उच्च पदों पर महान भ्रष्टों को नियुक्त करने वाला प्रधानमंत्री ईमानदार कैसे हो सकता है। इसकी समीक्षा कौन करेगा। क्या भारत में ऐसा कोई पद या प्रतिष्ठान है जो इसकी जांच करे कि भ्रष्टों को प्रश्रय देने वाला और अति भ्रष्टों को उच्चतम पदों पर बिठाने वाले की जांच करे। अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं है , इसीलिए जन लोकपाल की बात हो रही है।
प्रसार भारती के सी0ई0ओ0- बी.एस.लाली, मुख्य सतर्कता आयुक्त, पी.जे.थॉमस और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर के.जी.बालाकृष्णन जैसे भ्रष्ट लोगों की नियुक्ति आखिरकार ईएस एमएमएस (इण्डियन सरदार मनमोहन सिंह) ने ही की है। ये तो वो नाम हैं जो किन्हीं कारणों से चर्चा में आ गये वरना तो एक से एक भ्रष्ट लोगों को शह मनमोहन सिंह ने ही दे रखी है।
यह भी विशेष रूप से ध्यान दिये जाने योग्य है कि किस तरह नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को धमकाने और लांछित करने की कोशिश की गई और किस प्रकार यह कहकर उच्चतम न्यायालय को भी जबरदस्त दबाव में लेने की कोशिश मनमोहन सिंह द्वारा की गई और कहा कि ....उच्चतम न्यायालय को नीतिगत मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।
जिस सी0बी0आई0 के कारण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर न जाने कितनी बार संसद में और संसद के बाहर लांछन लगे उसे वास्तव में स्वायत्त बनाने के बारे में कहीं कोई हलचल नहीं हो रही है। ऐसे कोई प्रयास कहीं किसी भी स्तर पर कभी भी नहीं किये गये। भले ही मनमोहन सिंह समय-समय पर शासनतंत्र को सक्षम और पारदर्शी बनाने के लिए भाषण देते रहे हों लेकिन तथ्य यह है कि खुद उनकी सरकार बड़े जतन से दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की रपट भी दबाये हुए है।
आखिरकार जब शासन का मुखिया या यूं कहिए कि इस देश का प्रधानमंत्री ही उक्त रिपोर्ट को दबाकर उस पर बैठा हुआ है तो किसी भी प्रकार के सुधार की उम्मीद कैसे की जा सकती है। इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि जिस मनमोहन सिंह की खुद की इज़्ज़त तार-तार हो गई है उसकी सरकार की इज़्ज़त को कोई पाक-साफ कैसे बता सकता है।
सतीश प्रधान
सतीश प्रधान