महाराष्ट्र के ही रालेगण सिद्धी में अपने प्रदर्शन का इंतजार कर रहा है। चमेली क्रान्ति का अगला पड़ाव मिस्र रहा,जहां होस्नी मुबारक 40 साल से सत्ता में जमे थे और भरपूर गुण्डई कर रहे थे। मिस्र की राजधानी काहिरा का तहरीर चौक आजादी की शहनाई का बिसमिल्लाह खॉं साबित हुआ। एक युवती(दुर्भाग्य है मेरा कि मेरे पास उस महान युवती का नाम नहीं है,इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यदि कोई उसका नाम मुझे ईमेल कर देगा तो मेहरबानी होगी) ने फेसबुक पर पोस्ट किया कि-मैं तहरीर चौक पर होस्नी मुबारक के खिलाफ आन्दोलन करने जा रही हूँ,बिल्कुल अकेली। अगर कोई मेरा साथ देना चाहे तो मेरे साथ आये। जब वह युवती घर से निकली तो अकेली थी,जब वह पांच किलोमीटर तक पहुंची तो उसके साथ दस लोग और जुड़ गये और इसके आगे जब वह कार्ड-बोर्ड का बैनर लिए तहरीर चौक पर होस्नी मुबारक के विरूद्व आन्दोलन करने खड़ी हुई,तबतक उसके साथ आये लोगों की तादाद दो दर्जन से ज्यादा हो गई थी।
ख्वाब उनका है प्रधानमंत्री बनने का और अपनी सरकार के तमाम लाखों करोड़ के भ्रष्टाचार की बात न करके केवल उ0प्र0 में मनरेगा के भ्रष्टाचार की बात करते हैं,गोया मनरेगा केवल उ0प्र0 में ही चल रही है। महाराष्ट्र,राजस्थान अथवा अन्य प्रदेशों में न तो यह स्कीम चल रही है और ना ही करोड़ों का घोटाला हो रहा है। वह भूले जा रहे हैं कि राजस्थान में तो उनकी पार्टी के मंत्री पूरी की पूरी औरत को अय्यासीबाजी करने के बाद चूने की भट्टी में झोंके दे रहे हैं। इस पर उन्हें शर्म नहीं आती है कोई क्षोभ नहीं होता है।
अब आइये लीबिया पर! लीबिया में लगभग एक दशक से चले आ रहे सत्ता के खिलाफ विरोध ने ट्यूनेशिया और मिस्र से इतनी ऊर्जा ग्रहण की कि उसके जबरदस्त विरोधी रूख के कारण कर्नल मुअम्मर गद्दाफी को मजबूरन पहले राजधानी छोडनी पड़ी और फिर उसके बाद जान भी गवानी पड़ी। विद्रोहियों ने उन्हें उनके ग्रह नगर शर्त में उस समय गोलियों से छलनी कर दिया जब वह जान की भीख मांगने के बाद भाग खड़े होने की कोशिश कर रहे थे। लीबिया में इस समय अंतरिम सरकार है और वहां भी लोकतन्त्र की बहाली के लिए कोशिशें हो रही हैं।
आखिरकार इन दरोगाओं की नियुक्ति क्या केवल जनता को परेशान करने,उन्हें बेवजह जेल में बन्द करने और इन नेताओं की गुलामी करने के लिए की गई है? इन दरोगाओं से आपको तब डर नहीं लगता है जब आप इनका इस्तेमाल शैडो की तरह करते हो! इनसे लूट करवाते हो अथवा मासूम जनता पर लाठी चार्ज कराते हो। क्या यह सच नहीं है कि आप नेताओं ने इन दरोगाओं को अपना निजी नौकर बना छोड़ा है। अब जब आपको दिखाई दिया कि अरे यह तो लोकपाल का दरोगा होगा जो हमारी हुक्म उदीली नहीं करेगा तो आपकी रूह कांपने लगी। कड़क ठंड में संसद की गर्मी के अन्दर आपके बदन से पसीना टपकने लगा। आपकी सदरी तर-बतर हो गई।
70 प्रतिशत मतदाता को बलाये ताख रख केवल 30 प्रतिशत मतदाताओं के मत पर आप पूरे हिन्दुस्तान को गधे की तरह चरे जा रहे हो? भाई कभी तो जनता जागेगी और जब भी जाग गई समझ लीजिए इस हिन्दुस्तान में भी सुनामी आ जायेगी। आपको कर्नल गद्दाफी की तरह भागने का मौका भी नहीं मिलेगा। आपको पांच साल के लिए उत्तर प्रदेश की सत्ता चाहिए, लेकिन केन्द्र में मिली सत्ता से आपने इस देश की जनता को जो दिया है उसके बदले में आपको क्या मिलना चाहिए यहां लिखना ठीक नहीं है। लेकिन इतना ध्यान रखिए भगवान कहीं है तो वो सिर्फ हिन्दुस्तान में ही है,और आपका क्या हश्र होगा यह तय तो है, लेकिन खुलेगा भविष्य में ही।
अब हम आपको बताते हैं, कब और कहां से शुरू हुई क्रान्ति।
मिस्रः 25 जनवरी 2011 को आन्दोलन शुरू,11 फरवरी को होस्नी मुबारक ने सत्ता को कहा अलविदा।
यमनः 03 फरवरी 2011 को आन्दोलन शुरू,23 नवम्बर को सरकार सुधारों के लिए तैयार हो गई।
लीबियाः 17 फरवरी को गद्दाफी के खिलाफ शस्त्र विद्रोह,19 मार्च को लीबिया में नाटो की सैन्य कार्रवाई आरम्भ, 20 अगस्त को त्रिपोली में विद्रोही सेना का प्रवेश, 23 अगस्त को सत्ता से किया बेदखल, 20 अक्टूबर को विद्रोही सेना ने गददाफी व उनके पुत्र की हताया की,गददाफी शासन का अंत ।
सीरियाः 15 मार्च को बशर अल असद के खिलाफ हुआ आन्दोलन का आगाज,18 अगस्त को अमेरिका व यूरोपीय संघ ने सीरिया पर लगाए प्रतिबंध।
(सतीश प्रधान)