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Wednesday, October 5, 2016

भारत के सूचना मंत्री द्वारा मीडिया को रेगुलेट करने की साजिश

सती प्रधान ( उपाध्यक्ष- उ0प्र0 राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति)


लखनऊ।  भारत में मीडिया को रेगूलेट करने की साजिश एक ऐसी नीति बनाकर की जा रही है, जो किसी भी तरह का आफिशियल डाक्यूमेन्ट नहीं है। जिस पर ना तो किसी अधिकारी के हस्ताक्षर हैं और ना ही उसे किसी एक्ट अथवा नियमावली के तहत बनाया गया है। जिस प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016 को लागू करने के लिए रोजाना डीएवीपी द्वारा एडवाइजरी जारी की जाती है, उसका भी कोई वजूद नहीं है। एक सनक के तहत रोजाना ही नई-नई एडवाइजरी जारी करके मीडिया के एक वर्ग को पेरशान किया जा रहा है, तथा डीएवीपी ने ये सिद्ध कर दिया है कि वहॉं के अधिकारी डिप्रेशन के शिकार हैं।

इसीलिए इसके विरोध में उत्तर प्रदेश की राज्य मुख्यालय मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति ने अपने समस्त साथियों, पत्रकार बन्धुओं एवं उनके पोषक समाचार-पत्र मालिकान और प्रकाशकों के हित में फैसला लिया है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किये जा रहे अन्याय एवं पक्षपातपूंर्ण रवैये के तहत प्रतिपादित की गई प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति- 2016 का विरोध करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री को शिकायत एवं सुझाव प्रेषित किया जाये तथा पन्द्रह दिनों के अन्दर यदि संविधान के आर्टिकल-14 में प्रदत्त अधिकारों के हनन को  सूचना एवं प्रसारण मंत्री द्वारा रोका नहीं जाता तथा उक्त असांविधिक नीति-2016 को रद्द नहीं किया जाता है तो माननीय उच्चतम न्यायालय में रिट दाखिल की जाये, क्योंकि प्रिन्ट मीडिया को स्ट्रीम लाइन करने के नाम पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जिस प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति-2016 (नान स्टेच्यूटरी/असांविधिक दस्तावेज) का निर्माण किया है, वह लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र प्रकाशकों एवं उसमें कार्य करने वाले पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों को कुचलने की साजिश है। इसी के साथ इस रेगूलेटरी एक्शन को नीति का नाम दिया जा रहा है, जिसका आधार ना तो कोई एक्ट है, ना ही कोई नियमावली। यहॉं तक की इस पालिसी पर ये भी अंकित नहीं है कि यह भारत सरकार के किस नोटिफिकेशन के तहत जारी की गई है और ना ही इस पर कोई पत्र संख्या अथवा दिनांक पडा है।

यदि वास्तव में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को मीडिया को स्ट्रीम लाइन करना ही है तो उसके लिए एक्ट लाने की आवश्यकता है, जिसके तहत नियमावली बनाई जाये, फिर उसके तहत मीडिया को रेगूलेट किया जाय। असांविधिक तरीके से मीडिया के केवल लघु एवं मध्यम स्तर के समाचार पत्रों को ही रेगूलेट करना किसी भी प्रकार से जायज एवं न्यायिक नहीं है। यह एक षड़यन्त्र है, जिसके द्वारा देखा जा रहा है कि मंत्रालय कितना सफल होता है, अपनी करनी पर। क्या सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय बतायेगा कि इस नीति के ड्राफ्ट को प्रधानमंत्री की कैबीनेट में रखा गया था, यदि हॉ तो किस दिनांक और किस बैठक में इसका हवाला तो सूचना एवं प्रसारण मंत्री को देना ही होगा, अन्यथा ये तो एक प्रकार से भारत के प्रधानमंत्री को भी साजिश में लपेटेने का मामला हुआ।

यदि किसी निदेशालय के दो अधिकारी और शासन में बैठा सचिव स्तर का एक अधिकारी किसी ड्राफ्ट को नीति की शक्ल देकर उसके बल पर सबकुछ तहस-नहस कर देने की मंशा रखता हो तो उसकी मंशा कैसे कामयाब हो सकती है।  यदि एक नीति बनाकर पूरे देश को चलाया जा सकता है, तो फिर लोकसभा, राज्य सभा, विधान सभा, विधान परिषद, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के साथ ही जिला अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक की आवश्यकता ही क्या है। फिर तो किसी भी विभाग का कोई भी सनकी अधिकारी कोई भी आदेश जारी कर दे और न्यायालय भी उसे बगैर किसी एक्ट-रूल के प्राविधान को सांविधिक मान ले, तब तो हो गया बंटाधार इस देश का। ऐसी स्थिति तो देश में तबाही ही मचा देगी, जिसकी भरपाई ना तो नरेन्द्र मोदी जी की सत्ता कर पायेगी, ना ही कोई और।

डीएवीपी का गठन मीडिया का स्लाटर करने के लिए नहीं किया गया है, और वह भी मात्र लघु एवं मध्यम समाचार-पत्र/पत्रिकाओं का। बड़े ग्रुप (कार्पोरेट मीडिया घरानों) के संस्करणों को मलाई चटाने और उस मलाई में से स्वंय को भी हिस्सा मिलता रहे, इसकी भरपूर व्यवस्था डीएवीपी ने इसी नीति में बड़ी चतुराई से कर ली है। इसीलिए स्वामी/प्रकाशकों के हितार्थ वर्किंग जर्नलिस्ट और समाचार-पत्र संस्थानों में कार्यरत गैर पत्रकारों के कल्याणार्थ इस समिति ने संघर्श का फैसला लिया है। आखिरकार जब समाचार-पत्र संगठन ही नहीं रहेंगे तो हम कहॉं रहेंगे़? हमें अपने मालिकों के साथ स्वंय भी जिन्दा रहना है। इस फर्जी नीति से मरता क्या ना करता वाली स्थिति पैदा हो रही है, जिसके लिए पूंर्ण रूप से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के साथ डीएवीपी के के0 गणेशन और आर0सी0 जोशी हीे होंगे। संभवतः जोशी जी कितने ही बड़े जोशी हों, अपना भविष्यफल बांचना भूल गये हैं।



डीएवीपी की नीति के विरोध में कुछ पत्रकार साथी न्यायालय भी गये, लेकिन वे डीएवीपी की तरफ से पेश वकील की इस दलील ( कि प्रिन्ट मीडिया विज्ञापन नीति को स्ट्रीम लाइन करने के लिए ऐसा किया जा रहा है) का माकूल एवं तर्कसंगत जवाब न्यायालय को नहीं दे पाये कि ये नीति मात्र विज्ञापन वितरण को स्ट्रीम लाइन करने के लिए नहीं बनाई गई है, अपितु लघु एवं मध्यम समाचार-पत्रों के स्वामियों को, जो कि कमजोर एवं वास्तव में व्यवसायी/उघोगपति नहीं हैं, दरकिनार करने के लिए बनाई गई है। इस नीति ने तो कार्पोरेट मीडिया घरानों के लिए रेड कारपेट का काम किया है।

अभीतक डीएवीपी की विज्ञापन वितरण व्यवस्था स्ट्रीम लाइन नहीं थी तो इसके लिए कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं? डीएवीपी के अधिकारियों द्वारा समाचार-पत्रों के ऐम्पेनलमैन्ट के लिए ली जा रही प्रति समाचार-पत्र दो-दो लाख की रिश्वत गणेशन से लेकर मंत्रालय के किस अधिकारी और मंत्री तक पहुंची रही है? ऐसे-ऐसे समाचार-पत्रों को फिफ्टी-फिफ्टी कमीशन की दर पर अब भी रोजाना विज्ञापन जारी किये जा रहे हैं, जिनकी प्रिन्टिंग प्रेस का ही असतित्व ही नहीं है। डीएवीपी के ज्यादातर अधिकारियों के बेटे, बेटियों, मॉं, भाई, बाप, बहन के नाम पर समाचार-पत्रों का प्रकाशन किया जा रहा है तथा लाखों रूपये प्रतिमाह बटोरे जा रहे हैं।

क्या सबसे पहले डीएवीपी को स्ट्रीम लाइन करने की जरूरत नहीं है। डीएवीपी के कितने अधिकारियों ने अपनी आय की घोषणा की हुई है? क्या सी0बी0आई0 अथवा सतर्कता आयोग द्वारा उन अधिकारियों की आय की जॉंच नहीं होनी चाहिए जो वर्षों से विज्ञापन जारी किये जाने वाली सीट पर प्रतिमाह मोटी कमाई श्री के0 गणेशन को पहुुंचा रहे हैं। डीएवीपी का बाबू एस0यू0 व्हीकल से आता-जाता है, करोड़ों के उसके पास फ्लैट हैं, और जिसकी प्रत्येक शाम पंचसितारा होटल में ऐसे ही स्वामी/प्रकाशकों के साथ गुजरती है, जो उनकी शाम रंगीन बनवाते हैं।



डीएवीपी के हालात ये हैं कि वह दलालों का अड्डा बना हुआ है। फिफ्टी- फिफ्टी की तर्ज पर विज्ञापन दिलाने वाली प्रा0 लि0 कम्पनियां तक गठित हैं, जो यहॉं के विज्ञापन जारी करने वाले अधिकारियों को पैसे से लेकर लड़कियां तक सप्लाई करके व्यवसाय कर रही हैं। ऐसी व्यवस्था अपनी ऑंखों से आप स्वंय डीएवीपी में अन्दर घुसकर देख सकते हैं। जो इसके विरोध में कुछ करने-कहने की कोशिश करता है, उससे कहा जाता है कि चले हो भगत सिंह बनने! अरे जैसे उसे फांसी पर लटका दिया गया, वैसे तुम भी लटका दिये जाओगे, अरे जैसी व्यवस्था चल रही है, उसी में अपने को एडजस्ट करो, और मजे करो। आपका अपना परिवार है, कौन इस देश में सुधार करने आया है, जो कुर्सी पर बैठा वही लूट मे लग गया। तुम भी कोई पार्टी पकड़ लो और डीएवीपी से रोजाना विज्ञापन पाओ। ये नरेन्द्र मोदी का देश है, यहॉं अडानी और अम्बानी जैसे ही जिन्दा रहेंगे, हम-तुम जैसे नहीं। ये कहना है, डीएवीपी में विज्ञापन जारी करने वाले एक मीडिया एग्जीक्यूटिव का।

डीएवीपी के ऐसे अधिकारी देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करते हुए अपने एकशन/नीति को जस्टीफाई करते हुए करोड़ों कमा रहे हैं। के0 गणेशन इस सरकार के आने से पूर्व से ही महानिदेशक की कुर्सी पर बैठे हैं, अतिरिक्त महानिदेशक श्री रेड्डी और शर्मा भी तब ही से हैं और निदेशक श्री जोशी को श्री गणेशन, महानिदेशक नियुक्त होने के बाद लेकर आये हैं। डीएवीपी के भ्रष्टाचार में इनके आने के बाद से चार गुना इजाफा हुआ है। के0 गणेशन तो किसी छोटे एवं मध्यम समाचार-पत्र के प्रकाशक से मिलना तो दूर टेलीफोन पर भी वार्ता नहीं करते। उनके निजी सचिव, बमुश्किल यदि फोन उठा लें तो पहले पूछेंगे कि आपकी समस्या क्या है, यदि आपने कहा कि समस्या कोई नहीं, मुझे उनसे मिलना है, तो कहेंगे कि जब समस्या नही तो मिलकर उनका समय क्यों बर्बाद करेंगे। अतः जो समस्या है बताइये, और आपने यदि समस्या बताई तो निदान सिर्फ यही है कि वह किसी दूसरे अधिकारी से मिलने को कह देंगे। अब बताईये मुझे शिकायत करनी है कि आपके यहॉं विज्ञापन की सीट पर बैठा अमुक अधिकारी कहता है कि विज्ञापन चाहिए तो दलाल को पकड़िये, तो इसे कौन सुनेगा। 

समिति का कहना है कि मीडिया को स्ट्रीम लाइन करने से पहले डीएवीपी के महानिदेशक, श्री के0 गणेशन, अति0 महानिदेशक, श्री रेड्डी एवं श्री शर्मा, निदेशक श्री आर0सी0 जोशी, की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच की जाये तथा विज्ञापन व्यवस्था से जुड़े प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी द्वारा प्रत्येक छह-छह माह में आय का घोषणा-पत्र इस शर्त के साथ लिया जाये कि यदि जांच में गैर-आनुपातिक आय पायी जाये तो उसे सेवा से बर्खास्त करने के साथ ही उसकी सारी सम्पत्ति जब्त करते हुए उससे दस गुना जुर्माना वसूल लिया जाये।

इसी के साथ डीएवीपी में सूचीब़द्ध सभी समाचार-पत्रों की प्रसार संख्या की जांच आर0एन0आई0 के माध्यम से कराई जाये फिर चाहे उसकी प्रसार संख्या पांच हजार हो अथवा पांच लाख। उसके प्रसार दावों का प्रमाण, व्यक्तिगत सी0ए0 ने दिया हो अथवा आर0एन0आई0 या ए0बी0सी0 ने।

ए0बी0सी0 तो नेक्सस है, कार्पोरेट मीडिया घरानों के संस्करणों का, तीन सौ से ऊपर सी0ए0 के समूह का, विदेशी असतित्व वाली विज्ञापन ऐजेन्सियों का, विदेशी विज्ञापन दाता कम्पनी ( जैस कोका कोला, एवं आई0टी0सी0) एवं न्यूज ऐजेन्सियों का। क्या आपको पता है कि किस तरह से इसको कम्पनीज एक्ट के सेक्शन -25 के तहत निगमित किया गया है?

आगे भी जारी..............कृपया इंतजार करें!

Thursday, June 23, 2016

Lustrous take-off by ISRO in Global Space Commerce theatre

By: P.Prabhu

India takes a giant leap in international space commerce
after ISRO puts 20 satellites in orbit.

Once again, India's great-grand space agency has achieved yet another magical milestone.
Since Aryabhata -- India's first indigenous satellite launched by a Russian (erstwhile Soviet Union) rocket from their territory of Astrakhan in the year 1975, the Indian Space Research Organisation (ISRO) has come a long, indeed a very long way. 
With the successful launch of a record number of 20 satellites at one go by its very own workhorse Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) on June 22, 2016, ISRO has accomplished yet another "monumental feat." as proudly-stated by India's Prime Minister- Shri Narendra Modi.

The mission benefited many other countries, including that of the USA, Canada and Germany and thus enabled ISRO to form an unofficial research coalition with other Space agencies.

The year 2016 has turned out to be yet another euphoric year for India's far-reaching space missions.

The back-to-back successes by ISRO, starting with the launch of the fifth regional navigation satellite IRNSS-1E in January followed by the sixth and seventh satellites of the series, IRNSS-1F and IRNSS-1G, in March and April respectively, have put India in an exclusive club of countries capable of orbiting and operating its own sat-nav system, which has aptly been named "Navic".

While basking in the glory of these successes, the space agency has also taken baby steps towards making its own "space shuttle" someday by successfully launching an indigenously-made winged Reusable Launch Vehicle (RLV) in May this year. The development of such a futuristic rocket is aimed at putting satellites into orbit around earth and then re-enter the atmosphere. 


And it is pertinent to note here that it was Dr. APJ Abdul Kalam, the iconic missile scientist and greatest visionary of the 21st century who had dreamt of India leading the way in designing a reusable hypersonic rocket.
The technology demonstration test has, in fact, paved the way for many other breakthrough technology missions, including hypersonic flight, autonomous landing, powered cruise flight and hypersonic flight using air-breathing propulsion, according to ISRO.

Flush with the success of the technology demonstration flight of its Reusable Launch Vehicle (RLV- TD) last month, ISRO is gearing up to test a scramjet engine based on air-breathing propulsion.
The test flight of the indigenously-developed scramjet engine is scheduled to take place from the Satish Dhawan Space Centre at Sriharikota sometime in July.
It is named as : Advanced Technology Vehicle (ATV), the test platform will comprise a scramjet engine hitched to a two-stage sounding rocket (RH- 560). Maintaining combustion in hypersonic conditions poses technical challenges because the fuel has to be ignited within milliseconds.

Space agencies across the world are focusing on the development of scram-jet technology because it contributes to smaller launch vehicles with more payload capacity and promises cheaper access to outer space.
The space agency has also proposed to build a third launch pad at the same spaceport to support increased launch frequency and also to support launching requirements of advanced launch vehicles such as the GSLV. Once the flight tests are successful, the GSLV rocket promises to further boost up ISRO's business prospects by enabling it to orbit heavier satellites of other countries as well.

The space agency at present launches 5-6 satellites every year.


As the space agency's commercial arm-Antrix at present holds around 30 orders from different countries for satellite launches scheduled to be completed in next two to three years, the latest successful launch of 20 satellites has emboldened ISRO to increase its satellite launches to 12-18 per year. 
With all these momentous milestones, and yet many more to come by, ISRO has continued to make the Indian flag soar to greater heights in space.

Saturday, September 5, 2015

सियासत के भंवर में फंसा उत्तराखण्ड क्रिकेट

उत्तराखण्ड को अलग राज्य बने 15 साल का लंबा वक्त हो गया हो चुका है, लेकिन प्रदेश में क्रिकेट दूसरों के रहमो-करम पर चल रहा है। बोर्ड आॅफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इण्डिया से राज्य को यही सुविधा मिली कि उसको उत्तर प्रदेश से संबद्ध कर रखा है। ऐसे में प्रदेश के युवा क्रिकेटरों को कितना मौका मिल रहा है यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। साफ है कि जब तक राज्य की अपनी एसोसिएशन नहीं होगी तब तक राज्य की क्रिकेट में भटकाव का ही दौर रहेगा। उत्तराखण्ड क्रिकेट पर सियासत हावी है। उत्तराखंड के सितारे दुनिया के क्रिकेट के आकाश में चाहे जितनी चमक बिखेर रहे हों, यहां बीसीसीआइ से मान्यता की डगर अभी मुश्किल है.....

आशीष वशिष्ठ

उत्तराखंड मूल के क्रिकेट खिलाड़ी देश भर में धूम मचा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद यहां आज तक क्रिकेट का बुनियादी ढांचा तक खड़ा नहीं हो पाया है। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के ल्वाली गांव के हैं तो पीयूष पांडे बागेश्वर और उन्मुक्त चंद पिथौरागढ़ से ताल्लुक रखते हैं। गढ़वाल एक्सप्रेस के नाम से विख्यात यहीं के पवन सुयाल दिल्ली से और राबिन बिष्ट राजस्थान से रणजी के लिए खेलते हैं। मगर उत्तराखंड की यह क्रिकेट पौध अपने गृह राज्य से नहीं खेल सकती क्योंकि भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों के नेता भी अपनी-अपनी एसोसिएशन लेकर क्रिकेट के खैरख्वाह होने का दावा कर रहे हैं। सबको अपनी दुकान चलानी है और सब बीसीसीआइ की राज्य एसोसिएशन से संबद्धता की राह में रोड़ा बने हुए हैं। नतीजतन यहां क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता सियासत की भेंट चढ़ गई है।

वर्तमान में प्रदेश में क्रिकेट को लेकर उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) ही सबसे अधिक सक्रिय और संजीदा दिखाई देती है। उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के निदेशक व सचिव दिव्य नौटियाल के अनुसार, प्रदेश में यूसीए ही एकमात्र एसोसिशन है जिससे राज्य के सभी 13 जिलों में क्रिकेट एसोसिएशन जुड़ी हैं। बकौल नौटियाल हम सीनियर, जूनियर, महिला और दृष्टि बाधित सभी कैटगरी की प्रतियोगिताओं का लगातार आयोजन कर रहे हैं।

धोनी और उनमुक्त के अलावा भारतीय क्रिकेट में न जाने कितने खिलाड़ी और कोच भारतीय क्रिकेट को दिये हैं। पीयूष पांडे, पवन सुयाल, राबिन बिष्ट, मनीष पाण्डे, एकता बिष्ट, हेमलता काला भारतीय क्रिकेट वो चंद चमकते सितारे हैं जो उत्तराखण्ड से आते हैं। दिल्ली, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब समेत अनेक राज्यों की टीमों में उत्तराखंड मूल के खिलाड़ी खेल रहे हैं, लेकिन विडंबना देखिए कि उत्तराखंड की क्रिकेट अकादमियों को अब तक बीसीसीआइ की मान्यता नहीं मिल पाई है। राज्य में क्रिकेट की एक मान्यता प्राप्त एसोसिएशन तक नहीं है। इसलिए उत्तराखंड की टीम रणजी ट्राफी जैसी क्रिकेट सीरीज तक में भाग लेने से वंचित है। काफी समय से बीसीसीआइ के अधिकारी उत्तराखंड का दौरा कर आश्वस्त कर रहे हैं, लेकिन यह भी हवाई वायदों से ज्यादा कुछ नहीं है। असल में उत्तराखंड में क्रिकेट में सियासत भारी पड़ रही है।

वर्ष 2000 में उत्तराखण्ड गठन के साथ गठित हुए अन्य राज्यों झारखण्ड को बीसीसीआई से 2004 में मान्यता मिल गई थी जबकि छत्तीसगढ़ को 2008 में मान्यता मिली। उत्तराखण्ड का मामला एसोसिएशनों के झगड़े के कारण लटका हुआ है। जब तक ये पेंच नहीं सुलझते उत्तराखण्ड की किसी क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई से मान्यता मिलना दूर की कौड़ी है।

दरअसल उत्तराखण्ड में राज्य स्तर की कई क्रिकेट एसोसिएशन होने से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से किसी एक एसोसिएशन को मान्यता का मामला वर्ष 2008 से लटका हुआ है। बीसीसीआई को प्रदेश से मान्यता के लिए कई एसोसिएशनों ने आवेदन किया था। इस कारण किसी एसोसिएशन को मान्यता नहीं मिल पा रही थी।

बीसीसीआइ से मान्यता के सवाल पर दोनों प्रमुख एसोसिएशनों का रुख अलग है। उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के सचिव चंद्रकांत आर्य कहते हैं कि सन 2000 में हमने रजिस्ट्रेशन के साथ बीसीसीआइ में मान्यता के लिए आवेदन किया था जिसके बाद 2001 में रत्नाकर शेट्टी, शरद दिवाकर और शिवलाल यादव की तीन सदस्यीय एफलिएशन कमेटी ने देहरादून का दौरा भी किया था। 2004 में दोबारा दौरा हुआ, लेकिन नए राज्यों को मान्यता देने के सवाल पर बीसीसीआइ में ही आपसी मतभेद थे। साथ ही वह यह चाहती है कि हम एक दूसरे एसोसिएशन (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड) को भी थोड़ा प्रतिनिधित्व दें।
2011 में बीसीसीआइ की गवर्निंग काउंसिल ने इस मामले को सितंबर, 2012 तक के लिए टाल दिया। आर्य को उम्मीद है कि तब तक मान्यता मिल जाएगी। लेकिन दूसरी ओर क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के सचिव पी.सी. वर्मा का कहना है कि उन्होंने मान्यता के सवाल पर सीधे शशांक मनोहर से बात की थी, लेकिन यह सब बीसीसीआइ की बहानेबाजी है। वह जब चाहेगी, तभी मान्यता मिलेगी।

राज्य की दूसरी चार एसोसिएशनों को तो बीसीसीआइ पहले ही टरका चुकी है। मान्यता के सवाल पर 2009 में मुंबई और 2010 में दिल्ली में हुई बैठकों में भी इन दोनों एसोसिएशनों को ही बुलाया गया। लेकिन उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन का मानना है कि उसका दावा ज्यादा मजबूत है। आर्य कहते हैं, ‘यूसीए इकलौती ऐसी एसोसिएशन है, जिसके पास पूरे राज्य में अपनी बॉडी है। हम बीसीसीआइ की गाइडलाइन के मुताबिक ही काम करते हैं।’ बीसीसीआइ के कहने पर यूसीए ने सीनियर लेबल क्रिकेट बंद कर अब अंडर 14, 16, 19 और 22 पर फोकस करना शुरू कर दिया है। बकौल आर्य बीसीसीआइ सबसे अधिक पत्र व्यवहार भी उनसे ही करती है। लेकिन सीएयू के सचिव वर्मा भी बीसीसीआइ के पत्र दिखाते हैं।

उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के सचिव दिव्य नौटियाल के अुनसार, यूसीए का गठन कंपनी एक्ट 1956 के तहत वर्ष 2000 में हुआ। यूसीए के पदाधिकारी मान्यता के लिये बीसीसीआई की मान्यता कमेटी से 29 अगस्त 2009 को मिले थे। हमने यूसीए को प्रदेश में मान्यता देने के लिये कमेटी के सामने तमाम सूबूत और कागजात पेश किये थे, बावजूद इसके अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। बकौल नौटियाल, बीसीसीआई के रवैये से नाराज होने और घर बैठने की बजाय पिछले 15 सालों से हम प्रदेशभर में क्रिकेट प्रतियोगिताओं का आयोजन करवा रहे हैं।

28 फरवरी 2015 को उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव सचिव दिव्य नौटियाल ने बीसीसीआइ्र को पत्र लिखकर ये अवगत कराया कि अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी के आरपी ईश्वरन, तनिष्क क्रिकेट अकादमी के त्रिवेंद्र सिंह रावत व यूनाईटेड क्रिकेट एसोसिएशन के राजेंद्र पाल और आलोक गर्ग उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीएस) के निदेशक बन गए है। उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव व निदेशक दिव्य नौटियाल का दावा है कि इससे बीसीसीआई को फैसला लेने में आसानी होगी।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से मान्यता के लिए भले ही उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए), यूनाईटेड क्रिकेट एसोसिएशन, तनिष्क क्रिकेट अकादमी और अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी ने खुद का उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन में विलय कर दिया हो लेकिन मान्यता के मामले में अभी कई पेंच है।

यूनाईटेड क्रिकेट एसोसिएशन के के त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि अब दो अन्य एसोसिएश उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन और क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ उत्तराखण्ड को नई एसोएिसशन में विलय कर लेना चाहिए ताकि उत्तराखण्ड की क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई के समक्ष उत्तराखउ की क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता का मामला रखा जा सके। जानकारों का कहना है कि जब तक चंद्रकांत आर्य और हीरा सिंह बिष्ट के संरक्षण वाली एसोसिएशन साथ नहीं आती मान्यता का मामला लटका रह सकता है।

देवभूमि उत्तराखण्ड की प्रतिभाओं ने यूं तो हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है, लेकिन इस पहाड़ी राज्य में क्रिकेट की मूलभूत सूहलियतें न होने के बावजूद भी यहां के लड़के-लड़कियों ने देश-विदेश में अपने देश-प्रदेश का नाम रोशन करने का काम किया है। इस समय राज्य के 20 से अधिक खिलाड़ी दूसरे राज्यों की टीमों से जूनियर व सीनियर क्रिकेट टीम में खेल रहे हैं। लड़के ही नहीं, उत्तराखंड की लड़कियां भी क्रिकेट में नाम कमा रही हैं। अल्मोड़ा की एकता बिष्ट राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम की सदस्य हैं और इस समय ऑस्ट्रेलिया के साथ विशाखापत्तनम में श्रृंखला खेल रही हैं। अकेले पंजाब की महिला क्रिकेट टीम में उत्तराखंड की चार लड़कियां खेल रही हैं।

इन उपलब्धियों के बावजूद यहां के युवा उत्तराखंड टीम से क्यों नहीं खेल सकते? वे दूसरे राज्यों में जाकर खेलने को विवश क्यों हैं? इस राज्य में क्रिकेट की शुरुआत 1937 में देहरादून से डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के गठन के साथ हुई। फिर यह एसोसिएशन पहले देहरादून और बाद में नैनीताल में गठित की गई। देहरादून की डिस्ट्रिक्ट लीग को इस साल 61 साल पूरे हो गए हैं, जबकि नैनीताल की क्रिकेट लीग भी लगातार आयोजित होती रही है। भारतीय टीम के कई सितारे इससे पूर्व देहरादून में आयोजित होने वाले गोल्ड कप में खेल चुके हैं। खुद भारत के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने दो बार गोल्ड कप में झारखंड की टीम से भाग लिया है।
इस सबके बावजूद राज्य के क्रिकेट-प्रेमी खिलड़ियों ने हार नहीं मानी है। उनका संघर्ष जारी है और राज्य के युवाओं की क्रिकेट के प्रति दीवानगी साफ नजर आती है। मैदानों की तो बात ही जाने दीजिए, यहां पहाड़ों पर भी आपको अगर कोई खेल दिखाई देगा तो वह क्रिकेट ही है। राज्य के क्लबों और एसोसिएशनों से जुड़े खिलाड़ी इस समय पंजाब, राजस्थान, सिक्किम और दिल्ली जैसे राज्यों से खेल रहे हैं। यह सिर्फ बीसीसीआइ की मान्यता न मिलने के कारण है कि इन खिलाड़ियों को दूसरे राज्यों से खेलना पड़ रहा है। इस मामले में प्रदेश सरकार भी अब सक्रिया दिख रही है। राजधानी देहरादून के रायपुर में राजीव गांधी अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण तेजी से चल रहा है और हल्द्वानी में भी जल्द ही इसी तरह का क्रिकेट स्टेडियम अस्तित्व में आ जाएगा।

वर्तमान में प्रदेश में क्रिकेट को लेकर उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) ही सबसे अधिक सक्रिय और संजीदा दिखाई देती है। उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के निदेशक व सचिव दिव्य नौटियाल के अनुसार, प्रदेश में यूसीए ही एकमात्र एसोसिशन है जिससे राज्य के सभी 13 जिलों में क्रिकेट एसोसिएशन जुड़ी हैं। बकौल नौटियाल हम सीनियर, जूनियर, महिला और दृष्टि बाधित सभी कैटगरी की प्रतियोगिताओं का लगातार आयोजन कर रहे हैं।

राज्य गठन को 15 साल हो गए हैं, लेकिन क्रिकेट दूसरों के रहम करम पर चल रही है। बीसीसीआई से राज्य को यही सुविधा मिली कि उसको उत्तर प्रदेश से संबद्ध किया हुआ है। लेकिन क्रिकेटरों को कितना मौका मिल रहा है यह वे ही जानते हैं। साफ है कि जब तक राज्य की अपनी एसोसिएशन नहीं होगी तब तक राज्य की क्रिकेट में भटकाव का ही दौर रहेगा। पर इस धकमपेल से साफ जाहिर है कि उत्तराखंड के सितारे दुनिया के क्रिकेट के आकाश में चाहे जितनी चमक बिखेर रहे हों, यहां बीसीसीआइ से मान्यता की डगर अभी मुश्किल है।

Thursday, June 25, 2015

Rocketing Institutes of India

Aerospace/Aeronautical Engineering,  also known as ‘Rocketery/Aviation Science’, is a Specialized Field of Engineering that involves the science & engineering of aircrafts and spacecrafts including aeroplanes, helicopters, rockets, missiles, space stations, UAVs etc. operating within and outside the earth’s atmosphere. It involves studying, designing, construction and maintenance of aerial vehicles.
A Space-Shuttle Carrier Aircraft
This special feature of JNN9 India (Website-Blog-Journal) in collaboration with North India Statesman (Daily Newspaper) brings you the Top Engineering colleges offering Aerospace Engineering and the scope and opportunities in this branch.  Else-where in the World, universities have been separately rated for specific branches of science; But apparently, our young enthusiast have a little glitch in finding ranks of colleges in India strictly concerned to their academic discipline. Our team took this enormous task and began updating its database of 700+ colleges/deemed universities & autonomous institutes, also consulting them with the ranking process, we also took slight account of other rating agencies and segregated our database. We gathered the data based on funding & infrastructural public record from Central & State Govt., NAAC rating score, and most importantly the GATE results- signifying the emphasis on the ‘dream’ institutes of students and their parents as well. So,  let’s find out.
A vapor-cloud formation on a fighter jet - F15

     The best Aero-Institutes in India are as follows :-

AIR=  All India Rank
  1. Indian Institute of Science Bangalore
  2. Indian Institute of Technology, Bombay (Mumbai)
  3. Indian Institute of Technology, Kanpur
  4. Indian Institute of Space Science and Technology, Thiruvananthapuram
  5. Indian Institute of Technology, Madras (Chennai)
  6. Indian Institute of Technology, Kharagpur
  7. Indian Institute of Engineering Science and Technology, Shibpur (Howrah)
  8. PEC University of Technology Chandigarh
  9. Feroze Gandhi Institute of Engineering and Technology Rai Bareli
  10. Madras Institute of Technology, Anna University, Chennai
  11. Birla Institute of Technology, Mesra, Ranchi
  12. Andhra University College of Engineering (a declared IIEST), Visakhapatnam
  13. University College of Engineering, RTU, Kota, Rajasthan

The following award only Masters or higher degrees, so of little interest to Bachelors aspirants and hence placed comparatively lower:

Two of these institutes deserve special notes, namely- IISc Bengaluru and FGIET, Rai Bareilly. Both as compared to each other are a contrast image. IISc being a very old established Institute of National Importance whereas FGIET is a nascent institute but still competing with other prestigious Institutes of National Importance like the IITs, IIEST's and IISc. IISc is profoundly funded and administered by the MHRD whereas FGIET is a state-funded institution. But, the common thing between these two is that both are contributing to the Nation. Also, the other ranking and top-notch colleges hold promises that our nation is surely leaping bounds in aerospace capabilities. 


Iridescent Star Performer:

In IISc-Bangalore, the most fascinating thing is the course-study and it’s promising final output. The faculty is handpicked and owing to much innovative and flexible course structure allows a firm research base development. Students enrolled in the program take courses in Engineering, Mathematics and Physics for three semesters (1-3) which are common and compulsory to all. In the next four semesters (4-7), they choose a major discipline of study and take a handful of other science courses and a stipulated number of engineering courses. The last semester is devoted to a final project. Besides, all the students, spend a couple of months in various research institutes across the country exploring a topic or a research problem of their interest which boosts their innovation index . The academic structure seems to be much inspired from the Foreign Research Institutes (MIT, CalTech, Harvard, Standford, Princeton etc.) which have a diverse and interdisciplinary study course.


Young Missile Performer:

FGIET, Rai Bareli, UP established in 2004 is relative a very young institute when compared to other top ranking colleges. It is also the only-State Government funded institute in the Top 10, all others are profoundly funded by the Central Govt. and other organizations/ Departments.

Despite it’s comparatively small budget than the million dollar IITs/IISc , the FGIET students are developing deep understanding of the subject by being introduced to live aircrafts through IGRUA, an innovative approach by the Management to instil practical know-how of aero-machinery without a heavy consumption of monetary resources.   The tailored students have begun fruiting as they are performing well in esteemed GATE exams.
In the 2015 results, 11 students so far have been admitted in IISc/IITs/IIST. That's a pretty impressive digit since out of total 30 seats, only 11 are unreserved, the rest being reserved as per the State Government policy.

All India Topper (AIR 1)of Aerospace Branch - Raghu is an FGIET-2014 passout.
All India Rank 3, Mohd. Anwar had been offered IISc Bengaluru, IIT Bombay, IIT Madras, IIST Thiruvananthapuram and several other IITs.
Similarly, Mayank Verma received offers from IIT Kanpur, IIT Kharagpur, IIT Bhubaneshwar, IIT Guwahati  and reputed NITs.
Many other students got below hundred rank in GATE hence are expected to get through the prestigious institutes of the nation like the IITs/IIST/IISc and several other prominent engineering science research institutes.
Concept Drawing: Adaptive Morphing Aerial Vehicle

Ranks of Other Reputed Institutes (privately-financed) are:- 

(List Accordingly these institutes thus achieved 16th AIR to 30th AIR resp. )

           PIR-Private Institute Ranking                                                                                      
After you earn a degree in aeronautical engineering, you can work almost anywhere in the world where there is aviation utilization. Their job is concerned with various areas like design, maintenance and development, besides which there are teaching positions in top universities. They can work in air turbine production plants, manufacturing units, airlines, and many more fields. In fact most of the engineers at NASA are Indian engineering graduates. In the computer field, you can also draw plans using CAD software. Another important field is the air accident investigation, which tries to eliminate air mishaps.


The job is very attractive and provides a prestigious position as well. Besides, the salary is lucrative, which is why many youth are attracted towards making a career in this field. The average starting salary is much higher as compared with other fields of engineering.

But there’s more than just salary, more important is being associated with Nation’s top R&D programs is itself an honorary work. The aspirants instilled with Nationalism and sense of service to Nation would find very satisfying career prospects in this sector. You can do wonders to the pride of Nation. Even our P.MHon’ble Narendra Damodardas Modi is keenly interested in development of Defence through air-superiority and it’s indigenization program would only be possible through our own scholars. Multitude of billion-dollar deals with leading International industries is just the commencement of the enormous flow of economic and technological revenue going to take place in India. Thus it’s not rocket-science to estimate that in coming years we are going witness a rocket-boom in our upcoming aero-hub.
Rocket Propulsion (a.k.a Rocket Science)

Monday, July 28, 2014

रेप्लिका आफ सरदार पटेल

इतिहास बताता है कि भारत वर्ष 1947 में आजाद हो चुका है, लेकिन सही मायनों में कहा जाए तो भारत को अंग्रेजों के कब्जे से भले ही आजादी 1947 में मिल गई होलेकिन असली आजादी तो 26 मई 2014 को ही मिली है,जिस दिन आजाद भारत में ही जन्मे भाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने भारत के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है।

स्वामी विवेकानन्द जी एवं नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे देशभक्तों के विचारों एवं गुणों से ओत-प्रोत और सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमूर्तिभाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने पूरे हिन्दुस्तान में नई ऊर्जा का संचार ही नहीं किया हैअपितु उनका व्यक्तित्व निश्चित रूप से भारत देश को उन बुलन्दियों पर पहुंचायेगा जिसकी कल्पना हमारे पूर्वजों ने अपना बलिदान देकर की थी।
दो सौ वर्षों की गुलामी कराने के बाद अंग्रेजों ने जिस हिन्दुस्तान को आजाद किया था,दरअसल उसकी चाबी अंग्रेजों ने अपने पिठ्ठुओं के ही हांथ सौंपी थी। हिन्दुस्तान का पहला प्रधानमंत्री जो व्यक्ति बनावह सम्पूर्ण कांग्रेस की पसन्द का कतई ना होकर मात्र महात्मा गांधी और अंग्रेजों की पसन्द का ही था। वरना क्या वजह थी कि उस समय मौजूद पन्द्रह कांग्रेस कमेटियों में से 12 कांग्रेस कमेटियों द्वारा सरदार पटेल का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए संस्तुत किये जाने के बाद और तीन कांग्रेस कमेटियों द्वारा किसी के भी नाम की संस्तुति ना करने के बाद भी एवं किसी भी एक कांग्रेस कमेटी से पं0 जवाहर लाल नेहरू के नाम की संस्तुति ना होने के पश्चात भी पं0 नेहरू को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बना दिया गया।
दरअसल सम्पूंर्ण कांग्रेस कमेटी द्वारा सरदार पटेल के नाम की ही सिफारिश मिलने के बाद महात्मा गांधी जी ने सरदार पटेल पर दबाव डाला कि वे इस पद से इस्तीफा दे दें,क्योंकि वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ही बनें। महात्मा जी की बात का आदर करते हुए सरदार पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने से इन्कार कर दिया और पं0 नेहरू का नाम प्रधानमंत्री के लिए प्रशस्त हो गया। इसी दरम्यान लेडी माउण्टबेटन द्वारा जिन्ना के कान भरे गये कि जब एक भी कांग्रेस कमेटी द्वारा नेहरू के नाम की सिफारिश ना आने के बाद भी उनका नाम प्रधानमंत्री बनाये जाने के लिए आ रहा है,तो तुम किस हिसाब से उनसे कम हो! जिन्ना को लेडी माउण्टबेटन ने बरगलाकर प्रधानमंत्री पद लिए दौड़ लगवा दी।

बस फिर क्या था,जिन्ना ने भी प्रधानमंत्री बनने की जिद पकड़ ली और नतीजा सबकी आंखों के सामने है कि जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हिन्दुस्तान के दो टुकड़े करके पाकिस्तान को अलग राष्ट्र बना दिया गया। तथ्यात्मक विश्लेषण से प्रकट होता है कि अंग्रेजों ने जाते-जाते हिन्दुस्तान के दो टुकड़े ही नहीं किये अपितु उस महात्मा की भी छुट्टी करा दी,जिसने उनके कहे पं0 नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री पद सौंप दिया था। इतना ही नहीं अंग्रेज ऐसा बीज बोकर गये कि उसका खामियाजा हम हिन्दुस्तानी आजतक भुगत रहे हैं।
सोचिए यदि हिन्दुस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल होते तो जिन्ना भी मैदान में ना आते,पाकिस्तान का भी उदय ना होता और कश्मीर के लिए धारा-370 के सृजन की भी आवश्यकता नहीं पड़ती! जिस पर आज बहस के लिए भी लोग जहर उगल रहे हैं। यह सब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पं0 नेहरू को ही प्रधानमंत्री बनाये जाने की जिद के ही कारण हुआ। नरेन्द्र मोदी से पूर्व के समस्त प्रधानमंत्रियों में से एकमात्र लालबहादुर शास्त्री ही ऐसे प्रधानमंत्री थे जो यदि जिन्दा होते तो भारत की तस्वीर भी दूसरी होती। लेकिन उनकी संदेहास्पद मौत के बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम ना कराया जाना निश्चित रूप से जांच के दायरे में आना चाहिए था लेकिन ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया।

इसी तरह इस देश के गौरव पुरूष सुभाष चन्द्र बोस को भी गुमनामी की अंधेरी खोह में इरादतन डुबो दिया गया। जिस शक्स ने अपने देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजादी दिलाने के लिए इण्डियन सिविल सेवा में टाप करने के बाद भी उसे ज्वाइन ना किया हो और स्वतन्त्रता के लिए इण्डियन सिविलियन आर्मी (आजाद हिन्द फौज) का गठन किया हो एवं अंग्रेजों से लोहा लेकर जंग जीती हो वह भारत को आजादी दिलाने के बाद कहीं छिप क्यों जायेगा? कहीं भाग क्यों जायेगा? जिस विमान दुघर्टना में उनके मारे जाने का भ्रम फैलाया गया है,मेरा मानना है कि दरअसल ऐसी कोई विमान र्दुघटना तब हुई ही नहीं थी।
ऐसे वीर सपूतों के हांथ में यदि भारत की सत्ता आई होती तो माना जाता कि देश स्वतन्त्र हुआ लेकिन भारत देश वास्तव में 26 मई 2014 की दोपहर तक परतन्त्र ही था। असली मायनों में स्वराज तो 26 मई की शाम को आया है, जब इस देश के प्रधानमंत्री की शपथ भाई नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने ली है। इस आजाद भारत के प्रधानमंत्री को मेरी एक छोटी सी सलाह है कि वे अबसे किसी भी मायने में सरदार वल्लभ भाई पटेल वाली गलती नहीं दोहरायेंगे। अब आप देश के लिए हैं। आपका समय, आपका शरीरआपकी आत्मा सब देश के लिए हैऔर ऐसा आप कर भी रहे हैं, फिर भी इसे आपको हमेशा अपने जहन में रखना होगा।
सरदार पटेल ने यदि महात्मा गांधी जी की बात ना मानी होती और पन्द्रह कांग्रेस कमेटियों द्वारा उनके नाम को संस्तुत किये जाने को देशहित में मानते हुए आदर-सम्मान दिया होता तो निश्चित रूप से भारत आज विश्व का लीडर एवं हरा भरा खुशहाल राष्ट्र होता! तब धारा-370 का ना तो उदय होता और ना ही इस पर किसी बहस की आवश्यकता होती! इसीलिए नरेन्द्र मोदी जी को कोई भी निर्णय इसलिए नहीं लेना है यदि ऐसा नहीं किया तो वो नाराज हो जायेगा और वैसा ना किया तो ये नाराज हो जायेगा। आपको भीष्म पितामह की तरह हस्तिनापुर से बंधे नहीं रहना हैभले ही हस्तिनापुर में अधर्म होता रहे। वे इस देश के सवा सौ करोड़ से अधिक भारतीयों के संरक्षक हैं,वे अब मात्र भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नहीं हैंवे भारतीय जनता पार्टी के नेता तो हैं, लेकिन प्रधानमंत्री भारत के हैं और पूरा भारत किसी एक पार्टी का कतई ना तो है और ना ही हो सकता है।
इसी वेबसाइट पर कई एक ऐसे लेख विगत तीन वर्षां के दौरान लिखे गये है जब स्तम्भकार को पता ही नहीं था कि इस देश से एक राजवंश का शासन कभी समाप्त भी होगा। ऐसे लेखों के लिंक नीचे लगाये जा रहे हैं। अपने उस सलाहकार को सुपुर्द करना चाहें जो जोधा की तरह अकबर को चाहता हो ना कि बेगम रूकईया की तरह शहंशाह को। तय मानिये शहंशाह जलाल को अकबर महान बनाने में एकमात्र योगदान जोधा एवं उसके बीरबल जैसे सलाहकारों का ही था।
नरेन्द्र मोदी नाम की शक्सियत एक मिश्रित व्यक्तित्व हैसरदार पटेल,स्वामी विवेकानन्द और सुभाष चन्द्र बोस का। निश्चित रूप से सरदार पटेललौह पुरूष थेलेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भारत को आवश्यकता है स्टील पुरूष की,जिसमें लचीलापन भी हो और दृढ़ता भी। नरेन्द्र मोदी जी के शीर्ष प्राथमिकता पर इण्टरनल और बार्डर सीक्योरिटी होनी चाहिए और इन सबसे ऊपर उनकी अपनी सीक्योरिटी! मोदी जी के दुश्मनों की तादाद 26 मई 2014 के बाद से बहुत बढ़ गई हैफिर चाहे यह अपने देश में छिपे गद्दारों से हो अथवा विदेशीयों से। यह कोई हल्के में लेने या ओवर कान्फीडेन्स में होने का प्रश्न नहीं है।
आखिरकार लाल बहादुर शास्त्री को दूर देश में ही मरा पाया गया और वीर बहादुर सिंह भी विदेश में ही मारे गये। अन्दरूनी आतंक और उससे जुड़ा आतंकवाद बहुत बड़ी समस्या है। एनआईआईबीरास्पेशल ब्यूरो जैसी संस्थायें जो सुप्तावस्था में हैंउन्हें जगाने और ताकतवर बनाने की आवश्यकता है। उनके पास सारी जानकारी रहती है, वे इसे समय-समय पर सरकार के मुखिया को उपलब्ध भी कराती हैंलेकिन जब मुखिया ही उन्हें देखकर साइड-ट्रैक करने के मूड में रहता हो तो वे क्या कर सकती है। र्दुभाग्य रहा है इस देश का कि उनकी एडवाइस और फाइलें वे देखते हैं जो स्वंय गुनहगार हैं।
मेरा निश्चित मत है कि नरेन्द्र मोदी जी सरदार पटेल की ही रेप्लिका हैं। जिस सरदार पटेल ने 543 रियासतों को भारत में मिलाकर संसद की उत्पत्ति की,उस सरदार पटेल की कश्मीर के मामले में दी गई सलाह को पं0 नेहरू ने ना मानकर कश्मीर मुद्दे को यूनाइटेड नेशन काउन्सिल को रेफर कर दिया,वही मुद्दा आजतक नहीं निपट सका है और झगड़े की जड़ बना हुआ है। यही इतिहास की सबसे बड़ी भूल है, जिसके लिए नेहरू कम सरदार पटेल ज्यादा जिम्मेदार हैं। मोदी जी ध्यान रखें जो होस्टाइल कंडीशन भारत की तथाकथित आजादी से पूर्व थीं,वे ही कन्डीशन वर्तमान में भी मौजूद हैं,क्योंकि 25 मई तक इस देश में एक राजवंश का ही शासन था।
       The problem of the State (India) is so difficult that only & only Narendra Modi alone can handle it. Satish Pradhan

मेरे जैसे और भी लाखों भारतवासी आपको भारत का स्वतंत्र पंधानमंत्री बनते देख अपार खुशी का अनुभव करते हैं और आपके दीर्घायू होने और देशहित में कठोर से कठोर निर्णय लेने की कामना करते हैं। यदि शरीर का कोई अंग कैंसर से पीड़ित है तो उसका पोषण करने के बजाय उसका काटा जाना ही श्रेष्ठ इलाज है।
आपके साथ इस देश के 282 सांसद ही नहीं हैं, पूरा देश आपके साथ है। देशहित के हर निर्णय में यह पूरा देश आपके साथ खड़ा मिलेगा। इसे ना तो जयललिता रोक सकती हैंना ही ममता अथवा कोई और। बस जिसकी जगह जहां हैउसे वहीं पहुंचा दीजिए। जिसका जो काम हैउसे वही करना चाहिए। सरकार का काम नीतियां बनानाशासन एवं प्रशासन चलाना और अपना इकबाल कायम करना है। उसका काम आटादालतेलजूतामिट्टी का तेल और पैट्रोल बेचना नहीं है। इस पैरे को यदि सरकारें जान जाएं तो किसी भी और नुस्खे की आवश्यकता नहीं है।