काम्बली सच्चा, अजहर झूंठा
लेकिन मजबूत, अजहर का खूंटा
1996 के विश्वकप सेमी फाइनल का वह मुकाबला जो कोलकाता के ईडन गार्डेन स्टेडियम पर श्रीलंका और भारत के बीच खेला गया,किसी ड्रामे से कम नहीं था, जिस पर वहां मौजूद क्रिकेट प्रेमियों ने कोल्ड ड्रिंक की बोतलें फेंकी, जूते-चप्पलों की बौछार करते हुए जबरदस्त हंगामा काटा एवं आग लगाकर उसका जबरदस्त विरोध प्रदर्षित किया, जिसके कारण मैच को बीच में ही रोकना पड़ा। इसके बाद जब मैच शरू किया गया तो पुनः जोरदार हंगामा होने लगा और अन्ततः जब विरोध प्रदर्शन ने थमने का नाम नहीं लिया तो 35 ओवर की समाप्ति पर मैच समाप्ति की घोषणा करते हुए,स्थापित नियमों के आधार पर परीक्षणोपरान्त श्रीलंका की टीम को विजयी घोषित कर दिया गया।
उस समय दूरदर्शन पर मैच देख रहे करोड़ों लोगों के जेहन में दबकर रह गये सारे प्रश्न अब फिर से जीवन्त हो उठे हैं। उस समय के सीन को उन्होंने अब जब अपनी आंखों के सामने से गुजरते हुए देखा कि कैसे विनोद काम्बली रोते हुए क्रिकेट के मैदान से भागते हुए पैवेलियन आये थे,और अब जब उन्होंने स्टार न्यूज चैनल पर इसका रहस्योदघाटन किया है तो किस प्रकार से रो पड़े हैं,तो क्रिकेट प्रेमियों का खून खौल रहा है।
अलावा इसके टी0वी0 पर मैच देख रहे करोड़ों लोग गुस्से में क्यों आ गये थे? कुछ ने तो अपने टी0वी0 ही फोड़ डाले थे,यह कहते हुए कि साले फिक्स करके मैच खेलते हैं! क्या सारे क्रिकेट प्रेमी जो मैदान पर थे या टी0वी0 देख रहे थे,सिरफिरे और पागल थे? जैसा कि विनोद काम्बली को अजहरूद्दीन घोषित करने की कोशिश कर रहे हैं। केवलमात्र अजहरूद्दीन और उनका साथ देने वाले ही स्वस्थ्य, दुरूस्त एवं मेडीकली फिट हैं,बाकी का पूरा हिन्दुस्तान पागल है! इस देश का हर वो इन्सान पागल है,चरित्रहीन है,सिरफिरा है, जो किसी सत्य को उदघाटित करता है अथवा करना चाहता है। एकदम दुरूस्त हालात में अजहरूद्दीन जैसे लोग ही रहते हैं जो इस देश की इज्जत को तार-तार कर रहे हैं एवं अच्छे-खासे इन्सान को पागल करार दिये जाने की साजिश रच रहे हैं। दिग्विजय सिंह जैसे लोगों के बयान उनके पक्ष में आने का मतलब यह नहीं है कि वे पाक-साफ हैं। इस बयान के बाद तो अजहरूद्दीन का कथन और भी संदेहों से घिर गया है,क्योंकि दिग्विजय सिंह कभी भी, कहीं भी, किसी भी साफ सुथरे इन्सान का बचाव करते ही नहीं। उनके पास तो वह पंजा है,कि जिसकी पीठ पर लगा देंगे वहीं दाग लग जायेगा।
1996 की मैच फिक्सिंग का वह जिन्न अब बोतल से बाहर आ चुका है। अब इस बात के कोई मायने नहीं कि 15 सालों बाद उस बोतल का ढ़क्कन खोलकर,मैच फिक्सिंग के जिन्न को विनोद काम्बली ने बाहर क्यों निकाला! अब जबकि मैच फिक्सिंग का जिन्न बाहर आ ही गया है तो यह साफ हो ही जाना चाहिए कि क्रिकेट के ये जादूगर, क्रिकेट प्रेमियों को कितने सालों से बेवकूफ बना रहे हैं। यह क्रिकेट खेल के असतित्व से भी जुड़ा प्रश्न है और इसी के साथ करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की आस्था से भी जुड़ा है,जिसकी बिना पर सचिन तेंदुलकर को भगवान घोषित कराये जाने की जबरदस्त हूक उठी है।
इस भगवान को एक योजना के तहत,भारत सरकार से भारत रत्न दिलवाने की मुहिम हो अथवा मैच फिक्सिंग का इतना बड़ा और गम्भीर संकट, जिसमें भारत की प्रतिष्ठा को जबरदस्त धक्का लग रहा है,एवं भारत का नाम भी बदनाम हो रहा है,इसमें से किसी भी विषय पर क्रिकेट के भगवान घोषित किये गये इस शख्स ने अपनी जुबान नहीं खोली है। क्या कारण है कि सचिन को सभी क्रिकेट प्रेमी भगवान मानते हैं और कहते हैं लेकिन उन्होंने कभी भी इसका खण्डन नहीं किया,इसका मतलब है कि वे भी मानते हैं कि वे भगवान हैं। इसीलिए उन्हें भारत रत्न देने की मांग पुरजोर पकड़ती जा रही है।
दो दर्जन जुबानों पर एक सा सवाल है कि विनोद काम्बली 15 सालों से चुप क्यों रहे,तब क्यों नहीं बोले? 15 सालों से करोड़ों क्रिकेट प्रेमी जनता चुप है अथवा काम्बली चुप रहे तो गुनाहगार हैं और आप दो दर्जन भर लोग, जिसमें अजहरूद्दीन,अजय जडेजा,अजय शर्मा,मनोज प्रभाकर मैच से प्रतिबन्धित किये गये,तब भी आप गुनाहगार नहीं हैं और हेकडी दिखाकर काम्बली का ही मुंह बन्द करने की कोशिश कर रहे हैं। खुले मैदान सत्य का गला घोटने का इससे बड़ा उदाहरण और कहां देखा जा सकता है! ऐसे औचित्यहीन कुतर्कों से काम्बली को निरूत्साहित किया जा सकता है,लेकिन क्रिकेट के दुनियाभर में मौजूद क्रिकेट प्रेमियों का मुंह बन्द नहीं किया जा सकता। क्रिकेट प्रेमियों की आस्था के साथ इतना बड़ा विश्वासघात किसी भयंकर कुठाराघात से कम नहीं है। यह दर्शकों की पीठ में छुरा घुसाने वाला अपराध है।
भारत सरकार,भारत के उच्चतम न्यायालय,देश के विभिन्न प्रदेशों में गठित राज्य एवं जिला स्तरीय क्रिकेट एसोसियेशन तथा क्रिकेट से अन्यत्र खेलों के खिलाड़ियों को भी इस मैच फिक्सिंग से पर्दा उठाने के लिए अपने-अपने स्तर से तीव्र प्रयास करने चाहिए,और यदि काम्बली के बयान में सच्चाई न निकले तो उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए वरना समस्त दोषियों को दण्डित करने के साथ-साथ उनसे आर्थिक जुर्माना वसूल कर काम्बली को दिया जाना चाहिए। वैसे मैच फिक्सिंग का यह मामला प्रथम दृष्टया ही भरपूर सम्भावनाओं से ओत-प्रोत है(जिसकी पूरी पृष्ठभूमि स्पष्ट और उज्जवल है)। पन्द्रह साल पूर्व की घटना कोई बहुत पुरानी नहीं है,सिवाय इस तथ्य के की पन्द्रह वर्ष पूर्व विनोद काम्बली, सचिन तेंदुलकर से ज्यादा जाना पहचाना नाम था। भारत में तो वयस्कता की उम्र ही 18 वर्ष है। 15 साल वाले को उसके किये गलत कार्यों की यदि सजा मिलती है तो बाल अधिनियम के तहत ही मिलती है। उस हिसाब से भी मैच फिक्सिंग की यह दुघर्टना तो अभी इलाज किये जाने के काबिल है।
इसलिए मूल सवाल आज भी वहीं खड़ा है कि आखिरकार अजहरूद्दीन और अजय जडेजा को 4 साल बाद ही सही फिक्सिंग के कारण ही प्रतिबन्धित किया गया है। उनके खिलाफ आज भी अदालत में मामला विचाराधीन है। यदि मैच फिक्सिंग के आरोप गलत हैं तो उन्हें क्रिकेट से प्रतिबन्धित क्यों किया गया? ऐसी विषम परिस्थितियों में विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन को खारिज किया जाना और अजहरूद्दीन की बात पर यकीन किया जाना दुर्भाग्यपूर्णं होगा,जबकि सीबीआई के एक अधिकारी को दिये गये बयान में वे स्वयं कबूल कर चुके हैं कि उन्हें दस लाख रुपये दिये गये,और वह अकेले ही नहीं हैं बल्कि अजय जड़ेजा और नयन मोंगिया भी शामिल थे। इसके अलावा जो अन्य मैच फिक्स थे,उसका भी उन्होंने खुलासा किया था।
कपिल देव का कहना है कि काम्बली 15 वर्ष पूर्व बोलता। क्या कपिल देव विश्वकप जीतने की घटना को भूल गये हैं,क्या आज पच्चीस सालों के बाद वे इसका उल्लेख कहीं नहीं करते हैं? सम्भवतः वह आज भी उन यादों को ऐसे संजोए होंगे जैसे यह कल की ही बात हो। इतने वरिष्ठ खिलाड़ी से ऐसे वकतव्य की उम्मीद किसी भी क्रिकेट प्रेमी को कतई नहीं थी। जिस प्रकार उनके लिए 25 वर्ष पूर्व विश्वकप की जीत आज भी खुशी का अनुभव देती है, ठीक उसी प्रकार विनोद काम्बली के लिए पन्द्रह वर्ष पूर्व की वह मनहूस घड़ी आज भी दुख की टीस देती है,जिसके कारण उसका कैरियर तबाह हो गया। पन्द्रह साल बाद मुंह खोलने का मतलब यह कतई नहीं है कि अपराध पुराना हो गया,इसलिए अब इसकी जांच का कोई मतलब नहीं एवं अपराधी को ना पकड़े जाने का लाइसेन्स मिल गया है।
1996 में की गई मैच फिक्सिंग आज के दिन में वो हवन है,जिसमें यदि कोई जानबूझकर हवन सामग्री की जगह पानी डालने की कोशिश करेगा तो पानी पैट्रोल का काम करेगा तथा आग और भडकेगी। इस आग की शान्ति और हवन का आयोजन तभी सफल होगा जब इसमें हवन सामग्री डाली जायेगी,और हवन की सामग्री है,उस समय की भारतीय टीम के खिलाड़ी। इस हवन सामग्री रूपी टीम को भी बड़ी बारीकी से जांचा-परखा जाना होगा कि इसके कनटेन्ट सही और शुद्ध हैं कि नहीं। राजनीति की चाह में क्रिकेट में राजनीति करने वाले खिलाड़ियों और धन अर्जित करने की चाह में क्रिकेट एसोसियेशन के माध्यम से क्रिकेट में घुसे ज्यादातर राजनीतिज्ञों ने भारत के इस सबसे बड़े खेल को मृत्यु के मुहाने पर ला खड़ा किया है,जिसका स्पष्ट गवाह है वर्तमान में हो रहे मैचों के दौरान खाली पड़े क्रिकेट के स्टेडियम।
अजहरूद्दीन,काम्बली को पागल,चरित्रहीन और ना जाने क्या-क्या नहीं बता रहे हैं,जो वास्तव में अजहरूद्दीन के दिमाग को सेन्टर से हट जाने (एसेन्ट्रिक होने) का ही संकेत देते हैं। जिस प्रकार अजहरूद्दीन की पूरी गैंग काम्बली से सुबूत पेश करने की बात कर रही है,वे बतायें,स्वंय उनके या उनकी मण्डली के पास क्या सुबूत हैं कि वो मैच फिक्स नहीं था? जबकि उस मैच फिक्सिंग की सारी संभावनायें आजतक मौजूद हैं। अजहरूद्दीन केवल मात्र टीम बैठक का हवाला देकर,मैच फिक्सिंग के सत्य पर पर्दा डालना चाह रहे हैं। टीम का कैप्टन उन्हें इसलिए नही बनाया गया था कि सर्वसम्मति का फैसला दिखाकर मैच फिक्स करें। उनका व्यंगात्मक लहजे में कहना कि जब पूरी टीम फैसला ले रही थी तो काम्बली सो रहे थे। क्या वे सिद्ध कर सकते हैं कि टीम ने पहले फील्डिंग करने का फैसला लिया था और मीटिंग में काम्बली सो रहे थे। है उनके पास कोई सुबूत? क्या वे कोई वीडियो क्लिपिंग दिखा सकते हैं जिसमें मीटिंग चल रही हो तथा लालू यादव एवं देवेगौणा की तरह काम्बली सो रहे थे।
बहरहाल इस बेचैनी भरे माहैाल में उस टीम के अन्य खिलाडी़ अपनी जुबान नहीं खोल रहे हैं,और उनमें से मात्र सचिन को छोड़कर सारे के सारे क्रिकेट से अलविदा हो चुके हैं, इनमें मनेाज प्रभाकर, अजय शर्मा, अजय जड़ेजा, नवजोत सिंह सिद्धू, प्रमुख हैं। इन खिलाड़ियों को आगे बढ़कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए,जिससे वर्तमान और भविष्य में उन जैसे यंग रहे खिलाड़ियों का भविष्य बर्वाद न हो, जैसा उनका हुआ है।
क्रिकेट से जुड़ा बहुत बड़ा जनमानस आज यह जान चुका है कि 1996 का वह मैच सौ प्रतिशत फिक्स था, फिर भी खिलाड़ियों को ईमानदारी के तराजू में तौलना चाहता है। विनोद काम्बली के रहस्योदघाटन की पुष्टि श्रीलंका टीम के मैनेजर श्री समीर दास गुप्ता,हैन्सी क्रोनिए,पूर्व क्यूरेटर प्रवीर मुखर्जी,पूर्व क्यूरेटर कल्याण मित्रा (मैं, कप्तान होता तो पहले बल्लेबाजी करता) के बयान कर रहे हैं। 1996 विश्वकप टीम के सलेक्टर सबरन मुखर्जी का कहना है कि, वे तो सरप्राइज ही हो गये जब सुना कि टॉस जीतकर इण्डियन टीम बोलिंग करने जा रही है। ये सारे बयान इस ओर स्पष्ट इशारा करते हैं कि 1996 का विश्वकप सेमीफाइनल में अनहोना हुआ,जिसे नहीं होना चाहिए था।
आज ऐसा समय आ गया है कि सभी वरिष्ठ खिलाड़ियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिन खिलाड़ियों पर हम गर्व करते हैं या भगवान की तरह पूजते हैं,वह सचिन हों या कपिल,सुनील गवास्कर,दिलीप वेंगसरकर,श्रीकान्त या फिर रवि शास्त्री,अगर आगे नहीं आते हैं तो कहीं ऐसा ना हो कि आगे आना वाला समय उन्हें माफ ना करे और उन्हें उनके प्यारे दर्शकों की निगाह में गिराकर अर्श से फर्श पर पहुचा दे। क्योंकि ये सभी वरिष्ठ खिलाड़ी 90 के दशक से मैदान पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़े रहे हैं।
इसकी जॉंच का तरीका केवल एक बचा है कि उस समय के समस्त खिलाड़ियों को एक साथ बुलाने की बजाय अकेले-अकेले बुलाकर यू0पी0पुलिस से इंटेरोगेट कराया जाये तथा इसका मुकदमा ब्रिटेन स्थित साउथवर्क कोर्ट के जस्टिस कुक के हवाले कर देना चाहिए जिसने सलमान बट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमेर को सजा सुनाई। ऐसे में भारत के खेलमंत्री श्री अजय माकन का यह बयान देश की प्रतिष्ठा के हित में दिखाई देता है कि -काम्बली के दावों की बीसीसीआई को जांच करनी चाहिए। उन्होने कहा कि यदि क्रिकेट बोर्ड जांच नहीं करता है तो उनका मंत्रालय दखल दे सकता है। माकन ने कहा कि जब टीम का कोई खिलाड़ी आरोप लगाता है तो उसकी पूरी जॉंच होनी ही चाहिए। खिलाड़ी के आरोप सही हों या गलत लोगों को सच जानने का अधिकार है, इसकी पूरी जॉंच होनी चाहिए और यदि कुछ गलत हुआ है तो दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए।
इस स्तम्भकार का स्पष्ट मत है कि खेलमंत्री को ही इसमें दखल देना चाहिए, क्योंकि यह दो देशों के बीच का मामला है। मैच फिक्सिंग से फायदा श्रीलंका की टीम को ही ज्यादा हुआ। श्रीलंका की टीम को जब पता चला कि वह टॉस हार गई है तो उनकी टीम में मायूसी छा गई थी,क्योंकि उनकी टीम का भी डिसीजन यही था कि टॉस जीतने पर पहले बैटिंग करेंगे,लेकिन जैसे ही पता चलाकि अजहरूद्दीन ने पहले फील्डिंग करने का निर्णय लिया है,उनकी टीम के खिलाड़ी उछल पड़े,मानो उनकी जीत उसी समय पक्की हो गई थी। इसलिए निशाने पर उसको भी रखा जाना चाहिए,क्योंकि यह मात्र भारतीय टीम का ही मामला नहीं है,जो बीसीसीआई जांच करे और इतिश्री हो जाये, वह तो पहले ही चार खिलाड़ियों को खेल से प्रतिबंन्धित कर इस मैच फिक्सिंग की इतिश्री कर चुका है।
= देश से बड़ा इस देश में कोई नहीं है,इसलिए राष्ट्रहित में मैच फिक्सिंग की इस घटना की जॉंच के लिए खेल मंत्री को अपने स्तर से आईसीसी से जांच किये जाने के लिए पत्र लिखना चाहिए, अथवा उच्चतम न्यायालय को इसकी जॉच के लिए एसआईटी का गठन कराना चाहिए,यदि इसके लिए किसी पीआईएल की आवश्यकता उच्चतम न्यायालय महसूस करता है तो इस लेख पर ही सज्ञान लिये जाने के लिए यह स्तम्भकार स्वीकृति प्रदान करता है। (सतीश प्रधान)
रिलेटेड पोस्ट देखने के लिए नीचे क्लिक करें.